न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, चन्दौली।
परिवाद संख्या 45 सन् 2015ई0
रंजना देवी पत्नी स्व0 सुभाष कुमार निवासिनी म0नं0 146काली मन्दिर रोड रविनगर मुगलसराय जिला चन्दौली
...........परिवादिनी बनाम
1-शाखा प्रबन्धक भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा मुगलसराय जिला चन्दौली।
2-वरिष्ठ मण्डल प्रबन्धक भारतीय जीवन बीमा निगम गौरीगंज भेलूपुर वाराणसी।
.............................विपक्षीगण
उपस्थितिः-
रामजीत सिंह यादव, अध्यक्ष
लक्ष्मण स्वरूप सदस्य
निर्णय
द्वारा श्री रामजीत सिंह यादव,अध्यक्ष
1- परिवादिनी ने यह परिवाद विपक्षी से बीमा की धनराशि रू0 500000/- मय व्याज तथा शारीरिक,मानसिक,आर्थिक क्षति की क्षतिपूर्ति हेतु रू0 50000/-दिलाये जाने हेतु प्रस्तुत किया है।
2- परिवादिनी की ओर से संक्षेप में कथन किया गया है कि परिवादिनी के पति स्व0 सुभाष कुमार अपने जीवन काल में सन् 2012 में विपक्षी की शाखा मुगलसराय से रू0 500000/- का बीमा कराये थे जिसकी बीमा पालिसी संख्या 287844270 तथा छमाही प्रीमियम रू0 12130/- था। परिवादिनी के पति बीमा के प्रीमियम की अदागयी समय से करते रहे। परिवादिनी के पति स्वस्थ एवं निरोगी थे और किसी भी प्रकार के जटिल रोग से पीडित नही थें। दुर्भाग्यवश दिनांक 15-11-2013 को परिवादिनी के पति की मृत्यु हो गयी। पति की मृत्यु के उपरान्त परिवादिनी ने अपने पति के बीमा धन के भुगतान हेतु प्रार्थना पत्र दिया किन्तु विपक्षी द्वारा बीमा धन के भुगतान करने में काफी विलम्ब किया जा रहा है। जबकि परिवादिनी ने पंजीकृत डाक से कई प्रार्थना पत्र विपक्षी को भेजा है। विपक्षी बीमा कम्पनी के मण्डल प्रबन्धक के पत्र दिनांक 13-8-2014 के द्वारा परिवादिनी के बीमा दावे को इस आधार पर अस्वीकार कर दिया गया कि परिवादिनी के पति बीमा पालिसी लेते समय अपने रोग से सम्बन्धित सही एवं तात्विक जानकारी छुपाये थे। विपक्षी के मण्डल कार्यालय द्वारा परिवादिनी के बीमा दावे को अस्वीकार कर देने पर परिवादिनी ने भारतीय जीवन बीमा निगम के क्षेत्रीय कार्यालय कानपुर भी आवेदन किया किन्तु क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा भी परिवादिनी के बीमा दावे को उसी आधार पर निरस्त कर दिया जिस आधार पर मण्डल प्रबन्धक द्वारा बीमा अस्वीकार किया गया है। परिवादिनी के पति कभी भी ऐसे रोग से पीडित नहीं थे जिसके लिए उन्हें अवकाश पर रहना पडा हो और अस्पताल में भर्ती रहना पडा हो। परिवादिनी के पति को जो कोई भी रोग रहा है वह बीमा पालिसी लेने के काफी दिनों बाद रहा है। विपक्षी ने परिवादिनी के दावे को अस्वीकार करके सेवा में कमी की है। अतः परिवादिनी ने यह परिवाद दाखिल किया है।
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3- विपक्षी ने जबाबदावा प्रस्तुत करके परिवादिनी के अभिकथनों को इन्कार करते हुए अतिरिक्त कथन में कहा है कि परिवादिनी ने सही तथ्यों को छिपाकर मनगढन्त कथनों के आधार पर परिवाद प्रस्तुत किया है। परिवादिनी के मृतक पति ने दिनांक 21-2-2012 को विपक्षी से उपरोक्त बीमा पालिसी ली थी। बीमाधारक द्वारा बीमा पालिसी लेते समय अपने स्वास्थ्य के सम्बन्ध में सही सूचना न देते हुए बीमारी की अवस्था में बीमा की संविदा की गयी थी। बीमाधारक की मृत्यु