Uttar Pradesh

Chanduali

CC/38/2015

Angad Singh - Complainant(s)

Versus

L.I.C - Opp.Party(s)

gyanedar Kumar Singh

09 Mar 2018

ORDER

District Consumer Disputes Redressal Forum, Chanduali
Final Order
 
Complaint Case No. CC/38/2015
 
1. Angad Singh
Vill-Mirzapur Po-Hetampur Dist Chandauli
Chandauli
UP
...........Complainant(s)
Versus
1. L.I.C
Chandauli
Chandauli
UP
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE Ramjeet Singh Yadav PRESIDENT
 HON'BLE MR. Lachhaman Swaroop MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
Dated : 09 Mar 2018
Final Order / Judgement
न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, चन्दौली।
परिवाद संख्या 38                                सन् 2015ई0
अंगद सिंह पुत्र जगदीश सिंह ग्राम मिर्जापुर थाना धानापुर जिला चन्दौली।
                                            ...........परिवादी                                                                                                                                    बनाम
1-वरिष्ठ मण्डल प्रबंधक भारतीय जीवन बीमा निगम मण्डल कार्यालय वाराणसी।
2-शाखा प्रबंधक भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा चन्दौली जिला चन्दौली।
                                            .............................विपक्षीगण
उपस्थितिः-
 रामजीत सिंह यादव, अध्यक्ष
 लक्ष्मण स्वरूप, सदस्य
                           निर्णय
द्वारा श्री रामजीत सिंह यादव,अध्यक्ष
1- परिवादी ने यह परिवाद विपक्षीगण से बीमा की धनराशि रू0 100000/- एवं शारीरिक,मानसिक आर्थिक क्षति की क्षतिपूर्ति तथा मुकदमा खर्च के रूप में कुल रू0 150000/- दिलाये  जाने हेतु प्रस्तुत किया है।
2- परिवादी की ओर से परिवाद प्रस्तुत करके संक्षेप में कथन किया गया है कि परिवादी की माॅं चम्पा देवी पत्नी जगदीश सिंह ग्राम मिर्जापुर जिला चन्दौली के नाम से विपक्षी के यहाॅं से जीवन सरल बीमा पालिसी संख्या 287812027 (लाभ सहित) प्रस्ताव तिथि दिनांक 30-12-2010 को ली गयी जिसका वार्षिक प्रीमियम 5134/-रहा। परिवादी अपने पालिसी के प्रीमियम का भुगतान समय से करता रहा और कभी भी प्रीमियम जमा करने में बिलम्ब नहीं किया। दिनांक 31-5-2012 को पालिसी धारक की मृत्यु हो गयी। तत्पश्चात परिवादी ने बीमा कम्पनी को बीमा पालिसी के भुगतान हेतु सभी साक्ष्यों के साथ प्रार्थना पत्र दिया। विपक्षी बीमा कम्पनी ने बीमा पालिसी के भुगतान में तरह-तरह के टाल-मटोल करते हुए बीमा पालिसी का भुगतान नहीं किया तब परिवादी ने रजिस्टर्ड डाक से एवं मेल के द्वारा विपक्षी को सूचना दिया किन्तु विपक्षीगण टाल-मटोल करते रहे। परिवादी ने दिनांक 9-6-2015 को अपने अधिवक्ता के माध्यम से विपक्षी को कानूनी नोटिस दिया किन्तु विपक्षीगण जानबूझकर न तो बीमा धन का भुगतान किये और न ही कानूनी नोटिस का जबाब दिये। अतः परिवादी ने  यह परिवाद प्रस्तुत किया है।
