जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम, लखनऊ।
परिवाद संख्या:- 114/2009 उपस्थित:-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
श्रीमती सोनिया सिंह, सदस्य।
श्री कुमार राघवेन्द्र सिंह, सदस्य।
परिवाद प्रस्तुत करने की तारीख:-29.01.2000
परिवाद के निर्णय की तारीख:-02.05.2023
Raja Ram aged about 70 years, S/o Late Ant Ram, R/o Vill & Post-Kaurari Khera, Distt. Mainpuri (U.P.) .
…………….Complainant.
Versus
Lucknow Development Authority, Through its Secretary, Vipin Khand, Gomti Nagar, Lucknow.
………………. Opposite Party.
परिवादी के अधिवक्ता का नाम:-श्री संजय दुबे।
विपक्षी के अधिवक्ता का नाम:-कोई नहीं।
आदेश द्वारा-श्री कुमार राघवेन्द्र सिंह, सदस्य।
निर्णय
1. परिवादी ने प्रस्तुत परिवाद अन्तर्गत धारा 35 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के तहत विपक्षी से पूर्व आवंटित आवास पर कब्जा दिलाये जाने अथवा उसकी जगह किसी अन्य स्थान पर समान शर्तों/नियमों के अन्तर्गत आवास दिलाये जाने तथा यदि उक्त आवास पर नियमानुसार कब्जा दिलाये जाने में असमर्थता हो तो विपक्षी परिवादी द्वारा जमा कुल धनराशि 2,60,000.00 रूपये पर उचित मुआवजा सहित दिलाये जाने तथा मानसिक व शारीरिक कष्ट हेतु 50,000.00 रूपये दिलाये जाने की प्रार्थना के साथ प्रस्तुत किया है।
2. संक्षेप में परिवाद के कथन इस प्रकार हैं कि परिवादी द्वारा अपने परिवार के निवास के लिये एल0डी0ए0 से दिनॉंक 10.08.2000 को आवेदन के माध्यम से एक आवास के लिये प्रार्थना की गयी जिस पर विपक्षी ने परिवादी को आवास संख्या 1118/5 एचआईजी विरामखण्ड-5 गोमती नगर, लखनऊ में दिनॉंक 23.01.2001 के पत्र द्वारा कैश सेल सिस्टम के आधार पर एक आवास आवंटित किया गया। आवंटन पत्र में आवास की कीमत 10,73,500.00 रूपये उल्लिखित की गयी, तथा फाइनल कीमत आंकलन के बाद दिए जाने का उल्लेख किया गया है।
3. विपक्षी एल0डी0ए0 के अधिकारियों द्वारा परिवादी से क्रमश: दिनॉंक 15.01.2001 को 1,20,000.00 रूपये तथा दिनॉंक 27.09.2001 को 1,40,000.00 रूपये कुल 2,60,000.00 रूपये जमा कराये गये, जिसकी सूचना परिवादी द्वारा दिनॉंक 27.09.2001 के पत्र द्वारा विपक्षी एल0डी0ए0 के अधिकारियों को दे दी गयी। उसके बाद भवन पूर्ण होने या उसके बारे में कोई सूचना विपक्षी द्वारा परिवादी को नहीं दी गयी। परिवादी ने वास्तविक स्थिति ज्ञात करने के लिये कई बार विपक्षी एल0डी0ए0 के आफिस गया तथा पत्र भी भेजे, परन्तु उनके द्वारा कोई स्थिति न मालूम होने के बाद परिवादी ने मा0 नगर विकास मंत्री जी को भी इस संबंध में एक पत्र प्रेषित किया।
4. परिवादी द्वारा प्रयास करने के बाद परिवादी को विपक्षी एल0डी0ए0 से कोई जवाब अथवा सूचना न मिलने के बाद परिवादी आवंटित आवास की स्थिति जानने हेतु दिनॉंक 29.08.2006 को उस स्थान पर गया तो वह यह देखकर अवाक व आश्चर्यचकित रह गया कि वह आवंटित आवास किसी अन्य के कब्जे में है और उस पर उसकी नेमप्लेट श्री भूपेन्द्र सिंह, सहायक कमांडेंट, रेलवे सुरक्षाबल की लगी है, जिसे देखकर उसे मानसिक आघात लगा। उसके बाद परिवादी कई बार विपक्षी एल0डी0ए0 के अधिकारियों के यहॉं गया और उनसे संपर्क किया, परन्तु किसी ने उसकी समस्या का समाधान नहीं किया।
