Uttar Pradesh

Lucknow-I

CC/133/2018

AMAR SINGH - Complainant(s)

Versus

L.I.C - Opp.Party(s)

HARENDRA KUMAR SRIVASTAVA

22 Jan 2020

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. CC/133/2018
( Date of Filing : 28 Mar 2018 )
 
1. AMAR SINGH
.
...........Complainant(s)
Versus
1. L.I.C
.
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
  ARVIND KUMAR PRESIDENT
  SMT SNEH TRIPATHI MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 22 Jan 2020
Final Order / Judgement
      जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, प्रथम, लखनऊ।
                            परिवाद संख्याः-133/2018
उपस्थितः-श्री अरविन्द कुमार,  अध्यक्ष।
    श्रीमती स्नेह त्रिपाठी, सदस्य। 
 
     परिवाद प्रस्तुत करने की तारीखः-28.03.2018
परिवाद के फैसले की तारीखः-22.01.2020
 
अमर सिंह भदौरिया विकास अधिकारी (से0नि0) भारतीय जीवन बीमा निगम,    निवासी-18 कृष्णा कालोनी महानगर, लखनऊ।
                                                 ..............परिवादी।                                                                                               
                          बनाम
 
भारतीय जीवन बीमा निगम डिवीजनल आफिस 30 हजरतगंज लखनऊ द्वारा वरिष्ठ मण्डल प्रबन्धक।
                                                                  ...........विपक्षी।
आदेश द्वारा-श्री अरविन्द कुमार, अध्यक्ष।
                                        
