जिला मंच, उपभोक्ता संरक्षण अजमेर
श्रीमति प्रेम देवी पत्नि स्व श्री कालूराम, कौम बैरवा, निवासी- ग्राम पोस्ट अरवड, तहसील- सरवाड, जिला-अजमेर ै
प्रार्थीया
बनाम
1. भारतीय जीवन बीमा निगम जरिए षाखा प्रबन्धक, केकडी, जिला-अजमेर
2. भारतीय जीवन बीमा निगम जरिए वरिष्ठ मण्डल प्रबन्धक,मण्डल कार्यालय, जीवन प्रकाष रानाडे मार्ग, पी.बी.2, अजमेर ।
3. श्री तेजूमल बैरवा, भारतीय जीवन बीमा निगम(कम्पनी एजेण्ट) ग्राम सूरजपुरा, तहसील- सरवाड, जिला-अजमेर (राज.)
अप्रार्थीगण
परिवाद संख्या 247/2012
समक्ष
1. विनय कुमार गोस्वामी अध्यक्ष
2. श्रीमती ज्योति डोसी सदस्या
3. नवीन कुमार सदस्य
उपस्थिति
1.श्री रामचन्द वर्मा, प्रतिनिधि, प्रार्थीया
2.श्री संजय मंत्री, अधिवक्ता अप्रार्थी सं. 1 व 2
3. श्री राजेन्द्र सिंह राठौड़, अधिवक्ता, अप्रार्थी सं.3
मंच द्वारा :ः- निर्णय:ः- दिनांकः- 05.10.2016
1. माननीय राज्य आयोग के आदेष दिनांक 31.10.2014 की पालना में उनके निर्देषानुसार प्रकरण संख्या 247/12 श्रीमति प्रेम देवी बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम में उभय पक्षकारान को सुना जाकर यह निर्णय पारित किया जा रहा है ।
2. परिवाद के संक्षिप्त तथ्य इस प्रकार है कि उसके पति ने अप्रार्थी संख्या 3 के माध्यम से अप्रार्थी संख्या 1 व 2 बीमा निगम से एक बीमा पाॅलिसी संख्या 1856571108 रू. 50,000/- की दिनांक 8.3.2010 को प्राप्त की और छमाही बीमा प्रीमियम राषि रू. 1950/- अप्रार्थी संख्या 3 के माध्यम से जमा कराई जाती रही । अगली बीमा प्रीमियम किष्त दिनाक 8.9.2010 को जमा कराई जानी थी किन्तु उसके पति का दिनांक 15.7.2010 को देहान्त हो गया जिसकी सूचना अप्रार्थी बीमा निगम को देते हुए उसके पति की मृत्यु उपरान्त अप्रार्थी बीमा निगम के यहां समस्त औपचारिकताएं पूर्ण करते हुए बीमा क्लेम पेष किया । किन्तु अप्रार्थी बीमा निगम ने बावजूद तकाजों व नोटिस दिए जाने के उपरान्त भी उसे क्लेम राषि अदा नहीं कर सेवा में कमी की है । प्रार्थीया ने परिवाद प्रस्तुत कर उसमें वर्णित अनुतोष दिलाए जाने की प्रार्थना की है ।
2. परिवाद के उत्तर में अप्रार्थी बीमा निगम ने प्रार्थीया के पति द्वारा दिनांक 50,000/- की बीमा पाॅलिसी प्राप्त किए जाने के तथ्य को स्वीकार करते हुए दर्षाया है कि बीमा पाॅलिसी लिए जाने के 4 माह 08 दिन बाद ही दिनांक 15.7.2010 को बीमा धारक की मृत्यु हो जाने के कारण मृत्यु दावा अतिषीघ्र क्लेम की श्रेणी में आ जाने से श्री अनिल कुमार कूलवाल से करवाई गई । जांच में यह पाया गया कि बीमाधारक कुछ वर्षो से फेफडों के कैंसर से पीड़ित था। जिसके इलाज के लिए वह दिनांक 2.10.2009 को जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय अजमेर के कैंसर विभाग के एम.एम-3 वार्ड में भर्ती हुआ । इसके बाद भगवान महावीर कैंसर हाॅस्पिटल एण्ड रिसर्च सेन्टर, जयपुर में दिनांक 2.10.2009 को भर्ती हुआ, जिसकी पुष्टि बैडहैड टिकिट संख्या 5109 से होती है और कमजोर स्वास्थ्य के कारण बीमाधारक का देहान्त हो गया ।
अप्रार्थी बीमा निगम का कथन है कि बीमाधारक ने दिनंाक
