Uttar Pradesh

Faizabad

CC/98/2009

Ankush Gupta - Complainant(s)

Versus

L.I.C - Opp.Party(s)

12 Feb 2016

ORDER

DISTRICT CONSUMER DISPUTES REDRESSAL FORUM
Judgement of Faizabad
 
Complaint Case No. CC/98/2009
 
1. Ankush Gupta
Faizabad
...........Complainant(s)
Versus
1. L.I.C
AYODHYA DIS FAIZABAD
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE MR. CHANDRA PAAL PRESIDENT
 HON'BLE MRS. MAYA DEVI SHAKYA MEMBER
 HON'BLE MR. VISHNU UPADHYAY MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद । 

 


़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़                    ़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़उपस्थितिः-(1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष

                            (2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
                            (3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य


               परिवाद सं0-98/2009

    अंकुश गुप्ता पुत्र भरत जी गुप्ता निवासी 5/15/70 जमुनिया बाग पोस्ट सदर कोतवाली नगर शहर व जिला फैजाबाद                   .................... परिवादी

                    बनाम

    भारतीय जीवन बीमा निगम ब्रान्च अयोध्या कार्यालय स्थित मोहल्ला मोतीबाग (बजाजा) शहर व जिला फैजाबाद द्वारा ब्रान्च मैनेजर भारतीय जीवन बीमा निगम ब्रान्च अयोध्या कार्यालय स्थित मोहल्ला मोतीबाग (बजाजा) शहर व जिला फैजाबाद।                                                                   .................... विपक्षी
निर्णय दि0 12.02.2016
                     निर्णय

उद्घोषित द्वारा-श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
                                                    
    परिवादी ने यह परिवाद विपक्षी के विरूद्ध बीमा की धनराशि एवं क्षतिपूर्ति दिलाये जाने हेतु योजित किया  है। 
    
    संक्षेप में परिवादी का परिवाद इस प्रकार है कि परिवादी की माता स्व0 अन्नपूर्णा गुप्ता ने प्रस्ताव सं0-5484 दि0 20.9.2005 के माध्यम से मु0 1,00,000=00 की  भारतीय जीवन बीमा निगम की पाॅलिसी नं0-215520927  प्रीमियम प्रारम्भ तिथि 

 

 

                    (  2  )

21.9.2005 पूर्णावधि तिथि 21.9.2016 विपक्षी से लिया था। जिसके विरूद्ध उन्होंने मु0 मु0 10,083=00 एवं मु0 10,083=00 रूपये की दो प्रीमियम विपक्षी को भुगतान किया था। पाॅलिसी जारी करने के पहले विपक्षी के एजेन्ट उमेश जायसवाल ने मृतका का चिकित्सीय परीक्षण, बीमा निगम के पैनल डाक्टर से कराया था। जिसके द्वारा पूर्ण स्वस्थ होने का चिकित्सीय प्राण-पत्र देने पर विपक्षी द्वारा पूर्ण सहमत एवं संतुष्टि के आधार पर प्रश्नगत बीमा किया गया था। पाॅलिसी की छायाप्रति सं0-1 है। मार्च 2007 में परिवादी की माॅं की तवियत जोड़ों में दर्द के कारण बहुत खराब हो गयी। अन्ततः  उन्हें मार्च की द्वितीय सप्ताह में एस0जी0पी0जी0आई0 लखनऊ भर्ती कराया गया। जहाॅं जाॅंच के उपरान्त् पी.जी.आई. के डाक्टर्स ने परिवादी को बताया कि परिवादी के माॅं की अचानक किडनी फेल हो गयी है। इसके पूर्व परिवादी की माॅं को कभी भी किडनी सम्बन्धित बीमारी नहीं थी। माॅं की मृत्योपरान्त् परिवादी ने विपक्षी के यहाॅं क्लेम प्रस्तुत किया, जिसे विपक्षी ने दि0 17.3.2008 के पत्र द्वारा खारिज कर दिया। इस प्रकार विवश होकर परिवादी को यह परिवाद प्रस्तुत करना पड़ा।

