Uttar Pradesh

Chanduali

CC/43/2016

Meena Devi - Complainant(s)

Versus

L.I.C - Opp.Party(s)

Prdeep Kumr

27 Dec 2016

ORDER

District Consumer Disputes Redressal Forum, Chanduali
Final Order
 
Complaint Case No. CC/43/2016
 
1. Meena Devi
Vill&Post-Kamhariya Thsil-Chandauli
Chandauli
UP
...........Complainant(s)
Versus
1. L.I.C
Mughalsari Chandauli
Chandauli
UP
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE Ramjeet Singh Yadav PRESIDENT
 HON'BLE MR. Lachhaman Swaroop MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
Dated : 27 Dec 2016
Final Order / Judgement

न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, चन्दौली।
परिवाद संख्या 43                                सन् 2016ई0
मीना देवी पत्नी सत्येन्द्र प्रताप सिंह निवासी कम्हरिया पो0 कम्हरिया जिला चन्दौली।
                                      ...........परिवादिनी                                                                                                                                    बनाम
1-भारतीय जीवन बीमा निगम जरिये प्रबन्धक शाखा मुगलसराय जनपद चन्दौली।
2-भारतीय जीवन बीमा निगम जरिये मण्डलीय प्रबन्धक मण्डल कार्यालय गौरीगंज भेलूपुर वाराणसी।
                                            .............................विपक्षी
उपस्थितिः-
 रामजीत सिंह यादव, अध्यक्ष
 लक्ष्मण स्वरूप सदस्य
                               निर्णय
द्वारा श्री रामजीत सिंह यादव,अध्यक्ष
1-    परिवादिनी ने यह परिवाद विपक्षी बीमा कम्पनी से बीमा पालिसी की धनराशि रू0 34928/- मय व्याज एवं वाद व्यय हेतु रू0 13000/-शारीरिक क्षति हेतु रू0 30000/-,मानसिक क्षति हेतु रू0 20000/-एवं आर्थिक क्षति हेतु रू0 20000/- दिलाये  जाने हेतु प्रस्तुत किया है।
2-    संक्षेप में परिवादिनी की ओर से कथन किया गया है कि परिवादिनी ने रू0 10000/-प्रीमियम जमा करके दिनांक 15-3-2007 को  विपक्षी के यहाॅं से रू0 50000/का बीमा प्राप्त किया। जिसकी बीमा पालिसी संख्या 284993973 है। तथा जिसकी परिपक्वता तिथि मार्च 2017 है। परिवादिनी ने बीमा के किश्त की अदायगी 3 वर्ष तक किया किन्तु दुर्भाग्य से उपरोक्त पालिसी परिवादिनी के आर्थिक तंगी के कारण आगे संचालित नहीं हो पायी। परिवादिनी ने अपने द्वारा पूर्व में जमा सम्पूर्ण धनराशि मय लाभांश प्राप्त करने हेतु विपक्षीगण से सम्पर्क किया तो विपक्षीगण परिवादिनी को काफी दिनों तक दौडते रहे और टाल-मटोल करते रहे। तत्पश्चात विपक्षीगण द्वारा चेक संख्या 056728 दिनांक 29-9-2010 रू0 34928/- का चेक जरिये डाक परिवादिनी को भेज दिया किन्तु उक्त चेक परिवादिनी को प्राप्त नहीं हुआ। परिवादिनी ने उपरोक्त धनराशि के भुगतान हेतु दिनांक 11-1-2016 को सूचना अधिकार के तहत सूचना मांगा किन्तु विपक्षीगण द्वारा कोई सूचना न देने पर परिवादिनी ने पुनः दिनांक 18-2-2016 को जरिये रजिस्टर्ड डाक से सूचना मांगा, तब विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा परिवादिनी को अवगत कराया गया कि उपरोक्त चेक का भुगतान दिनांक 29-10-2010 को एक्सीस बैंक सिगरा वाराणसी से हो चुका है। जबकि परिवादिनी का उक्त बैंक