3- विपक्षी की ओर से जबाबदावा प्रस्तुत करके संक्षेप में कथन किया गया है परिवादी की माॅं पालिसी धारक ने बीमा कराते समय अपने स्वास्थ्य के सम्बन्ध में जानबूझकर असत्य कथन करते हुए बीमा प्राप्त किया था, जो निरस्त किये जाने योग्य है। मृतक बीमादार बीमा लेने से पूर्व से ही रोग से ग्रसित थी और बीमा लेते समय परिवादी की माॅ ने परिवार रजिस्टर दाखिल किया था जिसमे उसकी आयु 62 वर्ष थी, जबकि प्रस्ताव लेते समय उसने अपनी उम्र 48 वर्ष दिखाया है जिससे बीमांकन प्रक्रिया प्रभावित हुई है। उक्त बीमा पालिसी के मृत्यु दावा को सक्षम अधिकारी, वरिष्ठ मण्डल प्रबन्धक विधि के समक्ष रखा गया जिसे विधि मान्य तरीके से अस्वीकार कर दिया गया। दावेदार द्वारा अपने बीमा दावा पर पुर्नविचार करने हेतु प्रार्थना पत्र दिया गया और क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा भी दिनांक 27-3-2015 को 
2
मण्डल कार्यालय के दावा अस्वीकार किये जाने की पुष्टि की गयी।क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा भी पत्रांक दिनांक 27-3-2015 के द्वारा बीमा दावेदार को सूचना दी गयी कि यदि समिति के निर्णय से असहमत हो तो बीमा लोकपाल,लखनऊ में अपील कर सकते है लेकिन परिवादी द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी। पालिसी धारक ने बीमा पालिसी लेते समय से ही साक्ष्यों से छेड-छाड करके अथवा तथ्यों को छिपाकर फ्राड तरीके से पालिसी ली गयी है। अतः परिवादी किसी भी तरह से अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है।
4- परिवादी की ओर से परिवादी अंगद सिंह का शपथ पत्र दाखिल किया गया है, तथा दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में कानूनी नोटिस की कार्बन प्रति,परिवार रजिस्टर की छायाप्रति,बीमा पालिसी की छायाप्रति,बीमा कम्पनी द्वारा परिवादी के बीमा क्लेम को निरस्त करने के पत्र की छायाप्रति,परिवादी द्वारा क्षेत्रीय प्रबन्धक भारतीय जीवन बीमा निगम,कानपुर को प्रेषित प्रार्थना पत्र एवं शपथ पत्र की छायाप्रति,प्रीमियम जमा करने की रसीद की छायाप्रति,परिवादी द्वारा बीमा कम्पनी को ई मेल द्वारा प्रेषित प्रार्थना पत्र की छायाप्रति,मण्डल प्रबन्धक द्वारा परिवादी को भेजे गये पत्र की छायाप्रति,मृत्यु प्रमाण पत्र,ई-मेल द्वारा बीमा कम्पनी को भेजे गये सूचना की छायाप्रति,राशन कार्ड की छायाप्रति, रजिस्ट्री रसीद की मूल प्रतियाॅं दाखिल की गयी है। 
विपक्षी की ओर से स0प्र0अ0(विधि) गिरजा शंकर का शपथ पत्र दाखिल किया गया है। तथा दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में सहायक सचिव(ग्रा0सं0प्र0) के पत्र दिनांकित 27-3-2015 की छायाप्रति,वरिष्ठ मण्डल प्रबन्धक के पत्र दिनांकित 18-5-2015 की छायाप्रति,प्रबंधक दावा के पत्र दिनपांक 13-6-2015 की छायाप्रति, जगदीश सिंह के शपथ पत्र की छायाप्रति,वरिष्ठ मण्डल प्रबन्धक के पत्र दिनांकित 15-2-2014 की छायाप्रति,परिवार रजिस्टर की छायाप्रति,अंगद सिंह के शपथ पत्र की छायाप्रति,वरिष्ठ मण्डल प्रबन्धक के पत्र दिनांकित 15-2-2014 की छायाप्रति,प्रोफार्मा डी की छायाप्रति,चम्पा देवी के पालिसी प्रोफार्मा की छायाप्रतियाॅ,राशन कार्ड की छायाप्रति,चम्पा देवी के भारत निर्वाचन आयोग के पहचान पत्र की छायाप्रति,चम्पादेवी के फोटो की छायाप्रति,अंगद कुमार द्वारा प्रेषित ई-मेल की छायाप्रति,प्रबन्धक(दावा) के पत्र दिनांकित 15-2-2014 की छायाप्रति, मृत्यु दावा