5. परिवादी एक सीनियर सिटीजन है। इतना लम्बा समय बीत जाने के उपरांत भी उसे आवास न मिलने से उसे मानसिक व शारीरिक कष्ट हुआ। वृद्धावस्था को देखते हुए उसने अपने पुत्र श्री सुरेश चन्द्र के नाम पॉवर ऑफ अटार्नी दिनॉंक 30.06.2007 को निर्गत कर दी जिससे उस आवास के बारे में वह उसकी पैरवी आदि कर सके।
6. परिवादी का यह भी कथानक है कि सर्वप्रथम काज ऑफ एक्शन दिनॉंक 23.01.2003 को उत्पन्न हुआ क्योंकि आवास हेतु अग्रिम धनराशि 2,60,000.00 रूपये जमा होने के बाद आवंटन करने के बाद भी आवास पर आज तक कब्जा न देकर विपक्षी द्वारा परिवादी के साथ न्याय नहीं किया गया है। इस प्रकार विपक्षी द्वारा परिवादी के साथ सेवा में कमी व अनुचित व्यापर प्रक्रिया अपनायी है।
7. विपक्षी ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत करते हुए कथानक किया कि उनके द्वारा परिवादी को आवास संख्या 1118/5 एचआईजी विरामखण्ड-5 गोमती नगर लखनऊ में वर्ष 2000 में कैश पेमेंट बेसिस पर आवंटित किया गया था। परिवादी ने मात्र पंजीयन धनराशि 2,60,000.00 रूपये ही जमा किया था। उसके बाद शेष धनराशि जमा करने के लिये लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा क्रमश: 23.01.2001, 10.09.2001, 18.01.2002, 07.06.2002 तथा 04.09.2002 को पत्र भेजे कि आवास के लिये अवशेष धनराशि जमा कर दें, परन्तु परिवादी द्वारा कोई संज्ञान नहीं लिया गया।
8. विपक्षी ने दिनॉंक 29.11.2002 को एक पत्र पुन: परिवादी को भेजा जिसमें उसका आवंटन निरस्त करते हुए उसकी जमा धनराशि वापस प्राप्त करने के लिय निर्देशित किया गया था। विपक्षी का कथानक है कि दिनॉंक 23.01.2001 के पत्र का हवाला परिवादी द्वारा अपने परिवाद के संलग्नक-04 पर लिखे गये पत्र में उल्लेख किया गया है। परिवादी को पर्याप्त अवसर देने के उपरान्त ही उसे पूर्व में आवंटित आवास दूसरे को आवंटित किया गया था। विपक्षी का कथानक है कि यहॉं कोई उपभोक्ता विवाद नहीं है, क्योंकि परिवादी ने आवास की शेष धनराशि समय पर उनके नोटिस देने के बाद भी जमा नहीं किया, इसलिये उसका आवंटन निरस्त कर किसी अन्य को आवंटित कर दिया गया।
9. विपक्षी द्वारा यह भी कथानक किया गया है कि परिवादी द्वारा जमा कुल धनराशि 2,60,000.00 रूपये को रिफन्ड बाउचर दिनॉंक 04.04.2008 को 2,36,000.00 रूपये परिवादी को भेजा गया, नियमानुसार धनराशि 24,000.00 रूपये की कटौती की गयी थी। इस प्रकार विपक्षी की ओर से परिवादी की सेवा में कोई कमी नहीं की गयी और न ही अनुचित व्यापार प्रक्रिया ही अपनायी गयी।
10. परिवादी ने अपने मौखिक साक्ष्य के रूप में शपथ पत्र तथा दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में भवन आवंटन किये जाने का पत्र, चालान की प्रति, परिवादी द्वारा विपक्षी को भेजे गये पत्र की प्रति, नगर विकास मंत्री को लिखे गये पत्र की प्रति, रजिस्ट्री हेतु लिखे गये पत्र आदि की छायाप्रतियॉं दाखिल की गयी हैं। विपक्षी की ओर से मौखिक साक्ष्य के रूप में शपथ पत्र तथा दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में अनुभाग अधिकारी का पत्र, लिफाफे की प्रतियॉं, राजा राम को लिखे गये पत्र, रजिस्ट्रेशन डिटेल्स, डिटेल्स ऑफ ड्यू एमाउन्ट, प्रापटी एलाटमेंट लेटर आदि की छायाप्रतियॉं दाखिल की गयी हैं।
11. मैंने उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्ता के कथनों को सुना तथा पत्रावली का परिशीलन किया।
