न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, द्वितीय लखनऊ
परिवाद संख्या-370/2012
श्रीमती अलका पाण्डेय -परिवादिनी
बनाम
भारतीय जीवन बीमा निगम - विपक्षीगण
समक्ष
श्री संजीव शिरोमणि, अध्यक्ष
श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य
श्रीमती गीता यादव, सदस्य
द्वारा श्री संजीव शिरोमणि, अध्यक्ष
निर्णय
परिवाद अन्तर्गत धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986
परिवाद पत्र के अनुसार, परिवादिनी का कथन, संक्षेप में, यह है कि उसके पति द्वारा अपने जीवन काल में एक पाॅलिसी सं0 217258203 रू0 एक लाख की ली थी। परिवादिनी के पति श्री राजू पाण्डेय को नवम्बर 2009 के आखिरी सप्ताह में अचानक बुखार व खांसी हुयी थी, जिसका उपचार लोकल चिकित्सक से करवा लिया गया । बुखार व खांसी ठीक न होने पर दि0 6.12.09 को अचानक ज्यादा स्वास्थ खराब हो जाने के कारण लखनऊ मेडिकल कालेज में भर्ती कराया गया और दि0 7.12.2009 की सुबह उनकी मृत्यु हो गयी । मेडिकल कालेज के चिकित्सकों द्वारा परिवादिनी को बताया गया कि उसके पति मंे स्वाइन फ्लू के लक्षण थे और अत्यधिक खांसी व
बुखार की वजह से फेफड़ों में संक्रमण हो गया और सेप्टीसिमिया की वजह से मृत्यु हो गयी। परिवादिनी ने उक्त समस्त औपचारिकताओं की पूर्ति के उपरान्त बीमा क्लेम विपक्षी के समक्ष प्रस्तुत किया, जिसे विपक्षी ने यह कहकर निरस्त कर दिया कि उसके पति पाॅलिसी लेने से पूर्व डायबिटीज के मरीज थे, जिसे पाॅलिसी धारक ने बीमा लेते समय छुपाया था। ऐसा करके विपक्षी ने सेवा में कमी किया है और व्यापार विरोधी प्रक्रिया को अपनाया है, जिससे क्षुब्ध होकर परिवादी को वर्तमान परिवाद इस जिला मंच में संस्थित करने की आवश्यकता पड़ी, जिसके माध्यम से उसने विपक्षी से बीमा पाॅलिसी का भुगतान मय 18 प्रतिशत ब्याज सहित दिलाये जाने था मानसिक एवं शारीरिक कष्ट हेतु रू050,000/-एवं रू0 10,000/-वाद व्यय स्वरुप दिलाये जाने की प्रार्थना किया है।
विपक्षी ने प्रतिवाद पत्र में मृतक बीमा धारक द्वारा उक्त पाॅलिसी लेना स्वीकार किया है। मृतक बीमा धारक द्वारा सही तथ्यों को छुपाकर उक्त पाॅलिसी प्राप्त कर ली गयी। जिस चिकित्सक द्वारा राजू पाण्डे की चिकित्सा की गयी उन्होंने अपने प्रमाण पत्र में यह अंकित किया है कि 5-6 वर्ष पूर्व से राजू पाण्डे टाइप-2 डाइबिटीज से पीड़ित रहे है। मृतक बीमा धारक ैमचजपबमउपं बंनेम ठपसंजमतंस च्दमनउवदपंए ज्लचम.प्प् क्पंइमजमे डमससपजने से पीड़ित था , जिसका उसने ईलाज लिया था। मृतक बीमा धारक यदि सही तथ्य बीमा कंपनी के समक्ष रखता तो वह उसका बीमा नहीं करते । अतएव परिवाद सव्यय निरस्त होने योग्य है।
परिवादी ने परिवाद पत्र के समर्थन में अपना शपथपत्र दाखिल किया है एवं परिवाद पत्र के साथ अभिलेखीय साक्ष्यों की छायाप्रतियाॅ दाखिल किया है।
विपक्षी ने प्रतिवाद पत्र के समर्थन में ए0के0 खरे का शपथपत्र दाखिल किया है और शपथपत्र के साथ अभिलेखीय साक्ष्यों की छायाप्रतियाॅ दाखिल की गयी है।