में कोई खाता नहीं है, और न ही परिवादिनी ने उपरोक्त चेक का भुगतान लिया है। परिवादिनी को चेक संख्या 056728 रू0 34928/- का कभी प्राप्त नहीं हुआ। विपक्षी के विभागीय कर्मचारियों ने साजिशी तौर पर असम्बद्ध एवं अहितबद्ध व्यक्ति के खाते में भुगतान करते हुए पैसे का गबन किया है जबकि विपक्षी का यह दायित्व है कि वह उचित व्यक्ति को चेक उपलब्ध कराना सुनिश्चित करें। विपक्षी द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को चेक प्राप्त कराना और अवैध तरीके से भुगतान कराना दाण्डिक अपराध के साथ सेवा में कमी का मामला
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 है जिसके कारण परिवादिनी को गम्भीर शारीरिक,मानसिक एवं आर्थिक क्षति उठानी पडी है।जिसके लिए वह विपक्षीगण से क्षतिपूर्ति प्राप्त करने की अधिकारिणी है। परिवादिनी का यह भी कथन है कि उसने विपक्षीगण को कानूनी नोटिस भी दिनांक 8-4-2016 को दिया जिसका कोई जबाब विपक्षीगण की ओर से नहीं दिया गया।  
3-    विपक्षीगण की ओर से आपत्ति दाखिल की गयी है जिसमे इस तथ्य को स्वीकार किया गया है कि परिवादिनी ने विपक्षी बीमा कम्पनी से रू0 50000/-का बीमा कराया था और 3 वर्षो तक वह बीमा की किश्तों का लगातार भुगतान करती रही और इसके बाद आर्थिक तंगी के कारण वह अपनी बीमा पालिसी संचालित नहीं कर सकी। विपक्षीगण ने इस तथ्य को भी स्वीकार किया है कि परिवादिनी ने सूचना अधिकार के तहत दिनांक 11-1-2016 को बीमा की धनराशि के भुगतान के सम्बन्ध में प्रार्थना पत्र दिया था और सूचना न मिलने पर पुनः दिनांक 18-2-2016 को पंजीकृत डाक से प्रार्थना पत्र दिया था और बादहू बीमा कम्पनी के माध्यम से सूचना के द्वारा परिवादिनी को यह जानकारी प्राप्त हुई कि बीमा कम्पनी ने रू0 34928/- का एक चेक जारी किया था जिसका भुगतान दिनांक 29-10-2010को एक्सीस बैंक सिगरा वाराणसी से हो चुका है जबकि परिवादी का उस बैंक में कोई खाता नहीं है और न ही उपरोक्त चेक के माध्यम से उसने किसी धनराशि का भुगतान प्राप्त किया है और न ही परिवादिनी को कभी रू0 34928/- का चेक संख्या 056728 प्राप्त हुआ है।
4-    विपक्षीगण का विशेष रूप से यह अभिकथन है कि विपक्षी बीमा कम्पनी अपनी अच्छी छवि एवं सेवा के कारण काफी विश्वसनीय एवं लोकप्रिय है और उसकी छवि को धूमिल करने के लिए परिवादिनी ने यह परिवाद दाखिल किया है जबकि परिवादी को बीमा पालिसी के अन्र्तगत अभ्यर्पण मूल्य का भुगतान विपक्षी के चेक संख्या 056728 दिनांकित 25-10-2010 द्वारा कर दिया गया है। परिवादिनी को निगम के नियम एवं शर्तो के तहत मिलने वाला भुगतान यूनियन बैंक आफ इण्डिया के चेक द्वारा कर दिया गया है। इस चेक का भुगतान किस व्यक्ति को किया गया इसकी जानकारी हेतु यूनियन बैंक आफ इण्डिया मुगलसराय को दिनांक 15-10-2015,16-2-2016 तथा दिनांक 3-3-2016 को पत्र लिखा गया तथा उपरोक्त बैंक से चेक के भुगतान के बारे में जानकारी लेने का प्रयास किया गया लेकिन बैंक से कोई सूचना प्राप्त नहीं हो सकी। विपक्षीगण का यह भी अभिकथन है कि परिवादिनी मांगे गये अनुतोष को पाने की अधिकारिणी नहीं है और उसका परिवाद सव्यय निरस्त किये जाने योग्य है।