निरस्त करने की अनुसंशा सम्बन्धित प्रपत्र मेडिकल ओपीनियन की छायाप्रति,बेड-हेड-टिकट के विवरण की छायाप्रति,प्रबन्धक दावा के पत्र दिनांकित 20-12-2013 तथा दिनांकित 10-12-2013 की छायाप्रतियाॅं,चम्पा देवी के बी0एच0यू0 में इलाज सम्बन्धी पर्चा की छायाप्रतियाॅं मेडिकल ओपीनियन प्राप्त करने के प्रपत्र की छायाप्रति,दावा जांच रिर्पोट(गोपनीय) की छायाप्रति,चम्पा देवी के मृत्यु प्रमाण पत्र की छायाप्रति,मृत्यु दावा के सम्बन्ध में जांच पडताल से सम्बन्धी प्रपत्र की छायाप्रतियाॅं,बीमाधारक की मृत्यु के सम्बन्ध में प्रबन्धक दावा भारतीय जीवन बीमा निगम को प्रेषित प्रपत्र की छायाप्रति,चम्पा देवी के बीमा से सम्बन्धित डाटासीट की छायाप्रतियाॅं, अंगद सिंह  के शपथ  पत्र  की  छायाप्रति, दावा  अर्हक पत्रक की 
3
छायाप्रति,अभिकर्ता की गोपनीय रिर्पोट की छायाप्रति,मृत्यु प्रमाण पत्र की छायाप्रति,प्रबन्धक दावा द्वारा परिवादी को प्रेषित पत्र दिनपांकित 24-4-2013,11-3-2013 तथा 21-5-2012 की छायाप्रतियाॅं,दावेदार के संक्षिप्त बयान की छायाप्रति,दाह संस्कार प्रमाण पत्र की छायाप्रति,राशन कार्ड की छायाप्रति,बीमा की किस्त जमा करने की रसीद की छायाप्रति,बीमा पालिसी की छायाप्रति,स्टेट्स रिर्पोट की छायाप्रतियाॅं,अंगद कुमार के बैंक पासबुक की छायाप्रति,परिवादी द्वारा वरिष्ठ शाखा प्रबंधक भारतीय जीवन बीमा निगम को चम्पा देवी के मृत्यु के सम्बन्ध में दी गयी सूचना की छायाप्रति,दावा अर्हता पत्रक की छायाप्रति,अस्पताल में इलाज के प्रमाण पत्र की छायाप्रति,बीमा किस्त जमा करने की रसीद की छायाप्रति,जगदीश सिंह के बैंक के पासबुक की छायाप्रति,संदर्भ-वा0म0का0/दावा दिनांकित 29-7-2016 की मूल प्रति दाखिल की गयी है। 
5- उभय पक्ष के अधिवक्तागण के तर्को को सुना गया है। पक्षकारों द्वारा दाखिल लिखित तर्को एवं पत्रावली का सम्यक रूपेण परिशीलन किया गया।
6- परिवादी की ओर से मुख्य रूप से यह तर्क दिया गया है कि बीमाधारक चम्पा देवी ने विपक्षी भारतीय जीवन बीमा निगम से दिनांक 30-12-2010 को बीमा पालिसी लिया था। बीमाधारक अपने जीवन काल में पालिसी की प्रीमियम समय से जमा करती रही। दिनांक 31-5-2012 को बीमाधारक चम्पा देवी की आकस्मिक मृत्यु हो गयी, तब परिवादी जो उपरोक्त बीमा पालिसी में नामिनी है ने क्लेम हेतु आवेदन किया लेकिन विपक्षी जानबूझकर क्लेम नहीं दिये और परिवादी को बार-बार शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताडित किया जाता रहा। जीवन बीमा निगम की पालिसी प्रशिक्षित एजेण्ट के माध्यम से दी जाती है और सम्पूर्ण जांच पडताल करके ही पालिसी धारक को पालिसी आवंटित की जाती है। विपक्षी का यह कहना गलत है कि बीमाधारक पालिसी लेते समय किसी रोग से ग्रस्त थी अतः परिवादी विपक्षी से बीमा की धनराशि तथा शारीरिक मानसिक क्षति व वाद व्यय आदि हेतु क्षतिपूर्ति प्राप्त करने की अधिकारी है।
