Uttar Pradesh

Chanduali

CC/3/2016

Suman Srivastav - Complainant(s)

Versus

L.I.C - Opp.Party(s)

Dilip Srivastav

28 Jan 2017

ORDER

District Consumer Disputes Redressal Forum, Chanduali
Final Order
 
Complaint Case No. CC/3/2016
 
1. Suman Srivastav
Negura Po&Dist-Chandauli
Chandauli
UP
...........Complainant(s)
Versus
1. L.I.C
Chandauli
Chandauli
UP
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE Ramjeet Singh Yadav PRESIDENT
 HON'BLE MR. Lachhaman Swaroop MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
Dated : 28 Jan 2017
Final Order / Judgement

न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, चन्दौली।
परिवाद संख्या 03                                सन् 2016ई0
सुमन श्रीवास्तव उम्र 42 वर्ष विधवा स्व0 विरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव निवासी नेगुरा पो0 चन्दौली, जिला चन्दौली।
                                      ...........परिवादिनी                                                                                                                                    बनाम
1-भारतीय जीवन बीमा निगम कैरियर एजेण्ट शाखा 28ए मण्डल कार्यालय भेलूपुर वाराणसी द्वारा शाखा प्रबन्धक।
2-भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा कार्यालय चन्दौली द्वारा शाखा प्रबन्धक।
                                            .............................विपक्षीगण
उपस्थितिः-
 रामजीत सिंह यादव, अध्यक्ष
 लक्ष्मण स्वरूप, सदस्य
                               निर्णय
द्वारा श्री रामजीत सिंह यादव,अध्यक्ष
1-    परिवादिनी ने यह परिवाद विपक्षीगण से बीमा की धनराशि रू0 310000/- मय 10प्रति व्याज एवं परिवादिनी को पहुंची शारीरिक,मानसिक क्षतिपूर्ति एवं वाद व्यय हेतु रू0 10000/- दिलाये  जाने हेतु प्रस्तुत किया है।
2-    परिवादिनी की ओर से परिवाद प्रस्तुत करके संक्षेप में कथन किया गया है कि परिवादिनी के पति विरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव मुख्य चिकित्साधिकारी कार्यालय में लिपिक के पद पर कार्यरत थे और पूर्ण रूप से स्वस्थ व निरोग रहते हुए विपक्षी बीमा कम्पनी से दिनांक 15-12-2011 को रू0 310000/- का जीवन आनन्द बीमा पालिसी लिया जिसकी पालिसी संख्या 286049898 है। जिसमे परिवादिनी बतौर नामिनी है। उक्त बीमा पालिसी बीमाधारी के मृत्यु के समय प्रभावी थी। माह अगस्त 2013 के अन्तिम सप्ताह में परिवादिनी के पति ने शरीर में कुछ भारीपन एवं असहजता महसूस किया किन्तु कोई विशेष तकलीफ न होने के कारण नियमित रूप से अपने कार्यालय जाते रहे। दिनांक 8-8-2013 को कार्यालय में तकलीफ बढ जाने के कारण आर0डी0 मेमोरियल