द्वारा- श्री पवन कुमार जैन - अध्यक्ष
- इस परिवाद के माध्यम से परिवादी ने यह उपशम मांगा है कि पिता की मृत्यु से सम्बन्धित दुर्घटना हितलाभ के रूप में विपक्षीगण से उसे 12.5 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित 1,00,000/- (एक लाख रूपये) दिलाऐ जायें। मानसिक पीड़ा के फलस्वरूप क्षतिपूर्ति की मद में 25,000/- (पच्चीस हजार रूपया) तथा परिवाद व्यय की मद में 10,000/- (दस हजार रूपया) परिवादी ने अतिरिक्त मांगे हैं।
- संक्षेप में परिवाद कथन इस प्रकार हैं कि परिवादी के पिता स्वर्गीय श्री सुरेश चन्द्र वर्मा ने विपक्षी सं0-1 से दिनांक 28-03-2006 को एक बीमा पालिसी सं0- 254176328 ली थी। प्रीमियम की किश्त 2,682/- रूपया थी और परिपक्वता राशि 1,00,000/- (एक लाख रूपया) थी तथा एक लाख रूपया दुर्घटना हितलाभ अतिरिक्त था। इस प्रकार पालिसी डबल वैनीफिट पालिसी थी। परिवादी के पिता ने निरन्तर किश्ते अदा की। वे एक सीधे-सादे इन्सान थे, किसी से उनकी रंजिश नहीं थी, सम्भल रोड पर उनकी सर्राफे की दुकान थी दुकान की सुरक्षा हेतु वे रात को दुकान के ऊपर बने कमरे में सोते थे। दिनांक 13/14 फरवरी,2011 की रात्रि में प्रतिदिन की भांति परिवादी के पिता दुकान के ऊपर बने कमरे में सोने चले गऐ तभी रात्रि में किसी व्यक्ति ने उनकी मृत्यु कारित कर दी। परिवादी के अनुसार व्यक्ति का अंदेशा मात्र माल लूटने का रहा होगा और परिवादी के पिता ने विरोध किया होगा तभी हत्या की गई ऐसी हत्या को रंजीशन अथवा जानबूझकर की गयी हत्या नहीं कहा जा सकता, यह मात्र एक हादसा है। परिवादी के बड़े भाई गौरव वर्मा ने इस घटना की रिपोर्ट थाना कटघर, जिला मुरादाबाद में 14 फरवरी, 2011 को अज्ञात में दर्ज करायी। परिवादी का अग्रेत्तर कथन है कि उसने बीमा पालिसी की बाबत एक दावा मय दुर्घटना हितलाभ विपक्षी सं0-1 के कार्यालय में प्रस्तुत किया जिसे उन्होंने विपक्षी सं0-2 को भेज दिया। विपक्षी सं0-2 ने बीमित धनराशि 1,00,000/- (एक लाख रूपये) में से 98,264/- रूपये वजरिये चैक परिवादी को अदा कर दिये किन्तु दुर्घटना हितलाभ देने से दिनांक 20/10/2012 को इन्कार कर दिया। विपक्षीगण ने परिवादी के पिता की मृत्यु को सुनियोजित हत्या माना जो सही नहीं है उनकी किसी से कोई रंजिश नहीं थी। विपक्षीगण द्वारा परिवादी के पिता की मृत्यु सुनियोजित हत्या बताना निराधार है। परिवादी ने यह अभिकथन करते हुऐ कि दुर्घटना हितलाभ प्रदान करने से इन्कार कर विपक्षीगण ने सेवा प्रदान करने में कमी की है अत: उसे यह परिवाद योजित करने की आवश्यकता हुई परिवाद में अनुरोधित अनुतोष विपक्षीगण से दिलाऐ जाने की प्रार्थना की।
3- विपक्षीगण की ओर से प्रतिवाद पत्र कागज सं0-7/1 लगायत 7/4 दाखिल किया गया। प्रतिवाद पत्र में परिवादी के पिता द्वारा परिवाद के पैरा सं0-1 में उल्लिखित बीमा पालिसी विपक्षी सं0-1 से लिया जाना तो स्वीकार किया गया है, किन्तु परिवाद के शेष कथनों से इन्कार किया गया है। विपक्षीगण के अनुसार परिवादी के पिता की हत्या किसी सोची समझी योजना के तहत की गई है, घटना की प्रथम सूचना रिपोर्ट परिवादी के भाई ने दिनांक 14 फरवरी, 2011 को थाना कटघर में दर्ज करायी जिसमें अभियुक्तगण के रूप में प्रताप एवं विमल को नामित किया गया है। परिवादी द्वारा प्रस्तुत दुर्घटना हितलाभ के दावे की विभागीय जॉंच करायी गयी। जॉंच में पाया गया कि परिवादी के पिता की मृत्यु किसी दुर्घटना के कारण न होकर पूर्व नियोजित तरीके से की गई हत्या है। परिवादी के पिता की हत्या दुर्घटना की श्रेणी में न आने के कारण दुर्घटना हितलाभ का दावा पत्र दिनांकित 20/10/2012 द्वारा अस्वीकार कर दिया गया और ऐसा करके विपक्षीगण ने कोई त्रुटि नहीं की। विपक्षीगण का अग्रेत्तर कथन है कि पुलिस ने हत्या के इस मामले में जॉंच करके सुनील कश्यप नाम के व्यक्ति के विरूद्ध धारा-302 आई0पी0सी0 के अधीन न्यायालय में आरोप