जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम, लखनऊ।
परिवाद संख्या:- 1114/2011 उपस्थित:-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
श्री अशोक कुमार सिंह, सदस्य।
श्रीमती सोनिया सिंह, सदस्य।
परिवाद प्रस्तुत करने की तारीख:-29.11.2011
परिवाद के निर्णय की तारीख:-07.02.2022
- अतुल कुमार खरे, आयु 50 वर्ष, निवासी 403/80 ए कटरा विजन बेग, चौपटियॉं, लखनऊ।
- श्रीमती अनीता खरे, पत्नी श्री अतुल कुमार खरे, आयु 48 वर्ष, निवासी 403/80 ए कटरा विजन बेग, चौपटियॉं, लखनऊ।
.........परिवादीगण।
बनाम
मुख्य क्षेत्रीय प्रबन्धक, भारतीय जीवन बीमा निगम, डी0ओ0बी0, शाखा हजरतगंज, लखनऊ। .........विपक्षी।
आदेश द्वारा-
श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
श्री अशोक कुमार सिंह, सदस्य।
श्रीमती सोनिया सिंह, सदस्य।
निर्णय
1. परिवादीगण ने प्रस्तुत परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत विपक्षी से 70,000.00 - 70,000.00 रूपये मय 18 प्रतिशत ब्याज सहित, वास्तविक भुगतान की तिथि तक मानसिक, शारीरिक व आर्थिक उतपीड़न के लिये 20,000.00 रूपये, एवं वाद व्यय 35,000.00 रूपये दिलाये जाने की प्रार्थना के साथ प्रस्तुत किया है।
2. संक्षेप में परिवाद के कथन इस प्रकार हैं कि परिवादी ने दो पालिसी नम्बर-212649425 एवं 212649424 रू0 24585.00 व 24585.00 एल0आई0सी0 से क्रय किया था और दस वर्ष के बाद उसकी परिपक्वता की धनराशि का भुगतान 70,000.00 रूपये प्रति पालिसी विपक्षी से परिवादी को किया जाना था। उक्त पालिसी की परिपक्वता की धनराशि प्राप्त करने हेतु यह भी था कि पालिसी बाण्ड एवं सरेंडर फार्म छह माह पूर्व विपक्षी को प्राप्त कराना था।
3. परिवादीगण ने अभिकर्ता के माध्यम से सरेंडर फार्म बीमित शाखा में प्रस्तुत किया। विपक्षी ने पालिसी बाण्ड और सरेंडर फार्म प्राप्ति की रसीद संख्या- 57472 एवं 56473 परिवादीगण को प्राप्त करायी गयी। परिवादीगण ने उक्त चेकों को वापस विपक्षी के यहॉं जमा करते हुए 70,000.00 - 70,000.00 रूपये दिये जाने की मॉंग की, लेकिन परिपक्वता तिथि बीत जाने के उपरान्त भी विपक्षी द्वारा परिपक्वता राशि का भुगतान नहीं किया जा रहा है।
4. विपक्षीगण द्वारा अपने उत्तर पत्र में कथन किया गया कि दिनॉंक 30.04.2001 को टेबल नम्बर 145-10 के तहत 24587.00 रूपये की दो पालिसी नम्बर-212649425 एवं 212649424 दी गयी थी। उक्त पालिसी इस सापेक्ष में ली गयी थी कि 586.00 रूपये हर माह परिपक्वता के बाद भुगतान हो जायेगा, या एकमुश्त भुगतान किया जायेगा। दिनॉंक 12.10.2010 को सरेंडर फार्म 3510 और 5074 परिवादीगण द्वारा हस्ताक्षर किया गया था में सरेंडर फार्म के आधार पर चेक संख्या 221215 से 57533.00 रूपये जारी किया गया था। परिवादीगण द्वारा कभी भी पालिसियों के तहत कोई विकल्प नहीं दिया गया और सरेंडर वैल्यू के आधार पर उनके पैसे का भुगतान किया गया।
5. परिवादीगण द्वारा अपने कथानक के समर्थन में मौखिक साक्ष्य के रूप में शपथ पत्र एवं दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में बाण्ड की छायाप्रति, क्षेत्रीय प्रबन्धक को प्रेषित पत्र, बाण्ड सरेन्डर वैल्यू वर्ष 2010 में दिये गये पत्र की छायाप्रति और निर्गत चेक की छायाप्रति प्रस्तुत किया है।
