जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद ।
उपस्थित - (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
(2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य
परिवाद सं0-29/2009
श्रीमती नूरजहाॅ बेगम उभ्र लगभग 55 साल पत्नी मोहम्मद अनीस खान निवासिनी मकान न0 22/6/166 बकरा मंडी गली नियावा षहर फैजाबाद परगना हवेली अवध तहसील सदर जिला फैजाबाद। .............. परिवादिनी
बनाम
1. षाखा प्रबन्धक भारतीय जीवन बीमा निगम षाखा फैजाबाद स्थित अयोध्या मार्ग बेनीगंज चैराहा षहर व जिला फैजाबाद।
2. वरिश्ठ मन्डल प्रबन्धक भारतीय जीवन बीमा निगम मन्डल कार्यालय फैजाबाद स्थित बमुकाम रीडगंज देवा हास्पिटल के पीछे षहर व जिला फैेजाबाद।
3. प्रबन्धक। अधिषाशी अधिकारी। छावनी परिशद फैजाबाद। .......... विपक्षीगण
निर्णय दिनाॅंक 28.05.2015
उद्घोषित द्वारा: श्रीमती माया देवी षाक्य, सदस्य।
निर्णय
परिवादिनी के परिवाद का संक्षेप इस प्रकार है कि परिवादिनी के पति मो0 अनीस खान फार्मेसिस्ट पद पर अस्पताल छावनी परिशद फैजाबाद में सेवारत थे तथा उन्होंने दिनांक 9-3-2005 को वेतन सेविंग योजना के तहत एक पालिसी जिसका पालिसी सं0 215305004 था लिया। बीमा धारक मो0 अनीस खान ने अपनी पत्नी श्रीमती नूरजॅहंा को नामित किया था। बीमा धारक ने जिस समय अपनी पालिसी ली थी उस समय उसकी उभ्र लगभग सत्वान साल थी तथा परिवादिनी नामिनी होने के नाते उपभोक्ता है। विपक्षी सं0 1 द्वारा दिनांक 19-1-2007 को पंजीकृत पत्र परिवादिनी को भेजा तथा उक्त पत्र में स्पश्ट तौर पर लिखा कि उक्त मृतक बीमेदार की मृत्यु की सूचना देते हुये आप का पत्र प्राप्त हुआ आप हमारी षोक संवेदनायंे स्वीकार करें। उक्त पालिसी सं0 215305004 के अन्र्तगत दिनांक 28-04-06 में देय किस्त जमा न होने के कारण पालिसी बीमेदार की मृत्यु तिथि 12-06-06 पर कालातीत थी। परिवादिनी के पति को पत्रंाक 5/1 पी0 एफ कार्यालय छावनी परिशद फैजाबाद से दिनांकित 24-09-2005 को इस आषय का पत्र मिला कि आपके अवकाष प्रार्थना पत्र दिनांक 29-09-05 के साथ संलग्न किये गये जिला अस्पताल के परचे में सरकारी चिकित्सक द्वारा कोई चिकित्सीय अवकाष देने हेतु नहीं लिखा गया है। अतः आपको सूचित किया जाता है कि जब तक आप अपना चिकित्सीय अवकाष प्रमाण पत्र कार्यालय में जमा करके अवकाष स्वीकृत नही किया जाता तब तक आप को वेतन नहीं मिल पायेगा। उक्त पत्र के सन्दर्भ मे परिवादिनी के पति मो0 अनीस खां ने कार्यालय मुख्य चिकित्सा अधीक्षक जिला चिकित्सालय फैेजाबाद पत्रांक एम 1/2005 दिनांकित 28-09-05 जमा किया। परिवादिनी के पति मो0 अनीस खां को पत्रांक 5/1 पी0 एफ0 कार्यालय छावनी परिशद फैजाबाद से दिनांकित 16-09-05 का इस अषय का एक पत्र मिला कि आपके द्वारा दिया गया प्रार्थना पत्र दिनांक 01-05-2005 एवं 05-09-2005 कि आप अस्वस्थ हैं, आपको आदेष दिया जाता है कि चिकित्सीय प्रमाण पत्र इस कार्यालय में पस्तुत करें। एवं दिनांक 11-09-2005 से बिना सूचना अनुपस्थित चल रहे हैं। उक्त पत्र के सन्दर्भ में परिवादिनी के पति मो0 अनीस खान ने समस्त चिकित्सीय प्रमाण पत्र के साथ दिनांक 21-9-2005 को जमा किया। परिवादिनी