राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-२०१३/१९९७
(जिला मंच, जौनपुर द्वारा परिवाद सं0-२७८/१९९६ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक १७-१०-१९९७ के विरूद्ध)
यूनियन बैंक आफ इण्डिया, सिविल लाइन ब्रान्च, जौनपुर (यू.पी.) द्वारा ब्रान्च मैनेजर।
.............. अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम्
लक्ष्मण यादव जे0ई0, पी0डब्ल्यू0डी0 निवासी पुराना मकान नं0-४०, वर्तमान मकान नं0-५१७ ए, हुसैनाबाद, जौनपुर।
............... प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
१. मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२. मा0 श्री राज कमल गुप्ता, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :- श्री राजेश चड्ढा विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :- कोई नहीं।
दिनांक : ०२-०३-२०१६.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, जिला मंच, जौनपुर द्वारा परिवाद सं0-२७८/१९९६ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक १७-१०-१९९७ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी के अभिकथनों के अनुसार उसका सेविंग बैंक खाता सं0-५००९ अपीलार्थी बैंक में था तथा इस खाते में उसका २३,०००/- रू० से अधिक रूपया जमा था। दिनांक ०६-०४-१९९६ को चेक सं0-००६४००० केनरा बैंक जौनपुर को अपीलार्थी बैंक में भुगतान हेतु उसने प्रेषित किया था, किन्तु अपीलार्थी बैंक ने प्रत्यर्थी/परिवादी के सम्मान को क्षति पहुँचाने के उद्देश्य से उक्त चेक को बिना भुगतान के वापस कर दिया तथा चेक के साथ यह गलत सूचना भेजी कि परिवादी का हस्ताक्षर भिन्न है, जबकि बैंक में अपने सामने भी हस्ताक्षर कराये थे। अत: प्रश्नगत चेक का भुगतान प्रत्यर्थी/परिवादी के
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निर्देशानुसार किए जाने हेतु अपीलार्थी को निर्देशित किए जाने एवं क्षतिपूर्ति दिलाये जाने के सन्दर्भ में परिवाद, प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा योजित किया गया।
अपीलार्थी बैंक के कथनानुसार प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रेषित चेक पर उसका हस्ताक्षर बैंक में उपलब्ध हस्ताक्षर से भिन्न होने के कारण चेक का भुगतान नहीं किया गया।
विद्वान जिला मंच ने परिवाद को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए अपीलार्थी बैंक को निर्देशित किया कि वह प्रत्यर्थी/परिवादी के चेक सं0-००६४००० दिनांक ०६-०४-१९९६ का भुगतान अविलम्ब फोरम के आदेश पारित होने के ०७ दिन के अन्दर करे। इसके अतिरिक्त परिवादी, विपक्षी से २,०००/- रू० बतौर क्षतिपूर्ति भी पायेगा।
इस निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी है।
हमने अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा के तर्क सुने। पत्रावली का अवलोकन किया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ।
अपीलार्थी की ओर से तर्क प्रस्तुत किया गया कि कथित घटना से पूर्व दिनांक ३०-०३-१९९६ को प्रत्यर्थी/परिवादी ने एक बीयरर चेक अपीलार्थी बैंक में स्थित अपने खाते से १३,०००/- रू० निकालने हेतु प्रेषित किया, किन्तु मानवीय त्रुटि के कारण कैशियर ने कुल २५,०००/- रू० का भुगतान (रू० १२,०००/- अधिक) प्रत्यर्थी/परिवादी को कर दिया। इस सन्दर्भ में प्रत्यर्थी/परिवादी से जानकारी किए जाने पर उसने अधिक भुगतान वापस करने का आश्वासन दिया, किन्तु धनराशि वापस नहीं की। तत्पश्चात् अपीलार्थी बैंक ने पुलिस में इस घटना की सूचना दी, जो प्रथम सूचना रिपोर्ट के रूप में दर्ज की गयी। इस घटना के परिप्रेक्ष्य में प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपना एक नया खाता केनरा बैंक में खोला और आपीलार्थी बैंक में स्थित अपने खाते से समस्त धनराशि निकालने हेतु प्रश्नगत चेक जारी किया। प्रत्यर्थी/परिवादी का उद्देश्य अपीलार्थी बैंक द्वारा किए गये अधिक भुगतान की वापसी से बचना तथा बैंक में आने से बचना था।