                            निर्णय
                       
परिवादी ने प्रस्तुत परिवाद विपक्षी से पेन्शन से की गयी त्रुटिपूर्ण कटौती 29208/-रूपये 18 प्रतिशत ब्याज के साथ, मानसिक व शारीरिक क्षतिपूर्ति हेतु 1,00,000/-रूपये, एवं वाद व्यय के रूप में 30,000/-रूपये दिलाये जाने की प्रार्थना के साथ प्रस्तुत किया है।
संक्षेप में परिवाद के कथन इस प्रकार हैं कि परिवादी द्वारा अपने सेवा काल में लखनऊ कैन्ट शाखा (277) से एक पाॅलिसी जिसका डी0ओ0सी0-28.02.2002 मुबलिग-5,00,000/-तिमारी प्रीमियम 21517/-टी-टी-112-10(6) था, ली गयी थी, और उसकी सभी देय किश्तें नियमानुसार अदा करता रहा, जब तक की उसकी पूर्णावधि दस वर्ष पूरी नहीं हो गयी। इस बीच विपक्षी के कार्यालय द्वारा कोई भी सूचना नहीं दी गयी। दिनाॅंक-28.02.2012 को जब पाॅलिसी पूर्ण हो गयी तो विपक्षी द्वारा धनराशि का भुगतान कर दिया गया। पाॅलिसी लेने के लगभग 12 वर्षांे के बाद व पूर्ण भुगतान के 03 वर्षों के बाद इस आशय का पत्र वर्ष 2014 में विपक्षी के शाखा कार्यालय द्वारा प्रेषित किया गया कि कार्यालय की त्रुटिवश प्रीमियम पर आपको अधिक छूट दे दी गयी है, जिसकी सम्पूर्ण धनराशि 29,208/-रूपये वापस जमा करायी जाए। परिवादी द्वारा प्रीमियम की धनराशि कभी भी कम नहीं जमा की गयी जो प्रीमियम निगम द्वारा छूट के उपरान्त बताया गया वह जमा किया जाता रहा। विपक्षी द्वारा ही वर्ष 2002 से 2012 के बीच में कभी यह नहीं बताया गया कि विपक्षी द्वारा परिवादी को छूट ज्यादा दी गयी है। न ही अन्तिम भुगतान के समय ही कोई संज्ञान लिया गया। इस प्रकार लगभग 15 वर्षों के बाद यह कहना कि छूट ज्यादा दे दी गयी थी और धनराशि जमा करायी जाए, पूर्णतया विधि विरूद्ध है। परिवादी द्वारा विपक्षी को शिकायत की गयी, और धनराशि वसूली के बारे में जानकारी चाही गयी तो विपक्षी द्वारा दिनाॅंक-09.01.2017 को यह जानकारी दी गयी कि शिकायत दर्ज कर ली गयी है, जिसका निदान जल्द कर दिया जायेगा। परिवादी की शिकायत पर विपक्षी द्वारा कोई संज्ञान नहीं लिया गया। अप्रैल, 2016 में परिवादी की पेन्शन कम हो गयी तो डिवीजन से पत्र के माध्यम से जानना चाहा, परन्तु कोई जानकारी नहीं दी गयी। परिवादी द्वारा जनसूचना के माध्यम से जानकारी चाही गयी तो विपक्षी द्वारा बताया गया कि अंकेक्षण वसूली के तहत 7,302/-रूपये पेन्शन से कटौती की जा रही है जो प्रीमियम पर दी गयी अधिक छूट की धनराशि के बावत है। परिवादी द्वारा अपने प्रत्यावेदनों में मुख्य रूप से 1 बिन्दुओं को उदृहरित किया था जो इस प्रकार है-
1-पाॅलिसी प्रीमियम की गणना शाखा द्वारा की जाती है तो पालिसी धारक का क्या दोष है।
2-जरूरी नहीं था कि बढ़ी हुई प्रीमियम पाॅलिसी धारक को मंजूर होती क्योंकि प्रस्तावक अपनी आय व बचत के हिसाब से प्रीमियम का भार स्वयं निश्चित करता है। 
3-पाॅलिसी व एफ0पी0आर0 शाखा जारी करता है जो कि एक पाॅलिसी धारक एवं निगम के बीच अनुबन्ध माना जाता है।
4-भारतीय जीवन बीमा निगम का मूल मंत्र योगक्क्षेमहाम्यम तथा सद्भा है, क्या इस तरह की कमियाॅं पाॅलिसी धारकों में अविश्वास नहीं पैदा करेगी। 
5-क्या यहाॅं मानवाधिकार का हनन नहीं हो रहा है, क्योंकि गलती निगम करता है और उसका दण्ड उपभोक्ता को दिया जाता है।
6-क्या ऐसे कृत्यों से वरिष्ठ नागरिक के अधिकारों की अवहेलना नहीं हो रही है।
7-पेन्शनर की पेन्शन से बिना अवगत कराये इस तरह की त्रुटिपूर्ण धनराशि की वसूली नहीं करना चाहिए।
8-पेंशन से रिकवरी सक्षम अधिकारी के बिना अप्रूवल के की गयी है। अप्रूवल पाॅलिसी संख्या-213100995 का लिया गया है जो कि प्रार्थी की पाॅलिसी ही नहीं है।
