Uttar Pradesh

Barabanki

72/14

Ram Pher Pandey - Complainant(s)

Versus

L.I.C. - Opp.Party(s)

Pankaj Nigam

12 Jun 2023

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, बाराबंकी।

परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि       13.08.2014

                                                                                           अंतिम सुनवाई की तिथि       25.05.2014

                    निर्णय उद्घोषित किये जाने के तिथि       12.06.2023

परिवाद संख्याः 72/2014

रामफेर पान्डेय बालिग पुत्र हरवार पान्डेय निवासी ग्राम अमरादेवी पोस्ट-माधवपुर जनपद-बाराबंकी।

द्वारा- श्री पंकज निगम, अधिवक्ता

श्री संजय वर्मा, अधिवक्ता

श्री हेमन्त कुमार जैन, अधिवक्ता

बनाम

1. भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा कार्यालय रूदौली जनपद-फैजाबाद द्वारा शाखा प्रबंधक।

2. भारतीय जीवन बीमा निगम कार्यालय आवास विकास बाराबंकी द्वारा शाखा प्रबंधक।

3. प्रशुराम यादव पुत्र मंशाराम यादव निवासी ग्राम लालपुर हडाहा पो0-हड़ाहा तहाील सिरौलीगौसपुर जनपद-बाराबंकी।

द्वारा-श्री राजकुमार टण्डन, अधिवक्ता

समक्षः-

माननीय श्री संजय खरे, अध्यक्ष

माननीय श्रीमती मीना सिंह, सदस्य

माननीय डॉ0 एस0 के0 त्रिपाठी, सदस्य

उपस्थितः परिवादी की ओर से -श्री पंकज निगम, अधिवक्ता

               विपक्षी की ओर से-श्री राजकुमार टण्डन, अधिवक्ता

द्वारा-डॉ0 एस0 के0 त्रिपाठी, सदस्य

निर्णय

            परिवादी ने विपक्षी के विरूद्व धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986 के तहत विपक्षी से बीमित धनराशि रू0 4,00,000/-अठारह प्रतिशत ब्याज एवं बोनस सहित तथा शारीरिक, मानसिक, आर्थिक क्षतिपूर्ति हेतु रू0 50,000.00 एवं रू0 50,000/-परिवाद व्यय व अधिवक्ता शुल्क दिलाये जाने के अनुतोष की याचना किया है।