    विपक्षी ने अपने जवाब में कहा कि मृतक प्रस्तावक/बीमा धारक पालिसी हेतु प्रस्ताव पत्र दि0 20.9.2005 जिसके वैयक्तिक इतिवृत्त में उसने हस्ताक्षर किया। उस समय वह पूर्व से बीमार थी तथा उसने जानबूझ कर पालिसी के अन्तर्गत प्रस्ताव पत्र 20.9.2005 के प्रश्न सं0-11 (क), 11(ख), 11(ग), 11(घ), 11(ड.) के असत्य उत्तर दिये तथा प्रश्न संख्या 11(झ) के उत्तर में गलत रूप से विवरण दिया कि उसके स्वास्थ्य की स्थिति अच्छी रही है। प्रश्नों के उत्तर उसने जाबूझकर बदनियती से एवं गलत ढंग से बीमा प्राप्त करने के उद्देश्य से सही विवरण नहीं दिये थे। उत्तर में वर्णित तथ्य मृत्यु उपरान्त् कराई गई विभागीय आवश्यक जाॅंच से असत्य पाये गये क्योंकि प्रस्ताव पत्र प्रस्तुत करने के लगभग दो वर्ष पूर्व से वह जोड़ों के दर्द व गुर्दे की बीमारी से पीडि़त रही थी तथा उसने चिकित्सक की परामर्श ली थी एवं इलाज करवाया था। यदि वह इन प्रश्नों का सही उत्तर देती तो विपक्षी निगम उसका बीमा करने से मना कर देते। मृतक बीमेदार द्वारा जानबूझकर परम सद्विश्वास के सिद्धान्त के विरूद्ध धोखाधड़ी की नीयत से अपने स्वास्थ्य के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण व सारवान तथ्यों को छिपाकर बीमा करवाया गया। क्षेत्रीय कार्यालय कानपुर द्वारा मृत्यु दावा पर 

 

 


                    (  3  )
    
पुर्वविचार के उपरान्त् मण्डल कार्यालय फैजाबाद द्वारा लिये गये दावा नकारने के निर्णय की पुष्टि की गई जिसकी सूचना पंजीकृत पत्र के माध्यम से परिवादी दावेदार को दी गई। 
    
    मैं पत्रावली में दाखिल साक्ष्य परिवादी तथा विपक्षी का अवलोकन किया। इस परिवाद में स्व0 अन्नपूर्णा गुप्ता ने मु0 1,00,000=00 की टेबिल नं0-14 इन्डाउमेंट पाॅलिसी सं0-215520927 दि0 21.9.2005 को लिया था। स्व0 अन्नपूर्णा गुप्ता की मृत्यु दि0 17.3.2007 को जावित्री अस्पताल तेलीबाग लखनऊ में किडनी फेल जो जाने से हुई। इस परिवाद में यह विवाद है कि स्व0 अन्नपूर्णा गुप्ता पाॅलिसी लेने से पहले बीमार थी और उन्होंने अपनी बीमारी के तथ्य को विपक्षी से पाॅलिसी लेते समय जानबूझ कर छिपाया है और अपनी स्वस्थता के विषय में सही जानकारी नहीं दिया है। पाॅलिसी लेते समय वह स्वस्थ नहीं थी, इसलिए अंकुश गुप्ता के आवेदन पर बीमा धनराशि देने से अस्वीकार कर दिया। परिवाद के अनुसार बीमा धारक पहले से बीमार नहीं थी। विपक्षी के डाक्टरों ने डाक्टरी कराने के उपरान्त् पाॅलिसी अन्नपूर्णा गुप्ता को दिया था। विपक्षी द्वारा अन्नपूर्णा गुप्ता के सम्बन्ध में कहाॅं-कहाॅं इलाज कराया जाॅंच रिपोर्ट कागज सं0-8ख/1 लगायत 8ख/7 प्रेषित किया है और जाॅंच आख्या के समर्थन में धर्मेन्द्र पाल पाराशर का शपथीय साक्ष्य दिया है। जाॅंच आख्या के अनुसार अन्नपूर्णा देवी की पाॅलिसी लेने से 4-5 वर्ष पहले से जोड़ों में दर्द की बीमारी थी, जिसका इलाज अवध आर्थो सेन्टर फैजाबाद में डा0 अब्दुस्सलाम के यहाॅं करवाया। इलाज के सम्बन्ध में जाॅंच आख्या में कहा है कि डा0 अब्दुस्सलाम ने दि0 26.7.2003, 24.3.2005 और दि0 28.6.2006 को इलाज किया। इसके बाद दि0 13.3.2007 को एस0जी0पी0जी0आई0 लखनऊ में जाॅंच करवाया। अन्त में दि0 17.3.2007 को जावित्री अस्पताल तेलीबाग लखनऊ में किडनी फेल होने से अन्नपूर्णा गुप्ता की मृत्यु हो गयी। अन्नपूर्णा गुप्ता ने दि0 20.9.2005 को स्वास्थ्य परीक्षण के बाद विवादित पाॅलिसी मु0 1,00,000=00 की लिया। अन्नपूर्णा गुप्ता के जोड़ो में दर्द की बीमारी थी, जिसका अब्दुस्सलाम ने इलाज किया। जोड़ों का दर्द प्राणघातक नहीं होता। यह 45-50 वर्ष के ऊपर उम्र वालों को हो जाता है, लेकिन इससे किसी व्यक्ति की मृत्यु नहीं होती। इसके उपरान्त् अन्नपूर्णा गुप्ता को कोई ऐसी बीमारी नहीं थी जिससे उसकी मृत्यु हो सकती थी।  पी0जी0आई0 लखनऊ की जाॅंच रिपोर्ट जो  