चिकित्सालय चन्दौली में इलाज कराये। तत्पश्चात दिनांक 10-8-2013 को गैलेक्सी चिकित्सालय महमूरगंज वाराणसी में अपना चिकित्सीय परीक्षण कराये जहॉं पर डाक्टर ने भर्ती कर लिया। एक दिन इलाज कराने के बाद दिनांक 11-8-1013 को गैलेक्सी चिकित्सालय से डिस्चार्ज होकर दिनांक 11-8-2013 को सहारा चिकित्सालय गोमतीनगर लखनऊ में भर्ती कराया गया जहॉं पर दिनांक 19-8-2013 तक इलाज चलता रहा और दुर्भाग्य से दिनांक 19-8-2013 को सहारा चिकित्सालय गोमतीनगर लखनऊ में उनकी मृत्यु हो गयी। परिवादिनी के पति के मृत्यु का कारण नमोनिया एवं लैक्टिक एसिडोसिस ज्यादा बनने से ह्दयघात के कारण मृत्यु हो गयी। परिवादिनी ने अपने पति के मृत्यु के बाद नवम्बर 2013 में मूल पालिसी बाण्ड एवं चिकित्सा से सम्बन्धित समस्त अभिलेखों के साथ विपक्षी बीमा कम्पनी के यहॉं दावा प्रस्तुत किया। किन्तु विपक्षी द्वारा काफी समय के बाद अपने पत्र दिनांक 25-9-2014 के द्वारा परिवादिनी के दावा को इस आधार पर निरस्त कर दिया गया कि गैलेक्सी हास्पिटल एवं हेरिटेज हास्पिटल के इलाज प्रपत्र के अनुसार बीमाधारी पिछले 10 वर्षो से मधुमेह की 
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बीमारी से पीडित था और उसने इस तथ्य को छिपाकर बीमा कराया था। तत्पश्चात विपक्षी के पत्र के सलाह पर परिवादिनी ने विपक्षी के क्षेत्रीय कार्यालय में प्रतिवेदन दिया किन्तु क्षेत्रीय कार्यालय वाराणसी द्वारा दावा को सही न मानते हुए दिनांक 1-6-2016 को परिवादिनी का प्रतिवेदन निरस्त कर दिया गया। परिवादिनी के मृतक पति दिनांक 15-12-2011 को विपक्षी के यहॉं से बीमा लेने के 10 वर्ष पूर्व से कदापि मधुमेह रोग से पीडित नहीं थे और न ही किसी रोग को छिपाकर बीमा कराये थें, बीमा कम्पनी के डाक्टर बीमा प्रस्ताव को स्वीकार करने के पूर्व बीमाधारक का चिकित्सीय परीक्षण किया था। जिसमे परिवादिनी के पति को किसी पूर्ववर्ती रोग रहने की कोई रिर्पोट नहीं थी। परिवादिनी के पति ने अपने सेवा काल के दौरान वर्ष 2001 से दिनांक 15-12-2011 को बीमा लेने के मध्य कभी कोई चिकित्सीय अवकाश नहीं लिये थे और न ही बीमा लेने के पूर्व किसी भी हास्पिटल में भर्ती रहकर मधुमेह अथवा किसी अन्य बीमारी का कोई इलाज नहीं कराया है। मृत्यु दावा के साथ संलग्न चिकित्सीय उपचार में बीमाधारी के मृत्यु का कारण ’’नीमो लैक्टिक एसिडोसिस लीडिंग टू कार्डो रिस्पेक्ट्री अरेस्ट’’ दिखाया गया है। बीमाधारी कदापि पिछले 10 वर्षो से मधुमेह रोग से पीडित नही थे। विपक्षी के दावा निरस्तीकरण पत्र दिनांक 25-9-2014 में हेरिटज हास्पिटल में इलाज कराये जाने का असत्य उल्लेख किया गया है जबकि बीमाधारी कभी भी अपना इलाज हेरिटेज हास्पिटल में नहीं कराये है। बीमा निगम ने गलत ढंग से मृत्युदावा खारिज किया है अतः यह परिवाद दाखिल किया गया है। 