            संक्षेप में परिवाद कथानक इस प्रकार है कि परिवादी ने अपनी पत्नी मान्डवी पान्डेय का दो बीमा पालिसी संख्या-21544276 व 2166166141 पर कराया था। मान्डवी पान्डेय का स्वर्गवास होने के उपरान्त दोनो पालिसियों का क्लेम किया जिनका भुगतान हो चुका है। परिवादी के मित्र परशुराम यादव का बीमा कोटा कम था और उनकी एजेन्सी पर खतरा बना हुआ था इस लिये परिवादी ने अपने पारिवारिक मित्र परशुराम यादव से एक बीमा अपनी पत्नी मान्डवी पान्डेय का रू0 4,00,000/-का करवाया जिसका बीमा पालिसी सं0-275202722 है। परिवादी की पत्नी मान्डवी देवी बीमा करते समय पूर्णतः स्वस्थ्य थी उन्हें किसी प्रकार की कोई बीमारी नहीं थी। परिवादी की पत्नी मान्डवी पान्डेय का स्वर्गवास दिनांक 22.07.2011 को हो गया जिसकी सूचना परिवादी ने विपक्षी संख्या-02 को दी। विपक्षी संख्या-02 द्वारा परिवादी को क्लेम फार्म दिया गया। समस्त औपचारिकतायें पूर्ण करते हुये क्लेम फार्म परिवादी ने दिनांक 17.05.2012 को जमा किया। विपक्षी संख्या-02 के जांच अधिकारी परिवादी के यहाँ आये और परिवादी से मृत्यु दावा भरपाई बाउचर (सादे फार्म) पर हस्ताक्षर भी करवाकर ले गये तथा यह आश्वासन दिया कि जल्द ही क्लेम की धनराशि का नियमानुसार भुगतान कर दिया जायेगा। विपक्षी संख्या-01 का पत्र दिनांक 18.04.2013 को प्रापत हुआ जिसमे चार प्रश्नों के उत्तर व कागजात की मांग की जिसके जवाब में परिवादी ने विपक्षी संख्या-01 के यहां पत्र लिखकर जवाब दिया। प्रश्न संख्या-01 के सन्दर्भ में परिवादी ने विपक्षी संख्या-01 के यहाँ परिवार रजिस्टर की सत्य प्रतिलिपि भेजी थी जिसमे स्पष्ट रूप से परिवादी की पत्नी उर्मिला उर्फ मान्डवी अंकित है। विदित हो कि मान्डवी और उर्मिला एक ही महिला के दो नाम है जो परिवादी की पत्नी है। प्रश्न संख्या-02 के जवाब में परिवादी ने उल्लिखित किया था कि मृतका उर्मिला उर्फ मान्डवी पान्डेय का इलाज केवल रीजन्सी हास्पिटल कानपुर में हुआ था। ईलाज वाले चिकित्सक का घर लखनऊ एस0 जी0 पी0 जी0 आई0 में था। छुट्टी में जब वह कानपुर से लखनऊ आते थे तो परिवादी अपनी पत्नी को बाराबंकी घर से नजदीक लखनऊ होने के कारण उनको लखनऊ में स्थित घर पर दिखा दिया जाता था। चूँकि उर्मिला उर्फ मान्डवी पान्डेय की मृत्यु घर पर हुई थी, केवल फार्म नं0-31 भरवा कर प्रस्तुत कर चुका है। परिवादी की पत्नी का लखनऊ के किसी भी अन्य हास्पिटल में इलाज नहीं हुआ। प्रश्न संख्या-03 का जवाब भी परिवादी ने विपक्षी संख्या-01 को दिया था। परिवाद रजिस्टर की नकल माँगी गई जिसको परिवादी ने उपलब्ध करा दिया था। विपक्षी संख्या-01 का दिनांक 26.12.2013 को परिवादी को एक पत्र प्राप्त हुआ जिसके माध्यम से परिवादी की बीमा धनराशि के क्लेम को नो क्लेम कर दिया था। परिवादी ने क्षेत्रीय प्रबंधक भारतीय जीवन बीमा निगम के यहां प्रतिवेदन दिनांक 15.06.2013 को प्रेषित किया जिसे दिनांक 01.04.2014 को अमान्य कर दिया गया। परिवादी ने जो भी चिकित्सा प्रमाण पत्र प्रस्तुत किये है वह रीजेन्सी हास्पिटल कानपुर के है। विपक्षी के पास ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जिससे यह साबित हो सके कि उर्मिला उर्फ मान्डवी पान्डेय बीमा लेने से पहले अस्वस्थ थी। बीमा लेने के काफी दिनो बाद परिवादी की पत्नी उर्मिला उर्फ मान्डवी पान्डेय को दर्द होने पर रीजेन्सी हास्पिटल कानपुर में दिखाया गया था। जहाँ से उसकी दवाईयां चल रही थी। विपक्षीगण के इस कृत्य से परिवादिनी को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अतः परिवादी ने उपरोक्त अनुतोष हेतु यह परिवाद प्रस्तुत किया है। परिवादी ने परिवाद के कथन के समर्थन में शपथपत्र दाखिल किया है। 