8.3.2010 को बीमा पाॅलिसी प्राप्त की थी और बीमा प्रीमियम अद्र्ववार्षिक थी । चूंकि बीमाधारक की मृत्यु दूसरी किष्त की ड्यू डेट के पूर्व ही हो गई, इसलिए 30 दिन की छूट आवष्यक नहीं है ं। बीमाधारक ने विवादित बीमा पाॅलिसी लेने से पूर्व दिनांक 14.8.2007 को रू. 1,00,000/- की बीमा पाॅलिसी प्राप्त की । जिसके संबंध में बीमा क्लेम प्राप्त होने पर श्री अनिल कुमार कूलवाल, षाखा प्रबन्धक से जांच करवाई गई इसलिए इस प्रकरण में पुनः जांच कराने की आवष्यकता नहीं थी । बीमाधारक की मृत्यु दिनांक 15.7.2010 को अर्थात पाॅलिसी लेने के 4 माह 8 दिन के अन्दर ही हो गई थी इसलिए मृत्यु दावा षीघ्र क्लेम की श्रेणी में आ गया । बीमाधारक कुछ वर्षो से फेफड़ों के कैंसर रोग के पीडित था, जिसका उसने जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय, अजमेर में दिनंाक 2.10.2009 को भर्ती रह कर उपचार करवाया । इसके बाद भगवान महावीर कैंसर हाॅस्पिटल एण्ड रिसर्च सेन्टर, जयपुर में उसी दिनांक 2.10.2009 को सायं भर्ती हुआ और कमजोर स्वास्थ्य होने के कारण बीमाधारक की मृत्यु हो गई । बीमारी के बाद बीमाधारक ने बीमा पाॅलिसी प्राप्त की और प्रस्ताव प्रपत्र में अपने स्वास्थ्य से संबंधित प्रष्नों का उत्तर नकारात्मक दिया । बीमाधारक ने गहन विष्वास के सिद्वान्त पर आधारित जारी बीमा पाॅलिसी की षर्तो की अवेहलना की है । इसलिए प्रार्थिया का बीमा क्लेम खारिज करते सूचित कर दिया । अन्त में परिवाद सव्यय निरस्त किए जाने की प्रार्थना की है ।
3. परिवाद के उत्तर में अप्रार्थी संख्या 3 अभिकर्ता ने दर्षाया है कि बीमा पाॅलिसी देने से पूर्व बीमाधारक को समस्त परिलाभों व अन्य सभी आवष्यक जानकारियों दे दी गई थी और उसके बाद ही बीमधारक ने बीमा पाॅलिसी प्राप्त की । उत्तरदाता को हर किष्त की राषि अप्रार्थी उत्तरदाता को जमा करवाने हेतु नहीं दी जाती थी बल्कि जब भी मृतक बीमाधारक द्वारा या उसके पुत्रों द्वारा राषि जमा कराने हेतु दी तो हाथांे हाथ राषि अप्रार्थी बीमा निगम में जमा करवा दी जाती थी । किष्त जमा करवाने में देरी बीमाधारक के स्तर पर हुई है । अन्त में परिवाद खारिज किए जाने की प्रार्थना की है ।
4. प्रार्थिया पक्ष प्रमुख रूप से तर्क रहा है कि उसके मृतक पति द्वारा दिनांक 8.3.2010 को ली गई पाॅलिसी की प्रथम प्रीमियम राषि जमा करवाने के बाद अगली प्रीमियम किष्त जो 6माही दिनांक 8.9.2010 को देय थी, से पहले दिनंाक 15.07.2010 को उसके पति की मृत्यु हो गई, जिसकी जानकारी भी तत्समय अप्रार्थी बीमा निगम को दे दी गई थी । चूंकि उक्त बीमा पाॅलिसी नई जन रक्षा बीमा योजना लाभ सहित थी, अतः बीमा पाॅलिसी की षर्त संख्या 2 के अनुसार रियायत अवधि के अन्दर तत्समय प्रीमियम का भुगतान करने से पूर्व बीमाधारक की मृत्यु हो जाने की स्थिति में उक्त पाॅलिसी वैध थी तथा देय प्रीमियम निगम द्वारा समय समय पर निर्धारित चक्रवृद्वि या पाॅलिसी की अगली वर्षगांठ पूरी होने तक देय प्रीमियम किष्त काट कर ष्षेष बीमाधन का भुगतान दावेदार को किया जाना था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया । क्लेम दिए जाने हेतु निवेदन किया गया एवं नोटिस भी दिया गया । इसके बावजूद न तो जवाब दिया गया और ना ही भुगतान हुआ है । परिवाद स्वीकार किया जाकर पाॅलिसी राषि की दुगनी देय राषि का भुगतान करने की प्रार्थिया अधिकारिणी है । अपनी लिखित बहस में भी इन्हीं तर्को को दोहराया गया है । यह भी तर्क प्रस्तुत किया गया कि बीमा निगम द्वारा क्लेम प्रस्तुत किए जाने पर किस आधार पर जांच करवाई गई ? जांच बाबत् न तो कोई जानकारी प्रार्थिया को दी गई और ना ही जांच रिपोर्ट की कोई प्रति दी गई । प्रार्थिया के अन्य केस में कैन्सर रोग का रिकार्ड भगवान