के पति मो0 अनीस खान ने पत्राकं एम 1/2006 कार्यालय मुख्य चिकित्सा अधीक्षक जिला चिकित्सालय फैजाबाद दिनांकित 14-02-2006 तक आराम व इलाज की सलाह दिया था जिसे कार्यालय छावनी परिशद फैजाबाद में जमा किया था। परिवादिनी या उसके पति मो0 अनीस खान को कार्यालय छावनी परिशद फैजाबाद से दिनांक 7-03-2006 का कोई पत्र नहीं मिला न ही उसका जवाब ही दिया जा सका। कार्यालय मुख्य चिकित्सा अधीक्षक जिला चिकित्सालय फैजाबाद द्वारा जारी दिनांक 25-05-2006 का अवकाष प्रमाण पत्र जो डा0 आर0 एन रावत फिजीषियन ने दिनंाक 1-04-2006 से 30-04-2006 तक आराम व इलाज करने हेतु जारी किया था कार्यालय छावनी परिशद फैजाबाद में जमा किया था जिसकी फोटो कापी फेहरिस्त के साथ संलग्न है। परिवादिनी के पति स्व0 मो0 अनीस खान ने फार्म सं0 के0 डी0 55 पर अपना हस्ताक्षर भर कर भारतीय जीवन बीमा निगम लखनऊ मन्डल वेतन बचत योजना अधिकार पत्र षाखा कार्यालय में पालिसी स0 21535004 के लिये जमा किया प्रीमियम जारी करने की जिम्मेदारी परिवादिनी के पति की थी। दिनांक 23.02.2006 को विपक्षी के मण्डल कार्यालय लखनऊ षाखा फैजाबाद रसीद संख्या 3292 पालिसी सख्ंया 215305004 के सम्बन्ध मंे अपनी बीमारी की सभी रिपोर्टों के साथ भेजा था। परिवादी के पति छावनी परिशद कार्यालय के कर्मचारी थे और छावनी परिशद उसकी नियोक्ता है तथा उसी के माध्यम से परिवादी का बीमा संचालित था जिसका प्रीमियम दिनांक 28.04.2006 के पहले का जमा किया जाना था यदि किन्हीं कारणों से कार्यालय छावनी परिशद ने परिवादिनी के पति की पालिसी का प्रीमियम जमा नहीं किया तो भारतीय जीवन बीमा निगम की जिम्मेदारी थी कि वह प्रीमियम जमा न होने की जानकारी परिवादिनी के पति अथवा कार्यालय को देते, इस नैतिक जिम्मेदारी का पालन विपक्षी बीमा कम्पनी ने नहीं किया था। परिवादिनी के पति की बीमा पालिसी का पैसा उसके वेतन से बचत योजना के तहत कटता था। वेतन बचत योजना मंे पालिसी धारक से कोई अतिरिक्त षुल्क नहीं लिया जाता है, यदि उसमें दुर्घटना बीमा या अतिरिक्त सुविधा ली जाती है तो केवल उसका ही प्रीमियम जोड़ दिया जाता है। विपक्षी की लापरवाही के कारण परिवादिनी के पति की पालिसी लैप्स हुई है। पालिसी के कालातीत होने के कारण परिवादिनी को मानसिक, षैक्षिक, वैवाहिक व षारीरिक क्षति उठानी पड़ी है जो रुपये से नहीं आंकी जा सकती है। परिवादिनी अपने बच्चों को अच्छी षिक्षा व धनाभाव के कारण अच्छे घरों में उनका रिष्ता नहीं कर सकी। परिवादिनी को क्षतिपूर्ति के मद में विपक्षीगण से रुपये 2,60,500/- तथा परिवाद व्यय रुपये 1,500/- दिलाया जाय।
विपक्षी संख्या 1 व 2 बीमा कम्पनी ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत किया है तथा परिवादिनी के पति द्वारा बीमा पालिसी संख्या 215305004 रुपये 1,50,000/- लिया जाना स्वीकार किया है तथा परिवादिनी उक्त पालिसी में नामिनी थी को भी स्वीकार किया है। पालिसी लिये जाने के समय परिवादिनी के पति की आयु 57 वर्श थी। उत्तरदाता ने दिनांक 19.01.2007 को परिवादिनी को सूचित किया था कि प्रष्नगत पालिसी में माह अप्रैल 2006 को देय प्रीमियम का भुगतान नहीं जमा हुआ है इसलिये