5-    परिवादिनी की ओर से उसके परिवाद के समर्थन में परिवादिनी का साक्ष्य शपथ पत्र दाखिल किया गया है इसके अतिरिक्त दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में परिवादिनी द्वारा अपनी बीमा पालिसी की किश्त जमा करने की मूल रसीद एक अदद् तथा पालिसी की स्टेट्स रिर्पोट दाखिल की गयी है। इसके अतिरिक्त परिवादिनी द्वारा विपक्षी बीमा कम्पनी को प्रेषित पत्र दिनांकित 11-1-2016 की 
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छायाप्रति तथा मूल रजिस्ट्री रसीद,पत्र दिनांकित 11-1-2016 जो सूचना के अधिकार के तहत दिये गये प्रार्थना पत्र की छायाप्रति तथा रजिस्ट्री की मूल रसीद तथा परिवादिनी द्वारा सूचना के अधिकार के अन्र्तगत विपक्षी को प्रेषित पत्रों दिनांकित 18-2-2016 की तीन अदद् छायाप्रति तथा 3 अदद् रजिस्ट्री की मूल रसीदें,बीमा कम्पनी द्वारा परिवादिनी को प्रेषित पत्र दिनांकित 15-2-2016 की छायाप्रति,परिवादिनी द्वारा दाखिल अपील के निस्तारण सम्बन्धी पत्र दिनांकित 21-3-2016 की मूल प्रति,सूचना अधिकार के तहत दिये गये प्रार्थना पत्र के तहत दी गयी सूचना दिनांकित 26-3-2016 की मूल प्रति, विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा एक्सीस बैंक सिगरा वाराणसी के मैनेजर को प्रेषित पत्र की छायाप्रति,कानूनी नोटिस दिनांकित 8-4-2016 की कार्बन प्रति तथा मूल रजिस्ट्री रसीद 2 अदद्, परिवादिनी का भारत निर्वाचन आयोग द्वारा जारी पहचान पत्र एवं आधार कार्ड की छायाप्रति दाखिल की गयी है।
6-    विपक्षीगण की ओर से उनके अभिकथनों के समर्थन में भारतीय जीवन बीमा निगम के स0प्र0अधिकारी (विधि) मुगलसराय गिरिजा शंकर का शपथ पत्र दाखिल किया गया है इसके अतिरिक्त दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में स्टेट्स रिर्पोट तथा प्रबंधक विधि भारतीय जीवन बीमा निगम मण्डल कार्यालय भेलूपुर वाराणसी के पत्र दिनांकित 19-5-2016 की छायाप्रति दाखिल की गयी है।
7-    पक्षकारों की ओर से लिखित बहस दाखिल की गयी है इसके अतिरिक्त उनके विद्वान अधिवक्तागण की मौखिक बहस सुनी गयी।
8-    परिवादिनी के अधिवक्ता द्वारा यह तर्क दिया गया है कि परिवादिनी ने विपक्षी बीमा कम्पनी से बीमा पालिसी लिया था और उसकी किश्ते भी अदा किया था लेकिन विपक्षी बीमा कम्पनी ने शर्त के अनुसार धनराशि का भुगतान नहीं किया और इस प्रकार उसकी ओर से सेवा में कमी की गयी है तथा अपने कार्यो में लापरवाही बरती गयी है। परिवादिनी के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि परिवादिनी ने बीमा कराने के बाद 3 वर्षो तक लगातार बीमा किश्तों को जमा और उसके बाद आर्थिक तंगी के कारण किश्तों को जमा नहीं कर पायी और तब उसने अपने बीमा पालिसी के तहत प्राप्त होने वाली धनराशि के भुगतान हेतु विपक्षीगण से सम्पर्क किया। विपक्षीगण काफी दिनों तक हीला-हवाली एवं टाल-मटोल करते रहे और अन्ततः यह जानकारी दी गयी कि बीमा कम्पनी ने चेक संख्या 056728 रू0 34928/- का जारी करके डाक द्वारा परिवादिनी को भेजा है लेकिन इस प्रकार का कोई चेक परिवादिनी को प्राप्त नहीं हुआ है। परिवादिनी इस चेक के भुगतान के सम्बन्ध में सूचना के अधिकार अधिनियम के अन्र्तगत सूचना प्राप्त करने हेतु कई बार प्रार्थना पत्र दिया तब विपक्षी बीमा कम्पनी के माध्यम से उसे यह सूचना प्राप्त हुई कि रू0 34928/- का जो चेक बीमा कम्पनी ने जारी किया था उसका भुगतान दिनांक 29-10-2010 को एक्सीस बैंक के सिगरा शाखा, वाराणसी से हो चुका है जबकि उक्त बैंक में परिवादिनी का कोई खाता नहीं है और उसके द्वारा उक्त बैंक से कोई धनराशि प्राप्त नहीं  की गयी है और न ही परिवादिनी को कभी कोई 