3-    विपक्षीगण ने जबाबदावा प्रस्तुत करके परिवादिनी के पति द्वारा परिवाद में वर्णित बीमा कराना  को स्वीकार करते हुए संक्षेप में अतिरिक्त कथन किया है कि मृतक बीमाधारी ने दिनांक 15-12-2011 को उपरोक्त बीमा पालिसी लिया था और बीमाधारी के मृत्यु दिनांक 19-8-2013 तक बीमा पालिसी चालू थी। परिवादिनी ने अपने पति के मृत्यु के उपरान्त दावा प्रस्तुत किया और उसके मृत्यु दावा की जांच,जांच समिति द्वारा की गयी और दावा संदेहास्पद पाये जाने पर परिवादिनी का दावा निरस्त किया गया है। बीमाधारक द्वारा बीमा लेते समय अपने स्वास्थ्य के सम्बन्ध में सही सूचना नहीं दी गयी थी तथा बीमारी की अवस्था में गलत अभिकथन करते हुए बीमा पालिसी ली गयी थी जिसके कारण परिवादिनी का दावा निरस्त किया गया। बीमाधारक गम्भीर मधुमेह व अन्य बीमारी से पीडित था। मृतक बीमाधारक के उपचार से सम्बन्धित गैलेक्सी हास्पिटल एवं हेरिटेज हास्पिटल के डिस्चार्ज स्लीप प्राप्त किया गया है जिसमे बीमाधारक पिछले 10 वर्षो से मधुमेह से ग्रसित बताया गया है। परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत मृत्यु दावा दिनांक 25-9-2014 को अस्वीकार कर उसकी सूचना परिवादिनी को दी गयी। तत्पश्चात परिवादिनी ने पुर्नविचार हेतु अपना दावा क्षेत्रीय कार्यालय कानपुर को प्रेषित किया गया, क्षेत्रीय कार्यालय कानपुर द्वारा भी परिवादिनी के बीमा दावा को निरस्त करने की संस्तुति की गयी है। इस आधार पर परिवादिनी का प्रस्तुत दावा निरस्त किये जाने योग्य है।
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4-    परिवादिनी की ओर से प्रतिउत्तर(रिप्लीकेशन)भी दाखिल किया गया है जिसमे विपक्षीगण के जबाबदावा के अभिकथनों को अस्वीकार करते हुए मुख्य रूप से वही अभिकथन किये गये है जो परिवाद में किये गये है।
5-    अपने अभिकथनों के समर्थन में परिवादिनी की ओर से परिवादिनी सुमन श्रीवास्तव का शपथ पत्र दाखिल किया गया है तथा दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में परिवादिनी के पति के बीमा से सम्बन्धित अभिलेख की छायाप्रति,जीवन बीमा निगम के पत्र दिनांकित 1-11-2013 की मूल प्रति,बीमाधारक वीरेन्द्र श्रीवास्तव  के मृत्यु प्रमाण पत्र की छायाप्रति,जीवन बीमा निगम में दावा दाखिल करते समय परिवादिनी द्वारा भरे गये दावा प्रपत्र फार्म की छायाप्रति,बीमित का दाह संस्कार के प्रमाण पत्र की छायाप्रति,चिकित्सा प्रमाण पत्र की छायाप्रति,जीवन बीमा निगम वाराणसी मण्डल कार्यालय का चिकित्सा उपचार प्रमाण पत्र,सहारा हास्पिटल लखनऊ के डेथबुक की छायाप्रति,जीवन बीमा निगम के अभिकर्ता की गोपनीय रिर्पोट की छायाप्रति,मृत्यु दावा की छायाप्रति,परिवादिनी द्वारा शाखा प्रबन्धक को प्रेषित पत्र दिनांकित 19-1-2015 की छायाप्रति,जीवन बीमा निगम के पत्र