परिवादिनी के पति की मृत्यु के समय प्रष्नगत पालिसी कालातीत हो गयी थी, इसलिये कोई दावा देय नहीं है। परिवादिनी के परिवाद के अन्य कथनों से उत्तरदाता ने इन्कार किया है। बीमा धारक ने फार्म संख्या के0डी0 55 पर अपने हस्ताक्षर कर के बीमा किष्त स्वयं जमा करने की जिम्मेदारी ली थी। अधिषाशी अधिकारी छावनी परिशद परिवादिनी के पति के नियोक्ता थे जिनके माध्यम से वेतन बचत योजना में प्रष्नगत पालिसी की किष्त मार्च 2006 तक जमा की गयी है। अप्रैल माह सन 2006 की किष्त जमा न होने के कारण पालिसी कालातीत हो गयी थी। विपक्षी संख्या 1 व 2 ने अपने विषेश कथन में कहा है कि मृतक ने अपना बीमा प्रस्ताव दिनांक 09.03.2005 को उत्तरदाता के समक्ष दिया था उक्त प्रस्ताव में श्रीमती नूर जहां को नामिनी बनाया था। के0डी0 55 फार्म में साफ साफ लिखा है कि मेरे वेतन से प्रीमियम की कटौती हो कर बीमा कम्पनी को जायेगी और पेषगी वेतन लेने या वेतन न मिलने की दषा मंे प्रस्तावकर्ता स्वयं बीमा की किष्त जमा करेगा और उसके लिये जिम्मेदार होगा। प्रष्नगत पालिसी की पूर्णावधि दिनांक 09.03.2020 थी। पालिसी की मासिक किष्त रुपये 1,125/- थी। पालिसी का प्रीमियम प्रत्येक माह की 9 तारीख तक जमा होना था। मृतक की बीमा पालिसी की मार्च 2006 का प्रीमियम दिनांक 25.04.2006 को उत्तरदाता को प्राप्त हुआ था। अप्रैल माह की किष्त न जमा होने के कारण प्रष्नगत बीमा पालिसी कालातीत हो गयी थी। परिवादिनी का पत्र दिनांक 27.10.2006 को विपक्षी संख्या 1 को प्राप्त हुआ था जिससे उत्तरदातागण को पता लगा कि परिवादिनी के पति की मृत्यु दिनांक 12.06.2006 को हो गयी थी। परिवादिनी को उक्त पालिसी की जानकारी नहीं थी बाद में कागजातों की तलाषी में उक्त पालिसी के कागजात मिले तब दावे के भुगतान के लिये आवेदन किया। परिवादिनी को उत्तरदाता ने अपने पत्र दिनांक 19.01.2007 द्वारा कालातीत पालिसी पर दावा देय नहीं है। परिवादिनी के दावा प्रपत्र मंे दाखिल प्रपत्रों से स्पश्ट है कि परिवादिनी के पति बीमार चल रहे थे। उत्तरदातागण ने अपनी सेवा में कोई कमी नहीं की है। परिवादिनी का परिवाद मय हर्जे खर्चे के निरस्त किया जाय।
विपक्षी संख्या 3 ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत किया है तथा मो0 अनीस खान का छावनी परिशद अस्पताल में सेवारत रहना तथा प्रष्नगत बीमा पालिसी लिया जाना स्वीकार किया है तथा परिवादिनी के परिवाद के अन्य कथनों से इन्कार किया है। उत्तरदाता ने पत्रांक 51 पी एफ दिनांक 24.09.2005 मो0 अनीस खान को भेजा था तथा अन्य कथनों से इन्कार है। मृतक ने भारतीय जीवन बीमा निगम से रुपये 1,50,000/- की प्राइवेट बीमा पालिसी ली थी जिसका प्रीमियम मृतक के वेतन से काट कर प्रतिमाह बीमा कम्पनी को भेज दिया जाता था जो फरवरी 2006 तक बीमा कम्पनी को भेजा गया। दिनांक 01.05.2006 से 12.06.2006 तक (मृत्यु की दिनांक तक) मो0 अनीस खान अनुपस्थित रहे थे और अनुपस्थिति के कारण उनका वेतन देय नहीं था इस कारण वेतन से कटौती सम्भव नहीं थी। इसी कारण फरवरी 2006 के बाद से वेतन से कटौती किया जाना उत्तरदाता के नियंत्रण से बाहर हो गया था। वेतन से प्रीमियम की कटौती