जिला फोरम उपभोक्ता विवाद प्रतितोष, झुन्झुनू (राज0)
परिवाद संख्या - 86/14
समक्ष:- 1. श्री सुखपाल बुन्देल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती शबाना फारूकी, सदस्या।
3. श्री अजय कुमार मिश्रा, सदस्य।
जयनारायण चाहर पुत्र रामनाथ चाहर जाति जाट निवासी बाकरा तहसील व जिला झुन्झुनू। - परिवादी
बनाम
भारतीय जीवन बीमा निगम जरिये मुख्य प्रबंधक भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा कार्यालय झुंझुनू। - विपक्षी
परिवाद पत्र अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता सरंक्षण अधिनियम 1986
उपस्थित:-
1. श्री बाबुलाल मील, एडवोकेट - परिवादी की ओर से।
2. श्री लाल बहादुर जैन, एडवोकेट - विपक्षी की ओर से।
- निर्णय - दिनांक 11.02.2015
परिवादी ने यह परिवाद पत्र मंच के समक्ष पेष किया जिसे दिनांक 06.02.2014 को संस्थित किया गया।
परिवाद पत्र के संक्षिप्त तथ्य इस प्रकार है कि - परिवादी जयनारायण अवयस्क मृतक संजीव कुमार का पिता है जो स्व0 संजीव कुमार का वैध उतराधिकारी (नोमिनी) होने के कारण यह परिवाद पत्र विपक्षी के विरूद्ध परिवादी द्धारा पेष किया गया है।
परिवादी ने अपने अवयस्क पुत्र संजीवकुमार के नाम से विपक्षी के यहां 1,25,000/-रुपये राषि की बीमा पाॅलिसी नम्बर 198534246 ली, जिसकी प्रिमीयम परिवादी द्वारा जमा कराई गई तथा परिवादी अवयस्क संजीव कुमार का नोमीनी है। इसलिए परिवादी विपक्षी का उपभोक्ता है।
परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह भी कथन किया है कि परिवादी का अवयस्क पुत्र संजीव कुमार बीमा पालिसी लेने के समय पूर्णतया स्वस्थ था तथा नियमित रूप से विद्यालय में अध्ययन कर रहा था। परिवादी का पुत्र संजीव कुमार अचानक बीमार हो गया जिसे बी.डी.के. अस्पताल, झुंझुनू में इलाज हेतु भर्ती करवाया गया परन्तु उसके फेफड़ों में भारी इन्फेक्षन हो जाने के कारण दिनांक 17.10.2012 को उसकी मृत्यु हो गई। परिवादी के पुत्र की मृत्यु हो जाने के बाद परिवादी ने विपक्षी के यहां बीमा पाॅलिसी की शर्तो के अनुसार बीमा लाभ क्लेम प्राप्त करने के लिए दावा किया, जिस पर विपक्षी द्वारा परिवादी को शीघ्र ही बीमाधन रािष का भुगतान करने का आष्वासन दिया गया। परन्तु बाद में विपक्षी ने बीमा लाभ हेतु क्लेम देने से इन्कार करते हुए परिवादी का मृत्यु दावा क्लेम खारिज कर दिया। जो विपक्षी की सेवा में कमी की श्रेणी में आता है।
अन्त में परिवादी ने अपना परिवाद पत्र स्वीकार करने एंव विपक्षी से बीमा धन राषि 1,25,000/रुपये व अन्य देय लाभ मय ब्याज के एक मुष्त दिलाये जाने का निवेदन किया।
विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से परिवाद पत्र में अंकित तथ्यों के संबंध में जवाब पेष कर परिवादी के अवयस्क पुत्र स्वः संजीवकुमार के नाम से विपक्षी के यहां 1,25,000/-रुपये राषि की बीमा पाॅलिसी नम्बर 198534246 लिया जाना व उक्त पालिसी में परिवादी का नोमिनी होना तथा दिनांक 17.10.2012 को परिवादी के पुत्र संजीव कुमार की मृत्यु होने के पश्चात परिवादी की ओर से प्रस्तुत दावा क्लेम विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा खारिज किया जाना, विवादित नहीं होना कथन किया है।
विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से अपने जवाब में यह भी कथन किया गया है कि परिवादी का पुत्र पालिसी लेते समय पूर्णतया स्वस्थ नहीं था बल्कि बीमाधारी प्रस्ताव पूर्व से कैंसर के रोग से पीडि़त चल रहा था। परिवादी ने अपने पुत्र का बीमा कराने के लिए प्रस्ताव पत्र दिनांक 31 दिसम्बर, 2011 को दिया जिस पर विपक्षी ने बीमाधारी द्वारा दी गई सूचनाओं के आधार पर तथा अन्त में की गई घोषणा के आधार पर पूर्ण विष्वास करते हुए बीमाधारी के पक्ष में पालिसी संख्या 198534246 जारी करदी। जबकि इससे पूर्व परिवादी के पुत्र द्वारा दिनांक 25 जुलाई, 2011 को भगवान महावीर केंसर हास्पिटल एण्ड रिसर्च सेन्टर, जयपुर में ब्ं त्जण् ज्मेजपे (दांए अण्डकोष का केंसर) संबंधी रोग इलाज लिया, इसके बाद बीमाधारी ने इसी रोग का दिनांक 29 नवम्बर, 2011 से 03 दिसम्बर, 2011 तक उक्त अस्पताल में इलाज लिया। इससे स्पष्ट है कि बीमाधारी पालिसी लिये जाने के पूर्व कैंसर के रोग से पीडि़त रहा। परिवादी व बीमाधारी को बिमारी के संबंध में पूर्ण जानकारी थी उसके बावजूद प्रस्ताव पत्र में एवं प्रस्तावक द्वारा की गई घोषणा में जान बूझकर बिमारी व लिये गये इलाज के तात्विक तथ्यों को छिपाते हुए तथा प्रस्ताव पत्र में इतिवृत में पूछे गये सभी प्रष्नों के उतर नकारात्मक देकर बीमा का लाभ प्राप्त करने के उदेष्य से धोखे से पालिसी ली। बीमाधारी की उक्त पालिसी में जोखिम दिनांक 31.12.2011 से प्रारंभ हुई तथा बीमाधारी की मृत्यु दिनांक 17 अक्टूबर, 2012 को हुई। बीमा धारक की मृत्यु पाॅलिसी जारी करने की अवधि से 9 माह 16 दिन में ही हो गई, इस प्रकार परिवादी का क्लेम म्ंतसल श्रेणी के क्लेम के अन्तर्गत आता है, जिसमें मृत्यु दावे पर निर्णय के लिए अनुसंधान कराया जाना आवष्यक है।
विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से अपने जवाब में यह भी कथन किया गया है कि अनुसंधान अधिकारी द्वारा अनुसंधान के दौरान बीमा धारक के सम्बन्धित अस्पताल से आवष्यक जानकारी प्राप्त की गई, जिससे यह जानकारी में आया कि बीमा धारक ने दिनांक 25 जुलाई, 2011 से 28 फरवरी, 2012 तक भगवान महावीर कैंसर चिकित्सालय एवं अनुसंधान केन्द्र में इलाज लिया था । अनुसंधान में यह तथ्य भी प्रकट हुए कि बीमाधारी ने एक वर्ष के दौरान सोनी अस्पताल, सवाई मानसिंह अस्पताल, फोर्टीज, दुर्लभजी अस्पताल, जयपुर में भी इलाज लिया तथा 16 अक्टुबर, 2012 को राजकीय बी.डी.के. अस्पताल, झुंझुनू में भर्ती होकर इलाज के दौरान दिनांक 17.10.2012 को मृत्यु हो गई । दावा जाचं रिपोर्ट एवं भगवान महावीर कैंसर चिकित्सालय एवं अनुसंधान केन्द्र, जयपुर द्वारा दिनांक 25 जुलाई,2011 पंजीकरण प्रपत्र एवं 29 नवम्बर,2011 को जारी समरी रिपोर्ट, छनजतपजपवदंस ।ेेमेेउमदज ैीममजए प्दअमेजपहंजपवद त्मचवतज मय सभी परीक्षण/इलाज संबंधी दस्तावेजात एवं राजकीय बी.डी.के. अस्पताल, झुंझुनू में लिये गये इलाज संबंधी दस्तावेजात की प्रतियां डी 4 एवं डी 5 पेष की है। इस प्रकार प्रस्तावक को मृतक बीमाधारी की बिमारी के बारे में पूर्ण जानकारी थी तथा यह भी पता था कि बीमाधारी इस कदर गंभीर रूप से बीमार था कि उसकी निकट भविष्य में कभी भी मृत्यु हो सकती है व इसी उदेष्य को दृष्टिगत रखते हुए जानबूझकर बिमारी के तथ्यों को छिपाते हुए धोखे से उक्त पालिसी ली । परिवादी ने स्वंय ने प्रपत्र संख्या 3783 दावेदार का बयान के कालम संख्या 2(6) तथा प्रपत्र संख्या 3785 दाह संस्कार या दफनाने का प्रमाण पत्र के कालम संख्या 4(क) में मृत्यु होने का तात्कालिक कारण अंकित नहीं किया है जबकि मृतक बीमाधारी की मृत्यु ब्ंदबमत से पीडि़त होने के कारण हुई। प्रपत्र संख्या 3783 के कालम संख्या 6 में मृत्यु होने के समय से पिछले तीन वर्षो के अंदर मृतक ने जिन चिकित्सकों से सलाह ली हो अथवा चिकित्सा कराई हो, उनका पूरा-पूरा ब्यौरा दिनांक सहित दीजिये, में कोई नहीं उल्लेख किया है जबकि बीमाधारी ने पत्रावली पर प्रस्तुत अभिलेख के आधार पर उक्त अस्पतालों मंे इलाज लिया।
विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से अपने जवाब में यह भी कथन किया गया है कि विपक्षी निगम के मण्डल कार्यालय, जयपुर में गठित स्टेण्डिंग कमेटी ने परिवादी द्वारा प्रस्तुत मृत्यु दावे पर निर्णय लेने के लिये परिवादी से प्राप्त दावा प्रपत्र, अनुसंधान अधिकारी द्वारा प्रस्तुत जांच रिपोर्ट व अन्य संगत अभिलेख पर विचार करने के उपरांत ही क्लेम निरस्त किया है जिसकी सूचना परिवादी को जरिये रजिस्टर्ड पत्र दिनांक 30 मार्च, 2013 को दी गई। परिवादी ने विपक्षी निगम के क्षेत्रीय कार्यालय में उक्त निर्णय के विरूद्ध अभ्यावेदन/अपील प्रस्तुत की जिस पर दावा समीक्षण कमेटी ने विपक्षी निगम द्वारा लिये गये निर्णय की पुष्टि करते हुए निर्णय को यथावत रखा व उसकी सूचना परिवादी को पत्र दिनांक 7 सितम्बर, 2013 के माध्यम से दे दी गई। इस प्रकार