            परिवादी ने सूची नो क्लेम की पत्र दिनांक 26.12.2013 की छायाप्रति दाखिल किया है। सूची दिनांक 12.11.2018 से शपथपत्र, सस्पेंड लेटर दिनांक 29.07.2017, सस्पेंशन लेटर का उत्तर, जन सूचना अधिकार का पत्र दिनांक 01.09.2016, मृत्यु सूचना, दावेदार का बयान, दाह संस्कार का प्रमाण पत्र, मृत्यु दावा (भरपाई बाउचर), अस्पताल चिकित्सा प्रमाण पत्र, शपथपत्र रामफेर पांडेय, प्रपत्र प्रश्नोत्तर, मृत्यु प्रमाण पत्र मान्डवी देवी, अस्पताल चिकित्सा का प्रमाण पत्र, डिस्चार्ज समरी मान्डवी देवी, प्रपत्र दिनांक 13.04.2013, प्रार्थना पत्र, परिवार रजिस्टर की नकल दो वर्क, फार्म दिनांक 07.05.2012, प्रार्थना पत्र दिनांक 11.02.2014, प्रार्थना पत्र दिनांक 19.11.2018 की छाया प्रति दाखिल किया है।

            विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से जवाबदावा में कहा गया है कि परिवादी की पत्नी मान्डवी पान्डेय ने अपने जीवन पर कथित बीमा पालिसियां संख्या-215 442 746 एवं 216 616 141 मु0 50,000/-एवं मु0 45,000/- की ली थी जिसका प्रस्ताव पत्र स्वीकार करने हेतु विपक्षी के कार्यालय में प्रस्तुत किया कया जिसकी तालिका सं0-174/20/20 एवं 174/20/20 जो म्ंतसल ब्संपउ  थी जिसका भुगतान नेट द्वारा अलग-अलग विधि अनुसार किया जा चुका है। बीमा पालिसी संख्या-275 202 722 अभिलेखों में अंकित होना सत्य है। परिवाद पत्र की धारा-4 अस्वीकार है क्योंकि मान्डवी पान्डेय बीमा पॉलिसी धारक Muitiple Myeloma (कैन्सर) से पीड़ित थी। तथ्य को मृतका पालिसी धारक एवं अभिकर्ता द्वारा बीमाकर्ता से छुपाया गया। परिवादी की धारा-5 से 16 के कथन से इंकार किया गया है। बीमा प्रस्ताविका (मृतका) मान्डवी पाण्डेय ने अपने जीवन का मु0 4,00,000/-बीमा करने हेतु एक बीमा प्रस्ताव पत्र विपक्षी की शाखा रूदौली में प्रस्तुत किया जिसके प्रश्न संख्या-11 वैयक्तिक इतिवृति के कालम-5 का उत्तर नही तथा कालम-9 का उत्तर अच्छा दिया। इस प्रस्ताव के अन्त में प्रस्ताविका द्वारा एक अतिमहत्वपूर्ण घोषणा की गयी और अपने हस्ताक्षर/निशानी अंगूठे बनाये गये। घोषणा को सत्य मानकर परम सद्भावना व विश्वास के सिद्वान्त के आधार पर उसका प्रस्ताव स्वीकार करते हुये पॉलिसी संख्या-275 202 722 आवंटित करके पॉलिसी बांड निर्गत किया गया। बीमा पालिसी की प्रारम्भ तिथि 28.11.2010 योजना अवधि 179-20 छमाही किश्त मु0-9,966/-थी प्रत्येक वर्ष छः माह पश्चात देना था। परिवादी रामफेर पान्डेय ने अपने बयान दिनांक 25.04.2012 के माध्यम से कहा है कि उनकी पत्नी मान्डवी देवी का निधन लगभग 3 माह पूर्व घर पर दिनांक 22.07.2011 को हो गया है और मृत्यु दावे की मांग किया। मृत्यु के कारण के संबंध में कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं किया और न ही बीमारी का उल्लेख किया। मात्र इतना उल्लेख किया कि मृतका तीन माह पूर्व शरीर में दर्द होने के कारण रीजेन्सी अस्पताल सर्वोदय नगर, कानपुर में दिनांक 09.05.2011 को भर्ती की गई तदोपरान्त दिनांक 