दिनांकित 1-4-2015 व 1-6-2015 की छायाप्रतियां,मुख्य चिकित्साधिकारी चन्दौली द्वारा निर्गत बीमित वीरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव द्वारा सेवाकाल में लिये गये चिकित्सा अवकाश से सम्बन्धित विवरण की छायाप्रति,परिवादिनी के आधारकार्ड की छायाप्रति,बीमा की रसीदों की छायाप्रति 2 अदद्,ई0सी0जी0सी0 की छायाप्रति,गलैक्सी हास्पिटल के डिस्चार्ज स्लिप की छायाप्रति तथा पैथालाजी रिर्पोट की छायाप्रतियां 2 अदद् दाखिल की गयी है।
6-    विपक्षीगण की ओर से स0प्र0 अधिकारी गिरजाशंकर का शपथ पत्र तथा दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में जीवन बीमा निगम को परिवादिनी द्वारा प्रेषित पत्र दिनांकित 19-1-2015 की छायाप्रति,दावा जांच रिर्पोट की छायाप्रति, हेरिटेज हास्पिटल के इलाज से सम्बन्धित पर्चे की छायाप्रति तथा मदन गोपाल राय द्वारा इलाज के पर्ची की छायाप्रतियां,आर0डी0 मेमोरियल हास्पिटल के इलाज के पर्ची की छायाप्रति, गलैक्सी हास्पिटल के डिस्चार्ज स्लिप की छायाप्रति,बीमा पालिसी की छायाप्रति,दावेदार के बयान की छायाप्रतियां,दाहसंस्कार प्रमाण पत्र की छायाप्रति,चिकित्सा प्रमाण पत्र की छायाप्रति,चिकित्सा उपचार प्रमाण पत्र की छायाप्रति, मृत्यु दावा की छायाप्रतियां तथा बीमा अभिकर्ता की रिर्पोट की छायाप्रतियां दाखिल की गयी है।
7-    उभय पक्ष की ओर से लिखित बहस दाखिल की गयी है तथा उनके अधिवक्तागण की मौखिक बहस भी सुनी गयी है। पत्रावली का पूर्ण रूपेण परिशीलन किया गया।
8-    परिवादिनी के अधिवक्ता द्वारा तर्क दिया गया है कि प्रस्तुत मामले में यह स्वीकृत तथ्य है कि परिवादिनी के पति वीरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव ने विपक्षी भारतीय जीवन बीमा निगम से रू0 3,10000/- का बीमा कराया था तथा परिवादिनी उक्त बीमें में नामिनी है। परिवादिनी के अधिवक्ता का तर्क है कि उपरोक्त बीमा पालिसी
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 दिनांक 15-12-2011 को ली गयी थी और बीमित की मृत्यु दिनांक 19-8-2013 को हुई है और उस समय बीमा प्रभावी था इस प्रकार बीमा पालिसी लेने के लगभग 20 महीने बाद बीमित की मृत्यु हुई है। बीमित पूर्णतः स्वस्थ व निरोग व्यक्ति था और बीमा के पूर्व उन्हें कोई बीमारी नही थी और वे नियमित रूप से अपने कार्यालय में जाकर ड्यूटी करते रहे। अगस्त सन् 2013 में उन्हें शरीर में कुछ भारीपन और असहजता महसूस हुई और तकलीफ बढने पर उन्होंने अपना इलाज आर0डी0 मेमोरियल चिकित्सालय चन्दौली में तथा बादहू गलैक्सी हास्पिटल वाराणसी में कराया लेकिन गलैक्सी हास्पिटल के डाक्टरों द्वारा डिस्चार्ज किये जाने पर उन्हें सहारा हास्पिटल लखनऊ में दिनांक 11-8-2013 को भर्ती कराया गया किन्तु दुर्भाग्यवश दिनांक 19-8-2013 को उसी हास्पिटल