पत्र प्रस्तुत कर दिया है। विपक्षीगण की विभागीय जॉंच में यह भी पाया गया कि परिवादी के पिता जेबर गिरवीं रखकर रूपये उधार देने का काम करते थे। अभियुक्त सुनील कश्यप उनका साझाीदार था, हत्या से कुछ दिन पूर्व लूट व गिरवी के जेबरों के बंटवारे को लेकर शराब पीने के उपरान्त सुनील कश्यप ने परिवादी के पिता की हत्या की थी। विपक्षीगण के अनुसार बीमा के सन्दर्भ में दुर्घटना हितलाभ का दावा अस्वीकृत करके विपक्षीगण ने न तो कोई त्रुटि की और न ही सेवा में कमी की, उन्होंने परिवाद को सव्यय खारिज किऐ जाने की प्रार्थना की।
4- परिवाद के साथ परिवादी ने अपने पिता के मृत्यु प्रमाण पत्र, बीमा पालिसी वांड, बीमा दावे का चैक भेजे जाने विषयक विपक्षी का पत्र दिनांकित 28/03/2012, दुर्घटना हितलाभ दावे को अस्वीकृत किये जाने विषयक विपक्षी सं0-2 के पत्र दिनांकित 20/10/2012 और परिवादी के वोटर आई0डी0 कार्ड की फोटो प्रतियों को दाखिल किया गया है, यह प्रपत्र पत्रावली के कागज सं0- 3/5 लगायत 3/9 हैं।
5- परिवादी ने अपना साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0- 9/1 लगायत 9/5 दाखिल किया।
6- विपक्षीगण की ओर से विपक्षी सं0-1 के शाखा प्रबन्धक श्री हेम चन्द्र जोशी ने अपना साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0- 10/1 लगायत 10/3 दाखिल किया। श्री हेम चन्द्र जोशी ने अपने साक्ष्य शपथ पत्र के साथ परिवादी के भाई द्वारा थाना कटघर में लिखाई गई प्रथम सूचना रिपोर्ट, बीमित की पोस्टमार्टम रिपोर्ट एवं पुलिस की विवेचना के उपरान्त धारा-302 आई0पी0सी0 के अन्तर्गत सुनील कश्यप के विरूद्ध न्यायालय में प्रेषित आरोप पत्र की फोटो प्रमाणित प्रतियों को संलग्नक के रूप में दाखिल किया गया है, यह प्रपत्र पत्रावली के कागज सं0-10/4 लगायत 10/9 हैं।
7- प्रत्युत्तर में परिवादी की ओर से रिज्वाइंडर शपथ पत्र कागज सं0- 11/1 लगायत 11/2 दाखिल किया गया
8- पक्षकारों ने लिखित बहस दाखिल नहीं की।
9- हमने दोनों पक्षों के विद्वान अधिवक्तागण के तर्कों को सुना और पत्रावली का अवलोकन किया।
10- परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवाद के पैरा सं0-1 में उल्लिखित पालिसी डबल बैनीफिट पालिसी थी। इस पालिसी के अनुसार बीमित की दुर्घटना में मृत्यु होने पर मृत्यु लाभ के साथ-साथ 1,00,000/- रूपया दुर्घटना हितलाभ के रूप में भी विपक्षीगण द्वारा नामिनी को अदा किऐ जाने थे। परिवादी इस पालिसी में नामिनी है। दिनांक 13/14 फरवरी, 2011 की रात्रि में किसी व्यक्ति ने परिवादी के पिता की उस समय हत्या कर दी जब वह अपनी दुकान के ऊपर के कमरे में सो रहे थे। सम्भवत: दुकान के कमरे में विरोध करने पर परिवादी के पिता की हत्या की गई। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता के अनुसार इस हत्या को सुनियोजि゚त हत्या नहीं कहा जा सकता बल्कि यह एक्सीडेन्टल डेथ है। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने तर्क दिया कि पत्र दिनांकित 20/10/2012 द्वारा इस हत्या को पूर्व नियोजि゚त तरीके से जानबूझकर की गई हत्या बताते हुऐ दुर्घटना हितलाभ देने से बचने के लिए विधि विरूद्ध तरीके से इन्कार किया गया है और ऐसा करके विपक्षीगण ने सेवा प्रदान करने में कमी की है। इसी फोरम द्वारा परिवाद सं0-60/2012, श्रीमती शीला सैमुअल बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम आदि के मामले में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 13/3/2013 की नकल कागज सं0-19/2 लगायत 19/4 की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हुऐ परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने यह भी तर्क दिया कि वर्तमान मामले में और परिवाद सं0-60/2012 में विपक्षीगण ने बचाव में विरोधाभासी कथन किऐ हैं। वर्तमान मामले में सुरेश चन्द्र वर्मा की मृत्यु पूर्व नियोजि゚त तरीके से जानबूझकर की गई हत्या होना बताते हुऐ विपक्षीगण मृत्यु हितलाभ देने से इन्कार किया है जबकि परिवाद सं0-60/2012 में विपक्षीगण ने बीमा दावा अभिकथित रूप से बीमारी एवं इलाज किऐ जाने सम्बन्धी तथ्यों को छिपाऐ जाने का आधार लेकर अस्वीकृत किया है। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता के अनुसार वर्तमान मामला तथा परिवाद सं0-60/2012 में विपक्षीगण द्वारा बचाव में विरोधाभासी कथन किया जाना यह दर्शाता है कि विपक्षीगण का एकमात्र उद्देश्य यह था कि किसी न किसी तरह विपक्षीगण दुर्घटना हितलाभ की देयता से बच जायें। परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता ने जोर देकर कहा कि सुरेश चन्द्र वर्मा की मृत्यु एक्सीडेन्टल थी अत: परिवादी को परिवाद में अनुरोधित अनुतोष विपक्षीगण से दिलाऐ जाऐं।
11- विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता ने परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत तर्कों का प्रतिवाद किया और पत्रावली पर उपलब्ध अन्य साक्ष्य सामग्री के साथ-साथ सुरेश चन्द्र वर्मा की हत्या की प्रथम सूचना रिपोर्ट, उसकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट और विवेचना के उपरान्त पुलिस द्वारा न्यायालय में प्रेषित आरोप पत्र की नकल जो पत्रावली के कागज सं0-10/4 लगायत 10/9 हैं, की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हुऐ तर्क दिया कि सुरेश चन्द्र वर्मा की मृत्यु एक्सीडेन्टल डेथ नहीं थी बल्कि उसकी हत्या पूर्व नियोजि゚त तरीके से जानबूझकर की गई हत्या थी अत: विपक्षीगण ने दुर्घटना हितलाभ का दावा अस्वीकृत कर किसी प्रकार की न तो कोई त्रुटि की और न यह सेवा में कमी का मामला है। जहॉं तक परिवाद सं0-60/2012 तथा वर्तमान मामले में विपक्षीगण की ओर से बचाव में किऐ गऐ कथनों का प्रश्न है इस सन्दर्भ में विपक्षीगण के विद्वान अधिवकता ने कहा कि वर्तमान मामला दुर्घटना हितलाभ की देयता से सम्बन्धित है जबकि परिवाद सं0-60/2012 मृत्यु लाभ की देयता का था। इस प्रकार दोनों मामलों में विवाद भिन्न-भिन्न थे और उसी अनुरूप विपक्षीगण ने बचाव में कथन किऐ। परिवादी पक्ष का यह कथन कि दोनों मामलों में भिन्न-भिन्न अथवा विरोधाभासी कथन विपक्षीगण ने दुर्घटना हितलाभ की देयता से बचने के उद्देश्य से किऐ हैं निरर्थक और आधारहीन हैं। हम विपक्षीगण की ओर से प्रस्तुत तर्कें से सहमत हैं।
12- वर्तमान मामले में यह देखा जाना है कि सुरेश चन्द्र वर्मा की मृत्यु एक्सीडेन्टल डेथ थी अथवा यह पूर्व नियोजि゚त तरीके से जानबूझकर की गई हत्या थी ?
13- कौन-सी हत्या एक्सीडेन्टल हत्या है और कौन-सी पूर्व नियोजित तरीके से जानबूझकर की गई हत्या है इस सन्दर्भ में Smt.Rita Devi v/s New India Assurance Co.Ltd. II (2000) ACC page 291 के मामले में मा0 सर्वोच्च न्यायालय ने निम्न व्यवस्था दी है:-
“ The question, therefore, is can a murder be an accident in any given case? There is no doubt that ‘murder’ as it is understood, in the common parlance is a felonious act where death is caused with intent and the perpetrators of that act normally have a motive against the victim for such killing. But there are also intances where murder can be by accident on a given set of facts. The difference between a ‘murder’ which is not an accident and ‘murder’ which is an accident depends on the proximity of the cause of such murder. In our opinion, if the dominant intention of the act of felony is to kill any particular person then such killing is not an accidental murder but is a murder simplicitor, while if the cause of murder or act of murder was originally nor intended and the same was caused in furtherance of any other felonious act then such murder is an accidental muder.”