मंच ने पक्षकारों के विद्वान अधिवक्तागण को श्रवण किया एवं पत्रावली का सम्यक् अवलोकन किया।
परिवादिनी का तर्क यह है कि उसके पति द्वारा अपने जीवन काल में एक पाॅलिसी सं0 217258203 रू0 एक लाख की ली थी। परिवादिनी के पति श्री राजू पाण्डेय को नवम्बर 2009 के आखिरी सप्ताह में अचानक बुखार व खांसी हुयी थी, जिसका उपचार लोकल चिकित्सक से करवा लिया गया । बुखार व खांसी ठीक न होने पर दि0 6.12.09 को अचानक ज्यादा स्वास्थ खराब हो जाने के कारण लखनऊ मेडिकल कालेज में भर्ती कराया गया और दि07.12.2009 की सुबह उनकी मृत्यु हो गयी । परिवादिनी ने समस्त औपचारिकताओं की पूर्ति के उपरान्त बीमा क्लेम विपक्षी के समक्ष प्रस्तुत किया, जिसे विपक्षी ने यह कहकर निरस्त कर दिया कि उसके पति पाॅलिसी लेने से पूर्व डायबिटीज के मरीज थे, जिसे पाॅलिसी धारक ने बीमा लेते समय छुपाया था। ऐसा करके विपक्षी ने सेवा में कमी किया है और व्यापार विरोधी प्रक्रिया को अपनाया है, जिससे क्षुब्ध होकर परिवादी को वर्तमान परिवाद इस जिला मंच में संस्थित करने की आवश्यकता पड़ी, जिसके माध्यम से उसने विपक्षी से बीमा पाॅलिसी का भुगतान मय 18 प्रतिशत ब्याज सहित दिलाये जाने था मानसिक एवं शारीरिक कष्ट हेतु रू050,000/-एवं रू010,000/-वाद व्यय स्वरुप दिलाये जाने की प्रार्थना किया है।
पक्षकारों के मध्य यह स्वीकृत तथ्य है कि परिवादिनी के पति स्व0 राजू पाण्डे का विपक्षी से बीमा था। यह पाॅलिसी दि0 28.2.2007 को ली गयी थी और परिवादिनी के पति की मृत्यु दि0 6.12.09 को सेप्टीसिमिया से हुयी। विपक्षी के द्वारा बीमा क्लेम इस आधार पर निरस्त कर दिया गया कि पाॅलिसी के लिये प्रस्ताव करने के तीन चार वर्ष पूर्व एवं मृत्यु से पाॅच-छः वर्ष पूर्व से परिवादिनी का पति ज्लचम.प्प् क्पंइमजमे डमससपजने नामक बीमारी से पीड़ित रहा था, जिसके लिये उसने चिकित्सकीय परामर्श लिया था और ईलाज भी करवाया था लेकिन मृतक बीमाधारक ने इन तथ्यों को अपने प्रस्ताव पत्र में प्रकट नहीं किया है कि उपरोक्त बीमारी को साबित करने के लिये उनके पास पर्याप्त साक्ष्य है परंतु वह साक्ष्य मंच के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया है कि बीमाधारक मृत्यु से 5-6 वर्ष पूर्व से उक्त बीमारी से पीड़ित था। विपक्षी ने अपने इस कथन के समर्थन में कोई साक्ष्य दाखिल नहीं किया है, जिससे यह साबित होता हो कि बीमाधारक मृत्यु से 5-6 वर्ष पूर्व उक्त बीमारी से पीड़ित था। विपक्षी ने उक्त बीमारी के बारे में यह अवगत कराया कि यह डाइबिटीज की एक श्रेणी है। परिवादी ने प्रस्ताव भरते समय डाइबिटीज से पीड़ित होने का कोई उल्लेख नहीं किया है। बिना सबूत के विपक्षी का यह तर्क स्वीकार होने योग्य नहीं है कि मृतक बीमा धारक डाइबिटीज का मरीज था। विपक्षी द्वारा साक्ष्य में दाखिल मेडिकल एटेन्डेन्ट की रिपोर्ट का पृष्ठ सं0 13 में जो रिपोर्ट दी है। वह मात्र अंदाजा के आधार पर दी है कि मृतक बीमा धारक 5-6 वर्ष से उक्त बीमारी से पीड़ित था। यह तथ्य किसी अभिलेखीय साक्ष्य से साबित नहीं होता है। इस संदर्भ में परिवादिनी की ओर से 2008 ब्ज्श्र 347;ब्च्द्ध;छब्क्त्ब्द्ध छंजपवदंस प्देनतंदबम ब्वउचंदल
