जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-प्रथम, लखनऊ।
वाद संख्या 483/2014
श्री अजीत सिंह, आयु लगभग 29 वर्ष,
पुत्र श्री गौरी शंकर सिंह,
निवासी-सी-2430, इंदिरा नगर,
थाना-गाजीपुर, लखनऊ, उ0प्र0।
......... परिवादी
बनाम
प्रोपराइटर,
लिबर्टी शूज लि0 लखनऊ,
रिटेल सेंटर (आउटलेट),
दुकान नं.एस0-95, ऊपरी तल,
भूतनाथ मार्केट, इंदिरा नगर,
थाना- गाजीपुर, जिला-लखनऊ, उ0प्र0।
..........विपक्षी
उपस्थितिः-
श्री विजय वर्मा, अध्यक्ष।
श्रीमती अंजु अवस्थी, सदस्या।
श्री राजर्षि शुक्ला, सदस्य।
निर्णय
परिवादी द्वारा यह परिवाद विपक्षी से जूते का मूल्य रू.2,199.00 मय 18 प्रतिशत ब्याज, क्षतिपूर्ति के रूप में रू.50,000.00, वाद व्यय के रूप में रू.2,000.00 तथा अधिवक्ता की फीस के रूप में रू.11,000.00 दिलाने हेतु प्र्र्र्र्र्र्र्र्रस्तुत किया है।
संक्षेप में परिवादी का कथन है कि उसने दिनांक 14.04.2014 को विपक्षी से लिबर्टी फोर्स-10 हरे रंग का 43 नम्बर का जूता खरीदा था। क्रय तिथि के एक माह के अंदर दिये गये निर्देशों के अधीन परिवादी ने फोर्स-10 जूते को पहनना शुरू किया तो पहनने के बाद वह जगह-जगह से क्रेक और उसमें लगी हरे रंग की जाली फट गयी और
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वह स्तरहीन होने के कारण बाहर पहनने के लायक नहीं रह गया। परिवादी ने इस संबंध में अपनी शिकायत को विपक्षी के सामने रखा जिस पर बार-बार अनुरोध करने के बावजूद विपक्षी ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया और स्टोर से बाहर निकालकर परिवादी को अपमानित किया। विपक्षी ने अपने सामान की झूठी तारीफ करके, टिकाऊ बताकर निम्नतर उपभोक्ता सामग्री की आपूर्ति कराकर परिवादी के साथ धोखा किया है। परिवादी ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से पंजीकृत विधिक नोटिस दिनांक 14.07.2014 को विपक्षी को भेजा जिस पर कोई ध्यान विपक्षी ने नहीं दिया। अतः परिवादी द्वारा यह परिवाद विपक्षी से जूते का मूल्य रू.2,199.00 मय 18 प्रतिशत ब्याज, क्षतिपूर्ति के रूप में रू.50,000.00, वाद व्यय के रूप में रू.2,000.00 तथा अधिवक्ता की फीस के रूप में रू.11,000.00 दिलाने हेतु प्र्र्र्र्र्र्र्र्रस्तुत किया है।
विपक्षी को नोटिस भेजे जाने के बाद भी उनकी ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ, अतः उनके विरूद्ध आदेश दिनांक 02.12.2014 के अनुसार एकपक्षीय कार्यवाही की गयी।
परिवादी द्वारा अपना शपथ पत्र मय 2 संलग्नक दाखिल किया गया।
परिवादी की बहस सुनी गयी एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
इस प्रकरण में परिवादी ने विपक्षी से एक लिबर्टी फोर्स-10 जूता दिनांक 14.04.2014 को खरीदा और एक महीने में ही वह जगह-जगह से क्रेक हो गया और उसमें लगी हरे रंग की जाली फट गयी और स्तरहीन होने के कारण वह बाहर पहनने लायक नहीं रह गया जिसकी शिकायत विपक्षी से की गयी, परंतु विपक्षी ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। परिवादी ने संलग्नक सं0 1 के रूप में जूता खरीदने की रसीद की फोटोप्रति दाखिल की है जिससे स्पष्ट होता है कि उसके द्वारा दिनांक 14.04.2014 को विपक्षी से एक जूता रू.2,199.00 में खरीदा गया था। परिवादी की ओर से संलग्नक सं0 2 के रूप में विपक्षी को भेजे गये विधिक नोटिस की प्रति दाखिल की गयी है। परिवादी ने अपने परिवाद पत्र के कथन के समर्थन में अपना शपथ पत्र दाखिल किया है जिसमें उसने परिवाद के सभी तथ्यों का समर्थन किया है।
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विपक्षी को नोटिस भेजा गया था, किंतु उनकी ओर से कोई भी जवाब देने के लिए उपस्थित नहीं हुआ, अतः दिनांक 02.12.2014 के आदेश द्वारा उनके विरूद्ध एकपक्षीय कार्यवाही की गयी। विपक्षी की तरफ से न तो कोई उत्तर दाखिल किया गया और न ही कोई शपथ पत्र दाखिल किया गया। ऐसी स्थिति में परिवादी द्वारा शपथ पत्र पर किये गये कथनों और उसके द्वारा दाखिल किये गये अभिलेख पर विश्वास न करने का कोई कारण दृृष्टिगत नहीं होता है। परिवादी द्वारा जो साक्ष्य दिये गये हैं उनसे स्पष्ट होता है कि परिवादी का जूता एक महीने बाद ही खराब हो गया जिसकी शिकायत विपक्षी से करने पर भी उन्होंने कोई कार्यवाही नहीं की और उन्हें भेजे गये विधिक नोटिस का भी कोई उत्तर नहीं दिया। स्पष्टतः परिवादी को एक खराब जूता विक्रय किया गया। इस प्रकार विपक्षी द्वारा परिवादी को खराब जूता विक्रय करके न केवल अनुचित व्यापार प्रक्रिया अपनायी गयी, बल्कि सेवा में कमी भी की गयी है। परिणामस्वरूप परिवादी जूते का मूल्य मय ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी है। साक्ष्य से यह भी दृष्टिगत होता है कि परिवादी जब जूते के संबंध में शिकायत करने विपक्षी के पास गया तो विपक्षी द्वारा उसकी शिकायत पर कोई कार्यवाही नहीं की गयी और इसके विपरीत परिवादी को अपमानित करके स्टोर से बाहर निकाला गया जिससे स्पष्ट रूप से उसे मानसिक एवं शारीरिक कष्ट हुआ जिसके लिए वह क्षतिपूर्ति एवं वाद व्यय भी प्राप्त करने का अधिकारी है।
आदेश
परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को जूते का मूल्य रू.2,199.00 (रूपये दो हजार एक सौ नब्बे मात्र) का भुगतान 9 प्रतिशत प्रतिवर्ष ब्याज सहित परिवाद दाखिल करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक परिवादी को अदा करें।
साथ ही विपक्षी को यह भी आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को मानसिक कष्ट के लिए क्षतिपूर्ति के रूप में रू.3,000.00 (रूपये तीन हजार मात्र) एवं वाद व्यय के रूप में रू.2,000.00 (रूपये
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दो हजार मात्र) अदा करें। विपक्षी उपरोक्त आदेश का अनुपालन एक माह में करें।
(राजर्षि शुक्ला) (अंजु अवस्थी) (विजय वर्मा)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
दिनांकः 21 मार्च, 2015