Komal Tewari filed a consumer case on 21 Feb 2023 against L.I.C. & Others in the Barabanki Consumer Court. The case no is CC/21/2017 and the judgment uploaded on 23 Feb 2023.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, बाराबंकी।
परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि 20.01.2017
अंतिम सुनवाई की तिथि 01.02.2023
निर्णय उद्घोषित किये जाने के तिथि 21.02.2023
परिवाद संख्याः 21/2017
कोमल तिवारी पत्नी स्व0 विद्याधर त्रिपाठी निवासी 5/202 आवास विकास कालोनी शहर जनपद-बाराबंकी।
द्वारा-श्री राकेश कुमार वर्मा, अधिवक्ता
बनाम
1. भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा प्रबंधक सिविल लाइन फैजाबाद रोड, बाराबंकी।
2. भारतीय जीवन बीमा निगम क्षेत्रीय प्रबन्धक उत्तर मध्य क्षेत्रीय कार्यालय 16/98 महात्मा गांधी मार्ग, कानपुर।
3. डा0 अभिषेक एसोसिएट प्रोफेसर आफ मेडिसीन डिपार्टमेन्ट आफ मेडिसीन के0 जी0 एम0 सी0, लखनऊ।
द्वारा-श्री इकबाल नसीम नोमानी, अधिवक्ता
श्री एस0 के0 पाण्डेय, अधिवक्ता
समक्षः-
माननीय श्री संजय खरे, अध्यक्ष
माननीय श्रीमती मीना सिंह, सदस्य
माननीय डॉ0 एस0 के0 त्रिपाठी, सदस्य
उपस्थितः परिवादिनी की ओर से -कोई नहीं
विपक्षी सं0-01 व 02 की ओर से-श्री इकबाल नसीम नोमानी, अधिवक्ता
विपक्षी सं0-03 की ओर से-श्री एस0 के0 पाण्डेय, अधिवक्ता
द्वारा-डॉ0 एस0 के0 त्रिपाठी, सदस्य
निर्णय
परिवादिनी ने यह परिवाद, विपक्षीगण के विरूद्व धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 प्रस्तुत कर बीमा कम्पनी से मूल बीमाधन रू0 4,00,000/-तथा मानसिक क्षति रू0 50,000/- अधिवक्ता शुल्क एवं वाद व्यय रू0 10,000/-दिलाये जाने हेतु प्रस्तुत किया है।
परिवादिनी ने परिवाद में मुख्य रूप से अभिकथन किया है कि उसके पति स्व0 विद्याधर त्रिपाठी, आवास विकास कालोनी शहर बाराबंकी के निवासी थे जो अपने जीवन पर पालिसी संख्या-276213601 रू0 4,00,000/-तालिका अवधि 807-20-20 दिनांक 07/03/2012 को खरीदा था। परिवादिनी के पति की सामाजिक व आर्थिक स्थिति अच्छी थी। जिस समय उन्होंने पालिसी ली थी, उन्हें किसी प्रकार की बीमारी नहीं थी। परिवादिनी के पति पालिसी क्रय करने के छह माह तक नौकरी करते रहे। लगभग छह माह बाद अचानक तेज बुखार के साथ पेट में दर्द होने पर डाक्टर को दिखाकर दवा लिया। आराम हो गया और वे नौकरी भी करने लगे। इलाज के दौरान ही पता चला कि उन्हें पीलिया हो गया है। पीलिया के इलाज हेतु गोमती नगर में डा0 ए0 के0 चैधरी को दिखाया, जहाँ पन्द्रह दिन इलाज अस्पताल में रहकर कराया। दिनांक 02/12/2013 को अचानक रात में पेट में तेज दर्द होने लगा। सुबह डा0 ए0 के0 चैधरी के पास ले गये। उनके जबाब देने पर दिनांक 03/12/2013 को ट्रामा सेन्टर में भर्ती कराया गया, जहाँ इलाज के दौरान उनकी मृत्यु हो गयी। विद्याधर की मृत्यु की सूचना अभिकर्ता को दी गई। बीमे से सम्बन्धित समस्त कागजात अभिकर्ता एजेन्सी कोड-08448/228 को उपलब्ध कराया गया जिन्होंने बताया कि प्रकरण में जांच चल रही है, दो तीन माह बाद पैसा मिल जायेगा। परिवादिनी द्वारा मृत्यु दावा जमा करने की रसीद सं0-3450 अभिकर्ता के मांगने पर दिनांक 25/08/2015 को दिया। दिनांक 27/02/2016 को भारतीय जीवन बीमा निगम क्षेत्रीय कार्यालय कानपुर से एक नोटिस प्राप्त हुई जिसमे यह उल्लेख था कि बीमेदार की मृत्यु पालिसी लेने के 08 माह 26 दिन के अन्दर लीवर सिरोसिस होने से हुई है। प्रपत्र बी, बी-1 के अनुसार प्रश्न संख्या-6(2) Known case of C.L.D. from 01 year लिखा है। जांच रिपोर्ट में प्रस्ताव से पूर्व बीमारी का उल्लेख है इस कारण दावा अस्वीकार किया गया। प्रपत्र बी, बी-1 ट्रामा सेन्टर के डाक्टर द्वारा भरा गया जिसमे बीमेदार को दिनांक 03/12/2013 को लगभग 10 बजे भर्ती किया गया और शाम 7.15 बजे मृत्यु हो गई इस बीच किसी प्रकार की जांच नहीं कराई गई केवल इलाज किया गया। डाक्टर द्वारा प्रपत्र बी-1 दिनांक 27/09/2013 को मृत्यु के लगभग नौ माह बाद भरा गया है। परिवादिनी ने बीमा कम्पनी को दिनांक 30/07/2016 को नोटिस भेजा परन्तु उसका कोई जवाब नहीं प्राप्त हुआ। बीमा क्लेम निरस्त करके बीमा कम्पनी द्वारा सेवा में कमी की गई जिससे परिवादिनी को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अतः परिवादिनी ने उक्त अनुतोष हेतु प्रस्तुत परिवाद योजित किया है। परिवाद के समर्थन में शपथपत्र दाखिल किया गया है।
परिवादिनी के तरफ से दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में सूची से बीमा कम्पनी का पत्र दिनांक 27/02/2016, मृत्यु सूचना, पालिसी बांड, दावेदार का बयान, दाह संस्कार का प्रमाण पत्र, प्रपत्र बी, प्रपत्र बी-1 की छायाप्रतियाँ दाखिल किया है।
विपक्षी संख्या-01 व 02 द्वारा वादोत्तर दाखिल करते हुये स्व0 विद्याधर त्रिपाठी का दिनांक 07/03/2012 को पॉलिसी सं0-276213601 खरीदना सत्य है। मृत्यु की तिथि तथा पालिसी लेने के 8 माह 26 दिन के अन्दर लीवर सिरोसिस होने के कारण मृत्यु होने के तथ्य को स्वीकार किया है। शेष कथन को अस्वीकार किया गया है। विशेष कथन में विपक्षी संख्या-01 और 02 ने यह अभिकथन किया है कि बीमा धारक की डाक्टरी रिपोर्ट व जांच से स्पष्ट है कि बीमाधारक बीमा लेने से पूर्व से ही लीवर की बीमारी से पीड़ित था। स्थानीय अभिकर्ता की सांठ-गांठ से लीवर की बीमारी होने के उपरान्त भी पालिसी ले लिया था। बीमा कम्पनी द्वारा कोई भेदभाव व त्रुटिपूर्ण कार्य नहीं किया गया है। परिवादिनी का परिवाद गैर कानूनी व पोषणीय नहीं है। परिवादिनी कोमल तिवारी द्वारा भारतीय जीवन बीमा निगम को हैरान व परेशान करने की नियत से गलत तथ्यों व गैर कानूनी तौर पर परिवाद प्रस्तुत किया गया है जो किसी भी प्रकार से अनुतोष मिलने लायक नहीं है। परिवाद को निरस्त किये जाने की याचना की गई है। विपक्षी संख्या-01 व 02 द्वारा वादोत्तर के समर्थन में शपथपत्र दाखिल किया गया है।
विपक्षी संख्या-03 द्वारा वादोत्तर दाखिल करते हुये परिवाद की धारा-1, 2, 3, 5, 6, 7, 9, 10 से इंकार किया गया है तथा कहा गया है कि ट्रामा सेन्टर में दिनांक 03/12/2012 को भरती करा दिया गया जहाँ पर इलाज के दौरान उसी दिन शाम को विद्याधर की मृत्यु हो गई। प्रस्तर-8 के संबंध में कहा गया है कि जब मृतक स्व0 विद्याधर त्रिपाठी को इलाज हेतु ट्रामा सेन्टर लाया गया, उस समय साथ आये रिश्तेदारों द्वारा दी गई जानकारी व उनके द्वारा उपलब्ध कराये गए मृतक के पूर्व में अलग-अलग स्थानों पर भिन्न-भिन्न अस्पतालों में समय-समय पर कराये गये इलाजो से सम्बन्धित दस्तावेजों को देखने के उपरान्त ही मृतक को ट्रामा सेन्टर में भर्ती किया गया। मृतक के इलाज से सम्बन्धित दस्तावेजों को जांचने परखने के उपरान्त ही प्रपत्र बी-1 भरा गया। विपक्षी संख्या-03 के स्तर से कोई त्रुटि नहीं की गई है। अतः परिवाद को निरस्त किये जाने की याचना की गई है। विपक्षी संख्या-03 द्वारा वादोत्तर के समर्थन में शपथपत्र दाखिल किया गया है। विपक्षी संख्या-03 द्वारा स्व0 विद्याधर के इलाज का पर्चा दिनांक 03/05/2012, 17/05/2012, 13/04/2012, 03/12/2012 चार वर्क, जांच रिपोर्ट दो वर्क, रिपोर्ट दिनांक 03/12/2012 की छाया प्रति दाखिल किया है।
विपक्षी संख्या-01 व 02 द्वारा सूची से रिपोर्ट दिनांक 25/02/2016 दो वर्क, वी0 के0 गुप्ता की रिपोर्ट, दावा जांच प्रपत्र पाँच वर्क, प्रपत्र बी तथा प्रपत्र बी-1 की छाया प्रति दाखिल किया है।
विपक्षी संख्या-03 द्वारा स्व0 विद्याधर त्रिपाठी का बी0 एच0 टी0 45 वर्क छायाप्रति दाखिल किया है।
परिवादिनी ने अपनी लिखित बहस दाखिल की है।
विपक्षी संख्या-01 व 02 द्वारा लिखित बहस दाखिल की गई है।
उभय पक्षों के विद्वान अधिवक्तागण के तर्को को सुना तथा पत्रावली पर प्रस्तुत किये गये साक्ष्यों/अभिलेखों का गहन परिशीलन किया।
परिवादिनी के पति की मृत्यु दिनांक 03/12/2013 को किंग जार्ज मेडिकल कालेज, लखनऊ में लीवर की बीमारी के कारण हो गई थी। परिवादिनी के पति ने अपने जीवनकाल में दिनांक 07/03/2012 को पालिसी संख्या-276213601 क्रय किया था जिसका दावा इस आधार पर निरस्त कर दिया गया कि बीमा धारक की मृत्यु बीमा पालिसी लेने के आठ माह छब्बीस दिन के अंदर लीवर सिरोसिस से हो गई। प्रपत्र बी, बी-1 के अनुसार प्रश्न संख्या-6(2) Known case of C.L.D. from 01 year लिखा है। जहाँ तक रिपोर्ट में प्रस्ताव से पूर्व बीमारी का उल्लेख है, इस कारण दावा अस्वीकार किया गया। तत्क्रम में भारतीय जीवन बीमा निगम, फैजाबाद मंडल के चिकित्सक प्रमाण पत्र प्रपत्र संख्या-3784 (दावा प्रपत्र-बी) का अवलोकन किया गया जो दिनांक 27/09/2013 को किंग जार्ज मेडिकल कालेज के चिकित्सक श्री अभिषेक, असिसटेन्ट प्रोफेसर, मेडीसिन, के. जी. एम. सी. द्वारा जारी किया गया है। उक्त प्रपत्र में परिवादिनी के पति की मृत्यु दिनांक 03/12/2013 को होना दर्शाते हुये उसे मृत्यु से छह माह पूर्व से इस बीमारी से पीड़ित होना तथा मृत्यु से छह माह पूर्व से जानकारी होना कालम सं0-4(स) (द) में अंकित किया गया है। चिकित्सक द्वारा जारी इस प्रमाण पत्र से यह स्पष्ट होता है कि जिस दिन परिवादिनी के पति का बीमा कराया गया था, उस दिन उसके रोग ग्रस्त होने का कोई साक्ष्य जीवन बीमा निगम के पास नहीं है। यह भी उल्लेखनीय है कि परिवादिनी के पति प्राइवेट कम्पनी लक्ष्मी कुजीन आर्ट प्रा0 लिमिटेड में नियमित नौकरी करते थे। विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा दिनांक 27/02/2016 को जारी पत्र में प्रश्नगत दावे को निरस्त करते हुये परिवादिनी को यह सूचित किया गया कि इस पालिसी में बीमेदार की मृत्यु आठ माह 26 दिन के अंदर लीवर सिरोसिस से होना सूचित है। प्रपत्र बी, बी-1 के अनुसार प्रश्न संख्या-6 (2) Known case of C.L.D. from 01 year लिखा है। इससे स्पष्ट है कि विपक्षी बीमा निगम द्वारा प्रस्तुत अभिलेखों में ही अंतरविरोध है। प्रपत्र बी जो मृतक के अंतिम बीमारी के समय उपचार करने वाले चिकित्सक द्वारा भरा गया है, में परिवादिनी के पति को छह माह पुरानी बीमारी बतायी गयी है। प्रपत्र सं0-बी-1 के कालम 7(अ) में छह माह पुराना रोग तथा 7 (ब) में एक वर्ष से लीवर की बीमारी होने का तथ्य अंकित है। मृत्यु के एक वर्ष पूर्व से लीवर की बीमारी होने का कोई पुष्टिकारक साक्ष्य नहीं है। डा0 अजय चैधरी को दिखाने का प्रथम पर्चा दिनांक 03/05/2012 का है। पीलिया कब से था, इसका कोई उल्लेख इस प्रथम पर्चे में नहीं है। अतः यह माना जायेगा कि दिनांक 03/05/2012 को डा0 अजय चैधरी को दिखाने पर पीलिया होने की जानकारी बीमित व्यक्ति को हुई। के. जी. एम. सी. के जिस डाक्टर ने प्रपत्र संख्या- बी, बी-1 भरा है, उसने तो केवल एक दिन दिनांक 03/12/2012 की भर्ती पर इलाज किया। उसके पूर्व के. जी. एम. सी. से कोई इलाज कराने का भी साक्ष्य नहीं है जिससे यह भी स्पष्ट होता है कि प्रपत्र सं0 बी-1 के कालम-7 (ब) में एक वर्ष पूर्व से लीवर के रोग से पीड़ित होने का तथ्य केवल परिकल्पना एवं संभावना के आधार पर अंकित किया गया है। विपक्षी बीमा कम्पनी का कथन है कि जो नातेदार, रिश्तेदार बीमित विद्याधर त्रिपाठी को दिनांक 03/12/2012 को के. जी. एम. सी. ट्रामा सेन्टर भर्ती कराने ले गये थे उनके द्वारा बताने के आधार पर एक वर्ष से लीवर रोग से पीड़ित होने का तथ्य अंकित किया गया है। प्रपत्र सं0-बी तथा बी-1 में यह कहीं अंकित नहीं है कि मृत्यु के एक वर्ष पूर्व से विद्याधर त्रिपाठी को लीवर का रोग होने का तथ्य किसी रिश्तेदार ने बताया हो। रिश्तेदार का कोई नाम भी अंकित नहीं है। के. जी. एम. सी. में किये गये इलाज और उसके विवरण इलाज पर्चा संलग्नक-2 व 3 में भी मृत्यु से एक वर्ष पूर्व से विद्याधर त्रिपाठी को लीवर का रोग होना किसके बताने के आधार पर अंकित किया गया है, इसका कोई उल्लेख नहीं है। छह महीने से इलाज चलना, इलाज पर्चा के साथ संलग्न एम-7 में भी अंकित किया गया है। उपरोक्त से स्पष्ट है कि बीमा कराने के दिनांक 07/03/2012 को परिवादिनी के पति विद्याधर त्रिपाठी को लीवर सिरोसिस (जिस कारण से मृत्यु हुई) होने का पुष्टि कारक साक्ष्य पत्रावली पर नहीं है। विपक्षी बीमा कम्पनी ने परिवादिनी के पति की मृत्यु होने पर बीमा क्लेम इसी आधार पर निरस्त किया है। ऐसी स्थिति में यह सिद्व करने का भार भी विपक्षी बीमा कम्पनी का था, कि बीमा कराते समय बीमित व्यक्ति को लीवर सिरोसिस होने की जानकारी थी। विपक्षी बीमा कम्पनी इस प्रमुख तथ्य को अपने द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य से सिद्व नहीं कर सकी है।
उपरोक्त विवेचन से यह सिद्व होता है कि परिवादिनी के पति का बीमा कराते समय लीवर सिरोसिस की बीमारी से ग्रसित होने तथा उक्त रोग की परिवादिनी के पति को जानकारी होना सिद्व नहीं होता है। विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा दाखिल अभिलेखों से केवल इस तथ्य की पुष्टि होती है कि मृत्यु होने से छह माह पूर्व विद्याधर त्रिपाठी को लीवर का रोग होने की जानकारी हुई, जबकि उनका बीमा लगभग आठ माह छब्बीस दिन पूर्व दिनांक 07/03/2012 को विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा किया गया था। अतः विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा परिवादिनी के पति विद्याधर त्रिपाठी का बीमा क्लेम निरस्त करके सेवा में कमी की गई है।
यह स्वीकृत तथ्य है कि परिवादिनी के पति विद्याधर त्रिपाठी का जीवन बीमा रू0 4,00,000/-की बीमित धनराशि हेतु दिनांक 07/03/2012 को किया गया था। बीमा प्रीमियम की पहली किश्त भी अदा की गयी है। बीमा प्रभावी रहने की अवधि के दौरान परिवादिनी के पति की मृत्यु हुई है इस लिये बीमित व्यक्ति का दावा नियमानुसार देय है। अतः बीमा धनराशि, मय ब्याज, क्षतिपूर्ति रू0 5,000/-व वाद व्यय रू0 1,000/-हेतु परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवाद संख्या-21/2017 आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी संख्या-01 व 02 भारतीय जीवन बीमा निगम को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादिनी को बीमा धनराशि रू0 4,00,000/-(रूपये चार लाख) नियमानुसार परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि 20/01/2017 से अंतिम भुगतान की तिथि तक छह प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज की दर से पैतालिस दिन के अंदर अदा करें। उपरोक्त निर्धारित अवधि में धनराशि न देने पर नौ प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज देय होगा। इसके अतिरिक्त विपक्षी संख्या-01 व 02 परिवादिनी को क्षतिपूर्ति के रूप में रू0 5,000/-(रूपये पाँच हजार) तथा वाद व्यय के रूप में रू0 1,000/-(रूपये एक हजार) भी पैंतालिस दिन में अदा करेगें।
(डॉ0 एस0 के0 त्रिपाठी) (मीना सिंह) (संजय खरे)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
यह निर्णय आज दिनांक को आयोग के अध्यक्ष एंव सदस्य द्वारा खुले न्यायालय में उद्घोषित किया गया।
((डॉ0 एस0 के0 त्रिपाठी) (मीना सिंह) (संजय खरे)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
दिनांक 21.02.2023
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