7- इसके विपरीत विपक्षी भारतीय जीवन बीमा निगम की ओर से मुख्य रूप से यह तर्क दिया गया है कि पालिसी धारक चम्पा देवी ने जीवन बीमा पालिसी लेते समय अर्हताओं से छेड-छाड किया था तथा झूठा कथन करके पालिसी प्राप्त कियाथा। बीमाधारक चम्पा देवी बीमा कराने के बहुत पहले से ही टीवी के बीमारी से पीडित थी और इसलिए सक्षम अधिकारी द्वारा उनका क्लेम स्वीकार नहीं किया गया। पालिसी धारक ने पालिसी लेते समय साक्ष्य के रूप में जो कागजात पालिसी स्वीकार होने के लिए दिया था उस अभिलेखों में झूठा कथन किया गया है जिसमे चम्पा देवी की मृत्यु उल्टी होने के कारण दिखाया गया है जबकि चम्पा देवी मधुमेह,क्षयरोग,उच्च या निम्न रक्तचाप,कैसर,मिर्गी,जल संग्रह,कोढ एवं अन्य किसी रोग से पीडित न होने का कथन पालिसी लेते समय कियाथा जबकि मेडिकल अभिलेखों से यह स्पष्ट है कि चम्पा देवी देवी TYPE 11DM With HTM CVA With 
4
 CRF Wiith PULMONORY With HYPOTHRODISW With Shock रोग से ग्रस्त थी। इसी प्रकार परिवार रजिस्टर के अनुसार बीमा लेते समय चम्पा देवी की उम्र लगभग 62 वर्ष थी जबकि चम्पा देवी ने बीमा पालिसी लेते समय अपनी उम्र48 वर्ष होना दिखाया था। इस प्रकार बीमा धारक ने बीमा कराते समय अपनी आयु तथा स्वास्थ्य के सम्बन्ध में असत्य कथन करते हुए सही तथ्यों को छिपाया था और इसीलिये मण्डल कार्यालय गौरीगंज भेलूपुर वाराणसी द्वारा उनका मृत्यु दावा अस्वीकार किया गया है और इसका प्रतिउत्तर भी परिवादी द्वारा नहीं किया गया है। अतःपरिवादी का परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
8- उभय पक्ष के तर्को को सुनने तथा पत्रावली के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि प्रस्तुत मामले में यह स्वीकृत तथ्य है कि बीमाधारक चम्पा देवी ने विपक्षी भारतीय जीवन बीमा निगम से दिनांक 30-12-2010 को रू0 100000/- की जीवन बीमा पालिसी ली थी। यह भी स्वीकृत तथ्य है कि बीमाधारक की मृत्यु दिनांक 31-5-2012 को हुई और तब तक वह नियमानुसार प्रीमियम जमा करती रही। यह भी स्वीकृत तथ्य है कि परिवादी उक्त बीमा पालिसी में नामिनी है। विपक्षी के अभिकथनों के अनुसार बीमा का क्लेम इस आधार पर निरस्त किया गयाथा कि बीमाधारक चम्पा देवी बीमा कराने के पूर्व से ही रोगग्रस्त थी और उन्होंने इस तथ्य को जानबूझकर छिपाया था। इसी प्रकार बीमा पालिसी लेते समय उनकी उम्र 62 वर्ष थी जबकि उन्होेने अपनी उम्र 48 वर्ष होना बताया था। अतः प्रस्तुत मामले में मुख्य विचारणीय प्रश्न यही है कि क्या बीमाधारक चम्पा देवी बीमा पालिसी लेने के 5 वर्ष पूर्व से ही
Thpe 11DM With HTN With CVA With CRF With Pulmonory TB With HYPOTHYRODISM With SHOCK रोग से ग्रस्त रही है और क्या बीमा लेते समय उनकी उम्र 62 थी जिसे छिपाते हुए उन्होंने बीमा पालिसी लिया था ?
9- चूंकि यह अभिकथन विपक्षी की ओर से किया गया है कि बीमा लेने के 5 वर्ष पूर्व से बीमाधारक चम्पा देवी विभिन्न रोगों से ग्रस्त थी और उनकी उम्र 62 वर्ष थी जिसे छिपाते हुए उन्होंने बीमा पालिसी लिया था। अतः इन तथ्यों को सिद्ध करने का भार मुख्य रूप से विपक्षी पर ही है क्योंकि परिवादी ने इन तथ्यों से इन्कार किया है। जहाॅंतक बीमा पालिसी लेते बीमाधारक के उम्र का प्रश्न है तो इस सम्बन्ध में परिवादी की ओर से परिवार रजिस्टर की सत्यप्रतिलिपि की छायाप्रति कागज संख्या 2ग/2 दाखिल है जिसमे चम्पा देवी की जन्मतिथि दिनांक 1-1-1963 दर्ज है तथा मृत्यु की तिथि दिनांक 31-5-2012 दर्ज है। बीमा पालिसी सन् 2010 में ली गयी है। अतः इससे यही स्पष्ट होता है कि बीमा