11.05.2011 को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। चूँकि बीमा लेते वक्त पॉलिसी धारक Muitiple Myeloma कैन्सर से पीड़ित थी इस तथ्य को मृतका, पालिसी धारक द्वारा बीमाकर्ता से छुपाया गया। अभिकर्ता द्वारा सही तथ्य जानते हुये बीमा किया गया। मृतका बीमेदार की पॉलिसी 3 माह 31 दिन चली है अतः यह अल्पा अवधि मृत्यु दावा है। ऐसे में इन्योरेन्स एक्ट 1938 की धारा 45 के अनुसार प्रश्नगत मृत्यु दावा अल्पावधि श्रेणी का हुआ इस लिये मृत्यु सूचना पत्र प्राप्त होने के उपरान्त विपक्षी द्वारा परिवादी को शोक सन्वेदना व्यक्त करते हुये मृत्यु दावा प्रपत्र सं0-3783 दावेदार का बयान प्रपत्र सं0-3784 बी Medical Attendent Certificate एवं प्रपत्र संख्या-3816 बी अस्पताल का प्रमाण पत्र तथा प्रपत्र संख्या-3785 फार्म सी आदि प्रपत्र जारी किये गये जिनको परिवादी द्वारा पूरित करके शीद्य्र वापस करने का निवेदन किया गया तथा मृत्यु प्रमाण पत्र की भी माँग की गई। दावा अल्पावधि श्रेणी का होने के कारण विभागीय सघन जांच कराई गई। जांचोपरान्त परिवादी द्वारा मृत्यु दावा प्रपत्र फार्म सं0-3616 बी-1 (अस्पताल चिकित्सा का प्रमाण पत्र) की समीक्षा के पश्चात यह तथ्य प्रकाश में आया कि बीमा प्रस्ताविका बीमा धारिका मान्डवी पाण्डेय मृत्यु के पूर्व Muitiple Myeloma कैन्सर से पीड़ित थी। रीजेन्सी अस्पताल सर्वोदय नगर कानपुर से वह दिनांक 11.05.2011 को मुक्त हो गई। दावा नकारने के उपरान्त परिवादी को एक पंजीकृत पत्र दिनांकित 26.12.2013 के माध्यम से उचित रूप से कारण सहित दे दी गइ अतः परिवाद निरस्त होने योग्य है। क्षेत्रीय कार्यालय कानपुर में गठित जोनल आफिस क्लेम रिव्यू कमेटी में माननीय सदस्यों के साथ उच्च न्यायालय से सेवानिवृत्त माननीय न्यायाधीश प्रमुख सदस्य होते है जो अपना निर्णय देते है और कमेटी का यह निर्णय मानना होता है। परिवादी का प्रतिवेदन दिनांक 17.02.2014 को भेजा गया एवं दिनांक 01.04.2014 को वरिष्ठ मंडल प्रबंधक के निर्णय दिनांक 26.12.2003 को उचित न्यायसंगत ठहराया। यह तथ्य निर्विवाद साबित होता है कि बीमाधारक ने अपना बीमा प्रस्ताव पत्र को प्रस्तुत करने के पूर्व लगभग डेढ़ वर्ष Muitiple Myeloma कैन्सर की बीमारी से ग्रसित रही थी जिसका इलाज वह कानपुर में करा रही थी जिसने बीमे का अनुचित लाभ लेने हेतु जानबूझकर स्वास्थ्य के सम्बन्ध में Suppression of material facts के कारण नकारा जाना विधिक एवं उचित है। कोई त्रुटि नहीं की गई है। अतः परिवाद को निरस्त किये जाने की याचना की गई है। विपक्षीगण ने जवाबदावा के तथ्यों के समर्थन में शपथपत्र दाखिल किया है।

            परिवादी ने शपथपत्र साक्ष्य दाखिल किया है।

            परिवादी ने अपनी लिखित बहस दाखिल की है।

            विपक्षी ने अपनी लिखित बहस दाखिल की है।

            उभयपक्षों के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना तथा पत्रावली पर प्रस्तुत किये गये साक्ष्यों/अभिलेखों का गहन परिशीलन किया।