में उनका देहान्त नमोनिया एवं एसिडोसिस बढ जाने के कारण ह्दयाघात से हो गया। परिवादिनी ने उपरोक्त बीमा की धनराशि प्राप्त करने हेतु जो दावा दाखिल किया उसे विपक्षीगण द्वारा इस आधार पर निरस्त कर दिया गया कि परिवादिनी के पति पिछले 10 वर्षो से मधुमेह की बीमारी से पीडित थे और उन्होंने इस तथ्य को छिपाकर बीमा प्राप्त कर लिया था। परिवादिनी के अधिवक्ता का तर्क है कि विपक्षीगण का यह कथन कि बीमित वीरेन्द्र कुमार की मृत्यु 10 वर्ष से डायविटीज के रोग से ग्रस्त होने के कारण हुई है स्वयं विपक्षीगण की ओर से दाखिल दावा जांच रिर्पोट (गोपनीय) दिनांकित 12-6-2014 में ही असत्य सिद्ध हो जाता है क्योंकि इस रिर्पोट में बीमित की मृत्यु का कारण ह्दय सम्बन्धी समस्यां पाया गया है। इसीप्रकार परिवादिनी द्वारा दाखिल दावा प्रपत्र तथा दाह संस्कार के प्रमाण पत्र में भी मृत्यु का कारण ह्दय सम्बन्धी समस्यां अंकित है। चिकित्सा उपचार प्रमाण पत्र कागज संख्या 4ग/5,4ग/6,4ग/7 में भी इस बात का उल्लेख है कि बीमित एक महीने पहले से बीमार था और इसमे मृत्यु का कारण मधुमेह नहीं पाया गया है। डेथबुक कागज संख्या 4/7 में मृत्यु का कारण व्लडप्रेशर बढ जाने से किडनी के अचानक फेल होने के कारण लैक्टीक एसिड ज्यादा बनने से ह्दय एवं श्वास प्रणाली बन्द होने के कारण उल्लिखित है। हेरिटेज हास्पिटल की पर्ची में भी केवल रोगी के नाम के नीचे डी.एम. 10 वर्ष लिखा है किन्तु इसमे भी मृत्यु का कारण मधुमेह नहीं लिखा गया है और न ही गलैक्सी हास्पिटल के डिस्चार्ज स्लिप में मृत्यु का कारण मधुमेह लिखा है। परिवादिनी की ओर से जो साक्ष्य दाखिल है उससे स्पष्ट है कि परिवादिनी के पति लगभग 12 दिन ही बीमार रहे और इसी अवधि में इलाज के दौरान उनकी मृत्यु ह्दय सम्बन्धी रोग से हुई है। विपक्षीगण की ओर से कोई ऐसा साक्ष्य नहीं दिया गया है जिससे यह सिद्ध हो सके कि बीमित पिछले 10 वर्षो से मधुमेह रोग से पीडित था और उसका किसी हास्पिटल में या किसी डाक्टर के यहॉं मधुमेह के सम्बन्ध में इलाज हुआ था। परिवादिनी के पति के नौकरी से सम्बन्धित चिकित्सावकाश का जो प्रमाण पत्र मुख्य चिकित्साधिकारी द्वारा जारी किया गया है उससे भी यह स्पष्ट है कि नवम्बर 2000 के बाद बीमित वीरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव  कभी भी चिकित्सावकाश पर नहीं रहे है जबकि बीमा सन् 2011 में लिया गया है इस प्रकार यह स्पष्ट है कि बीमा कराने के 10 वर्ष से भी अधिक समय पहले से 
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बीमित पूर्णतः स्वस्थ रहा है। इस प्रकार विपक्षीगण ने गलत ढंग से परिवादिनी द्वारा दाखिल मृत्यु दावा खारिज किया है और सेवा में कमी की है। अतः परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य है।