12. विदित है कि विपक्षी द्वारा परिवादी को एक आवास संख्या 1118/5 एचआईजी विरामखण्ड-5 गोमती नगर, लखनऊ में दिनॉंक 10.08.2000 को आवेदन के माध्यम से दिनॉंक 23.01.2001 को कैश सेल सिस्टम के तहत आवंटित किया गया। परिवादी ने उक्त आवास हेतु 2,60,000.00 (1,20,000+1,40,000) रूपये एडवांस जमा कर आवंटित कराया। परिवादी का कथानक है कि एडवान्स जमा करने के बाद वह समय-समय पर एल0डी0ए0 कार्यालय जाता रहा, परन्तु आवास निर्माण प्रगति के बारे में कोई सूचना नहीं दी गयी। कई बार जाने के उपरांत परिवादी अपने आवंटन पत्र दिनॉंक 23.01.2001 का संदर्भ देते हुए कई पत्र एल0डी0ए0 को क्रमश: दिनॉंक 27.09.2001, 03.01.2005, 18.09.2002, 12.02.2008 को प्रेषित किया कि आवास निर्माण की प्रगति व अवशेष देयक के संबंध में उसे अवगत कराया जाए, परन्तु उसे बिना कोई सूचना दिये उसका आवंटन निरस्त कर दिया गया और उक्त आवास किसी अन्य व्यक्ति को आवंटित कर दिया गया। परिवादी के साथ सेवा में कमी व अनुचित व्यापार प्रक्रिया अपनायी गयी जो विधि सम्मत नहीं है। परिवादी द्वारा जमा की गयी धनराशि भी विपक्षी द्वारा अभी तक वापस नहीं की गयी है।
13. उक्त के संबंध में एल0डी0ए0 ने अपने उत्तर पत्र में कथानक किया गया कि विपक्षी द्वारा परिवादी को समय-समय पर पत्रों क्रमश: 23.01.2001, 10.09.2001, 18.01.2002, 07.06.2002 तथा 04.09.2002 द्वारा सूचना दी गयी व आवास का अवशेष पैसा जमा करने को कहा गया परन्तु परिवादी ने उसका कोई संज्ञान नहीं लिया गया, इसलिए परिवादी का आवंटन आदेश दिनॉंक 29.11.2002 द्वारा निरस्त कर दिया गया।
14. विपक्षी द्वारा जारी सभी पत्र क्रमश: 23.01.2001, 10.09.2001, 18.01.2002, 07.06.2002 तथा 04.09.2002 में से परिवादी को मात्र दिनॉंक 23.01.2001 का पत्र प्राप्त हुआ है शेष पत्र विपक्षी द्वारा जारी किये गये होंगे परन्तु परिवादी को प्राप्त नहीं हुए हैं। एल0डी0ए0 द्वारा इस संबंध में कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है। दोनों पक्षों को स्वीकृत है कि इनका निरस्तीकरण हो गया है, और इस संबंध में एल0डी0ए0 का एक पत्र संलग्न है, उसके अवलोकन से विदित है कि दिनॉंक 29.08.2007 को सचिव के पत्र द्वारा आवंटित भवन संख्या 05/1118 स्थित विराम खण्ड निरस्त कर दिया गया है। जब सचिव के पत्र के माध्यम से परिवादी का आवंटन निरस्त कर दिया गया है तो सेवा में त्रुटि का अब कोई प्रभाव नहीं पड़ता है और निरस्तीकरण से अगर परिवादी असंतुष्ट है तो वह सक्षम न्यायालय के समक्ष अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत कर सकता है। यह स्वीकृत तथ्य है कि परिवादी द्वारा कुल 2,60,000.00 रूपये जमा किया गया है। ऐसी परिस्थिति में परिवादी द्वारा जमा की गयी धनराशि, जमा किये जाने की तिथि से 09 प्रतिशत ब्याज के साथ दिलाया जाना न्यायसंगत प्रतीत होता है।