            अभिलेखों से स्पष्ट है कि परिवादी रामफेर पाण्डेय ने अपनी पत्नी मान्डवी पाण्डेय का रू0 4,00,000/-का बीमा भारतीय जीवन बीमा निगम से दिनांक 28.11.2010 को कराया था जिसकी बीमा पालिसी संख्या-275202722 है। दिनांक 22.07.2011 को मान्डवी पाण्डेय का स्वर्गवास हो जाने के पश्चात दिनांक 17.05.2012 को क्लेम फार्म समस्त औपचारिकताओं को पूर्ण करने के पश्चात जमा किया गया था किन्तु विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा परिवादी के क्लेम को दिनांक 26.12.2013 को अमान्य कर दिया तथा भारतीय जीवन बीमा निगम के क्षेत्रीय प्रबंधक द्वारा भी दिनांक 01.04.2014 को उक्त क्लेम को अमान्य किये जाने की पुष्टि की गई।

              क्षेत्रीय प्रबंधक भारतीय जीवन बीमा निगम के पत्र दिनांक 26.12.2013 में उक्त बीमा क्लेम को अमान्य करने का मुख्य कारण यह बताया गया है कि बीमाधारिका बीमा लेने से पूर्व से ही कैन्सर से ग्रसित थी जिसके लिये उसने चिकित्सक से परामर्श किया था और उससे इलाज कराया था लेकिन मृतका ने इन तथ्यों को छिपाते हुये अपने प्रस्ताव पत्र में असत्य उत्तर दिये।

               विपक्षी भारतीय जीवन बीमा निगम ने अपने जवाबदावा के प्रस्तर-4 में यह अंकित किया है कि मृतका मान्डवी पाण्डेय बीमा पालिसी धारक कैन्सर से पीड़ित थी तथा तथ्य को मृतका पालिसीधारक एवं अभिकर्ता द्वारा बीमाकर्ता से छुपाया गया। किन्तु इसके सम्बन्ध में विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा बीमा कराये जाने के दिनांक के पूर्व का ऐसा कोई अभिलेखीय साक्ष्य नहीं प्रस्तुत किया है जिसमे बीमा धारिका का इलाज किसी चिकित्सक अथवा कैन्सर स्पेशलिस्ट द्वारा पूर्व में भी किया गया हो। बीमाधारिका ने दिनांक 28.11.2010 को बीमा कराया था जबकि उसकी मृत्यु दिनांक 22.07.2011 अर्थात लगभग सात आठ माह पश्चात हुई तथा कानपुर के रीजेन्सी अस्पताल में प्रथम बार दिनांक 09.05.2011 को मृतका भर्ती हुई तथा दिनांक 11.05.2011 को इलाज के उपरान्त उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया। रीजेन्सी हास्पिटल के चिकित्सा अभिलेखों में भी कही यह अंकित नहीं है कि मृतका ने अस्पताल में भर्ती होने के पूर्व किसी और चिकित्सक से कैन्सर की इस बीमारी का इलाज कराया हो अथवा मृतका काफी पहले से इस बीमारी की जानकारी रहते हुये कैन्सर का इलाज करवा रही थी। दावा प्रपत्र संख्या-3784 व 3816 (क्रमशः दावा प्रपत्र बी एवं बी-1) में अंकित तथ्यों में भी बीमा कराने से पूर्व इस बीमारी के होने अथवा इलाज कराने का कोई उल्लेख नहीं है। यह उल्लेखनीय है कि विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा संलग्नक-2 के रूप में संलग्न किये गये दावा प्रपत्र बी-1 के प्रस्तर-3 में चिकित्सालय में भर्ती होने के पूर्व रोगी का इलाज किसके द्वारा हो रहा था ? यदि रोगी भर्ती के समय किसी डाक्टर का पत्र अथवा पर्चा लाया था तो कृपया उसकी एक प्रमाणित प्रति हमको भेजे के उत्तर में डायरेक्ट एडमिशन उल्लिखित है जिससे यह स्पष्ट है कि रीजेन्सी अस्पताल के अभिलेखों में कहीं भी बीमा धारिका को पूर्व से कैन्सर होने का कोई उल्लेख नहीं है।

                विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा साक्ष्य के रूप में डा0 वी0 के0 गुप्ता की रिपोर्ट दिनांक 21.12.2013 प्रस्तुत की है जिसमे बीमा धारिका को काफी समय से मल्टीपल मायलोमा (कैन्सर) से पीड़ित होना बताया है जबकि इलाज करने वाले डाक्टर की कोई रिपोर्ट अथवा बयान विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा नहीं प्रस्तुत की गई है। विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा इलाज करने वाले डाक्टर का बयान अथवा रिपोर्ट प्रस्तुत करने के स्थान पर बीमाधारिका की मृत्यु के दिनांक 22.07.2011 के दो वर्ष के बाद दिनांक 21.12.2013 को डा0 वी0 के0 गुप्ता की रिपोर्ट बनवाया गया है तथा उसमे यह अंकित कराना कि क्लेम जस्टीफाईड नहीं है उचित नहीं है। इसके स्थान पर यदि विपक्षी बीमा कम्पनी अथवा उसके सर्वेयर द्वारा बीमाधारिका का इलाज करने वाले डाक्टर का बयान लिया जाता तो अवश्य सही स्थिति पता चल जाती कि मृतका की बीमारी कितने वर्ष पुरानी थी।

                परिवादी द्वारा अपनी पत्नी मान्डवी पाण्डेय के दो बीमा पालिसी संख्या-21544276 व 2166166141 कराई गई थी जिसका भुगतान बीमा कम्पनी द्वारा परिवादी को किया जा चुका है। जिससे यह स्पष्ट है कि मान्डवी पाण्डेय के इन दो पालिसियों में नाम सम्बन्धी कोई विवाद नहीं था। जबकि प्रश्नगत पालिसी में नाम के विवाद का उल्लेख किया गया है अतः बीमा कम्पनी के इस आपत्ति में कोई बल नहीं है।

                विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से निम्नलिखित निर्णयज विधियों का सन्दर्भ लिया गया है:-

1. ब्रहमदत्त शर्मा बनाम एल0 आई0 सी0 आफ इंडिया, ए आई आर 1966 इलाहाबाद 474

2. एल0 आई0 सी0 आफ इंडिया बनाम श्रीमती लिली रानी राय 1997 (।) सी पी आर 40, (एन. सी. डी. आर. सी.)

3. मूर्ति देवी बनाम बिरला सनलाईफ इं0 कम्पनी, 1 (2018) सी पी जे 29 हरियाणा, राज्य उपभोक्ता आयोग

4. मायादेवी बनाम एल0 आई0 सी0 आफ इंडिया 2011 (।।) सी पी आर 419 (एन सी) एन. सी. डी. आर. सी.

5. एल0 आई0 सी0 आफ इंडिया बनाम मनीष गुप्ता, सिविल अपील संख्या-3944/2019 (सुप्रीम कोर्ट) निर्णय दिनांक 15.04.2019

              विपक्षी की ओर से संदर्भित उपरोक्त समस्त निर्णयज विधियों में यह विधि सिद्वान्त प्रतिपादित किया गया है कि बीमा धारक व बीमा कम्पनी के मध्य जीवन बीमा करार पूर्णतः सद्भावना एवं विश्वास के आधार पर किया जाता है। यदि बीमा धारक द्वारा बीमा लेते समय अपनी बीमारियों को छुपाया जाता है या बीमारियों का विवरण देने में मिथ्या व्यपदेशन किया जाता है तो बीमा धारक की मृत्यु पश्चात बीमा क्लेम का निस्तारण करने के लिए बीमा कम्पनी द्वारा एकत्रित किये गये साक्ष्य में बीमा धारक द्वारा पूर्व की गंभीर बीमारी को छिपाये जाने या मिथ्या व्यपदेशन सिद्व होने पर बीमा कम्पनी बीमा क्लेम निरस्त कर सकती है।