पालिसी लेते समय चम्पा देवी की उम्र लगभग 48 वर्ष थी। इसी प्रकार परिवादी की ओर से राशन कार्ड की छायाप्रति 2्रग/14 दाखिल की गयी है इसमे भी बीमाधारक चम्पा देवी की आयु 38 वर्ष लिखी गयी है यह राशनकार्ड दिनांक 17-7-2001 का बना है इसमे भी यही स्पष्ट होता है कि बीमा पालिसी जो सन् 2010 में ली गयी थी उस समय मृतका की उम्र 48 वर्ष के करीब थी। स्वयं विपक्षी की ओर से भी परिवार रजिस्टर की छायाप्रति कागज संख्या14ग/7 दाखिल है उसके अनुसार भी 
5
बीमाधारक की जन्मतिथि 1-1-1963 है। राशन कार्ड की छायाप्रति 14ग/23 में दिनांक 10-8-2006 को चम्पा देवी की आयु 50 वर्ष है इसके अनुसार बीमा लेते समय उनकी उम्र 54 वर्ष थी। विपक्षी के अधिवक्ता द्वारा मुख्य रूप से यह तर्क दिया गया है कि बीमाधारक चम्पा देवी ने बी0एच0यू0 अस्पताल वाराणसी में दिनांक 7-5-2012 को अपना इलाज कराया था जिसका पर्चा कागज संख्या 14/35 है इसमे उनकी उम्र 60 वर्ष दर्ज है इससे स्पष्ट है कि उन्होंने अपनी उम्र छिपाकर बीमा कराया था किन्तु विपक्षी के उपरोक्त तर्क में कोई बल नहीं पाया जाता है क्योंकि इलाज के पर्चे पर लिखी हुई उम्र को उम्र प्रमाणित उम्र नहीं माना जा सकता है। उम्र के सम्बन्ध में स्कूल का प्रमाण पत्र और यदि स्कूल का प्रमाण पत्र उपलब्ध न हो तो परिवार रजिस्टर या जन्म मृत्यु के रजिस्टर को ही विश्वसनीय माना जायेगा। डाक्टर के पर्चे पर लिखी गयी प्रामाणिक उम्र नहीं मानी जा सकती है क्योंकि प्रायः पर्चा बनाने वाले कर्मचारी रोगी को देखकर उसकी उम्र अन्दाज से लिख देते है। अतः विपक्षी यह सिद्ध करने में विफल रहा है कि बीमा पालिसी लेते समय मृतका की उम्र 62 वर्ष थी।
10- बीमाधारक की बीमारी के सम्बन्ध में विपक्षी की ओर से केवल बी0एच0यू0अस्पताल वाराणसी में बीमाधारक के इलाज होने का अभिलेख दाखिल किया गया है जो कागज संख्या 14ग/35 ता 14ग/37 है इसके अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि चम्पा देवी इलाज हेतु दिनांक 7-5-2012 को बी0एच0यू0 अस्पताल में भर्ती हुई थी और दिनांक 25-5-2012 को डिस्चार्ज हुई थी इसके पहले चम्पा देवी का इलाज कभी किसी बीमारी के लिए हुआ हो ऐसा कोई अभिलेख विपक्षी की ओर से दाखिल नहीं किया गया है। 
11- विपक्षी के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से यह तर्क दिया कि कागज संख्या 14ग/36 में बी0एच0यू0 के डाक्टर ने चम्पा देवी के रोग की जो समरी लिखा है उसमे 5 वर्ष से टी-2 डी0एम0होना लिखा है इससे यही स्पष्ट है कि चम्पा देवी कम से कम 5 वर्ष पूर्व से ही अर्थात बीमा लेने के भी 3 वर्ष पूर्व से गम्भीर डायविटीज से पीडित थी और उन्होंने इस तथ्य को छिपाकर बीमा लिया था। 
12- इसके जबाब में परिवादी के अधिवक्ता द्वारा यह तर्क दिया गया है कि चम्पा देवी के डायविटीज रोग से ग्रस्त होने की कभी कोई जानकारी किसी को नहीं रही और न ही उनका इसके लिए कही इलाज हुआ। अतः बीमा पालिसी लेने के लगभग डेढ वर्ष बाद यदि डायविटीज का रोग पाया जाता है तो इससे यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि बीमाधारक ने अपनी बीमारी को छिपाकर बीमा पालिसी लिया था।