15. उक्त के अतिरिक्त एल0डी0ए0 के निरस्तीकरण आदेश दिनॉंक 29.11.2002 के पूर्व परिवादी द्वारा एक पत्र दिनॉंक 27.09.2001 को विपक्षी को भेजकर बाकायदा रिसीव कराया गया है। उसका संदर्भ देते हुए विपक्षी द्वारा उसके बाद के प्रेषित पत्रों क्रमश: दिनॉंक 07.06.2002, 04.09.2002 तथा 29.11.2002 को संज्ञान में क्यों नहीं लिया गया। उसके बाद परिवादी ने एक पत्र पुन: दिनॉंक 03.01.2005 को विपक्षी अधिकारी को व्यक्तिगत रूप से हस्तगत कराया जिस पर अधिकारी के आदेश व हस्ताक्षर अंकित हैं, जो प्रमाणित प्रतीत होते हैं। परिवादी को भवन आवंटन निरस्त होने की सूचना विपक्षी द्वारा उपलब्ध कराने का कोई प्रमाणित साक्ष्य पत्रावली पर उपलब्ध नहीं है। परिवादी निरंतर एल0डी0ए0 के संपर्क में रहा, परन्तु एल0डी0ए0 के अधिकारियों/कर्मचारियों द्वारा उसे वास्तविक स्थिति से अवगत नहीं कराया गया व उसको अंधेरे में रखा। इसके अतिरिक्त परिवादी द्वारा जमा धनराशि 2,60,000.00 रूपये अभी तक परिवादी को वापस प्राप्त नहीं हुई है। इसका कोई लिखित साक्ष्य एल0डी0ए0 द्वारा पत्रावली पर उपलब्ध नहीं कराया गया है।
16. 18 दिसम्बर 2008 के पत्र से विदित है कि रिफण्ड एमाउन्ट 2,60,000.00 रूपये का तस्करा किया गया है, जो परिवादी प्राप्त करने के अधिकारी हैं, परन्तु जैसा कि विपक्षी द्वारा यह कथन किया गया है कि परिवादी को पैसा प्राप्त करा दिया गया है। अगर पैसा प्राप्ति का प्रमाण वह परिवादी को दिखाते हैं तो उनके बैंक के एकाउन्ट में जा चुका है। परिवादी द्वारा अपने शपथ पत्र के माध्यम से यह कहा गया कि उसे धनराशि प्राप्त नहीं हुई। अगर एल0डी0ए0 यह प्रमाण दे देते हैं कि परिवादी के एकाउन्ट में धनराशि समय से जमा हो चुकी है तो यह आदेश निष्प्रभावी समझा जायेगा और 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज एवं 50,000.00 रूपये अलग से देय होगा।
17. विपक्षी एल0डी0ए0 द्वारा रिफन्ड आदेश दिनॉंक 04.04.2008 की प्रति दाखिल की गयी है, परन्तु यह शपथपूर्वक या प्रामाणित रूप से कथन नहीं किया गया है कि परिवादी को धनराशि वापस प्राप्त करायी जा चुकी है। परिवादी को धनराशि वापस प्राप्त हुई हो ऐसा कोई साक्ष्य पत्रावली में उपलब्ध नहीं है। विपक्षी द्वारा परिवादी को सभी नोटिसें उपलब्ध न कराकर व उसका आवंटन बिना उसके संज्ञान में लाए निरस्त करना सेवा में कमी व अनुचित व्यापार प्रक्रिया अपनायी गयी है। इसके अतिरिक्त उसकी जमा धनराशि 2,60,000.00 रूपये भी अभी तक परिवादी को वापस नहीं दी गयी है, जो अनुचित व्यापार प्रक्रिया की श्रेणी में आता है। अत: परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है, तथा विपक्षी को निर्देशित किया जाता है कि परिवादी द्वारा जमा धनराशि मुबलिग 2,60,000.00 (दो लाख साठ हजार रूपया मात्र) जमा किये जाने की तिथि से भुगतान की तिथि तक 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से निर्णय की तिथि से 45 दिन के अन्दर अदा करेंगे। परिवादी को हुए मानसिक एवं शारीरिक कष्ट व वाद व्यय के रूप में मुबलिग 50,000.00 (पचास हजार रूपया मात्र) भी अदा करेंगे। यदि आदेश का अनुपालन 45 दिन के अन्दर नहीं किया जाता है तो उपरोक्त सम्पूर्ण धनराशि पर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज भुगतेय होगा।
पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रार्थना पत्र निस्तारित किये जाते हैं।
निर्णय/आदेश की प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाए।
(कुमार राघवेन्द्र सिंह) (सोनिया सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
आज यह आदेश/निर्णय हस्ताक्षरित कर खुले आयोग में उदघोषित किया गया।
(कुमार राघवेन्द्र सिंह) (सोनिया सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
दिनॉंक:-02.05.2023 लखनऊ।