              विपक्षी द्वारा संदर्भित उपरोक्त निर्णयज विधियों के सिद्वान्त उपरोक्त विवेचन के संबंध में लागू करने से स्पष्ट है कि वर्तमान प्रकरण में बीमा धारक द्वारा प्रश्नगत बीमा लेते समय बीमा धारक को कैन्सर की बीमारी होने की जानकारी होते हुये बीमा कम्पनी को सूचित न करना सिद्व नहीं हुआ है।

             बीमा कम्पनी ने बीमा क्लेम निस्तारित करने में रीजेन्सी अस्पताल कानपुर के चिकित्सक से प्रमाण पत्र प्राप्त किया है जो प्रपत्र बी-1 (संलग्नक-2) है इसके कालम संख्या-03 में भी चिकित्सक ने स्पष्ट रूप से मरीज को रीजेन्सी अस्पताल कानपुर में भर्ती होने के पूर्व किसी अन्य डाक्टर या चिकित्सालय से चिकित्सा कराने का कोई उल्लेख नहीं किया है बल्कि अस्पताल में सीधे भर्ती होना कहा है। इस अभिलेखीय साक्ष्य से पूर्णतः स्पष्ट है कि बीमा धारक द्वारा बीमा लेते समय स्वयं को कैन्सर होने की जानकारी होना पुष्ट नहीं होता है। अतः इस बिन्दु पर भी विपक्षी का तर्क बलहीन है।

            परिवादी द्वारा जो भी चिकित्सा प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया गया है वह केवल रीजेन्सी हास्पिटल कानपुर का है तथा वह भी बीमा कराने के बाद का है इसको खंडित करने के लिये विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा कोई ऐसा पुष्टिकारक साक्ष्य नहीं प्रस्तुत किया है जिससे यह सिद्व हो सके कि बीमाधारिका को बीमा कराने के पूर्व कैन्सर होने की जानकारी थी। बिना किसी विश्वसनीय पुष्टि कारक साक्ष्य के विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा बीमा क्लेम को केवल संभावनाओं और परिकल्पानाओं के आधार पर अमान्य किया जाना विधि विरूद्व है और उपभोक्ता के रूप में विपक्षी को दी जाने वाली सेवा में कमी भी है। तद्नुसार विपक्षी बीमा कम्पनी बीमा धारिका की मृत्यु के कारण परिवादी का क्लेम नियमानुसार अदा करने के लिये दायित्वाधीन है। परिवाद अंशतः स्वीकार किये जाने योग्य है।

आदेश

            परिवाद संख्या-72/2014 आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी बीमा कम्पनी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को बीमा धनराशि रू0 4,00,000/-परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि 13.08.2014 से अदायगी की तिथि तक छः प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज तथा मानसिक आर्थिक एवं शारीरिक क्षतिपूर्ति के रूप में रू0 10,000/-एवं वाद व्यय के रूप में रू0 5,000/-पैतालिस दिन के अंदर अदा करें। आदेशित धनराशि का भुगतान निर्धारित समय पर न किये जाने पर बीमित धनराशि रू0 4,00,000/-पर भुगतान की तिथि तक नौ प्रतिशत ब्याज देय होगा।

(डॉ0 एस0 के0 त्रिपाठी)       (मीना सिंह)         (संजय खरे)

         सदस्य                      सदस्य                अध्यक्ष

यह निर्णय आज दिनांक को  आयोग  के  अध्यक्ष  एंव  सदस्य द्वारा  खुले न्यायालय में उद्घोषित किया गया।

(डॉ0 एस0 के0 त्रिपाठी)       (मीना सिंह)         (संजय खरे)

         सदस्य                      सदस्य                अध्यक्ष

दिनांक 12.06.2023

 

Consumer Court Lawyer

Best Law Firm for all your Consumer Court related cases.

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!
5.0 (615)

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!

Experties

Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes

Phone Number

7982270319

Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.