महावीर कैन्सर अस्पताल,जयपुर से प्राप्त कर प्रस्तुत किया गया है । इससे स्पष्ट है कि बीमा निगम को दिनंाक 9.10.2009 को ही इस बात की जानकारी हो गई थी कि बीमाधारक कैन्सर रोग से पीड़ित था । इसके बावजूद दिनंाक 2.3.2010 को उक्त पाॅलिसी कैसे जारी कर दी गई? यह गौर करने का विषय है । बीमा पालिसी लेने के पूर्व बीमित होने वाले व्यक्ति का मेडिकल करवाया जाता है, उस समय भी अप्रार्थी निगम ने उसके पति का बीमा करने से पूर्व बीमारी के बाबत् कोई एतराज नहीं उठाया गया । मृतक अनपढ़ ग्रामीण था । उसे ऐसी बीमारी की जानकारी नहीं थी । अप्रार्थी बीमा निगम ने अपनी लापरवाही व गलती का भार मृतक बीमाधारक पर थोपते हुए अपनी जिम्मेदारी से बचने का प्रयास किया है । परिवाद स्वीकार किया जाना चाहिए ।
5. अप्रार्थी बीमा निगम की ओर से इन तर्को का खण्डन हुआ है व प्रमुख रूप् से तर्क प्रस्तुत किया है कि मृतक को उक्त पाॅलिसी लिए जाने से पूर्व कैन्सर की बीमारी का ज्ञान था तथा उसने बीमारी के बाद पाॅलिसी प्राप्त की है तथा इसका उल्लेख बीमाधारक द्वारा बीमा प्रस्ताव प्रपत्र में जानबूझकर नहीं दिया है । उक्त पाॅलिसी दुर्घटना लाभ सहित पाॅलिसी थी जिसमें दुगना भुगतान मात्र दुर्घटना की स्थिति मेें ही किया जा सकता है । साधारण मृत्यु होने पर नहीं किया जाता है । यह भी तर्क प्रस्तुत किया गया है कि प्रस्तावक के तथा निगम के बीच संविदा का मुख्य आधार यह है कि तथ्य झूठे पाए जाने पर संविदा षून्य एवं निष्प्रभावी हो जाती है तथा कोई क्लेंम देय नहीं होता है । बीमाधारक द्वारा तात्विक तथ्यों के छिपाए जाने की स्थिति में क्लेम खारिज किया गया है । अपने तर्को के समर्थन में विनिष्चय ।प्त् 2008 ैब्ण्424 च्ण्श्रण्ब्ींबाव ंदक ।दत टे स्प्ब्ए 2012 छब्श्र43;छब्द्ध स्प्ब् टे ैउज ैींानदजंसं क्मअप - ।दतण्ए त्पअपेपवद च्मजपजपवद छव 211ध्2009 त्मसपंदबम स्पमि प्देनतंदबम ब्व स्जक टे डंकींअंबींतलं एप्प्प्;2013द्ध ब्च्श्र 360;छब्द्धस्प्ब् टे त्ंकीमल ैींलंउ ज्ञमकपं - व्तेए 2011 छब्श्र 871 ;छब्द्ध ैउज ठीउूंतप क्मअप टे ठींतंजपलं श्रममअंद ठपउं छपहंउ ए प्ट;2014द्ध ब्च्श्र 658 ;छब्द्ध स्प्ब् टे छममसंउ ैींतंउं ए प्ट;2014द्धब्च्श्र 132;छब्द्ध च्ंतउरपज ज्ञंनत टे स्प्ब्ए प्ट;2014द्धब्च्श्र 139 ;छब्द्ध स्प्ब् ैंदजवेी क्मअप ए त्मअपेपवद च्मजपजपवद छवण् 2641ध्2007 स्प्ब् टे ैउज च्तमउसंजं ।हंतूंस व्तकमत क्ंजमक 12ण्10ण्2011 पेष किए है
6. हमने परस्पर तर्क सुन लिए हैं एवं पत्रावली में उपलब्ध अभिलेखों के साथ साथ प्रस्तुत विनिष्चयों में प्रतिपादित सिद्वान्तों का भी ध्यानपूर्वक अवलोकन कर लिया है ।
7. स्वीकृत रूप से प्रार्थिया के मृतक पति द्वारा बीमा पाॅलिसी संख्या
संख्या 1856571108 रू. 50,000/- की दिनांक 8.3.2010 को प्राप्त की गई तथा प्रथम 6 माही किष्त रू. 1956/- दिनांक 8.3.2010 को ही जमा करवाई गई । आगामी प्रीमियम की किष्त दिनंाक 8.9.2010 को देय थी लेकिन इससे पूर्व दिनांक 15.7.2010 को बीमाधारक का निधन हुआ है जैसा कि पत्रावली में संलग्न बीमा पाॅलिसी एवं मृत्यु प्रमाण पत्र से स्पष्ट होता है ।
8. हस्तगत प्रकरण में हमें मात्र इस बिन्दु पर विचार करना है कि क्या मृतक ने पाॅलिसी प्राप्त करते समय महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाया व ऐसा करते हुए बीमा षर्तो का उल्लंघन किया जिसके फलस्वरूप बीमा निगम ने क्लेम अस्वीकार कर दिया ?