प्रस्तावक द्वारा महत्वपूर्ण तात्विक तथ्यों जिनके बारे में उन्हें जानकारी थी, उन्हें जानबूझकर छिपाया एवं बीमा का लाभ प्राप्त करने के उदेष्य से धोखे से पालिसी ली तथा मृतक बीमाधारी की उक्त पालिसी में जोखिम दिनांक 31 दिसम्बर, 2011 से स्वीकृत की गयी थी तथा बीमाधारी की पालिसी के अंतर्गत परिवादी की ओर से प्रस्तुत मृत्युदावे पर विपक्षी निगम द्वारा निर्णय दिनांक 30 मार्च, 2013 को लिया गया जो दो वर्ष के भीतर होने से परिवादी बीमा अधिनियम की धारा 45 का लाभ प्राप्त नहीं कर सकता है।
अन्त में विपक्षी ने परिवादी का परिवाद पत्र मय खर्चा खारिज किये जाने का निवेदन किया।
उभयपक्ष की लिखित एवं मौखिक बहस सुनी गई। पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया गया।
प्रस्तुत प्रकरण मे यह तथ्य निर्विवादित रहे हंै कि परिवादी के अवयस्क पुत्र संजीव कुमार के नाम से विपक्षी के यहां 1,25,000/-रुपये राषि की बीमा पाॅलिसी नम्बर 198534246 ली गई, जिसमें परिवादी नोमिनी था । दिनांक 17.10.2012 को परिवादी के पुत्र की मृत्यु होने पर परिवादी द्वारा विपक्षी के यहां मृत्यु दावा क्लेम पेष किया गया, जिसे विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा खारिज कर दिया गया।
विद्वान् अधिवक्ता परिवादी ने विद्वान् अधिवक्ता विपक्षी बीमा कम्पनी के जवाब में अंकित तथ्यों का विरोध करते हुए बहस के दौरान यह तर्क दिया है कि उक्त पाॅलिसी में परिवादी के अवयस्क पुत्र संजीव कुमार को प्रपोजल फार्म को भरकर हस्ताक्षर किये जाते समय अपने आपको पूर्ण रुप से स्वस्थ एंव पूर्व में किसी प्रकार की बिमारी से ग्रसित नहीं होना बताया है तथा वह उक्त पालिसी प्राप्त करने से पूर्व किसी प्रकार की गंभीर बिमारी से ग्रसित नहीं था। इसलिये परिवादी उक्त पालिसी के तहत विपक्षी बीमा कम्पनी से नियमानुसार राषि प्राप्त करने का अधिकारी है।
विद्धान् अधिवक्ता विपक्षी ने विद्वान् अधिवक्ता परिवादी के उक्त तर्को का विरोध करते हुये लिखित एवं मौखिक बहस के दौरान यह कथन किया है कि मृतक बीमाधारी ने प्रस्ताव फार्म भरने से पूर्व ही दिनांक 25 जुलाई, 2011 को कंैंसर की बिमारी के इलाज हेतु भगवान महावीर केंसर हास्पिटल एण्ड रिसर्च सेन्टर, जयपुर में पंजीकरण करवाया, जिसका पंजीकरण प्रपत्र क्रमांक ।