6. विपक्षीगण द्वारा अपने कथानके में बाण्ड, ट्रम्स एवं कन्डीशन, परिवादीगण द्वारा प्रेषित पत्रों की प्रतिलिपि एवं सरेंडर फार्म एवं सरेंडर वैल्यू कोटेशन एवं चेक की छायाप्रति प्रस्तुत की गयी।
7. मैने उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्ता के तर्कों को सुना तथा पत्रावली का परिशीलन किया।
8. विचारणीय है कि परिवादीगण द्वारा यह परिवाद पत्र 70,000.00- 70,000.00 रूपये के सापेक्ष में भुगतान किये जाने एवं मानसिक कष्ट हेतु संस्थित किया गया है। जो तथ्य स्वीक़त हैं उसे साबित नहीं किया जाता।
9. जैसा कि परिवादीगण का कथन है कि उन्होंने दो पालिसी परिवादी संख्या-01 एवं परिवादी संख्या-02 के नाम से 24585.00 रूपये की एल0आई0सी0 से दिनॉंक 12.04.2001 को क्रय किया था। विपक्षी द्वारा उक्त बाण्ड को स्वीकार किया गया है। अत: यह साबित है कि बाण्ड लिया गया है। अत: वह विपक्षी के उपभोक्ता की परिभाषा में आते हैं।
10. विपक्षी एल0आई0सी0 द्वारा सेवा में कमी की गयी या नहीं वह भी मुख्य विचारणीय बिन्दु है। यह तथ्य विवाद का विषय नहीं है कि दो पालिसी दिनॉंक 30.04.2001 को विपक्षी से ली गयी थी। परिवादीगण द्वारा एल0आई0सी0 से एकमुश्त पालिसी ली गयी थी, जिसकी परिपक्वता की तिथि 01 मई 2011 थी।
11. उक्त पालिसी के तहत दो व्यवस्था थी जिसके तहत परिवादी या तो एकमुश्त परिपक्वता धनराशि परिपक्वता तिथि के उपरान्त अथवा परिपक्वता के बाद 586.00 रूपये प्रतिमाह बोनस प्राप्त करने का अधिकारी होता, जिसका चयन पालिसी धारक को करना था। पालिसी धारकगण ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि दोनों विकल्प में से एक विकल्प परिपक्वता के बाद धनराशि प्राप्त किये जाने के संबंध में उन्होने सरेंडर फार्म छह माह पूर्व किया था क्योंकि सरेंडर फार्म छह माह पूर्व एल0आई0सी0 ब्रान्च को प्रदत्त कराया गया। इस सापेक्ष में परिवादीगण ने अपने शपथ पत्र में भी उक्त तथ्य को उल्लिखित किया है।
12. विपक्षीगण का कथानक है कि छह महीने बाद आप जब इसे समर्पण करते है तो ट्रम्स कन्डीशन के आधार पर 95 प्रतिशत के भुगतान की व्यवस्था एवं अन्य प्रक्रिया अपनाते हुए इसका भुगतान कर दिया गया। जबकि परिवादी का कथन है कि दो तरह के विकल्प बाण्ड में थे। उस सापेक्ष में चॅूंकि छह माह पूर्व उक्त धनराशि का भुगतान प्राप्त करने हेतु अथवा पेंशन लेने हेतु परिवादी ने यह चयन करते हुए कि उसे पेंशन की धनराशि नहीं प्राप्त करनी है और एकमुश्त धनराशि प्राप्त करनी है।
13. उत्तर पत्र का आशय यह था कि पेंशन की व्यवस्था नहीं चाहते थे और छह माह पूर्व उनका सरेंडर प्रार्थना पत्र प्रोसेसिंग कराने के आदेश से दिया गया था जिससे कि परिपक्वता तिथि पर पेंशन न मिलकर परिपक्वता धनराशि का भुगतान किया जा सके। परिवादी द्वारा प्रेषित पत्र की छायाप्रति का अवलोकन किया। पत्र के परिशीलन से यह उल्लिखित किया गया है कि दिनॉंक 12.04.2001 को पालिसी दी गयी थी जिसमें पेंशन/नगद प्राप्त करना था का प्रावधान था। आपसे अनुरोध कि प्रति पालिसी का भुगतान मुझे नगद कर दिया जाए। इसका अभिप्राय यह है कि सर्वप्रथम दिये गये भुगतान के संबंध में प्रार्थना पत्र में यह उल्लिखित है कि मासिक पेंशन अथवा नगद प्राप्त करने का प्रावधान था इसलिए उसी क्रम में परिवादी द्वारा प्रेषित पत्र का आशय यह था कि वह पेंशन की धनराशि के भुगतान को प्राप्त नहीं करना चाह रहे थे और नगद पैसा प्राप्त करने के लिये आग्रह किया गया था। जबकि विपक्षी द्वारा एल0आई0सी0 के ट्रम्स एवं कन्डीशन के आधार पर 5753.00 रूपये का भुगतान परिपक्वता के पूर्व किया जा रहा है के सापेक्ष में कर दिया गया और जिसकी प्राप्ति परिवादीगण द्वारा नहीं की गयी है। परिवादी ने दिनॉंक 23.11.2010 को पत्र ब्रान्च मैनेजर को भेजा था। उन्होंने यह तथ्य स्पष्ट किया कि उनका आशय भुगतान दिये जाने के संबंध में था न कि पेंशन के संबंध में था। इसी के सापेक्ष में उन्होंने चेक वापस कर दिया।