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चेक प्राप्त हुआ है इस प्रकार विपक्षी बीमा कम्पनी ने अपने कतव्र्यो का निर्वहन नहीं किया है और सेवा में कमी तथा लापरवाही किया है जिसके कारण परिवादिनी को शारीरिक मानसिक एवं आर्थिक क्षति उठानी पडी है जिसके लिए विपक्षीगण जिम्मेदार है। अतः परिवादिनी का परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य है और वह विपक्षीगण से क्षतिपूर्ति प्राप्त करने की अधिकारिणी है।
9-    इसके विपरीत विपक्षीगण के अधिवक्ता ने यह तर्क दिया है कि विपक्षी बीमा कम्पनी अपनी अच्छी सेवा एवं छवि की वजह से काफी लोकप्रिय एवं विश्वसनीय है तथा उसकी छवि धूमिल करने के लिए परिवादिनी ने यह परिवाद दाखिल किया है। परिवादिनी की पालिसी संख्या 284993973 के अन्र्तगत प्राप्त होने वाली धनराशि का भुगतान विपक्षी बीमा कम्पनी ने चेक संख्या 056728 दिनांकित 25-10-2010 द्वारा कर दिया है उक्त चेक परिवादिनी के पते पर दिनांक 25-10-2010 को पंजीकृत डाक से प्रेषित किया गया है और इस चेक का भुगतान दिनांक 29-10-2010 को हो चुका है। इस चेक का भुगतान किस व्यक्ति को किया गया इसकी जानकारी हेतु यूनियन बैंक आफ इण्डिया मुगलसराय को बीमा कम्पनी द्वारा दिनांक 15-10-2010,16-2-2016 तथा 3-3-2016 को पत्र लिखा गया और विपक्षी बीमा कम्पनी के अधिकारी बैंक में जाकर चेक के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने का प्रयास भी किये लेकिन बैंक से कोई सूचना प्राप्त नहीं हो सकी। परिवादिनी को पंजीकृत डाक से प्रेषित चेक के सम्बन्ध में पोस्ट आफिस से भी सूचना प्राप्त करने का प्रयास किया गया लेकिन 18 माह से ज्यादा पुराना मामला होने के कारण पोस्ट आफिस ने कोई सूचना देने से इन्कार कर दिया। परिवादिनी मीना देवी के पक्ष में चेक दिनांकित 29-9-2010 को जारी किया गयाहै जिसका भुगतान एक्सीस बैंक द्वारा दिनांक 29-10-2010 को वास्तविक बीमाधारक अर्थात परिवादिनी को किया गया है। इस प्रकार परिवादिनी के बीमा धनराशि का भुगतान किया जा चुका है अतः उसका परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
10-    उभय पक्ष के अधिवक्तागण के तर्को को सुनने तथा पत्रावली के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि प्रस्तुत मामले में यह स्वीकृत तथ्य है कि परिवादिनी ने विपक्षी बीमा कम्पनी से रू0 50000/- का बीमा कराया था जिसकी किश्तें 3 वर्षो तक वह जमा करती रही इसके बाद अर्थाभाव के कारण वह किश्त जमा नहीं कर सकी। परिवादिनी का यह अभिकथन है कि उसने अपनी बीमा पालिसी के तहत प्राप्त होने वाले धन का क्लेम बीमा कम्पनी से किया लेकिन बीमा कम्पनी ने उसे कोई पैसा नहीं दिया और न ही कोई चेक दिया। बार-बार प्रयास करने पर काफी दिनों बाद सूचना के अधिकार अधिनियम के अन्र्तगत विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से यह सूचना दी गयी कि परिवादिनी को बीमा पालिसी के तहत प्राप्त होने वाले रू0 34928/- का  चेक परिवादिनी को भेजा गया था जिसका भुगतान एक्सीस बैंक शाखा सिगरा, वाराणसी के माध्यम से परिवादिनी को किया जा चुका है परिवादिनी का स्पष्ट रूप से यह अभिकथन है कि उसे विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से कभी कोई चेक प्राप्त नहीं हुआ है और न ही उसका एक्सीस बैंक सिगरा 