व. 4768 दिनांक 25.07.2011 है। इसके बाद बीमाधारी ने ब्ं त्जण् ज्मेजपे (दांए अण्डकोष का केंसर) संबंधी रोग का दिनांक 29 नवम्बर, 2011 से 03 दिसम्बर, 2011 तक उक्त अस्पताल में भर्ती रहकर इलाज लिया, जिसकी इलाज संबंधी रिपोर्ट एव डिस्चार्ज संबंधी समरी की फोटो प्रतियां जांच रिपोर्ट के साथ संलग्न कर पेष की गई है। जांच रिपोर्ट के साथ प्रस्तुत समरी के अनुसार उसका क्पंहदवेपे करने पर ब्ं त्जण् ज्मेजपे . ैजंहम प्प्प् बताई गई है। जबकि परिवादी के पुत्र का बीमा कराने के लिए प्रस्ताव पत्र दिनांक 31 दिसम्बर, 2011 को दिया गया, जिस पर विपक्षी ने बीमाधारी द्वारा दी गई सूचनाओं के आधार पर तथा अन्त में की गई घोषणा के आधार पर पूर्ण विष्वास करते हुए बीमाधारी के पक्ष में पालिसी संख्या 198534246 दिनांक स्वीकृत करते हुए जारी की गई है।
विद्वान् अधिवक्ता विपक्षी द्वारा उपरोक्त तथ्य उजागर करने से यह तथ्य प्रकट होता है कि बीमाधारी पालिसी लिये जाने संे पूर्व से ही गंभीर बिमारी से पीडि़त रहा। परिवादी व बीमाधारी को बिमारी के संबंध में पूर्ण जानकारी थी उसके बावजूद प्रस्ताव पत्र में एवं प्रस्तावक द्वारा की गई घोषणा में जान बूझकर बिमारी व लिये गये इलाज के तात्विक तथ्यों को छिपाते हुए तथा प्रस्ताव पत्र में इतिवृत में पूछे गये सभी प्रष्नों के उतर नकारात्मक देकर बीमा का लाभ प्राप्त करने के उदेष्य से धोखे से पालिसी ली। बीमाधारी की उक्त पालिसी में जोखिम दिनांक 31.12.2011 से प्रारंभ हुई तथा बीमाधारी की मृत्यु दिनांक 17 अक्टूबर, 2012 को हुई।
पत्रावली के अवलोकन से यह स्पष्ट हुआ कि बीमा कम्पनी द्वारा प्रस्तुत दावा जांच रिपोर्ट डी-4 के अनुसार बीमाधारी मृतक संजीव कुमार प्रस्ताव से पूर्व ब्ं त्जण् ज्मेजपे (दांए अण्डकोष का केंसर) संबंधी बिमारी से पीडि़त था। उक्त बिमारी का बीमाधारी संजीवकुमार लगातार भगवान महावीर कैंसर अस्पताल एण्ड रिसर्च सेंटर, जयपुर, सोनी अस्पताल, सवाई मानसिंह अस्पताल, फोर्टीज, दुर्लभजी अस्पताल, जयपुर में इलाज कराता रहा है तथा अंत में राजकीय बी.डी.के. अस्पताल, झुंझुनू में इलाज के दौरान दिनांक 17.10.2012 को बीमाधारी संजीव कुमार की मृत्यु हो गई । इस प्रकार विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा प्रस्तुत की गई जांच रिपोर्ट डी-4 की पुष्टि विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा प्रस्तुत चिकित्सिय प्रलेख से भी होती है। मृतक बीमाधारी व प्रस्तावक ने प्रस्ताव लेने से पूर्व उक्त बिमारी से पीडि़त होते हुये तथा उनके ज्ञान में रहते हुये सही तथ्य को जान बूझकर छिपाकर नेक नियति के अभाव में बीमा पालिसी प्राप्त की। प्रस्ताव पत्र में बीमाधारी द्वारा बिमारी का उल्लेख नहीं करने पर बीमा कम्पनी ने क्लेम निरस्त किया है।
विद्वान् अधिवक्ता विपक्षी बीमा कम्पनी ने अपने तर्को के समर्थन में निम्नलिखित न्यायदृष्टान्त
1- III (2008) CPJ 78 (SC)
P.C. CHACKO & ANR Vs. CHAIRMAN, LIFE INSURANCE CORPORATION
OF INDIA & ORS.,
2- IV(2009) CPJ 8 (SC)
SATWANT KAUR SANDHU Vs. NEW INDIA ASSURANCE COMPANY
LTD.