 

 


                    (  4  )

मार्च 2007 की है उसका विवरण कागज सं0-8ख/7 प्रेषित किया गया है जाॅंच के सम्बन्ध में है लेकिन इस जाॅंच में कोई ऐसी बात नहीं आयी है जिससे यह स्पष्ट हो कि अन्नपूर्णा गुप्ता को पालिसी लेने से 4-5 साल पहले से बीमारी थी। इस प्रकार किडनी फेल होने की वजह से अन्नपूर्णा गुप्ता की मृत्यु होना कहा जाता है। किडनी फेल होने के कई कारण होते हैं। वायरस का हमला किडनी में हुआ है या कोई ऐसी दवा दी गयी हो जिससे अन्नपूर्णा गुप्ता के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो उससे किडनी फेल हो गयी हो लेकिन विपक्षी द्वारा कोई ऐसा साक्ष्य प्रेषित नहीं किया गया है, जिससे यह स्पष्ट हो कि दि0 17.3.2007 के पहले या पालिसी लेने के पहले कोई प्राणघातक बीमारी थी और उस तथ्य को पालिसी लेते समय अन्नपूर्णा गुप्ता ने छिपाया। बीमारी कभी भी हो सकती है। बीमारी हल्की प्रारम्भ हो सकती है बीमारी अचानक गम्भीर भी हो सकती है। इस प्रकार विपक्षीगण से जो पालिसी अन्नपूर्णा गुप्ता ने लिया उसके  पौने दो साल बाद मरी। साक्ष्य से यह साबित होता है कि अन्नपूर्णा गुप्ता के पालिसी लेने के पहले कोई प्राणघातक बीमारी नहीं थी। इस प्रकार विपक्षी ने परिवादी द्वारा अपनी माॅं अन्नपूर्णा गुप्ता की पाॅलिसी के सम्बन्ध में बीमित धनराशि की जो माॅंग किया है वह सही किया है और विपक्षी ने गलत रूप से बीमित धनराशि देने से इन्कार किया है। इस प्रकार परिवादी का परिवाद विपक्षी के विरूद्ध अंशतः स्वीकार तथा अंशतः खारिज किये जाने योग्य है।  

                    आदेश

    परिवादी का परिवाद विपक्षी के विरूद्ध अंशतः स्वीकार तथा अंशतः खारिज किया जाता है। परिवादी का परिवाद विपक्षी के विरूद्ध पाॅलिसी सं0-215520927 इन्डाउमेन्ट एश्योरेन्स मु0 1,00,000=00 का स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि मु0 1,00,000=00 बीमित धनराशि परिवादी को निर्णय एवं आदेश के एक माह के अन्दर अदा करें। यदि परिवादी को विपक्षी उक्त दिये गये समय के अन्दर उक्त धनराशि की अदायगी नहीं करता है, तो परिवादी विपक्षी से 12 प्रतिशत  सालाना साधारण ब्याज निर्णय एवं आदेश की तिथि से तारोज वसूली प्राप्त 

 

 


                    (  5  )

करने का अधिकारी होगा। इसके अतिरिक्त परिवादी विपक्षी से मु0 3,000=00 वाद व्यय एवं मु0 5,000=00 मानसिक क्षतिपूर्ति भी प्राप्त करने का अधिकारी होगा। 


    (विष्णु उपाध्याय)         (माया देवी शाक्य)              (चन्द्र पाल)              
               सदस्य                  सदस्या                     अध्यक्ष     
     
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 12.02.2016 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया  गया।
    

           (विष्णु उपाध्याय)         (माया देवी शाक्य)              (चन्द्र पाल)           
          सदस्य                 सदस्या                     अध्यक्ष    

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE MR. CHANDRA PAAL]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. MAYA DEVI SHAKYA]
MEMBER
 
[HON'BLE MR. VISHNU UPADHYAY]
MEMBER

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