जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम, लखनऊ।
परिवाद संख्या:-224/2015 उपस्थित:-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
श्रीमती सोनिया सिंह, सदस्य।
श्री कुमार राघवेन्द्र सिंह, सदस्य।
परिवाद प्रस्तुत करने की तारीख:-20.07.2015
परिवाद के निर्णय की तारीख:-19.09.2023
1. Sunil Kumar Seth son of late Saran Das Seth, resident of Flat No. 601, Rapti River View Enclave, Gomti Nagar, Lucknow.
..................Complainants.
Versus
Lucknow Development Authority, a body corporate constituted uder the U.P. Urban Planning and Development Act 1973, having its head office at Pradhikaran Bhawan, Vipin Khand, Gomti Nagar, Lucknow through its Vice Chairman.
................Opposite Party.
परिवादी के अधिवक्ता का नाम:-श्री अशोक सिन्हा।
विपक्षी के अधिवक्ता का नाम:-श्री ओम कार।
आदेश द्वारा-श्री कुमार राघवेन्द्र सिंह, सदस्य।
निर्णय
1. परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा-13 के तहत योजित किया गया है। परिवादी द्वारा फ्लैट 32 माह विलम्ब से दिए जाने के लिये फ्लैट की कीमत 29,43,000.00 रूपये पर 15 प्रतिशत वार्षिक ब्याज, 32 माह का मकान किराया में 3,75,000.00 रूपये व्यय की पूर्ति, 2,36,950.00 रूपये स्केलेशन की मद में लिये गये अतिरिक्त चार्ज पर 18 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ वापस दिलाये जाने की प्रार्थना के साथ प्रस्तुत किया गया है।
2. संक्षेप में परिवाद के कथन इस प्रकार हैं कि विपक्षी द्वारा मल्टी स्टोरी आवासीय भवन, सेक्टर-04 गोमती नगर, लखनऊ में अक्टूबर 2009 में एडवरटीजमेंट के माध्यम से योजना निकाली जिसमें परिवादी ने विपक्षी की इस योजना से आकर्षित होकर तीन बेडरूम तथा एक स्टडी रूम क्रय किये जाने हेतु धनराशि 1,47,000.00 रूपये पंजीकरण शुल्क का जमा किया। विपक्षी द्वारा परिवादी को अपने पत्र दिनॉंक 27.03.2010 द्वारा यह सूचना दी गयी कि गोमती नगर एक्स्टेंशन, सेक्टर-04 में रिवर व्यू इन्क्लेव में राप्ती I ब्लाक की छठी मंजिल पर प्रापर्टी नम्बर RP/I/601 है जिसका जो 148.26 स्क्वायर मीटर एरिया का फ्लैट है जिसकी कुल कीमत 29,43,000.00 रूपये निर्धारित थी। दिनॉंक 22.02.2010 को परिवादी को एलाट किया गया है। फ्लैट की सम्पूर्ण धनराशि को विपक्षी को दिनॉंक 30.06.2011 तक जमा करना था। परिवादी द्वारा निर्धारित धनराशि 29,43,000.00 रूपये दिनॉंक 30.06.2010 तक जमा कर दिया गया।
3. एलॉटमेंट लेटर में यह कहा गया कि एलाटमेंट तिथि से 24 माह के अन्दर फ्लैट का कब्जा दे दिया जायेगा। अत: दिनॉंक 22.02.2012 से संबंधित फ्लैट का कब्जा दे दिया जाना था क्योंकि एलाटमेंट दिनॉंक 22.02.2010 को हुआ था। ब्रोशर में यह भी अवगत कराया गया है कि फ्लैट की वास्तविक कास्ट में अधिकतम 05 प्रतिशत की बृद्धि अनुमानित होगी। परिवादी का कथानक है कि वह एन0टी0पी0सी0 में कार्यरत है जो स्थानातरणीय पद