13- परिवादी के अधिवक्ता द्वारा तर्क दिया गया है कि स्वयं विपक्षी की ओर से जांच अधिकारी की जो आख्या कागज संख्या 14ग/41 लगा014ग/43 दाखिल है उसमे जांच अधिकारी ने स्पष्ट रूप से यह कहा है कि बीमाकर्ता दिनांक 5-5-2012से दिनांक 25-5-2012 तक बी0एच0यू0 अस्पताल वाराणसी में भर्ती रही 
6
और उपचार के पश्चात दिनांक 31-5-2012 को घर पर ही उसकी मृत्यु हुई है इससे पहले बीमाधारक का कहीं कोई इलाज होने का रिकार्ड नहीं है। जांचकर्ता ने यह भी कहा है कि-’’यदि उचित हो तो दावा भुगतान कर सकते है मै अपनी संस्तुति करता हॅू’’
इस प्रकार स्वयं विपक्षी द्वारा दाखिल अभिलेखों से ही यह बात भलीभांति सिद्ध हो जाती है कि बीमाधारक का बीमा प्राप्त करने के पूर्व कही भी किसी बीमारी के लिए कोई इलाज नहीं हुआ था क्योंकि वह किसी रोग से ग्रस्त नहीं थी और इसीलिए जांच अधिकारी ने क्लेम के भुगतान किये जाने की संस्तुति किया है।
14- इस सम्बन्ध में परिवादी की ओर से 2016(।)सी.पी.आर.566(एनसी)भारतीय जीवन बीमा निगम तथा अन्य बनाम कुल्लासांथी तथा अन्य की विधि व्यवस्था का हवाला दिया गया है जिसमे माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग नई दिल्ली द्वारा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है कि जहाॅं बीमा निगम द्वारा ऐसा कोई साक्ष्य प्रस्तुत न किया गया हो जिससे यह साबित हो कि बीमाधारक का इलाज बीमा पालिसी लेने के पहले से ही किसी अस्पताल में हुआ हो और बीमित की मृत्यु ह्दयरोग के कारण सांस रूक जाने के कारण हुई है और उस समय उसे ब्लड प्रेशर व डायविटीज होना पाया गया हो तब भी बीमा कम्पनी परिवादी कोबीमा की धनराशि अदा करने के दायित्व से मुक्त नहीं हो सकता क्योंकि डायविटीज व ब्लडप्रेशर ऐसी बीमारियां है जो कई बार रोगी को पता ही नहीं चल पाती,क्योंकि इसका कोई गम्भीर लक्षण रोगी में दिखाई नहीं पडता ऐसी स्थिति में इन बीमारियों का पहले से मौजूद होना नहीं माना जा सकता है बल्कि ये बीमारियां अकस्मात भी प्रकट हो सकती है। उपरोक्त विधि व्यवस्था के तथ्य एवं परिस्थितियाॅं प्रस्तुत मामले से बिल्कुल मेल खाते है क्योंकि प्रस्तुत मामले में भी विपक्षी द्वारा ऐसा कोई साक्ष्य नहीं दिया गया है जिससे यह सिद्ध हो सके कि बीमाधारक मृत्यु के पहले से डायविटीज व अन्य रोगों से पीडित थी और बीमा कराने के पूर्व उसका कभी भी किसी अस्पताल में इलाज हुआ था।
15- इसी प्रकार परिवादी की ओर से 2014(4)सी.पी.आर.711(एनसी) में0आई0सी0आई0सी0आई0 प्रोडेंसियल लाइफ इश्योरेंस कम्पनी बनाम श्रीमती बीना शर्मा तथा अन्य की विधि का भी हवाला दिया गया है जिसमे माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है कि जहाॅं विपक्षी बीमा कम्पनी ने बीमाधारक के डायविटीज से पीडित होने का अभिकथन किया हो,किन्तु इस तथ्य को सिद्ध करने हेतु कोई विश्वसनीय साक्ष्य न दे सका हो,वहाॅं बीमा कम्पनी बीमा की धनराशि अदा करने से इन्कार नहीं कर सकती।
16- इसी प्रकार परिवादी की ओर से 2005(2)सी.पी.आर.356 भारतीय जीवन बीमा निगम बनाम हरप्रीत कौर की विधि व्यवस्था का भी हवाला दिया गया है जिसमे माननीय जम्मू और कश्मीर राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग द्वारा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है कि जहाॅं विपक्षी बीमा कम्पनी बीमाधारक के बीमा 
7
