Uttar Pradesh

Chanduali

CC/59/2012

BANARSI PRASAD - Complainant(s)

Versus

L.I.C - Opp.Party(s)

19 Jun 2015

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. CC/59/2012
 
1. BANARSI PRASAD
Saidupur Chakia
...........Complainant(s)
Versus
1. L.I.C
Mughalsarai Chandauli
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. jagdishwar Singh PRESIDENT
 HON'BLE MR. Markandey singh MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, चन्दौली।
परिवाद संख्या 59                                सन् 2012ई0
बनारसी प्रसाद पति स्व0 सुमन देबी ग्राम व पो0 सैदूपुर (चकिया) जिला चन्दौली।
                                      ...........परिवादी                                                                                                                                    बनाम
शाखा प्रबन्धक,भारतीय जीवन बीमा निगम,मुगलसराय जिला चन्दौली।
                                            .............................विपक्षी
उपस्थितिः-
माननीय श्री जगदीश्वर सिंह, अध्यक्ष
माननीय श्री मारकण्डेय सिंह, सदस्य
                               निर्णय
द्वारा श्री जगदीश्वर सिंह,अध्यक्ष
1-    परिवादी द्वारा यह परिवाद विपक्षी बीमा कम्पनी से बीमा दुर्घटना हित लाभ मु0 3,00000/- ब्याज के साथ एवं शारीरिक,मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में मु0 50000/- दिलाये जाने हेतु प्रस्तुत किया गया है।
2-    परिवादी की ओर से परिवाद प्रस्तुत करके संक्षेप में कथन किया गया है कि परिवादी की पत्नी स्व0 सुमन देबी ने अपने जीवन काल में विपक्षी बीमा कम्पनी से दुर्घटना हित लाभ सहित मु0 3,00000/- का बीमा लिया था, जिसकी पालिसी संख्या 284950828 है जिसमे परिवादी बतौर नामिनी है। परिवादी की पत्नी स्व0 सुमन देबी की दिनांक 29-12-2006 को बिजली का करेंट लगने से दिल्ली में मृत्यु हो गयी। जिसका पोस्टमार्टम थाना के0एम0पुरी नई दिल्ली में दिनांक 30-12-06 को कराया गया। परिवादी ने अपनी पत्नी के मृत्यु के बाद दुर्घटना हित लाभ सहित बीमा के भुगतान हेतु दिनांक 10-5-2008 को विपक्षी बीमा कम्पनी के समक्ष बीमा दावा प्रस्तुत किया, जिसे विपक्षी बीमा कम्पनी ने बीमा पालिसी के उपबन्ध 4(बी) के तहत अस्वीकार कर दिया। परिवादी ने बीमा कम्पनी द्वारा बीमा दावा अस्वीकार कर देने पर बीमा निगम के क्षेत्रीय कार्यालय कानपुर में प्रार्थना पत्र दिया। जिसे बीमा कम्पनी के  क्षेत्रीय कार्यालय कानपुर द्वारा भी अस्वीकार कर दिया जिससे क्षुब्ध होकर परिवादी ने बीमा कम्पनी के केन्द्रीय कार्यालय मुम्बई में आवेदन प्रस्तुत किया,जिस पर केन्द्रीय कार्यालय मुम्बई द्वारा आवेदन/दावा आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए मु0 3,00000/-बतौर अनुग्रही (एक्सग्रेसिया) देना स्वीकार करते हुए सादे फार्म पर हस्ताक्षर करके देने को कहा। मुख्य कार्यालय से पत्र प्राप्त होने के बाद परिवादी ने सादा प्रपत्र फार्म 1570ए पर हस्ताक्षर कर बीमा कम्पनी को दिया, और अपनी शिकायत बीमा लोकपाल से किया। बीमा लोकपाल ने बीमा कम्पनी के केन्द्रीय कार्यालय के निर्णय को उचित माना और परिवादी का प्रार्थना पत्र निरस्त कर दिया। विपक्षी बीमा कम्पनी ने परिवादी को एक्सग्रेसिया की धनराशि मु0 3,00000/-चेक के माध्यम से दिया जिसे परिवादी ने विरोध सहित प्राप्त किया किन्तु विपक्षी बीमा कम्पनी ने दुर्घटना हित लाभ की धनराशि देने से मना कर दिया। इस आधार पर परिवादी द्वारा यह परिवाद प्रस्तुत किया गया है। 