स्जकण् अध्े त्ंर छंतंपद दाखिल किया है, जिसमें माननीय राष्ट्रीय आयोग , नई दिल्ली ने यह व्यवस्था दी है कि डवेज व िजीम चमवचसम ंतम जवजंससल नदंूंतम व िजीम ेलउचजवउे व िजीम कपेमंेम जींज जीमल ेनििमत तिवउण् ज्ीमतमवितम ए ंद पदेनतंदबम बवउचंदल बंददवज इम ंससवूमक जव जंाम ंकअंदजंहम व िजीम मगबसनेपवद बसंनेम व िचतममगपेजपदह कपेमंेम व िपजे उमकपबसंपउ चवसपबल जव तमचनकपंजम जीम बसंपउ चतममिततमक इल6 ंद पदेनतमकण् इसके
अतिरिक्त दूसरी नजीर 2011 छब्श्र 489 ;छब्द्ध स्पमि प्देनतंदबम ब्वतचदण् व िप्दकपं - ।दतण् अध्े ।ेीवा डंदवबीं तथा स्पमि प्देनतंदबम ब्वतचदण् व िप्दकपं - ।दतण् अध्े ।दपजं डंदवबीं के केस में यह व्यवस्था दी है कि अभिकथनों को साक्ष्य के रुप में इसलिये नहीं माना जा सकता ह,ै जब तक कि वह किसी अभिलेखीय साक्ष्य से साबित नहीं होता है, कहने का तात्पर्य यह है कि अभिकथन कथन मात्र होते है। इन अभिकथनों को साक्ष्य के द्वारा साबित होना चाहिये अगर वह अभिकथन साक्ष्य के द्वारा साबित नहीं है तो उस अभिकथन को साक्ष्य नहीं माना जायेगा। मौजूदा केस में यह नजीर लागू होती है क्योंकि विपक्षी की ओर से ऐसा कोई अभिलेखीय साक्ष्य दाखिल नहीं किया गया है जिससे यह साबित होता है कि बीमा धारक मृत्यु से 5-6 वर्ष पूर्व से ज्लचम.प्प् क्पंइमजमे डमससपजने बीमारी से पीड़ित रहा है। ऐसी स्थिति में बीमा कंपनी ने बीमित धनराशि अदा न करने में सेवा में कमी करते हुये व्यापार विरोधी प्रक्रिया को अपनाया है एवं मृतक
बीमा धारक की पत्नी को अनावश्यक रुप से मानसिक कष्ट पहुॅचाया है। मृतक बीमा धारक की मृत्यु सेप्टिीसीमिया से हुयी है। यह ज्लचम.प्प् क्पंइमजमे डमससपजने बीमारी से संबंधित नहीं है फलस्वरुप परिवादी का परिवाद आंशिक रुप से स्वीकार किये जाने योग्य पाया जाता है।
आदेश
परिवादिनी का परिवाद आंशिक रुप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह इस निर्णय की तिथि सेे छः सप्ताह के अंदर परिवादी को रू0एक लाख मय ब्याज दौरान वाद व आइंदा बशरह 9 (नौ) प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज की दर के साथ अदा करंे। इसके अतिरिक्त विपक्षी परिवादी को मानसिक क्लेश हेतु रू0दस हजार तथा रू0पाॅच हजार वाद व्यय अदा करगें, यदि विपक्षी उक्त निर्धारित अवधि के अंदर परिवादी को यह धनराशि अदा नहीं करते है तो विपक्षी को , समस्त धनराशि पर उक्त तिथि से ता अदायेगी तक 12 (बारह) प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर के साथ अदा करना पड़ेगा।
(गीता यादव) (गोवर्द्धन यादव) (संजीव शिरोमणि)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
दिनांक 25 मार्च, 2015