9-गलती कहाॅं हुई किसने की इस पर न जाकर केवल त्रुटिपूर्ण रिकवरी पर ध्यान दिया गया है और इंत में इसका भी आभास नहीं होने दिया गया कि जब पत्र द्वारा जानने का अनुरोध किया गया था आप को भली भाॅति मालूम है कि पेंशनर की पेन्शन से त्रुटिपूर्ण रिकवरी बिना किसी गलती के नहीं की जा सकती है।
10-अवकाश प्राप्त कर्मचारी अथवा 05 साल के पहले दिये गये संस्था से आर्थिक लाभ जाने अनजाने में जो किया गया हो उसकी रिकवरी नहीं की जा सकती। उक्त के संबंध में मा0 उच्चतम न्यायालय की विधि व्यवस्था भी उद्हरित की गयी थी। 
11-निगम द्वारा परिवादी के प्रत्यावेदन में उल्लिख्ति किसी भी तथ्य पर कोई संज्ञान नहीं लिया गया, जबकि परिवादी उक्त विषयान्तक के संबंध में बहुत सारे प्रत्यावेदन योजित किये गये हैं। 
12-परिवादी सभी सुसंगत कागजातों के साथ पुनः इस आशा से यह प्रत्यावेदन दे रहा है कि परिवादी के प्रत्यावेदन पर विचार कर सम्यक कार्यवाही करने का कष्ट करेंगे जिससे परिवादी को किसी न्यायालय की शरण न लेनी पड़े।
दिनाॅंक-12.01.2018 को परिवादी द्वारा समस्त तथ्यों का उल्लेख करते हुए विपक्षी को प्रत्यावेदन योजित किया गया परन्तु विपक्षी द्वारा कोई संज्ञान नहीं लिया गया। परिवादी द्वारा अपने प्रत्यावेदन दिनाॅंकित-12.01.2018 द्वारा जानकारी करनी चाही तो कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दिया गया, जिससे परिवादी को मानसिक आघात पहुॅंचा। विपक्षी द्वारा परिवादी के पेन्शन से काटी गयी धनराशि आज तक भुगतान न करके तथा सम्यक कारण न बता कर सेवा में कमी की गयी है।
विपक्षी ने उत्तर पत्र प्रस्तुत करते हुए कथन किया कि परिवादी ने भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा कैण्ट, लखनऊ से एक पाॅलिसी संख्या-213100992, प्रारम्भ तिथि-28.02.2002 बीमा धनराशि-5,00,000/-रूपये लिया था। उक्त पाॅलिसी पर प्रीमियम सी0ई0आइ0एस0 रिबेट पर 05 प्रतिशत की छूट के स्थान पर 10 प्रतिशत छूट अभिलेखों में हेर-फेर कर प्राप्त किया था। उक्त पाॅलिसी का भुगतान दिनाॅंक-28.02.2012 को प्राप्त कर लिया। परिवादी ने 29208/-रूपये विपक्षी से छूट के रूप में अधिक प्राप्त कर लिया। इस संबंध में विपक्षी को आडिट के दौरान वर्ष 2014 में जानकारी हुई तब विपक्षी ने दिनाॅंक-09.10.2014 के पत्र द्वारा 29208/-रूपये पविादी से वापस करने को कहा। परन्तु परिवादी ने उक्त धनराशि वापस नहीं की। तब विपक्षी ने परिवादी की पेन्शन से 7302/-रूपये प्रतिमाह चार मासिक किस्त में नियमानुसार कटौती कर वसूल किया। परिवादी की पेन्शन से कटौती सस्ब् ;म्डच्स्व्ल्म्म्ैद्ध च्म्छैप्व्छ त्न्स्म्ै 1995 ैम्ब्ज्प्व्छ 49 के अन्तर्गत की गयी, तथा परिवादी को नियमानुसार सूचित भी कर दिया गया था। परिवादी का परिवाद कालबाधित है, अतः निरस्त होने योग्य है। परिवादी का परिवाद “ कन्ज्यूमर डिस्प्यूट” नहीं है, ऐसी स्थिति में फोरम को उक्त परिवाद को सुनने एवं निस्तारित करने का क्षेत्राधिकारी प्राप्त नहीं है। अतः परिवाद निरस्त होने योग्य है। परिवादी ने शाखा कैण्ट लखनऊ को आवश्यक पक्षकार नहीं बनाया है, ऐसी स्थिति में परिवाद पोषणीय नहीं है। विपक्षी द्वारा किसी प्रकार की सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है। 
उभयपक्ष ने शपथ पर अपना साक्ष्य दाखिल किया है।