है। उसने इस फ्लैट का चयन इसलिए किया था कि उसके बच्चों/पत्नी लखनऊ में रहकर सुविधापूर्वक अध्ययन कर सके। वर्तमान में परिवादी एन0टी0पी0सी0 में एडिश्नल जनरल मैनेजर के पद पर लखनऊ में ही कार्यरत है। इससे पूर्व वह पटना में कार्यरत था। फ्लैट पर कब्जा मिलने की प्रत्याशा में वह 01 अप्रैल 2013 को पटना से लखनऊ आ गया। परिवादी का यह भी कथानक है कि नवंबर 2013 में उसके पुत्र रोहित सेठ की शादी होने की सूचना विपक्षी को दी गयी थी, जिसे स्थगित नहीं किया जा सकता था। ऐसी परिस्थिति में अलग से आवास की व्यवस्था की गयी जिसमें परिवादी व उसके परिवार को अत्यधिक शारीरिक व मानसिक कष्ट हुआ, और आर्थिक नुकसान भी हुआ। निर्धारित समय दिनॉंक 22.02.2012 को कब्जा न मिलने के कारण उसे तीन बार मकान बदलना पड़ा जिसमें बड़ी असुविधा हुई। निर्धारित तिथि पर फ्लैट पर कब्जा न मिलने के कारण किराये के रूप में एक बड़ी धनराशि व्यय हुई, जिससे परिवादी को आर्थिक व मानसिक कष्ट हुआ, जिसकी संपूर्ण जिम्मेदारी व देयता विपक्षी पर होगी।
4. विपक्षी द्वारा भवन का कब्जा निर्धारित तिथि 22.02.2012 को नहीं दिया गया। कई बार संपर्क करने के बाद अत्यन्त विलम्ब से दिनॉंक 23.06.2014 को सेलडीड परिवादी व उसकी पत्नी अनुराधा सेठ के पक्ष में इक्जीक्यूट की गयी परन्तु भौतिक कब्जा नहीं दिया गया। दिनॉंक 18.10.2014 को विपक्षी पार्टी द्वारा भौतिक कब्जा परिवादी को दिया गया। कब्जे के बाद भी कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा। अपार्टमेंट की लिफ्ट काम नहीं करती थी, पानी, केबल टीवी की कोई सुविधा नहीं दी गयी थी। कोई हाउस कीपिंग करने वाला नहीं था, जब कि दिनॉंक 10.03.2014 को 62,600.00 रूपये इन्ही मदों में चार्ज किया गया था और दिया गया मकान रहने की स्थिति में नहीं था। पार्किंग एरिया भी नहीं दिया गया जिसके लिये 1,00,000.00 रूपये लिये गये है, फिर भी परिवादी उक्त फ्लैट में दिनॉंक 24.01.2015 को शिफ्ट कर गया।
5. विपक्षी ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत करते हुए कथन किया है कि परिवाद पत्र के प्रस्तर-02 एवं 03 स्वीकार किया गया तथा यह कहा गया कि परिवादी द्वारा झूठे, मिथ्या आरोप लगाये गये हैं। मनगढ़न्त तरीके से यह कहना कि कब्जा बाद में दिया गया यह गलत है, क्योंकि उसी दिन कब्जा दिया गया जिस दिन उल्लिखित है। अतिरिक्त कथन किया कि परिवादी को गोमती नगर योजना के सेक्टर-04 में बहुखण्डीय अपार्टमेंट के छठे तल पर फ्लैट RP/I/602 का आवंटन लाटरी द्वारा दिनॉंक 22.02.2010 को स्ववित्त पोषित योजना के अन्तर्गत किया गया था, जिसका अनुमानित मूल्य 29,43,000.00 रूपये एवं अनुमानित एरिया 148.26 वर्गमीटर था तथा पंजीकरण धनराशि के अतिरिक्त अवशेष अनुमानित मूल्य को सात किश्तों में जमा करने हेतु कहा गया था, जिसकी पहली किश्त 2,94,000.00 रूपये दिनॉंक 30.04.2010, दूसरी किश्त से सातवी त्रैमासिक किश्त 4,61,863.00 रूपये की जो दिनॉंक 30.06.2010, 30.09.2010, 31.12.2010, 31.03.2011, 30.06.2011 व 30.09.2011 जमा करनी थी। इसमें शर्त है कि अन्तिम मूल्य का भुगतान रजिस्ट्री से पूर्व करना होगा। अगर कोई किश्त जमा नहीं होती है तो ब्याज लिया जायेगा, तथा अन्य चार्ज भी देना पड़ेगा। एल0पी0जी0 कनेक्शन तथा 10,000.00 रूपये प्रति फ्लैट इन्टरनेट कनेक्शन व डी0टी0एच0 केबल कनेक्शन का अतिरिक्त भुगतान करना होगा।
