राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील सं0-१८४५/२००२
(जिला मंच, लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या-५५०/१९९६ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १८-०३-२००२ के विरूद्ध)
१. यूनियन आफ इण्डिया द्वारा सैक्रेटरी, मिनिस्ट्री आफ कम्युनिकेशन, नई दिल्ली।
२. सीनियर सुपरिण्टेण्डेण्ट आफ पोस्ट आफिसेज, लखनऊ डिवीजन, लखनऊ।
.............अपीलार्थीगण/विपक्षीगण।
बनाम
१. लखी राम मित्तल पुत्र स्व0 हर प्रसाद निवासी ५९२ के/४२४, सुभाषनी खेड़ा, तेलीबाग, लखनऊ। ............ प्रत्यर्थी/परिवादी।
२. मोटोरोल (इण्डिया) लि0, रजिस्टर्ड आफिस, आर एण्ड डी सेण्टर, आर0सी0 दत्त रोड, वडोदरा (बड़ोदा) – ३९०००५.
............ प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-३.
समक्ष:-
१- मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२- मा0 श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : डॉ0 यू0वी0 सिंह विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक :- २४-०८-२०१७.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला मंच, लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या-५५०/१९९६ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १८-०३-२००२ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी के कथनानुसार उसके द्वारा प्रत्यर्थी सं0-२ के १०० इक्यूटी शेयर ४,६५०/- रू० में सेकन्डरी मार्केट के क्रय करके मूल रूप से पत्र दिनांक १९-०३-१९९६ के साथ प्रत्यर्थी सं0-२ को दिलकुशा पोस्ट आफिस सदर बाजार लखनऊ से पंजीकृत डाक से प्रेषित किया था तथा परिवादी द्वारा प्रत्यर्थी सं0-२ के अन्य १०० इक्यूटी शेयर २९००/- रू० में क्रय करके दिनांक १८-०४-१९९६ को जी0पी0ओ0, लखनऊ से स्पीड पोस्ट द्वारा प्रत्यर्थी सं0-२ को भेजे गये थे, जिन्हें प्रत्यर्थी सं0-२ द्वारा परिवादी के नाम स्थानान्तरित करके व इस पर अर्जित बोनस शेयर व डिविडेण्ट शेयर परिवादी को भेजा जाना था किन्तु उपरोक्त शेयर न तो परिवादी के नाम स्थानान्तरित होकर उसे प्राप्त हुए और न ही कोई लाभांश प्राप्त हुआ। परिवादी द्वारा अपीलार्थीगण को पत्र भेजे गये तथा यह जानकारी प्राप्त की गई कि परिवादी द्वारा भेजे
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गये पंजीकृत व स्पीड पोस्ट से शेयर सर्टिफिकेट प्रत्यर्थी सं0-२ को कब वितरति किए गये और यदि वितरित नहीं किए गये हैं तो उनका क्या हुआ किन्तु अपीलार्थीगण द्वारा इस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई बल्कि प्रबन्धक मार्केटिंग बी0डी0जी0पी0ओ0 लखनऊ द्वारा परिवादी के प्रार्थना पत्र १६-०८-९६ को कालबाधित होने की केवल सूचना दी गई।
अपीलार्थीगण द्वारा जिला मंच के समक्ष प्रतिवाद पत्र दाखिल किया गया, जिसमें अपीलार्थीगण द्वारा, उनके विरूद्ध लगाये गये आरोपों को अस्वीकार करते हुए अभिकथित किया गया कि परिवादी को पत्र दिनांक २१-११-१९९७ के माध्यम से यह सूचित कर दिया गया था कि उसका पंजीकृत पत्र दिनांक २५-०३-१९९६ को प्राप्तकर्ता को उपलब्ध करा दिया गया है। परिवाद उनके विरूद्ध खारिज किए जाने योग्य है।
जिला मंच ने प्रश्नगत निर्णय द्वारा परिवाद पत्र अपीलार्थीगण के विरूद्ध एकल व संयुक्त रूप से स्वीकार करते हुए अपीलार्थीगण को आदेशित किया कि आदेश की तिथि से ४५ दिन के अन्दर परिवादी को उसके शेयर्स की कीमत ७,५५०/- रू० एवं उस पर दिनांक १८-०४-१९९६ से १२ प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज की दर से ब्याज की धनराशि बतौर प्रतिकर एवं १०००/- रू० वाद व्यय के रूप में अदा किया जाय।
इस निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी है।
हमने अपीर्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता डॉ0 उदय वीर सिंह के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया। प्रत्यर्थीगण की ओर से तर्क प्रस्तुत करने हेतु कोई उपस्थित नहीं हुआ।
अपीलार्थी की ओर से पत्रावली पर लिखित तर्क दाखिल किया गया है, जिसके अवलोकन से यह विदित होता है कि अपीलार्थी के कथनानुसार प्रश्नगत डाक से सम्बन्धित रजिस्ट्री का लिफाफा प्रत्यर्थी सं0-२ को दिनांक २५-०३-१९९६ को प्राप्त करा दिया गया था। यद्यपि स्पीड पोस्ट के माध्यम से १०० शेयर के प्रमाण पत्र प्रत्यर्थी सं0-२ को वितरित किय जाने के सम्बन्ध में कोई अभिकथन अपीलार्थीगण द्वारा नहीं किया गया है। अपीलार्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि इण्डियन पोस्ट आफिस एक्ट १८९८ की धारा-६ के अन्तर्गत अपीलार्थीगण को क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु उत्तरदायी नहीं माना जा सकता।
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भारतीय डाक अधिनियम १८९८ की धारा-६ के अनुसार-
“6. Exemption from liability for loss, misdelivery, delay or damage The Government shall not incur any liability by reason of the loss, misdelivery or delay of, or damage to, any postal article in course of transmission by post, except insofar as such liability may in express terms be undertaken by the Central Government as hereinafter provided and no officer of the Post Office shall incur any liability by reason of any such loss, misdelivery, delay or damage, unless he has caused the same fraudulently or
by his willful act or default.”
जिला मंच के समक्ष प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा ऐसी कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गयी जिससे यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि प्रश्नगत डाक अपीलार्थी के कर्मचारी ने कपटपूर्वक वितरित नहीं की अथवा जानबूझकर वितरित नहीं की। ऐसी परिस्थिति में भारतीय डाक अधिनियम की धारा-६ के आलोक में अपीलार्थीगण को क्षतिपूर्ति की अदायगी का उत्तरदायी नहीं माना जा सकता। उपरोक्त तथ्यों के आलोक में अपीलार्थी के तर्क में बल प्रतीत होता है। विद्वान जिला मंच ने पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य का उचित परिशीलन न करते हुए प्रश्नगत निर्णय पारित किया है। तद्नुसार प्रस्तुत अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। जिला मंच, लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या-५५०/१९९६ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १८-०३-२००२ अपास्त करते हुए परिवाद निरस्त किया जाता है।
इस अपील का व्यय-भार उभय पक्ष अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(बाल कुमारी)
सदस्य
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट नं.-२.