अभिलेख का अवलोकन किया, जिससे प्रतीत होता है कि परिवादी ने एक बीमा पाॅलिसी 5,00,000/-रूपये की विपक्षी की कैण्ट शाखा, लखनऊ से ली थी और उस पर परिवादी जो विकास अधिकारी था, को पाॅंच प्रतिशत की छूट मिलनी थी, परन्तु उन्होंने 10 प्रतिशत की छूट प्राप्त की थी। उक्त पाॅलिसी की परिपक्वता के पश्चात उसकी सम्पूर्ण धनराशि का भुगतान परिवादी को विपक्षी ने कर दिया। उसके बाद आडिट द्वारा चेकिंग में यह पाया गया कि उक्त पाॅलिसी पर परिवादी को 05 प्रतिशत छूट मिलनी चाहिए थी, परन्तु उनको 10 प्रतिशत की छूट प्राप्त हुई और विपक्षी ने परिवादी को वर्ष 2014 में पत्र भेजा कि परिवादी 29208/-रूपये जमा करे। परन्तु परिवादी ने उक्त राशि जमा नहीं की। अतः परिवादी की पेन्शन से उपरोक्त राशि विपक्षी ने काट लिया। परिवादी के अनुसार जब पाॅलिसी परिपक्व है और उसका भुगतान हो गया, तब यह माना जायेगा कि उभयपक्ष के बीच पाॅलिसी के सन्दर्भ में हुआ एग्रीमेंट समाप्त हो गया। अतः विपक्षी को उक्त धनराशि-29208/-रूपये पेन्शन से काटने का हक नहीं था। विपक्षी द्वारा यह तर्क दिया गया कि परिवादी के अनुसार जब उभयपक्ष के बीच शर्त समाप्त हो गयी तब परिवादी एवं विपक्षी के बीच उपभोक्ता का सम्बन्ध भी समाप्त हो गया। अतः परिवादी यह वाद दायर नहीं कर सकता था और उन्होंने गलत तथ्यों को रखकर यह परिवाद दाखिल किया है।
परिवादी की ओर से (2015) 4 एस0सी0सी0 234 पर बल दिया गया, परन्तु  जिस निर्णय पर परिवादी ने बल दिया है वह निर्णय उपभोक्ता अधिनियम के अन्तर्गत नहीं था। परिवादी ने पुनः 2004 (1) डीस्र1118 पर भी बल दिया, परन्तु इस केस के तथ्य परिवादी द्वारा किये गये केस से भिन्न हैं। 
विपक्षी ने कहा कि परिवादी ने उस शाखा को पक्षकार नहीं बनाया है जहाॅं से उन्होंने पाॅलिसी ली थी। अतः उनका वाद चलने योग्य नहीं है। विपक्षी ने पुनः प्प् ;2013द्ध ब्ण्च्ण्श्रण् 178 ;छण्ब्ण्द्ध पर बल दिया और कहा कि यदि परिवादी ने बिना आपत्ति के राशि प्राप्त कर ली है, तब दोनों पक्षों के बीच में उपभोक्ता का सम्बन्ध समाप्त हो गया। विपक्षी ने पुनः प्प् ;2016द्ध ब्ण्च्ण्श्रण् 240 ;छण्ब्ण्द्ध पर बल दिया और कहा कि वाद का कारण उस दिन माना जायेगा, जिस दिन पाॅलिसी ली गयी थी, जो वर्ष 2002 का है और परिवादी ने वाद वर्ष 2018 में दाखिल किया है। अतः उनका वाद समय से बाधित है। इस पर परिवादी की ओर से कहा गया कि विपक्षी ने उनकी पेन्शन वर्ष 2015 में काटी है। अतः वाद का कारण उसी दिन से उत्पन्न माना जायेगा।
अभिलेख अवलोकन से यह तथ्य स्पष्ट है कि परिवादी को 05 प्रतिशत की छूट बीमा पाॅलिसी पर मिलनी चाहिए, परन्तु उनको 10 प्रतिशत की छूट मिली थी, जो गलत है, और पाॅलिसी की राशि का भुगतान परिवादी को 2012 में कर दिया गया था। परन्तु पेन्शन से 29208/-रूपये विपक्षी ने काट लिया है। अब प्रश्न यह है कि क्या पेन्शन से काटी गयी राशि के संबंध में उपभोक्ता फोरम कोई आदेश पारित कर सकता है, इस पर स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि पेन्शन के संबंध में कोई वाद उपभोक्ता फोरम में नहीं चल सकता है। अतः वाद क्षेत्राधिकार से बाहर होने के कारण स्वीकार नहीं किया जा सकता है। अतः परिवादी का परिवाद खारिज होने योग्य है।
                            आदेश
परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है। यदि परिवादी चाहे तो विधिक सलाह लेकर उचित फोरम में वाद दायर कर सकता है।
 
   (स्नेह त्रिपाठी)                                  (अरविन्द कुमार)
         सदस्य                                           अध्यक्ष
                                          जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, 
                                            प्रथम लखनऊ।                                                                 
 
 
 
 
 
 
 
[ ARVIND KUMAR]
PRESIDENT
 
 
[ SMT SNEH TRIPATHI]
MEMBER
 

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