न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, चन्दौली।
परिवाद संख्या 05 सन् 2013ई0
आरती सिंह पत्नी स्व0 प्रेम कुमार सिंह निवासिनी नाथूपुर पो0 टाण्डाकलाॅं जिला चन्दौली।
...........परिवादिनी बनाम
1-शाखा प्रबन्धक भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा मुगलसराय जिला चन्दौली।
2-वरिष्ठ शाखा प्रबन्धक भारतीय जीवन निगम शाखा कार्यालय सी.पी.ओ.।।श्रीराम काम्पलेक्स मलदहिया वाराणसी।
.............................विपक्षीगण
उपस्थितिः-
माननीय श्री जगदीश्वर सिंह, अध्यक्ष
माननीया श्रीमती मुन्नी देवी मौर्या सदस्या
माननीय श्री मारकण्डेय सिंह, सदस्य
निर्णय
द्वारा श्री जगदीश्वर सिंह,अध्यक्ष
1- परिवादिनी द्वारा यह परिवाद विपक्षीगण से बीमा पालिसी संख्या 284371097, पालिसी संख्या 284351470, एवं पालिसी 284351473 के दुर्घटना बीमा हित लाभ एवं शारीरिक मानसिक क्षति तथा वाद व्यय हेतु कुल मु0 448288/- दिलाये जाने हेतु प्रस्तुत किया गया है।
2- परिवादिनी की ओर से संक्षेप में कथन किया गया है कि परिवादिनी के पति स्व0 प्रेम कुमार सिंह ने विपक्षी संख्या 2 के कार्यालय से बीमा पालिसी संख्या 284371097, पालिसी संख्या 284351470 एवं बीमा पालिसी संख्या 284351473 दुर्घटना हित लाभ के साथ लिया था जिसका प्रीमियम समयानुसार परिवादिनी के मृतक पति अपने जीवनकाल तक जमा करते रहे, जिसमे परिवादिनी बतौर नामिनी थी। परिवादिनी के पति स्व0 प्रेमकुमार सिंह की बदमाशों द्वारा दिनांक 18-4-07 को गोली मारकर हत्या कर दी गयी,जिसकी प्रथम सूचना रिर्पोट थाना बलुआ में दर्ज करायी गयी।तदोपरान्त थाना बलुआ के माध्यम से परिवादिनी के पति का पंचनामा व पोस्टमार्टम कराया गया। परिवादिनी द्वारा उपरोक्त पालिसियों के अन्र्तगत विपक्षी बीमा कम्पनी में दावा प्रस्तुत किया गया। जिसके अनुक्रम में विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा उक्त पालिसियों के साधारण बीमा का लाभ परिवादिनी को भुगतान कर दिया गया। लेकिन दुर्घटना हित लाभ का भुगतान नहीं किया गया। परिवादिनी दुर्घटना बीमा लाभ प्राप्त करने हेतु बार-बार विपक्षी के कार्यालय में दौड़ती रही किन्तु कोई संतोषजनक कार्यवाही न होने पर परिवादिनी द्वारा विपक्षी से जनसूचना अधिकार अधिनियम 2005 के अन्र्तगत दिनांक 16-7-2012 को उक्त पालिसियों के भुगतान के सम्बन्ध में सूचना चाही तो दिनांक 5-09-2012 को विपक्षी बीमा कम्पनी का पत्र प्राप्त हुआ जिसमे यह दर्शाया गया था कि सम्पत्ति विवाद के कारण स्व0 प्रेम कुमार सिंह की गोली मारकर हत्या की गयी है जिसे सक्षम अधिकारी द्वारा दुर्घटना न मानते हुए उपरोक्त तीनों पालिसियों के दुर्घटना बीमा लाभ को अस्वीकार कर दिया है जिसकी सूचना परिवादिनी को दिनांक 5-12-2008 को दिया गया। परिवादिनी की ओर से यह भी कहा गया है कि
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विपक्षी बीमा कम्पनी के दावा निरस्तीकरण दिनांक 5-8-2012 का कोई पत्र प्राप्त नहीं हुआ है। परिवादिनी को दावा निरस्तीकरण की सूचना दिनांक 5-9-2012 को प्राप्त हुआ है। परिवादिनी के वाद का हेतुक दिनांक 5-9-2012 को बीमा कम्पनी द्वारा दावा निरस्तीकरण के आधार पर उत्पन्न हुआ है। इस आधार पर परिवादिनी द्वारा विपक्षी बीमा कम्पनी से दुर्घटना बीमा हित लाभ दिलाये जाने हेतु प्रार्थना की गयी है।
3- विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से संक्षेप में कथन किया गया है कि परिवादिनी द्वारा सही तथ्यों को छिपाकर दावा प्रस्तुत किया गया है जो निरस्त किये जाने योग्य है। मृतक बीमाधारक ने उपरोक्त तीनों पालिसियां (जिसका उल्लेख परिवादिनी के परिवाद पत्र में अंकित है) दुर्घटना हित लाभ सहित प्राप्त किया था, जिसमे बीमाधारक की हत्या होने के बाद परिवादिनी द्वारा मृत्यु दावा प्रस्तुत करने पर सामान्य दावा का भुगतान कर दिया गया है। परिवादिनी के मृतक पति का सम्पत्ति के बंटवारे को लेकर पट्टीदारों से विवाद चल रहा था और उसी कारण से बीमाधारक की गोली मारकर हत्या की गयी है। प्रथम सूचना रिर्पोट से स्पष्ट है कि इरादतन हत्या हुई,जो दुर्घटना की श्रेणी में नहीं आता है। जिसके कारण सक्षम अधिकारी/क्षेत्रीय दावा समीक्षा समिति कानपुर द्वारा दुर्घटना हित लाभ का दावा विधि सम्मत ढंग से अस्वीकार किया गया है। बीमित व्यक्ति को दुर्घटना हितलाभ दुर्घटना की स्थिति में ही दिया जाता है। हत्या अथवा आत्महत्या की स्थिति में दुर्घटना हितलाभ नहीं दिया जाता है। इस आधार पर विपक्षीगण द्वारा परिवादिनी के दावे को निरस्त किये जाने का प्रार्थना की गयी है।
4- परिवादिनी की ओर से शपथ पत्र के साथ साक्ष्य के रूप में फेहरिस्त के साथ बीमा कम्पनी का पत्र कागज संख्या 4/1,बीमा लोकपाल का पत्र 4/2 ता 4/5,परिवादिनी का पत्र 4/6 ता 4/8,बीमा लोक पाल का पत्र 4/9, बीमा पालिसी की रसीदें कागज संख्या4/11 ता 4/13,मृत्यु प्रमाण पत्र 4/14,पोस्टमार्टम रिर्पोट 4/15,प्रथम सूचना की रिर्पोट 4/16 ता 4/17 प्रस्तुत किया गया है। विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से तीनों पालिसियों के पालिसी बाण्ड की छायाप्रति कागज संख्या 18/1 ता 18/3, रसीदें की प्रतियाॅं कागज संख्या 18/4 ता 18/10 प्रस्तुत किया गया है।
5- हम लोगों ने परिवादी एवं विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता के तर्को को सुना है, तथा पत्रावली का गम्भीरतापूर्वक अवलोकन किया है।
6- उभय पक्ष के कथनों से तथा पत्रावली में उपलब्ध अभिलेखों से यह तथ्य प्रमाणित है कि परिवादिनी के पति स्व0 प्रेम कुमार सिंह अपने जीवन काल में विपक्षी बीमा कम्पनी से दुर्घटना हित लाभ के साथ तीन बीमा पालिसी प्रत्येक मु0 1,20,000/- का लिया था। तीनों बीमा पालिसी संख्या 284371097,संख्या 284351470 एवं संख्या 284351473 था, तथा तीनों बीमा पालिसी में बीमाधारक की पत्नी परिवादिनी आरती सिंह नामिनी हैं। यह भी स्वीकृत तथ्य है कि परिवादिनी के
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पति बीमाधारक स्व0 प्रेम कुमार सिंह की हत्या बीमा अवधि के भीतर दिनांक 18-4-2007 को गोली मारकर कर दी गयी। इस बिन्दु पर भी कोई विवाद नहीं है कि बीमाधारक ने अपने जीवन काल में उपरोक्त तीनों बीमा पालिसियों के अन्र्तगत देय किश्तों को नियमित तौर पर जमा किया है। बीमाधारक की मृत्यु के बाद परिवादिनी ने तीनों पालिसियों के अन्र्तगत बीमा धनराशि का दावा दुगुना हित लाभ के साथ प्रस्तुत किया। किन्तु बीमा कम्पनी ने दुर्घटना हित लाभ प्रदान नहीं किया और साधारण दावा स्वीकार करते हुए तीनों पालिसियों के अन्र्तगत बीमा धनराशि एवं देय किश्तों पर बोनस की धनराशि का भुगतान कर दिया, किन्तु बीमा कम्पनी ने दुर्घटना हित लाभ प्रदान नहीं किया। इस संदर्भ में परिवादिनी का दावा बीमा कम्पनी द्वारा इस आधार पर अस्वीकार कर दिया कि बीमाधारक की मृत्यु किसी दुर्घटना में नहीं हुई है बल्कि इरादतन गोली मारकर उसकी हत्या हुई है। बीमा कम्पनी का कथन है कि इरादतन की गयी हत्या बीमा पालिसी के अन्र्तगत दुर्घटना की श्रेणी में नही है। इसलिए दुर्घटना हित लाभ का दावा अस्वीकार कर दिया गया। अब विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या बीमा कम्पनी द्वारा बीमाधारक की इरादतन हत्या में मृत्यु के आधार पर दुर्घटना हित लाभ का दावा अस्वीकार करके सेवा में कमी किया है ?