के बाद परिवादिनी ने मृत्युदावा प्रस्तुत किया और विपक्षी के जांच समिति ने बीमा दावे की जांच की और जांच के दौरान पता चला कि बीमाधारक प्रस्ताव के पूर्व कई जटिल बीमारियों से पीडित था और इलाजरत भी था और बीमारी की अवस्था में दिनांक 15-11-2013 को उसकी मृत्यु हो गयी। बीमा कम्पनी के सक्षम अधिकारी द्वारा विधि सम्यक तरीके से बीमाधारक द्वारा प्रस्ताव के समय अपनी बीमारी सम्बन्धी तात्विक जानकारी छिपाने के कारण मृत्युदावा अस्वीकार किया गया है।बीमाधारक की मृत्यु बीमा लेने के एक वर्ष आठ माह के उपरान्त हुई है और बीमाधारक रेलवे में कार्यरत था और अपने स्वास्थ्य के आधार पर अवकाश लेकर अस्पताल में भर्ती होकर इलाज कराता रहा है। इसी क्रम में बीमाधारक को मद्रास में पेसमेकर भी लगा था जिससे पूर्णतः स्पष्ट होता है कि बीमाधारक बीमा पालिसी लेने से पूर्व से ही अस्वस्थ था। इसतरह परिवादिनी के परिवाद को निरस्त किये जाने की प्रार्थना की गयी है।
4- अपने अभिकथन के समर्थन में परिवादिनी रंजना देवी ने अपना शपथ पत्र दाखिल किया है तथा दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में फेहरिस्त के साथ प्रीमियम जमा करने की रसीद की छायाप्रति,सुभाष कुमार के मृत्यु प्रमाण पत्र की छायाप्रति,परिवादिनी द्वारा विपक्षी बीमा कम्पनी को प्रेषित पत्र दिनांक 24-2-2015,5-9-2014 तथा 30-7-2015 की छायाप्रतियॉं, विपक्षी द्वारा परिवादिनी को प्रेषित पत्र दिनांकित 27-3-2015 व 1-5-2015 की छायाप्रतियॉं तथा भारतीय जीवन बीमा निगम के बाण्ड की छायाप्रति दाखिल की गयी है। इसी प्रकार विपक्षी की ओर से रविप्रकाश श्रीवास्तव प्रबन्धक (विधि)भारतीय जीवन बीमा निगम का शपथ पत्र दाखिल किया गया है तथा दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में सुभाष कुमार का अमान्य मृत्यु दावा,भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा परिवादिनी को प्रेषित पत्र दिनांकित 13-8-2014 की छायाप्रति तथा पत्र दिनांकित 12-8-2014 की छायाप्रति,मृत्यु दावा समीक्षा की छायाप्रति,गोपनीय जांच रिर्पोट की छायाप्रति,बीमाधारक सुभाष कुमार को इलाज हेतु रेफर किये जाने के फार्म की छायाप्रति, सुभाष कुमार के सिक सर्टिफिकेट की छायाप्रति,डिस्चार्ज स्लिप की छायाप्रति,सुभाष कुमार के काशी हिन्दु विश्व विद्यालय चिकित्सा विज्ञान संस्थान में इलाज कराये जाने के पर्चा की छायाप्रति,तथा इको एवं कलर डोपलर रिर्पोट की छायाप्रति,डा0सी सोम द्वारा सुभाष कुमार का इलाज किये जाने का पर्चा,हार्ट हास्पिटल में हुई जांच रिर्पोट की छायाप्रति,पैथालाजी जांच रिर्पोट की छायाप्रतियॉं,पेसेन्ट रेफरल फार्मेट की छायाप्रति,भारतीय जीवन बीमा निगम मण्डल कार्यालय वाराणसी का दावा अर्हता पत्रक दिनांक 11-1-2014 की
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छायाप्रति,दावेदार के बयान की छायाप्रति,दाह संस्कार प्रमाण पत्र की छायाप्रति,सुभाष कुमार के मृत्यु प्रमाण पत्र की छायाप्रति दाखिल की गयी है।
5- पक्षकारों के अधिवक्तागण की बहस सुनी गयी है तथा पक्षकारों की ओर से दाखिल लिखित तर्क एवं पत्रावली का पूर्ण रूपेण सम्यक अवलोकन किया गया।
