न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, चन्दौली।
परिवाद संख्या 03 सन् 2014ई0
रामनगीना राम पुत्र स्व0 राममुरत चैरसिया ग्राम सिसौरा थाना धीना जनपद चन्दौली।
...........परिवादी बनाम
1-भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा कार्यालय मुगलसराय जिला चन्दौली।
2-मण्डलीय प्रबन्धक,भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा गौरीगंज भेलूपुर वाराणसी।
.............................विपक्षी
उपस्थितिः-
माननीय श्री जगदीश्वर सिंह, अध्यक्ष
माननीया श्रीमती मुन्नी देवी मौर्या सदस्या
माननीय श्री मारकण्डेय सिंह, सदस्य
निर्णय
द्वारा श्री जगदीश्वर सिंह,अध्यक्ष
1- परिवादी द्वारा यह परिवाद विपक्षी बीमा कम्पनी से प्रश्नगत बीमा के बोनस की धनराशि,मानसिक क्षतिपूर्ति एवं वाद व्यय हेतु कुल मु0 1,00000/- 10 प्रतिशत ब्याज के साथ दिलाये जाने हेतु प्रस्तुत किया गया है।
2- परिवाद में संक्षेप में कथन किया गया है कि परिवादी की पत्नी स्व0 बसन्ती देवी का बीमा विपक्षी बीमा कम्पनी के यहाॅं से हुआ था जिसकी बीमा पालिसी संख्या 284074867 जिसका वार्षिक प्रीमियम किस्त मु0 12217/-था। दिनांक 28-7-2004 से प्रारम्भ हुई।उक्त बीमा की नियमित किश्ते परिवादी की पत्नी द्वारा जमा किया जाता था। बीमा के परिपक्वता की अवधि जुलाई 2018 थी। परिवादी की पत्नी स्व0 बसन्ती देवी की मृत्यु बीमारी की वजह से दिनांक 26-3-2012 को एपेक्स हास्पिटल वाराणसी में हो गयी। परिवादी ने अपनी पत्नी के मृत्यु के उपरान्त विपक्षी के यहाॅं बीमा दावा प्रस्तुत किया,जिसके आधार पर विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा मु0 1,50000/- के एकाउण्ट पेई चेक के माध्यम से परिवादी को भुगतान दिनांक 27-9-2013 को कर दिया गया है। किन्तु बीमा के बोनस का भुगतान विपक्षी द्वारा नहीं किया गया जिसके भुगतान हेतु परिवादी विपक्षी के यहाॅं बार-बार जाता रहा किन्तु विपक्षी जानबूझकर प्रश्नगत बीमा के बोनस की धनराशि मु0 45650/- हडप कर गये। अतः विपक्षीगण से प्रश्नगत बीमा के बोनस की धनराशि के साथ ही साथ क्षतिपूर्ति एवं वाद व्यय दिलाये जाने की प्रार्थना किया है।
3- विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से जबाबदावा प्रस्तुत करके संक्षेप में कथन किया गया है कि परिवादी ने सही तथ्यों को छिपाकर गलत आधार पर परिवाद दाखिल किया है जो सव्यय निरस्त किये जाने योग्य है। परिवादी की पत्नी द्वारा बीमा किस्त का समय से भुगतान न करने के कारण पालिसी कालातीत हो गयी थी। तत्पश्चात मृतक बीमेदार द्वारा स्वास्थ्य के बारे में व्यक्तिगत प्राक्कथन के आधार पर पालिसी पूरे बीमाधन के लिए दिनांक 12-1-2010 को पुर्नचलित करायी गयी थी। पालिसी पुर्नचलन की तिथि के पूर्व से ही बीमेदार ’’टाइप 2 डी.एम. विथ एच.टी.एन. विथ डी.के.ए.विथ साॅक’’ की बीमारी से ग्रसित थी, तथा पालिसी का