7- उपरोक्त बिन्दु पर हम लोगों द्वारा विचार किया गया। परिवादिनी की ओर से प्रस्तुत विधि व्यवस्था 2012(3)ए.सी.सी.डी.पेज 1454(इला0)श्रीमती पुष्पा अग्रवाल बनाम बीमा लोकपाल उ0प्र0एवं उत्तराचल,लखनऊ एवं एक अन्य के मामले में बीमा धारक की इरादतन हत्या कारित करके की गयी थी, जिसमे माननीय उच्च न्यायालय ने यह अवधारित किया है कि बीमाधारक की इच्छायुक्त हत्या दुर्घटनात्मक है और उस हत्या को संयोगवश अथवा आकस्मिक रूप से वर्णित किया जाना चाहिए। माननीय उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट विधि व्यवस्था दिया है कि दुर्घटना हित लाभ के दावे को बीमा कम्पनी द्वारा अभिखण्डित करना न्यायोचित नहीं है। माननीय उच्च न्यायालय ने उपरोक्त आधार पर बीमा कम्पनी को 8 प्रतिशत ब्याज के साथ दोहरी दुर्घटना दावे के लाभ के साथ भुगतान करने का निर्देश बीमा कम्पनी को दिया है। उपरोक्त विधि व्यवस्था से यह स्पष्ट है कि इस प्रकरण में बीमा कम्पनी ने बीमाधारक की इरादतन की गयी हत्या के आधार पर दुर्घटना हित लाभ प्रदान न करके सेवा में कमी किया है। अतः परिवादिनी बीमा कम्पनी से उपरोक्त तीनों पालिसियों के अन्र्तगत दुर्घटना हित लाभ प्रत्येक पालिसी में मु0 1,20,000/-के हिसाब से कुल मु0 3,60,000/-प्राप्त करने की अधिकारिणी है। उपरोक्त के अलावा परिवादिनी विपक्षी बीमा कम्पनी से मु0 20,000/- हर्जा तथा मु0 5,000/- वाद व्यय भी प्राप्त करने की अधिकारिणी है। उक्त सम्पूर्ण धनराशि पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से आइन्दा भुगतान की तिथि तक परिवादिनी 10 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी पाने की अधिकारिणी है। तद्नुसार परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य है।
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आदेश
प्रस्तुत परिवाद स्वीकार किया जाता है। विपक्षी बीमा कम्पनी को आदेश दिया जाता है कि इस निर्णय की तिथि से एक माह के अन्दर परिवादिनी की तीनों पालिसियों के अन्र्तगत दुर्घटना हित लाभ के रूप में कुल मु0 3,60,000/-(तीन लाख साठ हजार) तथा शारीरिक मानसिक क्षति के रूप में मु0 20,000/-(बीस हजार) व वाद व्यय के रूप में मु0 5,000/-(पांच हजार) कुल मु0 3,85,000/-(तीन लाख पचासी हजार) तथा इस धनराशि पर परिवाद प्रस्तुतीकरण की तिथि से आइन्दा भुगतान की तिथि तक 10 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज का भुगतान करें।
(मारकण्डेय सिंह) (मुन्नी देबी मौर्या) (जगदीश्वर सिंह)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
दिनांक 3-9-2014