3- III (2013) CPJ 654 (NC)-
SATYAVATI SHARMA Vs LIFE INSURANCE CORPORATION,
4- III (2013) CPJ 684 (NC)-
KAPIL SHARMA Vs. LIFE INSURANCE CORPORATION OF INDIA;
5- IV (2012) CPJ 784 (NC)
C.N. MOHAN RAJ Vs NEW INDIA ASSURANCE COMPANY LTD,
6- IV(2013) CPJ 370 (NC)
LIFE INSURANCE CORPORATION OF INDIA Vs. SHAHIDA KHATOON &
ANR,
7- I(2009) CPJ 275 (NC)
KAPIL RAI SINGHANI Vs. LIFE INSURANCE CORPORATION OF INDIA,
8- III (2012) CPJ 288 (NC)
LIC OF INDIA Vs. VIDYA DEVI & ANR;आदि पेष किये।
उपरोक्त न्यायदृष्टांतों में माननीय सर्वोच्च न्यायालय एवं माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा जो सिद्वंात प्रतिपादित किये गये हैं उनसे हम पूर्ण रूप से सहमत हैं। प्रकरण के तथ्यों व परिस्थितियों के अनुरूप होने से इस प्रकरण में उक्त न्यायदृष्टांत पूर्ण रूप से चस्पा होते हैं। विद्वान् अधिवक्ता परिवादी की ओर से उपरोक्त न्यायदृष्टांतों के खण्डन में कोई नजीर पेष नहीं की गई है।
इस प्रकार परिवादी यह साबित करने में पूर्णतया असफल रहा है कि मृतक संजीव कुमार प्रपोजल फोर्म भरने व पालिसी जारी करने से पूर्व गंभीर बिमारी से ग्रसित नहीं था। परिवादी की ओर से ऐसी कोई दस्तावेजी साक्ष्य साक्ष्य पेष नहीं हुई है जिससे विपक्षी की ओर से प्रस्तुुत मौखिक एवं दस्तावेजी साक्ष्य का खण्डन होता हो।
उपरोक्त साक्ष्य के विवेचन से यह स्पष्ट होता हैं कि परिवादी के पुत्र संजीवकुमार द्वारा दिनांक 25 जुलाई, 2011 से 28 फरवरी,2011 तक भगवान महावीर कैंसर होस्पीटल एण्ड रिसर्च सेण्टर जयपुर में ब्ं त्जण् ज्मेजपे (दांए अण्डकोष का केंसर) संबंधी रोग का इलाज लिया। बीमाधारी (मृतक) पालिसी लिये जाने केे पूर्व से कैंसर रोग से पीडि़त था । परिवादी व बीमाधारी को बिमारी के संबंध में पूर्ण जानकारी थी इसके बावजूद प्रस्ताव पत्र में प्रस्तावक द्वारा की गई घोषणा में जानबूझकर बिमारी व लिये गये इलाज के तात्विक तथ्यों को छिपाते हुए तथा प्रस्ताव में इतिवृति में पूछे गये सभी प्रष्नों के उतर नकारात्मक देकर बीमा का लाभ प्राप्त करने के उदेष्य से नेक नियति के अभाव में पालिसी ली गई। बीमाधारी की उक्त पालिसी में जोखिम दिनांक 31.12.2011 से प्रारंभ हुई थी। बीमाधारी की मृत्यु राजकीय बी.डी.के. अस्पताल, झुंझुनू में इलाज के दौरान दिनांक 17.10.2012 को हो गई। परिवादी व बीमाधारी द्वारा प्रस्ताव पत्र में बिमारी व लिये गये इलाज का उल्लेख नहीं करने पर बीमा कम्पनी द्वारा सम्पूर्ण जांच करने के पश्चात परिवादी का दावा क्लेम निरस्त किया गया है, जो सही है।
इसलिये उपरोक्त सम्पूर्ण साक्ष्य के विवेचन के आधार पर तथा विपक्षी की ओर से प्रस्तुत उक्त न्यायदृष्टांतों की रोषनी में परिवादी, विपक्षी बीमा कम्पनी से उक्त पालिसी के अधीन किसी भी प्रकार का लाभ प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है।
परिणामतः परिवादी का परिवाद पत्र स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है जो एतद्द्वारा खारिज किया जाता है।
खर्चा पक्षकारान अपना-अपना वहन करेगें।
निर्णय आज दिनांक 11.02.2015 को लिखाया जाकर मंच द्धारा सुनाया गया।
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