प्राप्त करने के पूर्व से अस्वस्थ होने के तथ्य को सिद्ध न कर पायी हो वहाॅं वह बीमा धनराशि अदा करने के लिए बाध्य होगी।
17- उपरोक्त विधि व्यवस्थाओं के जबाब में विपक्षी भारतीय जीवन बीमा निगम की ओर से कोई विधि व्यवस्था दाखिल नहीं की गयी है। अतः उपरोक्त विधि व्यवस्थाओं के प्रकाश में प्रस्तुत मुकदमें के तथ्यों एवं परिस्थितियों के परिशीलन से यह स्पष्ट है कि प्रस्तुत मामले में विपक्षी भारतीय जीवन बीमा निगम इस तथ्य को सिद्ध करने में पूर्णतः विफल रही है कि बीमाधारक चम्पा देवी बीमा पालिसी लेने के 5 वर्ष पूर्व से ही डायविटीज,टीवी आदि रोगों से ग्रस्त थी और उन्होंने इस तथ्य को छिपाते हुए बीमा पालिसी प्राप्त किया था। विपक्षी की ओर से ऐसा कोई साक्ष्य नहीं दिया गया है जिससे यह सिद्ध हो सके कि बीमा पालिसी लेने के पूर्व बीमाधारक किसी बीमारी से ग्रस्त थी और उसका कही कोई इलाज हुआ था। अतः माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग नई दिल्ली तथा माननीय राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग जम्मू कश्मीर द्वारा उपरोक्त विधि व्यवस्थाओं में प्रतिपादित सिद्धान्त के प्रकाश में फोरम की राय में प्रस्तुत मामले में भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा परिवादी का मृत्यु दावा खारिज किया जाना सेवा में कमी माना जायेगा और इस प्रकार विपक्षी भारतीय जीवन बीमा निगम परिवादी को बीमित धनराशि अदा करने के लिए विधिक रूप से बाध्य है। मुकदमें के तथ्यों एवं परिस्थितियों को देखते हुए परिवादी को शारीरिक एवं मानसिक क्षति की क्षतिपूर्ति हेतु रू0 2000/- तथा वाद व्यय हेतु रू0 1000/- दिलाया जाना भी न्यायोचित प्रतीत होता है और इस प्रकार परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है। 
                               आदेश
परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वे आज से 2 माह के अन्दर परिवादी को बीमा की बीमित धनराशि रू0 100000/-(एक लाख) तथा उस पर दावा दाखिल करने की तिथि 3-8-2015 से पैसा अदा करने की तिथि तक 8 प्रतिशत साधारण वार्षिक की दर से व्याज भी अदा करें। विपक्षीगण को यह भी आदेशित किया जाता है कि वे इसी अवधि में परिवादी को शारीरिक एवं मानसिक क्षति की क्षतिपूर्ति के रूप में रू0 2000/-(दो हजार) तथा वाद व्यय के रूप में रू0 1000/-(एक हजार) भी अदा करें।
(लक्ष्मण स्वरूप)                                      (रामजीत सिंह यादव)
 सदस्य                                                अध्यक्ष
                                                  दिनांकः9-3-2018
 
 
 
 
 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE Ramjeet Singh Yadav]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Lachhaman Swaroop]
MEMBER

Consumer Court Lawyer

Best Law Firm for all your Consumer Court related cases.

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!
5.0 (615)

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!

Experties

Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes

Phone Number

7982270319

Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.