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पुर्नचलन बीमारी को छिपाकर कराये जाने से पालिसी पुर्नचलन अवैध घोषित करते हुए पालिसी पुर्नचलन के लिए भुगतान की गयी धनराशि जब्त की गयी थी तथा प्रथम अदत्त प्रीमियम 07/2008 मानते हुए चुकता मूल्य का दावा स्वीकार किया गया था। परिवादी का दावा क्षेत्रीय कार्यालय समीक्षा समिति के विचारार्थ प्रस्तुत होने पर सभी तथ्यों का विचार करने के बाद समिति के निर्णय के अनुसार ’’पे एक्सग्रान्ट मु0 1,50000/- डिस्चार्ज फार्म 5170ए,5169 ए परिवादी से प्राप्त होने पर भुगतान कर दिया गया है। इसके अलावा परिवादी बीमा कम्पनी से और कुछ पाने का अधिकारी नहीं है।इस आधार पर परिवादी के बीमा दावा को निरस्त किये जाने की प्रार्थना बीमा कम्पनी द्वारा की गयी है।
4- परिवादी की ओर से फेहरिस्त के साथ साक्ष्य के रूप में विधिक नोटिस की प्रति कागज संख्या 4/2,रजिस्ट्री रसीद 4/3,बीमा कम्पनी का प्राप्ति रसीद 4/4, बीमा प्रीमियम जमा करने की रसीद की छायाप्रति 4/5,बीमा कम्पनी का स्टेट्स रिर्पोट 4/6दाखिल किया गया है। विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से फेहरिस्त के साथ साक्ष्य के रूप में स्टेट्स रिर्पोट कागज संख्या 10/2ता 10/11,बीमा भुगतान प्राप्त करने की रसीद 10/4,बीमा स्वीकार करने का पत्र 10/5,बीमा कम्पनी का पत्र 10/6ता 10/7,बीमा कम्पनी का पंजीकृत पत्र 10/8ता 10/9 दाखिल किया गया है।
5- हम लोगों ने परिवादी एवं विपक्षी के विद्वान अधिवक्तागण के बहस को सुना, तथा पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्य का भलीभांति परिशीलन किया है।
6- इस प्रकरण में उभय पक्षों के कथनों से यह स्वीकृत तथ्य है कि परिवादी की पत्नी स्व0 बसन्ती देबी ने दिनांक 28-7-04 को मु0 1,50,000/- का बीमा विपक्षी बीमा कम्पनी से लिया था। बीमा पलिसी का नम्बर284074867 है जिसकी वार्षिक प्रीमियम मु0 12217/- थी तथा इसकी परिपक्वता की तिथि जुलाई 2018 थी। बीमा अवधि के अन्दर बीमाधारक की मृत्यु दिनांक 26-3-12 को हो गयी। तत्पश्चात परिवादी जो कि बीमा पालिसी के अन्र्तगत बीमाधारक का नामिनी है उसने बीमा दावा प्रस्तुत किया। विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा बीमा पालिसी की धनराशि मु0 1,50,000/- का भुगतान कर दिया गया है लेकिन अर्जित बोनस का भुगतान नहीं किया गया जिससे क्षुब्ध होकर परिवादी ने परिवाद प्रस्तुत किया है जिसमे अर्जित बोनस की धनराशि मु0 45650/- तथा इस पर हर्जा व वाद व्यय दिलाये जाने का निवेदन किया है।
7- बीमा कम्पनी की ओर से जबाबदावा प्रस्तुत करके यह कथन किया गया है कि बीमा पालिसी के अन्र्तगत बीमाधारक की मृत्यु के उपरान्त प्रस्तुत दावा बीमा कम्पनी के मण्डल कार्यालय द्वारा इस आधार पर निरस्त कर दिया गया था कि बीमा पालिसी में समय से किश्तों का भुगतान न करने के कारण पालिसी कालातीत हो गयी थी। मृतक बीमेदार द्वारा स्वास्थ्य के बारे में ब्यक्तिगत प्राक्कथन के आधार पर बीमा पालिसी के पूरे बीमाधन के लिए दिनांक 12-1-2010 को पुर्नचलित
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करायी थी। जांच में पाया गया है कि पुर्नचलन के तिथि के पहले से ही बीमाधारक मधुमेह रोग टाइप-2से पीडि़त थी और इस तथ्य को छिपाकर पालिसी का पुर्नचलन कराया था। इस आधार पर दावा निरस्त कर दिया गया था। दावा पर पुर्नविचार हेतु परिवादी ने अपना प्रतिवेदन क्षेत्रीय प्रबन्धक, भारतीय जीवन बीमा निगम क्षेत्रीय कार्यालय महात्मा गाॅंधी रोड कानपुर के पते पर प्रेषित किया। क्षेत्रीय दावा समिति के समक्ष विचारार्थ उसका प्रतिवेदन प्रस्तुत हुआ तथा सभी तथ्यों पर विचार करने के पश्चात क्षेत्रीय समिति ने एक्सग्रेसिया के आधार पर मु0 1,50,000/- का भुगतान करने का निर्देश दिया जिस पर परिवादी ने अपनी पूर्ण सहमति व्यक्त किया है और मु0 1,50,000/- का भुगतान स्वीकार किया है। इस आधार पर कहा गया है कि परिवादी ने दावा के पूर्ण भुगतान के रूप में मु0 1,50,000/- प्राप्त कर लिया है इसलिए उसका परिवाद चलने योग्य नहीं है। उपरोक्त बिन्दुओं पर हम लोगों द्वारा विचार किया गया।
8- विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से इस प्रकरण में ऐसा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है कि बीमाधारक द्वारा बीमा पालिसी में किश्तों का समय से भुगतान नहीं किया गया। इस बिन्दु पर भी साक्ष्य नहीं दिया गया है इस आधार पर बीमा पालिसी कालातीत कर दी गयी थी। इस बिन्दु पर भी कोई साक्ष्य नहीं है कि बीमाधारक कभी टाइप-2 डी.एम.(मधुमेह) बीमारी से पीडित थी। अतः विपक्षी बीमा कम्पनी यह साबित करने में पूर्णतया विफल है कि बीमाधारक ने अपनी बीमारी को छिपाकर अथवा गलत प्राक्कथन करके अपने बीमा पालिसी का पुर्नचलन कराया था। जब क्षेत्रीय समिति ने दावा पर पुर्नविचार करते हुए बीमाधन मु0 1,50,000/- का भुगतान किये जाने का निर्णय लिया तो उस पर अर्जित बोनस का भुगतान करने का निर्णय क्यों नहीं लिया, इसका कोई भी सम्यक आधार व्यक्त नहीं किया गया है। बीमा पालिसी की शर्तो के अधीन बीमाधारक के मृत्यु हो जाने पर सम्पूर्ण बीमाधन तथा बोनस एवं अतिरिक्त बोनस यदि कोई हो,इसे दिये जाने का प्राविधान है।अतः स्पष्ट है कि इस प्रकरण में बीमाधारक की बीमा पालिसी के अन्र्तगत जब मृत्यु हो गयी तो बीमा दावा का भुगतान करते समय अर्जित बोनस का नियमानुसार भुगतान किया जाना चाहिए था। बीमाधन मु0 1,50,000/- का भुगतान तो कर दिया गया लेकिन अर्जित बोनस का भुगतान न करके विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा सेवा में कमी की गयी है। बीमाधारक की जब मृत्यु हुई उस वक्त बीमा पालिसी के अन्र्तगत मु0 40,650/- बोनस अर्जित हो गया था जैसा कि बीमा कम्पनी द्वारा जारी दिनांक 19-9-12 के विवरण कागज संख्या 4/6 से स्पष्ट है। अतः परिवादी विपक्षी बीमा कम्पनी से अर्जित बोनस मु0 40650/-पाने का अधिकारी है। बीमा कम्पनी द्वारा गलत ढंग से अर्जित बोनस रोका गया है जिसको प्राप्त करने के लिए परिवादी को यह परिवाद दाखिल करने हेतु विवश होना पड़ा। इसलिए उसे मु0 5,000/- हर्जा और मु0 2,000/- वाद व्यय दिलाया जाना भी न्यायोचित है। तद्नुसार परिवाद अंशतः स्वीकार किये जाने योग्य है।
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आदेश
प्रस्तुत परिवाद अंशतः स्वीकार किया जाता है। विपक्षी बीमा कम्पनी को आदेश दिया जाता है कि वह इस निर्णय की तिथि से एक माह के भीतर परिवादी को अर्जित बोनस की धनराशि मु0 40650/-(चालीस हजार छःसौ पचास)एवं इस पर दावा प्रस्तुत करने की तिथि से आइन्दा भुगतान की तिथि तक 10 प्रतिशत वार्षिक की दर से व्याज तथा हर्जा के रूप में मु0 5,000/-(पांच हजार) और वाद व्यय के रूप में मु0 2,000/-(दो हजार) अदा करें।
(मारकण्डेय सिंह) (मुन्नी देबी मौर्या) (जगदीश्वर सिंह)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष,
दिनांक 30-5-2015