के उक्त अनुरोध में यह स्पश्ट उल्लेख किया गया है कि बिना वेतन छुट्टी पर जाने अथवा उत्तरदाता के नियंत्रण के बाहर के कारणों की वजह से प्रीमियम अदा न होने के फलस्वरुप उत्पन्न होने वाले किसी भी प्रकार के परिणामों की पूरी जिम्मेदारी कर्मचारी अर्थात मो0 अनीस खान पर होगी। मृतक उत्तरदाता के कर्मचारी थे तथा परिवादिनी कानूनन उत्तरदाता की उपभोक्ता नहीं है ऐसी दषा में उत्तरदाता के विरुद्ध परिवादिनी का परिवाद चलने योग्य नहीं है। उत्तरदाता को अनावष्यक रुप से पक्षकार बनाया गया है।
परिवादिनी एवं विपक्षी संख्या 1 व 2 के विद्वान अधिवक्तागण की बहस को सुना एवं विपक्षी संख्या 3 को बहस के लिये मौका दिया गया, किन्तु विपक्षी संख्या 3 की ओर से निर्णय के पूर्व तक किसी ने बहस नहीं की अतः परिवाद का निर्णय गुण दोश के आधार पर पत्रावली का भली भंाति परिषीलन के बाद किया। परिवादिनी ने अपने पक्ष के समर्थन में अपना षपथ पत्र, विपक्षी बीमा कम्पनी के पत्र दिनांक 19.01.2007 की छाया प्रति, मृतक के पत्र दिनांक 28.09.2005 की मूल प्रति, चिकित्सा प्रमाण पत्र दिनांक 28.09.2005, 14-02-2006, 01.04.2006, 25.05.2006 की छाया प्रतियां, मृतक के पत्र दिनांक 21-09-2005 की छाया प्रति, मेडिकल सर्टिफिकेट दिनांक 01-09-2005 की छाया प्रति, जिला चिकित्सालय के पर्चों की छाया प्रतियां, मृतक के पत्र दिनांक 12.04.2006 की छाया प्रति तथा पैथालाजी एवं एक्सरे रिपोर्ट की छाया प्रतियंा दाखिल की हैं जो षामिल पत्रावली हैं। विपक्षी संख्या 1 व 2 ने अपने पक्ष के समर्थन में अपना लिखित कथन, ए0 के0 श्रीवास्तव प्रबन्धक विधि एवं (आ0 सं0 वि0) का षपथ पत्र, विपक्षी के पत्र दिनांक 19-01-2007 की प्रमाणित छाया प्रति, परिवादिनी के पत्र अदिनांकित की प्रमाणित छाया प्रति, बीमा पालिसी की प्रमाणित छाया प्रति, फार्म 55 की प्रमाणित छाया प्रति तथा बीमा प्रस्ताव पत्र की प्रमाणित छाया प्रति दाखिल की है जो षामिल पत्रावली है। विपक्षी संख्या 3 ने अपने पक्ष के समर्थन में अपना लिखित कथन तथा संजय कुमार कार्यालय अधीक्षक का षपथ पत्र दाखिल किया है जो षामिल पत्रावली है। परिवादिनी एवं विपक्षीगणों द्वारा दाखिल प्रपत्रों से प्रमाणित है कि मृतक ने वेतन बचत योजना में प्रष्नगत बीमा पालिसी ली थी किन्तु मार्च 2006 से उसे वेतन नहीं मिला था अतः उस स्थिति मंे उसके वेतन से कटौती होना सम्भव नहीं था। मृतक ने फार्म के0डी0 55 पर हस्ताक्षर कर के अपनी सहमिति विपक्षी बीमा कम्पनी को दी थी कि यदि मृतक के वेतन से कटौती नहीं हो पायेगी तो वह स्वयं प्रीमियम जमा करेगा। मृतक के बीमार हो जाने के कारण उसे वेतन नहीं मिला और मृतक की बीमा पालिसी कालातीत हो गयी। इसीलिये बीमा कम्पनी ने परिवादिनी का बीमा दावा निरस्त कर दिया था। विपक्षी बीमा कम्पनी ने अपनी सेवा में कोई कमी नहीं की है। परिवादिनी अपना परिवाद प्रमाणित करने में असफल रही है। परिवादिनी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादिनी का परिवाद खारिज किया जाता है।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 28.05.2015 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष