जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम, लखनऊ।
परिवाद संख्या:- 411/2022
उपस्थित:-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
श्रीमती सोनिया सिंह, सदस्य।
श्री कुमार राघवेन्द्र सिंह, सदस्य।
परिवाद प्रस्तुत करने की तारीख:-05.07.2022
परिवाद के निर्णय की तारीख:-20.06.2024
Mrs. Uma Kumari Prasad, W/o Late Amit Verma, R/o C/o Mr Sanjay Kushwaha Classic General Store (Opp Canara Bank ATM) Near Macaulay Chauraha Kanchana Bihari Marg, Kalyanpur Lucknow-226022.
................Complainant.
VERSUS
Life Insurance Corporation of India Divisional Office Hazratganj Lucknow.
...............Opposite Party.
परिवादी के अधिवक्ता का नाम:- श्री नीरज कुमार गुप्ता।
विपक्षी के अधिवक्ता का नाम:-श्री अरविन्द तिलहरी।
आदेश द्वारा-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
निर्णय
1. परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 की धारा-35 के अन्तर्गत इस आशय से प्रस्तुत किया गया है कि विपक्षी द्वारा सेवा में कमी करते हुए पालिसी के भुगतान के समय में जो रेपुडिएशन किया गया है वह गलत है उसे निरस्त करते हुए पैसों के भुगतान एवं वाद व्यय के संबंध में संस्थित किया गया है।
2. संक्षेप में परिवाद के कथन इस प्रकार हैं कि परिवादिनी स्व0 अमित वर्मा की पत्नी है। स्व0 अमित वर्मा ने विपक्षी एल0आई0सी0 से जीवन लक्ष्य पालिसी संख्या 228580094 रू0 5,00,000.00 की 2019 में मोहनलाल गंज ब्रान्च, लखनऊ से ली थी, जो दिनॉंक 18.12.2019 से लेकर 18.12.2040 में परिपक्व होनी थी। उक्त पालिसी के संबंध में 14,278.00 रूपये प्रति छमाही बीमा प्रीमियम की व्यवस्था थी।
3. स्व0 अमित वर्मा को सॉंस लेने एवं कफ की शिकायत होने के कारण दिनॉंक 02.09.2020 को थायरोकेयर पैथोलॉजी लैब में खून की जॉंच करवायी, जिसमें हीमोग्लोबिन एएलसी परीक्षण केवल पिछले दो-तीन महीनों में रक्त ग्लूकोज के औसत स्तर को इंगित करता है और इसे ग्लाइकोहीमोग्लोबिन भी कहा जाता है। दिसम्बर 2019 में एलआईसी द्वारा नियुक्त डॉक्टर द्वारा पालिसी क्रय करने से पहले मृतक की पूरी तरह से मेडिकल जॉच की गयी थी। अन्य परीक्षणों के अलावा शुगर की भी जॉंच की गयी ताकि पता लगाया जा सके कि वह शुगर से पीडि़त हैं या नहीं। उन्हें फिट और किसी बीमारी से मुक्त घोषित किया गया।
4. एचबीएसी (9.1प्रतिशत) की रिपोर्ट केवल मृतक द्वारा खराब ग्लूकोज नियंत्रण को इंगित करती है न कि यह कि वह शुगर रोगी था। किसी
भी रोगी में शुगर के निदान की पुष्टि करने के लिये छह महीने की अवधि में कम से कम दो और ऐसे परीक्षणों की आवश्यकता होती है जो प्रत्येक 03 महीने के अंतराल पर किये जाते हैं।
5. मृतक को 03-04 दिन सूखी खांसी के साथ सॉस फूलने की शिकायत पर दिनॉंक 05.09.2020 को 21.11 बजे मिडलैंड हेल्थकेयर एण्ड रिसर्च सेन्टर, लखनऊ में भर्ती कराया गया था, जहॉं लैब रिपोर्ट के आधार पर मृतक को टाइप-2 मधुमेह बताया गया, और उन्हें शुगर की दवा दी गयी और दो दिन बाद डिस्चार्ज कर दिया गया। डिस्चार्ज में यह कहा गया कि मरीज को कोविड-19 पाजीटिव होना पाया गया, फिर वहॉं से लखनऊ हेरीटेज हास्पीटल में भर्ती कराया गया। 08 दिन भर्ती रहने के बाद दिनॉंक 14.09.2020 को उनकी मृत्यु हो गयी।
6. एल0आई0सी0 ने उनके क्लेम को यह कहते हुए रेपुडिएट कर दिया कि पालिसी को तीन वर्ष नहीं हुए हैं इसलिए बीमा क्षतिपूर्ति निरस्त की जाती है। ओम्बड्समैन के यहॉं भी कार्यवाही की गयी।
7. विपक्षी ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत करते हुए इन्श्योरेंस होना स्वीकार करते हुए अन्य तथ्यों के बारे में इनकार किया और यह कहा कि टर्म्स 833-21 के तहत 5,00,000.00 रूपये की पालिसी इनके द्वारा ली गयी थी जिसमें प्रपोजल द्वारा यह डिक्लेरेशन दिया गया कि अगर कोई भी तथ्य असत्य पाया जाता है तो संविदा शून्य हो जायेगी और जो भी धनराशि जमा की गयी है वह एल0आई0सी0 द्वारा जब्त कर ली जायेगी। उक्त पालिसी पर 14,278.00 रूपये की छमाही प्रीमियम थी। टाइप-2 डाइबिटीज मेलिटस बीमारी थी, जो विगत तीन वर्ष से चली आ रही थी और अमित वर्मा पिछले 03 वर्षो से इस बीमारी से पीडि़त थे। शुगर के संबंध में प्रपोजल में कोई भी सूचना नहीं दी गयी। कन्सीलमेंट फैक्ट चॅूंकि इनके द्वारा किया गया था इसलिए ये कोई भी पैसा प्राप्त करने की अधिकारी नहीं हैं।
8. परिवादिनी ने अपने कथानक के समर्थन में मौखिक साक्ष्य के रूप में शपथ पत्र एवं दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में गणना चार्ट, मृत्यु प्रमाण पत्र, डिस्चार्ज समरी, डेथ क्लेम, मिडलैंड हास्पिटल के पेपर्स, हेरिटेज हास्पिटल के पेपर्स, विधिक नोटिस आदि की छायाप्रतियॉं दाखिल की गयी हैं। विपक्षी की ओर से भी शपथ पत्र एवं पालिसी बॉण्ड, लेटर, मेडिकल पेपर्स, प्रस्ताव पत्र, अस्पताल चिकित्सा का प्रमाण पत्र आदि की छायाप्रतियॉं दाखिल की गयी हैं।
9. आयोग द्वारा उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्ता के तर्कों को सुना गया तथा पत्रावली का परिशीलन किया गया।
10. उल्लेखनीय है कि जहॉं तक उपभोक्ता का प्रश्न है परिवादिनी के पति स्व0 श्री अमित वर्मा द्वारा एल0आई0सी0 की पालिसी ली गयी थी। यह स्वीकृत तथ्य है अत: इसे साबित किये जाने में विपक्षी का उपभोक्ता होना पाया जाता है।
11. परिवादिनी के पति की मृत्यु के बाद बीमा की गयी धनराशि के संबंध में विपक्षी बीमा कम्पनी के यहॉं क्षतिपूर्ति प्राप्त करने हेतु प्रतिवेदन दिया गया और उसे विपक्षी ने निरस्त कर दिया। निरस्तीकरण का आधार बीमा कम्पनी ने यह लिखा है कि लखनऊ हेरिटेज हास्पीटल के प्रपत्रों के अनुसार टाइप-2 डीएम से मृतक पिछले तीन वर्षों से ग्रस्त था। लेकिन मृतक ने प्रस्ताव पत्र में अपने व्यक्तिगत कथन में इसे प्रकट नहीं किया है। तात्विक तथ्यों का छिपाव जिससे जोखिम की स्वीकृति प्रस्तावित हुई, और इस कारण निगम को भ्रमित करने की नीयत से किया गया था, और परिवादिनी को उसके प्रीमियम की धनराशि को अंतिम निपटान मानकर वापस किया गया।
12. यह तथ्य विवाद का विषय नहीं है कि पालिसी परिवादिनी के पति स्व0 अमित वर्मा ने दिनॉंक 18.12.2019 को ली थी तथा उनकी मृत्यु दिनॉंक 14.09.2020 को हो गयी थी, अर्थात यह 08 माह के आस-पास पालिसी लिये जाने के बाद इनकी मृत्यु हो गयी थी। परिवादिनी का स्वयं में कथन यह है कि दो दिन तक उसे कफ एवं सॉस नहीं ले पाने के कारण उसे कोविड-19 पैंडमिक बीमारी से वह ग्रसित हो गया तथ जब उसका शुगर टेस्ट कराया गया तो 9.1 प्रतिशत इन्डीकेट किया। सामान्यत एचबीएसी1 6.00 प्वाइन्ट रहता है तो यह समझा जाता है कि शुगर का कंट्रोल ठीक है। जैसे-जैसे ऊपर बढता जाता है तो वह शुगर शरीर में ज्यादा शुगर (डायबिटीज लेबल) को प्रकट करता है जैसा कि रिपोर्ट के अनुसार 9.1 प्रतिशत शुगर था जो कि तीन माह का यह रिकार्ड बताता है, तो निश्चित ही कहा जा सकता है इनका शुगर कंट्रोल विगत तीन माह से नियंत्रित नहीं रहा है। अत: शुगर पूअर कंट्रोल की श्रेणी में होना पाया जाता है।
13. शुगर एक ऐसी बीमारी है कि जो शरीर के समस्त अंगों को अगर वह कंट्रोल नहीं है तो खराब कर देता है। यह हो सकता है जब कोविड-19 के कारण उसकी मृत्यु हुई हो। कोविड-19 का वायरस उसके शरीर में आने से और उस दौरान शुगर अनियंत्रित होने से शुगर का प्रभाव निश्चित ही उसके रोगों को ज्यादा कष्ट दिया होगा। शुगर के मरीजों में अगर कोई बीमारी हो जाती है तो वह शुगर रहने के कारण उसके ठीक होने में समयावधि कालचक्र बढ़ जाता है।
14. अब जैसा कि विपक्षी का कथन यह है कि कन्शीलमेंट ऑफ फैक्ट यानी कि परिवादी द्वारा इस तथ्य को नहीं बताना कि वह मृतक का डिक्लेरेशन फार्म भरने के समय इस तथ्य को छिपाया कि शुगर की बीमारी उसको नहीं है। विपक्षी द्वारा साक्ष्य में परिवादी द्वारा भरा गया फार्म दाखिल किया गया है जिसका मैंने अवलोकन किया, जिसके परिशीलन से विदित है कि फार्म में छपे बिन्दु के बारे में जानकारी का कालम है, जिसमें यह उल्लेख किया गया है कि पिछले पॉंच वर्षों के दौरान किसी ऐसी बीमारी के लिये जिसमें एक सप्ताह से अधिक की आवश्यकता हो जिसमें इन्होंने यह बताया कि नहीं। शुगर के संबंध में भी पूछा गया आपको शुगर है तो उन्होंने नो का कालम लिखा है।
15. विपक्षी द्वारा अमित वर्मा के अस्पताल में भर्ती रहे प्रमाण पत्र का भी अवलोकन किया जिसमें खुद अमित वर्मा के प्रार्थना पत्र पर लिखा गया है कि मृतक कोविड पाजीटिव था और तीन वर्ष से शुगर की बीमारी से ग्रसित था। इस कारण उसकी मृत्यु हो गयी। अगर समीक्षा की जाए मृत्यु के कारणों में दो तथ्यों का समावेश होना दर्शाया गया है।
1-पैन्डमिक कोविड-19 सामान्यत: इसमें लोगों की मृत्यु होती है।
परिवादिनी का कथन है कि एचबीएलसी 9.1 होना जो कि पुअर कंट्रोल है दर्शाता है, तो इनकी मृत्यु का जिसे कि पूर्व उल्लेख किया गया है कि किसी भी बीमारी में शुगर का बढ़ा होना उसको ठीक होने में बाधक होता है। इस प्रकार कोविड-19 ग्रसित मरीज के अगर शुगर बढ़ा है तो ठीक होने में थोड़ा समय लगता है, लेकिन शुगर के भी रोल से इनकार नहीं किया जा सकता है।
2-एल0आई0सी0 और बीमा करने वाले व्यक्ति दोंनों के बीच में संविदा होती है और जब संविदा होती है तो दोनों पक्षों द्वारा उस पर हस्ताक्षर किये जाते हैं और जब दोनों संविदा के बीच में हस्ताक्षर किये गये है तो दोनों पक्ष उसे मानने के लिये बाध्य हैं। प्रपोजल फार्म में शुगर का न होना और बीमार पड़ने पर वैसी स्थिति में जब कि बीमा लेने के आठ माह के बाद ही मृत्यु हो गयी हो और डॉक्टर का यह बताना कि तीन वर्ष से शुगर से पीडि़त थे, निश्चित ही कन्सीलमेंट ऑफ फैक्ट है। अत: मेरे विचार से जो रेपुडिएशन किया गया है वह उपयुक्त है। किसी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
16. चॅूंकि कोविड से परिवादिनी के पति की मृत्यु हुई है और सरकार द्वारा 5,00,000.00 रूपये का भुगतान किये जाने के संबंध में आदेश पारित किया गया है जिसमें भुगतान करने की एक अलग संस्था है, मेरे विचार से जिलाधिकारी के यहॉं परिवादिनी यदि वह चाहे तो नियमानुसार प्रार्थना पत्र देकर कार्यवाही कर सकती हैं और नियमानुसार धनराशि प्राप्त कर सकती है। अत: परिवादिनी का परिवाद पोषणीय न होने के कारण खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवाद पत्र पोषणीय न होने के कारण खारिज किया जाता है। परिवादिनी यदि चाहे तो नियमानुसार कार्यवाही कर सकती है।
पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रार्थना पत्र निस्तारित किये जाते हैं।
निर्णय/आदेश की प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाए।
(कुमार राघवेन्द्र सिंह) (सोनिया सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
आज यह आदेश/निर्णय हस्ताक्षरित कर खुले आयोग में उदघोषित किया गया।
(कुमार राघवेन्द्र सिंह) (सोनिया सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
दिनॉंक:-20.06.2024