9. प्रार्थिया द्वारा हालांकि बीमा प्रीमियम की अगली किष्त को समय पर जमा नहीं कराए जाने बाबत् एवं तर्को का बहस में उल्लेख किया है किन्तु इस बिन्दु पर हमें कोई विचार नहीं करना है, क्योंकि बीमा कम्पनी ने अपने पत्र दिनंाक 11.10.2012 के अन्तर्गत उक्त किष्त की अदायगी नहीं किए जाने के तथ्यों पर क्लेम को खारिज नहीं किया गया है अपितु महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाए जाने की स्थिति को ध्यान में रखते हुए किया है ।
10. स्वीकृत रूप से बीमा कम्पनी ने हस्तगत बीमा पाॅलिसी के संबंध में अपने स्तर पर जांच नहीं करवाई है अपितु प्रार्थिया के मृतक पति द्वारा अन्य पाॅलिसी संख्या 185827109 को लिए जाने के संबंध में मृत्यु क्लेम प्रस्तुत किए जाने पर जांच के दौरान आई स्थिति का आधार लिया है । उक्त जांच परिणाम के अनुसार मृतक भगवान महावीर कैन्सर अस्पताल,जयपुर में दिनंाक 2.01.2009 को अर्थात हस्तगत पाॅलिसी लिए जाने के पूर्व भर्ती हुआ है तथा उसकी मृत्यु इसी कारण हुई है । उक्त मृतक बीमाधारक ने हस्तगत पाॅलिसी लिए जाने से पूर्व भरे गए प्रस्ताव प्रपत्र में किसी प्रकार की बीमारी के नहीं होने का भी स्पष्ट उल्लेख किया है । उसका यह प्रतिवाद स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है कि वह अनपढ़ व्यक्ति था तथा उसे बीमारी होने अथवा ऐसे तथ्यों को बीमा प्रस्ताव प्रपत्र में उल्लेख करने का कोई ज्ञान नहीं था । वह कैन्सर जैसे असाध्य रोग से पीडित हुआ है तथा इसका इलाज जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय, अजमेर के साथ साथ भगवान महावीर कैन्सर हाॅस्पिटल एण्ड रिसर्च सेन्टर,जयपुर में करवाया गया था । निष्चित रूप से उसने इन महत्वपूर्ण तथ्यों को हस्तगत पाॅलिसी लेते समय छिपा कर यह पाॅलिसी प्राप्त की थी । जो विनिष्चय अधिवक्ता अप्रार्थी की ओर सो प्रस्तुत हुए हंै , में भी यह प्रतिपादित किया गया है कि यदि पाॅलिसी लिए जाने के पूर्व बीमित द्वारा महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाया जाता है तो इस आधार पर पाॅलिसी की षर्तो के उल्लंघन में खारिज किया गया क्लेम उचित है ।
11. सार यह है कि जिस प्रकार बीमा निगम ने उक्त आधार को ध्यान में रखते हुए क्लेम खारिज किया है, में किसी प्रकार की कोई सेवा में कमी का परिचय नहीं दिया गया है । मंच की राय में प्रार्थिया का परिवाद निरस्त होने योग्य है एवं आदेष है कि
-ःः आदेष:ः-
12. प्रार्थिया का परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं होने से अस्वीकार किया जाकर खारिज किया जाता है । खर्चा पक्षकारान अपना अपना स्वयं वहन करें ।
आदेष दिनांक 05.10.2016 को लिखाया जाकर सुनाया गया ।
(नवीन कुमार ) (श्रीमती ज्योति डोसी) (विनय कुमार गोस्वामी )
सदस्य सदस्या अध्यक्ष