जहॉं तक प्रश्नगत चेक के भुगतान का प्रश्न है, यह चेक केनरा बैंक का था
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और अपीलार्थी बैंक में परिवादी के खाते से भुगतान हेतु क्लीयरिंग के लिए आया था। चेक पर प्रत्यर्थी/परिवादी के हस्ताक्षर बैंक में उपलब्ध प्रत्यर्थी/परिवादी के हस्ताक्षर से भिन्न होने के कारण चेक का भुगतान नहीं किया गया। अपीलार्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि विद्वान जिला मंच ने प्रश्नगत चेक पर प्रत्यर्थी/परिवादी के हस्ताक्षर की जांच किसी विशेषज्ञ से न कराकर त्रुटि की है। अपीलार्थी बैंक का बैंकिंग नियमों के अनुसार उपभोक्ता के हितों के सरंक्षण में प्रश्नगत चेक पर परिवादी के हस्ताक्षर बैंक में उपलब्ध हस्ताक्षर के अनुरूप न पाये जाने के कारण चेक का भुगतान नहीं किया गया। अपीलार्थी बैंक से सेवा में कोई त्रुटि नहीं की है।
प्रश्नगत निर्णय का अवलोकन किया। विद्वान जिला मंच का यह निष्कर्ष कि अपीलार्थी बैंक द्वारा कथित रूप से प्रत्यर्थी/परिवादी को किए गये अधिक भुगतान की घटना का कोई सम्बन्ध प्रश्नगत मामले से नहीं है, हमारे विचार से त्रुटिपूर्ण नहीं है, बल्कि यह परिस्थिति प्रत्यर्थी/परिवादी के इस कथन को बल प्रदान करती है कि अपीलार्थी बैंक द्वारा बिना किसी तर्कसंगत आधार के उसके चेक का भुगतान रोका गया। यदि वास्तव में प्रत्यर्थी/परिवादी जानबूझकर अपीलार्थी बैंक में उपलब्ध अपने खाते में जमा समस्त धनराशि निकालना चाहता था तब परिवादी द्वारा स्वत: त्रुटिपूर्ण हस्ताक्षर किये जाने का कोई औचित्य नहीं होगा। प्रश्नगत चेक का भुगतान अपीलार्थी बैंक द्वारा न किए जाने के प्रश्न पर विस्तारपूर्वक जिला मंच द्वारा विचार किया गया एवं तर्कपूर्ण आधार पर यह मत व्यक्त किया गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी के चेका का भुगतान न करके अपीलार्थी बैंक ने सेवा में त्रुटि की है। हमारे विचार से विद्वान जिला मंच का इस सन्दर्भ में लिया गया निष्कर्ष त्रुटिपूर्ण नहीं है, किन्तु उल्लेखनीय है कि प्रश्नगत निर्णय में विद्वान जिला मंच ने प्रश्नगत चेक का भुगतान अपीलार्थी बैंक द्वारा परिवादी को किए जाने हेतु निर्देशित किया है। निर्विवाद रूप से प्रश्नगत चेक केनरा बैंक का था। अत: इस चेक के परिप्रेक्ष्य में अपीलार्थी बैंक द्वारा सीधे प्रत्यर्थी/परिवादी को चेक का भुगतान किए जाने हेतु निर्देशित किए जाने का कोई औचित्य नहीं था।
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सम्भवत: इस चेक की वैधता भी समाप्त हो चुकी हो। अत: प्रश्नगत चेक का भुगतान अपीलार्थी बैंक द्वारा परिवादी को किए जाने के सन्दर्भ में अपीलार्थी बैंक को विद्वान जिला मंच द्वारा दिया गया निर्देश अपास्त किए जाने योग्य है, किन्तु जहॉं तक परिवादी को २,०००/- रू० बतौर क्षतिपूर्ति दिलाये जाने का प्रश्न है, इस आदेश में मामले की परिस्थितियों को देखते हुए किसी प्रकार का हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य नहीं है। तद्नुसार अपील आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला मंच, जौनपुर द्वारा परिवाद सं0-२७८/१९९६ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक १७-१०-१९९७ मात्र इस सीमा तक अपास्त किया जाता है कि – ‘’ चेक सं0 ००६४०० दि० ६.४.९६ का भुगतान परिवादी को अविलम्ब फोरम के आदेश पारित होने के ७ (सात) दिन के अन्दर करें ‘’। शेष आदेश की यथावत पुष्टि की जाती है।
अपीलीय व्यय-भार उभय पक्ष अपना-अपना वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(राज कमल गुप्ता)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-५.