14. जब किसी व्यवस्था में दो विकल्प हो उस दो विकल्प में से कोई एक विकल्प प्राप्त करना हो तो उसके संबंध में कोई भी व्यक्ति उस कार्य के बाद संबंधित को सूचना करेगा और जो व्यक्ति इतने लम्बे समय बाद भुगतान कर रहा है यानी अंतिम वर्ष के छह माह पहिले प्रार्थना पत्र दे रहे हैं, इसका भी आशय यही है कि वह पत्र मात्र इस सापेक्ष में प्रेषित किया गया था कि वह बोनस के विकल्प को छोड़ते हुए नगद भुगतान के विकल्प को चाह रहा है। अगर वास्तव में ऐसी बात नहीं थी तो परिवादी से जिरह का अवसर था परन्तु उन्होंने कोई जिरह भी नहीं किया। अत: स्वीकृत समझा जाये।
15. अत: परिवादी के कथनों, प्रस्तुत साक्ष्य से बल मिलता है जैसा कि उन्होंने अपने साक्ष्य में कहा है कि वह मात्र यह सूचना करने के लिए कि छह माह बाद भुगतान होगा उसमें वह धनराशि प्राप्त करना चाहता है। अत: मेरे विचार से वह पूरी 70,000.00 रूपये की धनराशि परिवादीगण अपने-अपने बाण्ड के सापेक्ष प्राप्त करने के अधिकारी है और विपक्षी द्वारा सेवा में त्रुटि की गयी है। तदनुसार यह परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य है।
16. उल्लेखनीय है कि यह प्रकरण वर्ष 2011 का है और एक लम्बे समय बाद निस्तारण किया जा रहा है। अत: परिवादीगण परिवाद पत्र दाखिल करने की तिथि से अंतिम भुगतान तक 09 प्रतिशत ब्याज प्राप्त करने के अधिकारी रहेगें तथा परिपक्वता तिथि के बाद से परिवाद पत्र दाखिल किये जाने के बीच वह 09 प्रतिशत ब्याज प्राप्त करने के अधिकारी रहेगें।
17. परिवादीगण द्वारा इतने लम्बे समय तक मुकदमा लड़ने और मानसिक, शारीरिक कष्ट के उददेश्य से इस परिवाद पत्र के सापेक्ष जिसमें कि दो परिवादीगण है जो कि पति एवं पत्नी हैं, भुगतान किये जाने के संबंध में संस्थित किया गया है। इसलिए मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक पीड़ा के स्वरूप एकमुश्त 10,000.00 रूपये दिलाया जाना न्यायसंगत प्रतीत होता है। तदनुसार परिवादीगण का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
18. परिवादीगण का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को निर्देशित किया जाता है कि मुबलिग 70,000.00 - 70,000.00 (सत्तर-सत्तर हजार रूपया मात्र) की धनराशि परिवादीगण को अपने-अपने बाण्ड के सापेक्ष प्राप्त करावें तथा परिपक्वता तिथि के बाद से परिवाद पत्र दाखिल किये जाने के बीच वह 09 प्रतिशत ब्याज भी प्राप्त करावें। मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक पीड़ा के लिये एकमुश्त मुबलिग 10,000.00 - 10,000.00 (दस-दस हजार रूपया मात्र) भी प्राप्त करावें।
(सोनिया सिंह) (अशोक कुमार सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
आज यह आदेश/निर्णय हस्ताक्षरित कर खुले आयोग में उदघोषित किया गया।
(सोनिया सिंह) (अशोक कुमार सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।