6- प्रस्तुत मामले में यह स्वीकृत तथ्य है कि परिवादिनी के पति सुभाष कुमार ने विपक्षी भारतीय जीवन बीमा निगम से दिनांक 21-2-2012 को रू0 500000/- का बीमा करवाया था और यह भी स्वीकृत तथ्य है कि दिनांक 15-11-2013 को बीमाधारक सुभाष कुमार की मृत्यु हो गयी है और बीमाधारक की मृत्यु के उपरान्त परिवादिनी ने बीमा धनराशि प्राप्त करने हेतु जो क्लेम दाखिल किया वह इस आधार पर विपक्षी द्वारा निरस्त कर दिया गया कि बीमाधारक बीमा प्रस्ताव के पूर्व से कई जटिल बीमारियों से पीडित एवं इलाजरज था और अपनी बीमारी को छिपाते हुए उसने बीमा कराया था।अतः प्रस्तुत मामले में मुख्य विचारणीय प्रश्न यही है कि क्या परिवादिनी के पति बीमाधारक सुभाष कुमार बीमा कराने से पूर्व कई जटिल बीमारियों से ग्रसित एवं इलाजरत थे तथा उन्होने अपनी बीमारी को छिपाते हुए बीमा कराया था। परिवादिनी ने अपने परिवाद में यह कहा है कि परिवादिनी के पति कभी भी ऐसे रोग से पीडित नहीं थे जिसके कारण उन्हें अवकाश पर रहना पडा हो या किसी हास्पिटल में भर्ती होना पडा हो। परिवादिनी के पति को जो भी रोग रहा वह बीमा पालिसी लेने के काफी दिन बाद रहा अपने शपथ पत्र में भी परिवादिनी ने यही बाते कही है। विपक्षी की ओर से जबाबदावा में यह अभिकथन किया गया है कि बीमाधारक ने अपने स्वास्थ्य के सम्बन्ध में सही सूचना न देते हुए बीमारी की अवस्था में बीमा करवाया था और जब उसकी मृत्यु के बाद मृत्यु दावा प्रस्तुत किया गया तब जांच समिति द्वारा जांच के दौरान यह ज्ञात हुआ कि बीमा धारक प्रस्ताव के पूर्व से कई जटिल बीमारियों से पीडित था और इलाजरत भी था और बीमारी की अवस्था में ही दिनांक 15-11-2013 को बीमाधारक की मृत्यु हो गयी। अतः विधिक रूप से इस तथ्य को सिद्ध करने का भार विपक्षी पर ही है कि बीमाधारक बीमा पालिसी लेने के पहले से ही कई जटिल बीमारियों से ग्रस्त था तथा इलाजरत था। यहॉं यह तथ्य उल्लेखनीय है कि विपक्षी ने अपने जबाबदावा में स्पष्ट रूप से यह नहीं बताया है कि बीमाधारक को कब से और कौन सी बीमारी थी अतः इस सम्बन्ध में विपक्षी का अभिकथन अस्पष्ट है। विपक्षी की ओर से बीमाधारक सुभाष कुमार के बीमारी एवं इलाज से सम्बन्धित जो अभिलेख दाखिल किये गये है उनमें कागज संख्या 12ग/11 रेफरल फार्म की छायाप्रति है जिसके अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि चिकित्सा अधीक्षक मुगलसराय द्वारा चीफ मेडिकल डायरेक्टर ईस्ट सेन्ट्रल रेलवे हाजीपुर के यहॉं सुभाष कुमार को इलाज हेतु दिनांक 11-3-2013 को रेफर किया गया है। इसी प्रकार कागज संख्या 12ग/14 के रूप में सुभाष कुमार की सिक सर्टिफिकेट दाखिल की गयी है जिसके अनुसार वे 5 दिनों तक बीमार रहे है किन्तु इसमें इस बात का कोई उल्लेख नहीं है कि सुभाष कुमार किसी गम्भीर बीमारी से पीडित है। कागज संख्या 12ग/15 जो
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मण्डल रेल हास्पिटल मुगलसराय के डिस्चार्ज स्लिप की छायाप्रति के अनुसार सुभाष कुमार त् भ् क् ़डै के इलाज हेतु उक्त हास्पिटल में दिनांक 27-2-2013 को भर्ती हुए थे और दिनांक 2-3-2013 को डिस्चार्ज हुए थे अर्थात वे लगभग 3 दिन तक हास्पिटल में भर्ती रहे। इसी प्रकार कागज संख्या 12ग/18 के रूप में चिकित्सा विज्ञान संस्थान (बी0एच0यू0)में बीमाधारक सुभाष कुमार के इलाज का पर्चा है जो दिनांक 27-2-2013 का है और इसमें भी उनका त् भ् क् ़डै का इलाज हुआ है। कागज संख्या 12ग/20 डाक्टर सी0सोम द्वारा बीमाधारक सुभाष कुमार का इलाज किये जाने से सम्बन्धित पर्चा है जो दिनांक 17-2-2013 का है तथा कागज संख्या 12ग/21 जो इको कार्डियोग्राफी एवं कलर डोपलर स्टडी रिर्पोट है वह भी दिनांक 20-2-2013 की है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि विपक्षी की ओर से बीमाधारक सुभाष कुमार के इलाज से सम्बन्धित जो भी अभिलेख दाखिल किये गये है वे बीमा कराने के काफी बाद के है क्योंकि बीमा दिनांक 21-2-2012 को हुआ है और इलाज के सारे अभिलेख इसके लगभग 1 वर्ष या इससे भी अधिक समय बाद के है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि विपक्षी की ओर से ऐसा कोई साक्ष्य दाखिल नहीं किया गया है जिससे यह सिद्ध हो सके कि बीमाधारक बीमा पालिसी लेते समय या उसके पूर्व से किसी गम्भीर बीमारी से ग्रस्त रहा हो जिसका इलाज चलता रहा हो और जिसे छिपाते हुए उसने बीमा कराया हो।
7- विपक्षी के अधिवक्ता द्वारा यह तर्क दिया गया कि कागज संख्या 12ग/20 जो डाक्टर सी0सोम द्वारा बीमाधारक सुभाष कुमार के इलाज का पर्चा है के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि बीमाधारक सुभाष कुमार जब दिनांक 17-2-2013 को अपना इलाज कराने हेतु डाक्टर सी0 सोम के यहॉं गये थे तो उन्होंने डाक्टर से यह बताया था कि वे 25 वर्षो से रियूमेटिक अर्थेराइटिस रोग से पीडित रहा है। विपक्षी के अधिवक्ता का तर्क है कि इस अभिलेख से यह सिद्ध है कि बीमाधारक बीमा पालिसी लेने के काफी पहले से रियूमेटिक अर्थेराइटिस रोग से ग्रस्त रहा है और इस तथ्य को छिपाते हुए उसने बीमा कराया था। विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि रियूमेटिक अर्थेराइटिस से ग्रस्त व्यक्ति को ह्दय रोग भी हो जाता है जिससे उसकी मृत्यु होना सम्भाव्य है और बीमाधारक की मृत्यु भी इसी रोग के फलस्वरूप हुए ह्दय रोग के कारण हुई है। किन्तु फोरम की राय में विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता के उपरोक्त तर्को में कोई बल नहीं पाया जाता है क्योंकि डाक्टर सी0सोम का जो इलाज का पर्चा कागज संख्या 12ग/20 है उसमे कही यह नहीं लिखा है कि बीमाधारक 25 वर्षो से लगातार रियूमेटिक अर्थेराइटिस से पीडित रहा है बल्कि इसमे सिर्फ यह कहा गया है कि रोगी के कथनानुसार वह 25 वर्ष पूर्व रियूमेटिक अर्थेराइटिस से पीडित हुआ था। इससे यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि बीमाधारक पिछले 25 वर्षो से उक्त रोग से ग्रस्त था जिसके फलस्वरूप ह्दय रोग हो जाने के कारण उसकी मृत्यु हो गयी।
8- विपक्षी की ओर से उनके अधिवक्ता द्वारा ।।(2007)सी.पी.जे.51,एनसी लाइफ इश्योरेंस कारपोरेशन बनाम कृष्ण चन्द्र शर्मा की विधि व्यवस्था का हवाला दिया
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गया है जिसमे यह कहा गया है कि बीमा कराते समय यदि बीमाधारक अपने बीमारी के तथ्यों को छिपाता है तो बीमा दावा अस्वीकार किया जायेगा। हम उपरोक्त विधि व्यवस्था का सम्मान करते है किन्तु हमारी राय में इस विधि व्यवस्था का कोई लाभ प्रस्तुत मामले में विपक्षी को नहीं दिया जा सकता क्योंकि उद्धृत विधि व्यवस्था के तथ्य एवं परिस्थितियॉं प्रस्तुत मुकदमें के तथ्य एवं परिस्थितियों से नितान्त भिन्न है। उद्धृत