3-    विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से जबाबदावा प्रस्तुत करके संक्षेप में कथन किया गया है कि  परिवादी के प्रत्येक स्तर से उसके शंका के समाधान का प्रयास 
                                                       2
बीमा निगम द्वारा करते हुए बीमा की धनराशि मु0 3,00000/-परिवादी को प्रदान कराया गया, किन्तु परिवादी संतुष्ट नहीं हुआ। बीमा निगम द्वारा बीमा अधिनियम 1938 में वर्णित धारा-4(ब) के तहत सही तौर पर परिवादी के दावे को खारिज किया गया है। बीमा अधिनियम 1938 की धारा 4(ब) में वर्णित है कि यदि किसी महिला की अस्वभाविक मृत्यु सार्वजनिक जगह के अतिरिक्त होती है तो इसका लाभ परिवादी प्राप्त नहीं कर सकता है। बीमा निगम द्वारा परिवादी के दावे को सही तौर पर निरस्त किया गया है और किसी प्रकार की सेवा में कोई कमी नहीं किया गया है। परिवादी ने बीमा कम्पनी के विरूद्ध परिवाद संस्थित करके परिवाद को कन्टेस्ट करने पर मजबूर किया है इसलिए परिवादी से स्पेशल कास्ट बीमा कम्पनी प्राप्त करने का अधिकारी है।इस कथन के साथ परिवादी के दावा को निरस्त किये जाने का प्रार्थना विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा किया गया है।
4-    परिवादी ने फेहरिस्त के साथ साक्ष्य के रूप में मृत्यु प्रमाण पत्र की छायाप्रति कागज संख्या 4/2ता 4/3,पोस्टमार्टम रिर्पोट 4/4,प्रार्थना पत्र 4/5 ता 4/6,बयान 4/7,प्रार्थना पत्र 4/8,फाइनल रिर्पोट 4/10ता 4/11,मृत्यु प्रमाण पत्र 4/12,दावा प्राप्ति रसीद 4/13,बीमा कम्पनी का पत्र 4/14 ता 4/15,प्रार्थना पत्र 4/16,प्रार्थना पत्र 4/17,बीमा लोकपाल को प्रार्थना पत्र4/18 ता 4/19,प्रार्थना पत्र 4/20 ता 4/21दाखिल किया गया है। परिवादी की ओर से प्रार्थना पत्र के साथ मूल पालिसी बाण्ड की प्रति कागज संख्या 18/2 ता 18/3 दाखिल किया गया है।
5-    हम लोगों ने परिवादी एवं विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता के बहस को सुना तथा पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्य का भलीभांति अवलोकन किया है।
6-    परिवाद पत्र तथा जबाबदावा के कथनों से एवं परिवादी की ओर से दाखिल बीमा पालिसी कागज संख्या 18/2 ता 18/5 के परिशीलन से यह पाया जाता है कि परिवादी ने विपक्षी बीमा कम्पनी से दिनांक 27-12-05 को मु0 3,00000/- की बीमा दुर्घटना हित लाभ सहित बीमा पालिसी संख्या284950828 लिया था। यह बीमा पालिसी 16 वर्षो के लिए थी जिसकी पूर्णावधि दिनांक 27-12-2021 थी इसकी वार्षिक प्रीमियम मु0 20751/- था। यह तथ्य भी स्वीकृत है कि दिनांक 29-12-06 को बीमाधारक सुमन देवी की मृत्यु घर में बिजली से पानी गरम करते समय बिजली के करेन्ट लगाने से दिल्ली में हो गयी। बीमा प्रमाण पत्र में बीमाधारक के पति परिवादी बनारसी प्रसाद नामिनी है जिनको बीमा की धनराशि मु0 3,00000/- का भुगतान बीमा कम्पनी द्वारा बतौर अनुग्रही कर दिया गया है। परिवाद इस आधार पर दाखिल किया गया है कि बीमाधारक की मृत्यु बिजली का करेन्ट लगने से दुर्घटना के फलस्वरूप हुआ है। इसलिए दुर्घटना हित लाभ के सम्बन्ध में बीमा दावा के रूप में मु0 3,00000/- की मांग को अस्वीकार करके बीमा कम्पनी की ओर से सेवा में कमी किया गया है। जबादावा में कथन है कि बीमा पालिसी के अनुबन्ध की शर्त धारा4(ब) में उल्लिखित शर्तो के अधीन बीमाधारक की सार्वजनिक जगह पर बीमा पालिसी प्रारम्भ होने के 3 वर्ष के बाद 