9-    इसके विपरीत विपक्षीगण के अधिवक्ता द्वारा मुख्य रूप से यह तर्क दिया गया है कि परिवादिनी द्वारा मृत्यु दावा दाखिल करने के बाद जांच करायी गयी तो जांच समिति द्वारा दावा संदेहास्पद पाया गया और इसलिए परिवादिनी का क्लेम खारिज किया गया। बीमित ने बीमा पालिसी लेते समय अपने स्वास्थ के सम्बन्ध में सही सूचना नहीं दिया था और बीमारी की अवस्था में पालिसी लिया था उसने बीमा प्रस्ताव पत्र में असत्य विवरण दिया था जबकि सच्चाई यह है कि वह बीमा पालिसी लेते समय मधुमेह तथा अन्य बीमारियों से पीडित था। गलैक्सी हास्पिटल एवं हेरिटेज हास्पिटल की डिस्चार्ज स्लिप में बीमाधारक को 10 वर्षो से मधुमेह ग्रसित बताया गया है उसने इस तथ्य को छिपाकर बीमा कराया था इसलिए परिवादिनी का क्लेम खारिज किया गया और उसका परिवाद भी इसी आधार पर निरस्त किये जाने योग्य है।
10-    उभय पक्ष को सुनने तथा पत्रावली के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि प्रस्तुत मामले में यह स्वीकृत तथ्य है कि परिवादिनी के पति ने विपक्षी बीमा निगम से रू0 3,10000/- का बीमा कराया था और उनकी मृत्यु के समय यह बीमा प्रभावी था इस मामले में विवाद केवल इतना है कि विपक्षीगण का अभिकथन है कि है कि बीमित वीरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव बीमा कराने के 10 वर्ष पहले से मधुमेह तथा अन्य बीमारियों से पीडित थे और उन्होंने इस तथ्य को छिपाते हुए और स्वयं को स्वस्थ बताते हुए गलत ढंग से बीमा पालिसी प्राप्त किया था अतः बीमा कम्पनी उक्त पालिसी के आधार पर भुगतान हेतु उत्तरदायी नहीं है जबकि परिवादिनी पक्ष का कथन है कि बीमा कराते समय बीमित स्वस्थ था उसने कोई तथ्य नहीं छिपाया था और बीमा कराने के 10 वर्ष पूर्व से किसी गम्भीर बीमारी से पीडित नहीं था और न ही उसका कही इलाज हुआ था। चूंकि यह अभिकथन विपक्षीगण का है कि बीमित बीमा कराने के 10 वर्ष पहले से मधुमेह एवं अन्य रोगों से ग्रस्त था अतः इस तथ्य को सिद्ध करने का भार मूल रूप से विपक्षीगण पर ही है। इस तथ्य को सिद्ध करने हेतु विपक्षीगण की ओर से कोई मौलिक एवं विश्वसनीय साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किये गये है। विपक्षीगण के अधिवक्ता ने अपनी बहस में फोरम का ध्यान केवल इस तथ्य की ओर आकर्षित किया है कि हेरिटेज हास्पिटल का बीमित के इलाज से सम्बन्धी जो पर्चा दिनांक 10-8-2013 दाखिल किया गया है उसमे बीमित के नाम के नीचे शब्द’’डी0एम010वर्ष’’ अंकित है तथा गलैक्सी हास्पिटल के डिस्चार्ज स्लिप में भी ’’डी0एम010 वर्ष/एल0डी0आई0 1 1/2 वर्ष’’ पूर्व एच.टी.एम. अंकित है इसके अतिरिक्त अन्य कोई साक्ष्य दाखिल नहीं किया गया है यहॉं यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि इन पर्चो को डाक्टर के बयान के द्वारा सिद्ध भी नहीं कराया गया है।

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11-    इस सम्बन्ध में परिवादिनी पक्ष से 2016(।) सीपीआर,566(एनसी) भारतीय जीवन बीमा निगम तथा अन्य बनाम कोल्ला सांथी तथा अन्य की विधि व्यवस्था का हवाला दिया गया है जिसमे माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग नई दिल्ली  द्वारा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है कि जहॉं बीमा निगम द्वारा ऐसा कोई साक्ष्य प्रस्तुत न किया गया हो जिससे यह सिद्ध हो सके कि बीमा पालिसी लेने के पूर्व बीमित का इलाज किसी अस्पताल में हुआ हो और बीमित की मृत्यु ह्दयरोग के कारण सांस रूक जाने के कारण हुई हो तब  उस समय उसे व्लडप्रेशर व डायविटीज होना पाया गया हो तब भी बीमा कम्पनी बीमा धनराशि अदा करने के दायित्व से मुक्त नहीं हो सकती क्योंकि डायविटीज तथा व्लड प्रेशर ऐसी बीमारियां है जो कई बार रोगी को पता ही नहीं चल पाती क्योंकि इनका कोई गम्भीर लक्षण रोगी में दिखाई नहीं पडता ऐसी स्थिति में इन बीमारियों  का पहले से मौजूद होना नहीं माना जा सकता बल्कि ये बीमारियां अकस्मात भी प्रकट हो सकती है। उक्त मामले में भी बीमित ने अपना बीमा दिनांक 20-8-03 को कराया था और उसकी मृत्यु दिनांक 8-11-2003 को अर्थात बीमा कराने के लगभग 2 माह 20 दिन बाद हुई थी। उक्त मामले में माननीय राज्य आयोग तथा माननीय राष्ट्रीय आयोग दोनों ने यह पाया कि जहॉं बीमा कम्पनी ऐसा साक्ष्य प्रस्तुत न की हो कि बीमा कराने के पहले से बीमित का इलाज किसी अस्पताल में चल रहा हो वहॉं मृत्यु के समय बीमित का ब्लडप्रेशर हाई होने या डायविटीज होने पर भी बीमा कम्पनी बीमित धनराशि देने के लिए उत्तरदायी होगा क्योंकि ये बीमारियॉं अकस्मात होना भी सम्भव है और यह जरूरी नहीं है कि इन बीमारियों के सम्बन्ध में बीमार को पहले से जानकारी हो सके क्योंकि कई बार इन बीमारियों का पहले से लक्षण दिखाई नहीं पडता।उपरोक्त विधि व्यवस्था के तथ्य एवं परिस्थितियॉं प्रस्तुत मामले से बिल्कुल मेल खाते है क्योंकि प्रस्तुत मामले में भी विपक्षी भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा ऐसा कोई साक्ष्य नहीं दिया गया है जिससे यह सिद्ध हो सके कि बीमित मृत्यु के पहले से डायविटीज व हाइपरटेंशन से पीडित था और उसका बीमा कराने से पहले कभी भी किसी भी अस्पताल में इलाज हुआ था।
12-    इसीप्रकार परिवादी पक्ष से 2014 (4)सीपीआर,711(एनसी) मे0 आईसीआईसीआई प्रोडेसियल लाइफ इश्योरेंस कम्पनी बनाम श्रीमती वीना शर्मा तथा अन्य की विधि व्यवस्था का भी हवाला दिया गया है और इसमे भी माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है कि जहॉं विपक्षी बीमा कम्पनी ने बीमित के डायविटीज से पीडित होने का अभिकथन किया हो लेकिन इसे सिद्ध करने हेतु कोई विश्वसनीय साक्ष्य न दिया हो वहॉं बीमा कम्पनी बीमा धनराशि के भुगतान से इन्कार नहीं कर सकती।
13-    इसी प्रकार परिवादी की ओर से 2005(2) सीपीआर,356 भारतीय जीवन बीमा निगम बनाम हरप्रीत कौर की विधि व्यवस्था का हवाला दिया गया है जिसमे माननीय जम्मू और कश्मीर राज्य आयोग द्वारा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया 

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है कि जहॉं विपक्षी बीमा कम्पनी बीमित के बीमा के पूर्व बीमारी के तथ्य सिद्ध न किया हो वहॉं बीमा कम्पनी बीमा धनराशि अदा करने को बाध्य होगी।
14-    उपरोक्त विधि व्यवस्थाओं के जबाब में विपक्षी जीवन बीमा निगम की ओर से कोई विधि व्यवस्था दाखिल नहीं की गयी है। उपरोक्त विधि व्यवस्थाओं के प्रकाश में प्रस्तुत मुकदमें का परिशीलन करने पर यह स्पष्ट है कि प्रस्तुत मामले में विपक्षी भारतीय जीवन बीमा निगम ने यह अभिकथन किया है कि बीमित वीरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव बीमा कराने के 10 वर्ष पूर्व से डायविटीज से पीडित थे और उन्होंने इस तथ्य को छिपाते हुए गलत ढंग से बीमा कराया था और इसी आधार पर उनकी मृत्यु के सम्बन्ध में दाखिल मृत्यु दावा खारिज किया गया है किन्तु उपरोक्त तथ्य को सिद्ध करने के लिए विपक्षीगण की ओर से कोई सारभूत साक्ष्य नहीं दिया गया है। विपक्षीगण ने केवल बीमित के गलैक्सी हास्पिटल एवं हेरिटेज हास्पिटल वाराणसी के इलाज से सम्बन्धी पर्चे में जो शब्द’’डी.एम.10वर्ष’’ लिखा है उसी के आधार पर यह कह रहे है कि बीमित वीरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव बीमा कराने के 10 वर्ष पहले से डायविटीज रोग से पीडित थे किन्तु उपरोक्त हास्पिटल के पर्चे को किसी डाक्टर के बयान द्वारा सिद्ध नहीं कराया गया है। परिवादिनी पक्ष ने हेरिटेज हास्पिटल में बीमित के इलाज होने के तथ्य से इन्कार किया है। पत्रावली पर ऐसा कोई साक्ष्य विपक्षीगण की ओर से नहीं दिया गया है जिससे यह सिद्ध हो सके कि परिवादिनी के पति का बीमा कराने के पहले कभी भी किसी भी हास्पिटल में डायविटीज या किसी गम्भीर बीमारी के सम्बन्ध में इलाज कराया गया था। परिवादिनी की ओर से बीमित वीरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव द्वारा चिकित्सीय अवकाश लिये जाने के सम्बन्ध में मुख्य चिकित्साधिकारी चन्दौली का जो प्रमाण पत्र दाखिल किया है उसके अवलोकन से यह स्पष्ट है कि बीमित बीमा कराने के 10 वर्ष से भी अधिक पूर्व तक कभी भी कोई चिकित्सीय अवकाश नहीं लिया था इस प्रकार विपक्षीगण की ओर से ऐसा कोई विश्वसनीय साक्ष्य नहीं किया गया है जिससे यह सिद्ध हो सके कि बीमित वीरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव बीमा कराने के 10 वर्ष पूर्व से डायविटीज या अन्य किसी बीमारी से पीडित थे और उनका कही कोई इलाज हुआ था। अतः माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग नई दिल्ली तथा माननीय राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग जम्मू कश्मीर राज्य द्वारा उपरोक्त विधि व्यवस्थाओं में प्रतिपादित सिद्धान्तों के प्रकाश में फोरम की राय में प्रस्तुत मामले में विपक्षी भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा परिवादिनी के पति का मृत्यु दावा खारिज किया जाना सेवा में कमी माना जायेगा और विपक्षी भारतीय जीवन बीमा निगम परिवादिनी को बीमित धनराशि अदा करने के लिए विधिक रूप से बाध्य है और इस प्रकार परिवादिनी का परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य है।
                               आदेश
    परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वे परिवादिनी को बीमित धनराशि रू0 3,10000/-(तीन लाख दस हजार) तथा इस पर दावा दाखिल करने की तिथि 
                                                               8
अर्थात दिनांक 22-1-2016 से पैसा अदा करने की तिथि तक 8 प्रतिशत साधारण वार्षिक की दर से व्याज सहित 2 माह में अदा करें। विपक्षीगण को यह भी आदेशित किया जाता है कि  वे इसी अवधि में परिवादिनी को शारीरिक एवं आर्थिक कष्ट की क्षतिपूर्ति एवं वाद व्यय के रूप में रू0 2000/-(दो हजार) भी अदा करें।

(लक्ष्मण स्वरूप)                                     (रामजीत सिंह यादव)
 सदस्य                                                अध्यक्ष
                                                 दिनांक-28-1-2017


 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE Ramjeet Singh Yadav]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Lachhaman Swaroop]
MEMBER

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