मुकदमें में साक्ष्य से यह साबित था कि बीमाधारक बीमा पालिसी लेने के पूर्व काफी लम्बे समय तक हास्पिटल में भर्ती होकर अपना इलाज करवायी थी और इस तथ्य को छिपाते हुए बीमा पालिसी ली गयी थी जबकि प्रस्तुत मामले में पत्रावली पर ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जिससे यह सिद्ध हो सके कि बीमाधारक बीमा पालिसी लेने के पूर्व किसी गम्भीर बीमारी से ग्रस्त था या उसका कही इलाज हुआ था बल्कि साक्ष्य से यही सिद्ध होता है कि उसका जो भी इलाज हुआ है वह बीमा पालिसी लेने के लगभग 1 वर्ष या उससे भी अधिक समय बाद हुआ है।
इस सम्बन्ध में परिवादिनी की ओर से 1(2014)सी.पी.जे.,86(छत्तीसगढ)भारतीय जीवन बीमा निगम तथा अन्य बनाम शोभा देवी की विधि व्यवस्था का हवाला दिया गया है जिसमे माननीय छत्तीसगढ राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग द्वारा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है कि जहॉं डाक्टर द्वारा शपथ पत्र एवं बयान इस तथ्य का दिया गया हो कि मृतक लीवर सिरोसिस से लगभग 3 वर्ष से ग्रस्त था तो उस पर विश्वास नहीं किया जायेगा यदि उसके समर्थन में अन्य दस्तावेज दाखिल न किया हो। इसी प्रकार परिवादिनी की ओर से 1(2014)सी.पी.जे.36 (एन.सी.)मीना देवी बनाम डायरेक्टर जनरल/एडीशनल डायरेक्टर जनरल तथा अन्य की विधि व्यवस्था का हवाला दिया गया है जिसमे माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग नई दिल्ली द्वारा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है कि जहॉं यह बात सिद्ध न हो कि बीमाधारक ने महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाते हुए बीमा पालिसी प्राप्त किया था वहॉं बीमा क्लेम निरस्त नहीं किया जा सकता। माननीय छत्तीसगढ राज्य आयोग तथा माननीय राष्ट्रीय आयोग,नई दिल्ली द्वारा उपरोक्त विधि व्यवस्थाओं में प्रतिपादित सिद्धान्तों के प्रकाश में यह स्पष्ट है कि चूंकि प्रस्तुत मामले में विपक्षी यह सिद्ध करने में पूर्णतः विफल रहे है कि बीमाधारक ने अपने स्वास्थ्य सम्बन्धी महत्वपूर्ण तथ्यों एवं बीमारी को छिपाते हुए बीमा कराया था। अतः विपक्षी भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा परिवादिनी के क्लेम को खारिज किया जाना स्पष्ट रूप से सेवा में कमी माना जायेगा।
अतः परिवादिनी का परिवाद स्वीकार करते हुए उसे बीमा की धनराशि रू0 500000/- तथा उस पर दावा दाखिल करने की तिथि से पैसा अदा करने की तिथि तक 8प्रतिशत साधारण वार्षिक व्याज एवं मानसिक क्षति की क्षतिपूर्ति हेतु रू0 2000/-तथा खर्चा मुकदमा के रूप में रू0 1000/- दिलाया जाना न्यायोचित प्रतीत होता है।
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आदेश
परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वे आज से 2 माह के अन्दर परिवादिनी को बीमा धनराशि रू0 500000/-(पांच लाख) तथा इस पर दावा दाखिल करने की तिथि दिनांक 15-9-2015 से 8 प्रतिशत साधारण वार्षिक व्याज अदा करें। विपक्षीगण को यह भी आदेशित किया जाता है कि वे इसी अवधि में परिवादिनी को शारीरिक एवं मानसिक क्षति की क्षतिपूर्ति हेतु रू0 2000/-(दो हजार) तथा वाद व्यय के रूप में रू0 1000/-(एक हजार)भी अदा करें।
(लक्ष्मण स्वरूप) (रामजीत सिंह यादव)
सदस्य अध्यक्ष
दिनांकः11-9-2017