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वाराणसी शाखा में कोई खाता है और न ही उसने उक्त शाखा के माध्यम से किसी चेक का कोई भुगतान प्राप्त किया है। अतः प्रस्तुत मामले में मुख्य विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा परिवादिनी के बीमा पालिसी के तहत प्राप्त होने वाली धनराशि का कोई चेक परिवादिनी को प्राप्त कराया गया है और क्या परिवादिनी द्वारा एक्सीस बैंक की सिगरा वाराणसी की शाखा के माध्यम से उक्त चेक का भुगतान प्राप्त किया गया है। विधिक रूप से मूलतः विपक्षी का यह दायित्व है कि वह यह साबित करे कि परिवादिनी के बीमा पालिसी की धनराशि का चेक परिवादिनी को प्राप्त कराया गया है और उसने एक्सीस बैंक की सिगरा वाराणसी शाखा के माध्यम से उक्त धनराशि का भुगतान प्राप्त कर लिया है।
    उपरोक्त तथ्यों को सिद्ध करने हेतु विपक्षी की ओर से रजिस्ट्री की कोई रसीद दाखिल नहीं की गयी है जिससे यह सिद्ध हो सके कि परिवादिनी को पंजीकृत डाक द्वारा कोई चेक विपक्षी बीमा कम्पनी ने भेजा था। विपक्षीगण का इस सम्बन्ध में अभिकथन है कि उन्होंने पोस्ट आफिस से इस सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया लेकिन कोई जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी उनका यह भी अभिकथन है कि जो चेक उन्होंने परिवादिनी को भेजा था वह यूनियन बैंक आफ इण्डिया का था और उक्त बैंक की मुगलसराय शाखा से भी चेक के भुगतान के सम्बन्ध में लिखित रूप से तथा मौखिक रूप से जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया गया किन्तु बैंक ने कोई जानकारी नहीं दी। विपक्षी बीमा कम्पनी के उपरोक्त कथनों को फोरम की राय में स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि विधि का यह सुनिश्चित सिद्धान्त है कि प्रत्येक पक्ष का यह दायित्व है कि वह अपने अभिकथनों को सर्वोत्तम साक्ष्यों द्वारा सिद्ध करे। अतः विपक्षी बीमा कम्पनी का यह दायित्व था कि वह रजिस्ट्री की मूल रसीद दाखिल करें और यदि किसी वजह से ऐसा नहीं किया जा सकता था तो कम से कम पोस्ट मास्टर का कोई प्रमाण विपक्षी को दाखिल करना चाहिए था जिससे यह सिद्ध होता कि परिवादिनी को पंजीकृत डाक के माध्यम से कोई चेक प्राप्त कराया गया था। मात्र यह कह देना कि प्रयास के बावजूद पोस्ट आफिस एवं बैंक से कोई जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी पर्याप्त नहीं माना जा सकता है। यहाॅं यह भी उल्लेखनीय है कि यदि विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा लिखित व मौखिक रूप से सूचना मांगने के बावजूद पोस्ट आफिस एवं सम्बन्धित बैंक द्वारा कोई सूचना नहीं दी गयी तो जन सूचना अधिकार अधिनियम के अन्र्तगत सूचना प्राप्त करने का प्रयास क्यों नहीं किया गया या फिर पोस्ट आफिस या यूनियन बैंक आफ इण्डिया के उच्चाधिकारियों से इस सम्बन्ध में शिकायत क्यों नहीं की गयी इन सारे तथ्यों का कोई जबाब विपक्षी की ओर नहीं दिया गया है। पत्रावली पर ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जिससे यह सिद्ध हो सके कि परिवादिनी को विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा रू0 34928/- का चेक प्राप्त कराया गया है और उसने एक्सीस बैंक सिगरा वाराणसी की शाखा से उक्त चेक का भुगतान प्राप्त किया है जबकि परिवादिनी ने अपने शपथ पत्र के माध्यम से स्पष्ट रूप से यह कहा है कि न तो उसे  कोई चेक प्राप्त  हुआ है और न ही  उसका  एक्सीस बैंक
