Uttar Pradesh

StateCommission

A/2009/2207

Mahindra and Mahindra - Complainant(s)

Versus

Lalitesh Kumar Sharma - Opp.Party(s)

Amol Kumar

28 Sep 2021

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2009/2207
( Date of Filing : 18 Dec 2009 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Mahindra and Mahindra
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Lalitesh Kumar Sharma
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Rajendra Singh PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 28 Sep 2021
Final Order / Judgement

                                                                                      सुरक्षि‍त

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

                     

अपील संख्‍या- 2207/2009

(जिला उपभोक्‍ता आयोग, द्धितीय आगरा द्वारा परिवाद संख्‍या- 160/2007 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 04-05-2009 के विरूद्ध)

 

महिन्‍द्रा एण्‍ड महिन्‍द्रा फाइनेंसियल सर्विसेज लि0, कारपोरेट आफिस एट साधना हाउस, सेकेण्‍ड फ्लोर, 570 पी.बी. मार्ग वर्ली, मुम्‍बई एण्‍ड लखनऊ ब्रांच एट महिन्‍द्रा टावर्स Opp Hall लखनऊ, द्वारा एक्‍जीक्‍यूटिव लीगल आफिसर यतीश गुप्‍ता।

                                                                                                                   अपीलार्थी

                              बनाम 

ललितेश कुमार शर्मा, पुत्र श्री गिरिराज किशोर शर्मा, निवासी 15/2 K/10,M.P.पुरा गुम्‍मट ताजगंज आगरा।

                        प्रत्‍यर्थी

मक्ष:-  

 माननीय श्री राजेन्‍द्र सिंह, सदस्‍य

 माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य

 

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :  विद्वान अधिवक्‍ता श्री अदील अहमद

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित :    विद्वान अधिवक्‍ता श्री सुशील कुमार शर्मा

 

दिनांक:.06-10-2021

 

माननीय श्री राजेन्‍द्र सिंह, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

                                                                                                     निर्णय

 

प्रस्‍तुत अपील, परिवाद संख्‍या- 160 सन् 2007 ललितेश कुमार शर्मा बनाम महिन्‍द्रा एण्‍ड महिन्‍द्रा फाइनेंसियल सर्विसेज लि0 व दो अन्‍य में जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, द्धितीय आगरा द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 04-05-2009 के विरूद्ध धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत राज्‍य आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गयी है।

 

 

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    संक्षेप में अपीलार्थी का कथन है कि प्रश्‍नगत निर्णय व आदेश दिनांक    04-05-2009 एकपक्षीय है। अपीलार्थी एक वित्‍तीय संस्‍था है जो लोगों को अपनी विभिन्‍न शाखाओं से वित्‍तीय सहायता प्रदान करती है। प्रत्‍यर्थी ने 2,80,000/-रू० का लोन लिया जिस पर वित्‍तीय शुल्‍क 77,280/-रू० एवं कुल 3,57,280/-रू० था। उसने यह लोन महिन्‍द्रा कमाण्‍डर वाहन खरीदने के लिए लिया था। संविदा की शर्तों के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादी को 3,57,280/-रू० 36 बराबर मासिक किस्‍तों में अदा करना था। प्रति किस्‍त 10,208/-रू० के रूप में अदा करनी थी। इस सम्‍बन्‍ध में वाहन का बन्‍धक नामा भी लिखा गया था। सारी औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद 2,80,000/-रू० का लोन दिनांक       29-06-2002 को दिया गया। प्रत्‍यर्थी/परिवादी संविदा की शर्तों का अनुपालन करने में असफल रहा और मासिक किस्‍तों को भी अदा करने में असफल रहा है।

     दिनांक 01-12-2003 को अपीलार्थी ने प्रत्‍यर्थी को डिमाण्‍ड नोटिस भेजा जिसमें स्‍पष्‍ट लिखा था कि बकाया धनराशि अदा करने में असफल रहने पर अपीलार्थी वाहन को बन्‍धक रख लेगा।

     बार-बार स्‍मृति पत्र भेजने के बाद भी प्रत्‍यर्थी/परिवादी बकाया धनराशि अदा करने में असफल रहा। जब प्रत्‍यर्थी बकाया धनराशि अदा नहीं कर सका तब अपीलार्थी के पास संविदा के अन्‍तर्गत अपने अधिकार का प्रयोग करने के अलावा अन्‍य कोई विकल्‍प नहीं रह गया और प्रत्‍यर्थी से वाहन उसे सौंप देने को कहा। पांच किस्‍तों का बकाया हो जाने पर कंपनी ने बन्‍धक रखे वाहन को दिनांक 08-12-2003 को वापस ले लिया और प्रत्‍यर्थी द्वारा 51,050/-रू० अदा करने के बाद वाहन पुन: उसे सौप दिया। उक्‍त बन्‍धक वाहन को दो बार

 

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किस्‍तों के बकाया होने के आधार पर वापस लिया गया और बकाया धनराशि अदा करने पर वाहन को अवमुक्‍त किया गया।

     पुन: प्रत्‍यर्थी  अगस्‍त 2004 में किस्‍त अदा नहीं कर सका और अपीलार्थी को तीसरी बार वाहन अपने कब्‍जे में लेना पड़ा। पुन: प्रत्‍यर्थी को दो माह का अवसर किस्‍त जमा करने के लिए दिया गया और यह भी कहा गया कि अगर किस्‍तों को की अदायगी नहीं की जाती है तो बन्‍धक रखे वाहन की नीलामी कर दी जाएगी। जब प्रत्‍यर्थी बकाया धनराशि अदा नहीं कर सका तब अपीलार्थी को वाहन बेचने के लिए बाध्‍य होना पड़ा और वाहन दिनांक 24-01-2005 को 1,25,000/-रू० में बेच दिया गया और अपनी धनराशि लेने के बाद प्रत्‍यर्थी का 4,630/-रू० बचा। विद्वान जिला आयोग, आगरा इन तथ्‍यों को समझने में असफल रहे कि प्रत्‍यर्थी वाहन की किस्‍तें देने में लगातार असफल रहा। हायर परचेज एग्रीमेंट में वित्‍तीय संस्‍था को अधिकार है कि वह शर्तों के अनुसार वाहन को ऋण की किस्‍तें अदा न होने की स्थिति में अपने कब्‍जे में ले लें। विद्वान जिला आयोग ने एकपक्षीय निर्णय पारित किया है। प्रश्‍नगत निर्णय विधि के स्‍थापित सिद्धान्‍तों के विरूद्ध है। प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश विधि विरूद्ध है क्‍योंकि अपीलार्थी को पूरा अधिकार है कि किस्‍तों की अदायगी न होने पर वह वाहन को अपने कब्‍जे में ले सके। प्रश्‍नगत निर्णय व आदेश अतार्किक एवं अवैधानिक है। अत: निवेदन है कि वर्तमान अपील स्‍वीकार करते हुए प्रश्‍नगत निर्णय और आदेश दिनांक 04-05-2009 को अपास्‍त किया जाए।

हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री अदील अहमद तथा प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री सुशील कुमार शर्मा को सुना और पत्रावली का सम्‍यक रूप से परिशीलन किया।

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हमने विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश का अवलोकन किया ।

विद्वान जिला आयोग ने अपने निर्णय में लिखा है कि अपीलार्थी ने प्रत्‍यर्थी/परिवादी का वाहन बिना किसी कारण के जब्‍त कर लिया है और जबरदस्‍ती दूसरे व्‍यक्ति को बेच दिया, जबकि परिवादी पर विपक्षी का कुछ भी बकाया नहीं था। परिवादी ने वाहन बेचते समय उसकी कीमत 3,00,000/-रू० बतायी है ऐसी स्थिति में उसे 3,00,000/-रू० दिलाना न्‍यायोचित है और इसी आधार पर विद्वान जिला आयोग ने प्रश्‍नगत निर्णय पारित किया है।

पत्रावली पर वित्‍तीय संस्‍थाओं की नोटिस संलग्‍न है। परिवादी यह नहीं दिखा सका कि वह कुल कितनी धनराशि अदा कर चुका है। वित्‍तीय संस्‍थाओं को अधिकार है कि यदि उनका लोन अदा नहीं किया जा रहा है तो वह लोन द्वारा क्रय किये गये वाहन को अपने अधिपत्‍य में ले लें। परिवादी की ओर से कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि वाहन जबरदस्‍ती गुण्‍डों के बल पर छीना गया हो क्‍योंकि यह वाहन कई बार विपक्षी ने अपने कब्‍जे में लिया और लोन की किस्‍त जमा करने के उपरान्‍त परिवादी को वाहन वापस सौंप दिया गया जिससे स्‍पष्‍ट होता है कि परिवादी शुरू से ही लोन अदा करने में डिफाल्‍टर रहा है। ऐसी स्थिति में वित्‍तीय संस्‍थाओं के पास उक्‍त वाहन को अपने कब्‍जें में लेने के अलावा और कोई विकल्‍प नहीं रहता है और अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा वही कार्य किया गया। विद्वान जिला आयोग को इस मामले में यह देखना चाहिए था कि बार-बार परिवादी के वाहन का अधिग्रहण अपीलार्थी/विपक्षी क्‍यों कर रहा है ? लोन की किस्‍तें अदा न करने पर यह कार्यवाही हो रही थी जो नियमानुसार उचित है क्‍योंकि इस कार्यवाही में किसी ब्राह्य बल का प्रयोग नहीं किया गया है।

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ऐसी परिस्थितियों में हम इस निष्‍कर्ष पर पहॅुचते हैं कि जिला आयोग द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश विधि सम्‍मत नहीं है। अपीलार्थी/विपक्षी को यह अधिकार है कि वह अपने ऋण की वसूली के लिए वाहन को जब्‍त कर ले और नियमानुसार उसकी नीलामी कर अपनी धनराशि वसूल सके। अत: विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश अपास्‍त होने योग्‍य है और तदनुसार वर्तमान अपील स्‍वीकार किये जाने योग्‍य है।

आदेश

प्रस्‍तुत अपील स्‍वीकार की जाती है और विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश दिनांक 04-05-2009 अपास्‍त किया जाता है।

      वाद व्‍यय पक्षकारों पर।

     आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

(सुशील कुमार)                                            (राजेन्‍द्र सिंह)            

      सदस्‍य                                                  सदस्‍य

 

      निर्णय आज दिनांक- 06-10-2021 को खुले न्‍यायालय में हस्‍ताक्षरित/दिनां‍कित होकर उद्घोषित किया गया।

 

(सुशील कुमार)                                            (राजेन्‍द्र सिंह)            

      सदस्‍य                                             सदस्‍य

 

कृष्‍णा–आशु0 कोर्ट-2

 

 
 
[HON'BLE MR. Rajendra Singh]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
JUDICIAL MEMBER
 

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