                                                               3
मृत्यु न होने के फलस्वरूप दुर्घटना हित लाभ का दावा विधितया अस्वीकार किया गया है। इस प्रकार कथन है कि पालिसी की शर्तो के अनुसार दुर्घटना हित लाभ की धनराशि परिवादी को प्रदान नहीं की जा सकती है।
7-    उपरोक्त बिन्दु पर हम लोगों द्वारा विचार किया गया। बीमा पालिसी के अनुबंध की शर्त 4 (ब) के प्राविधानों से स्पष्ट है कि यदि बीमाधारक की मृत्यु बीमा पालिसी प्रारम्भ होने के 3 वर्ष के भीतर सार्वजनिक स्थान पर किसी दुर्घटना से नहीं हुई है तो उसको बीमा पालिसी के अन्र्तगत दुर्घटना हित लाभ के रूप में बीमा धन के बराबर अतिरिक्त धनराशि प्रदान नहीं की जा सकती है। इस संदर्भ में विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से (1966)3एस.सी.आर. पेज 500 जनरल एश्योरेंस सोसाइटी बनाम चन्द्रमौली जैन के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गयी विधि व्यवस्था का आश्रय लिया गया है तथा यह तर्क दिया गया है कि बीमा संविदा के शर्तो की व्याख्या करते समय न्यायालय का कर्तव्य है कि पक्षकारों द्वारा व्यक्त किये गये शब्दों की व्याख्या उसी रूप में करंे क्योंकि न्यायालय का यह दायित्व नहीं है कि शब्दों की अन्यथा व्याख्या करके नई संविदा का सृजन करें। इस प्रकार की विधि व्यवस्था (2010)एन.सी.डी.आर.सी. रिलायन्स लाइफ इश्योरेंस कम्पनी बनाम मध्याचार्य के मामले में माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग नई दिल्ली द्वारा प्रदान किया गया है। वर्तमान प्रकरण में जो तथ्य हम लोगों के समक्ष प्राप्त हुआ है इससे स्पष्ट है कि दिनांक 27-12-05 को बीमा की पालिसी प्राप्त करने के  मात्र 1 वर्ष 2 दिन बाद दिनांक 30-12-06 को बीमाधारक सुमन देवी की मृत्यु घर में बिजली से पानी गरम करते समय बिजली का करेन्ट लग जाने से हो गयी। निर्विवादित तौर पर बीमाधारक को दिल्ली में उसके आवास के अन्दर उस समय करेन्ट लगी जब वह बिजली के राड से पानी गरम कर रही थी। बिजली का करेन्ट लगने के बाद उसको एम्स में ले जाया गया तो चिकित्साधिकारी ने पाया कि उसकी मृत्यु हो चुकी है। इससे निष्कर्ष निकलता है कि उनकी मृत्यु अस्पताल पहुंचने के पहले ही घर में हो गयी थी। अतः हम लोगों के विचार से बीमा पालिसी की धारा 4(ब) की शर्तो के अनुसार बीमा कम्पनी द्वारा परिवादी के दुर्घटना हित लाभ का दावा नियमानुसार खारिज किया गया है। अतःबीमा कम्पनी की सेवा में कोई कमी नहीं माना जा सकता है। तद्नुसार प्रस्तुत परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
                             आदेश
    प्रस्तुत परिवाद खारिज किया जाता है। 

(मारकण्डेय सिंह)                                               (जगदीश्वर सिंह)
   सदस्य                                                        अध्यक्ष
                                                           दिनांक 19-6-2015

 

 
 
[HON'BLE MR. jagdishwar Singh]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Markandey singh]
MEMBER

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