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 सिगरा वाराणसी में कोई खाता है। यहाॅ यह भी तथ्य उल्लेखनीय है कि स्वयं विपक्षीगण की ओर से अपने जबाबदावा में यह कहा गया है कि परिवादिनी के परिवाद पत्र की धारा 7 से इन्कार नहीं है, इसका अर्थ यह है कि विपक्षीगण परिवाद पत्र की धारा 7 को स्वीकार करते है और परिवादपत्र की धारा 7 में परिवादिनी ने स्पष्ट रूप से यह कहा है कि उसका एक्सीस बैंक सिगरा वाराणसी में कोई खाता नहीं है और उसे रू0 34928/- का कोई चेक बीमा कम्पनी की ओर से कभी प्राप्त नहीं हुआ है और न ही उसने चेक के माध्यम से कोई धनराशि प्राप्त किया है। चूंकि विपक्षी ने परिवाद पत्र की धारा 7 को स्वीकार कर लिया है अतः इस आधार पर भी परिवादिनी के अभिकथन सिद्ध हो जाते है क्योंकि विधि का यह सुनिश्चित सिद्धान्त है कि स्वीकृत तथ्यों को सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती। इस प्रकार परिवादिनी के शपथ पत्र उसके द्वारा दिये गये दस्तावेजी साक्ष्य तथा पत्रावली पर उपलब्ध सम्पूर्ण साक्ष्यों के परिशीलन के उपरान्त यह सिद्ध नहीं होता है कि विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा परिवादिनी को रू0 34928/- का चेक प्राप्त कराया गया है और परिवादिनी ने उक्त चेक का कोई भुगतान प्राप्त किया है ऐसी परिस्थिति में फोरम की राय में परिवादिनी विपक्षी बीमा कम्पनी से उपरोक्त धनराशि को व्याज सहित भुगतान प्राप्त करने की अधिकारिणी है। इसके अतिरिक्त परिवादिनी को शारीरिक एवं मानसिक क्षति की क्षतिपूर्ति के रूप में रू0 8000/- तथा वाद व्यय के रूप में रू0 2000/- दिलाया जाना भी न्यायोचित प्रतीत होता है और इस प्रकार परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
                              आदेश
    परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वे परिवादिनी को रू0 34928/-(चैतीस हजार नव सौ अठ्ठाइस) का भुगतान दिनांक 25-10-2010 जिस दिन विपक्षीगण द्वारा चेक जारी किया जाना कहा जाता है से भुगतान की तिथि तक 8 प्रतिशत साधारण वार्षिक की दर से व्याज सहित 2 माह में अदा करें। विपक्षीगण को यह भी आदेशित किया जाता है कि वे इसी अवधि में परिवादिनी को शारीरिक एवं मानसिक क्षति की क्षतिपूर्ति हेतु रू0 8000/-(आठ हजार) तथा वाद व्यय के रूप में रू0 2000/-(दो हजार) भी अदा करें। 

(लक्ष्मण स्वरूप)                                      (रामजीत सिंह यादव)
 सदस्य                                                अध्यक्ष
                                                  दिनांकः27-12-2016 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE Ramjeet Singh Yadav]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Lachhaman Swaroop]
MEMBER

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