14- सुरेश चन्द्र वर्मा की मृत्यु की प्रथम सूचना रिपोर्ट में परिवादी के भाई गौरव वर्मा ने हत्यारोपी के रूप में 2 व्यक्तियों को नामजद करते हुऐ उन पर हत्या की आशंका प्रकट की है। पोस्ट मार्टम में सुरेश चन्द्र वर्मा के शरीर पर कुल 5 मृत्यु पूर्व चोटें पाई गई। जिनमें उसकी नाक एवं गर्दन पर सामने की ओर धारदार हथियार की कुल 3 चोटें थीं। गर्दन पर सामने की तरफ जो चोटें थी वे श्वास नली तक गहरी थी। इनके अतिरिक्त मृतक के सिर, चेहरे, छाती, अग्रवाजू और पैरों पर तेजाब से जलने के गहरे घाव भी पोस्टमार्टम के दौरान पाऐ गऐ, यह सभी चोटें पोस्टमार्टम करने वाले चि゚कित्सक के अनुसार मृत्यु पूर्व की हैं और इन्हीं चोटों के कारण सुरेश चन्द्र वर्मा की मृत्यु हुई थी। मा0 सर्वोच्च न्यायालय की उपरोक्त विधि व्यवस्था के दृष्टिगत पोस्टमार्टम में सुरेश चन्द्र वर्मा के शरीर पर पाई गई उक्त चोटों की प्रकृति एवं उनकी स्थिति के आधार पर यह माने जाने का कारण है कि सुरेश चन्द्र वर्मा की हत्या एक्सीडेन्टल डेथ नहीं थी बल्कि यह पूर्व नियोजित तरीके से जानबूझकर की गई हत्या थी। विवेचना के उपरान्त विवेचक ने मृतक के पार्टनर सुमित कश्यप के विरूद्ध धारा 302 आई0पी0सी0 के अधीन आरोप पत्र न्यायालय में प्रेषित किया है। इस आरोप पत्र में धारा 302 के अतिरिक्त लूट अथवा डकैती से सम्बन्धित कोई धारा नहीं है। इस प्रकार सुरेश चन्द्र वर्मा की हत्या किसी लूट अथवा डकैती में हुई थी ऐसा प्रकट नहीं होता।
15- जहां तक परिवाद सं0-60/2012 और वर्तमान मामले में विपक्षीगण द्वारा अभिकथित रूप से विरोधाभासी कथन किऐ जाने विषयक परिवादी पक्ष के तर्कों का प्रश्न है इस सन्दर्भ में इतना कहना ही पर्याप्त होगा कि वर्तमान मामला दुर्घटना हितलाभ के देयता से सम्बन्धित है जबकि परिवाद सं0-60/2012 दुर्घटना हितलाभ से सम्बन्धित नहीं था बल्कि वह परिवाद मृत्यु दावा की देयता का था और चॅूंकि दोनों मामलों की विषय वस्तु भिन्न थी अत: दोनों मामलों में विपक्षीगण द्वारा बचाव में तद्नुरूप कथन करके कोई ऐसा कार्य नहीं किया जिसका परिवादी को कोई लाभ दिया जा सके। अन्यथा भी विधि का यह स्थापित सिद्धान्त है कि परिवादी को स्वयं अपना केस सिद्ध करना था जिसमें वह सफल नहीं हुआ है।
16- पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य सामग्री के तथ्यात्मक विषलेषण और विधिक मूल्यांकन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि सुरेश चन्द्र वर्मा की मृत्यु एक्सीडेन्टल डेथ नहीं थी बल्कि यह पूव्र नियोजित तरीके से जानबूझकर की गई हत्या थी अत: विपक्षीगण द्वारा दुर्घटना हितलाभ की देयता ने इन्कार करके कोई तथ्यात्मक अथवा विधिक त्रुटि नहीं की गई। हमारे मत में परिवाद खारिज होने योग्य है।
परिवाद खारिज किया जाता है।
(श्रीमती मंजू श्रीवास्तव) (सुश्री अजरा खान) (पवन कुमार जैन)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
- 0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0/।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद
07.10.2015 07-10-2015 07.10.2015
हमारे द्वारा यह निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 07.10.2015 को खुले फोरम में हस्ताक्षरित, दिनांकित एवं उद्घोषित किया गया।
(श्रीमती मंजू श्रीवास्तव) (सुश्री अजरा खान) (पवन कुमार जैन)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0/।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद
07.10.2015 07-10-2015 07.10.2015