6. परिवादी ने 29,43,000.00 रूपये का भुगतान 45 दिन में कर दिया गया है। अन्य मदों में चार्ज लेकर जमा कराया गया जिसमें भुगतान की व्यवस्था नहीं थी। परिवादी को कब्जा दिया जा चुका है। अत: परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
7. परिवादी ने अपने कथानक के समर्थन में मौखिक साक्ष्य के रूप में शपथ पत्र तथा दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रापर्टी एलाटमेंन्ट लेटर, फाइनल एकाउन्ट रिपोर्ट, ट्रान्सफर आर्डर एवं ज्वाइनिंग रिपोर्ट, आर्डर कापी, विवरण पुस्तिका आदि की छायाप्रतियॉं प्रस्तुत की गयी हैं। विपक्षी की ओर से भी शपथ पत्र तथा दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रापर्टी एलाटमेंट लेटर, परिवादी द्वारा प्रेषित पत्र, व्यवस्था अधिकारी का पत्र, शेड्यूल आफ पेमेन्ट, ई-स्टॉप, आदि प्रपत्र दाखिल किये गये हैं।
8. मैंने उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्ता के तर्कों को सुना तथा पत्रावली का परिशीलन किया।
9. परिवादी को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत दो तथ्यों को साबित किया जाना आवश्यक है। प्रथम परिवादी का उपभोक्ता होना तथा दूसरा विपक्षी द्वारा परिवादी की सेवा में कमी की गयी हो। परिवाद को साबित करने का भार परिवादी के ऊपर है।
10. यह तथ्य विवाद का विषय नहीं है कि परिवादी को एक फ्लैट संख्या Property type 3-BHK + Study (Type-II) सख्या RP/1/601 रिवर व्यू, गोमती नगर विस्तार, लखनऊ में एल0डी0ए0 द्वारा आवंटित किया गया जिसका समय से परिवादी द्वारा भुगतान कर दिया गया। परिवादी का कथानक है कि उसे दो वर्ष के अन्दर कब्जा प्रदान करना था, जबकि परिवादी के कथानानुसार उसे दिनॉंक 18.10.2014 को भौतिक कब्जा प्रदान किया गया।
11. उक्त के संबंध में विपक्षी द्वारा तर्क प्रस्तुत किया गया, परिवादी का यह कथन गलत है क्योंकि जिस दिन सेलडीड हुई उसी दिन उन्हें वास्तविक कब्जा दिया गया। सेलडीड की प्रतिलिपि का अवलोकन किया, सेलडीड के परिशीलन से विदित है कि दिनॉंक 15.07.2014 को पंजीकृत किया गया। सेल डीड में यह उल्लिखित किया गया है कि खरीददार को रजिस्ट्री की तिथि से उसको कब्जा प्रश्नगत फ्लैट का दिया जाता है। सेल डीड में जो दस्तावेज में उल्लिखित है विधि सम्मत वही मान्य होगा। अर्थात यह समझा जायेगा कि 05 जुलाई को ही कब्जा दे दिया गया जैसा कि परिवादी द्वारा कहा गया है। परन्तु परिवादी का यह तर्क संधारणीय नहीं है कि रजिस्ट्री के बाद परिवादी को फ्लैट का कब्जा दिनॉंक 25.11.2014 को मिला।
12. परिवादी का कथानक कि फ्लैट का कब्जा विपक्षी द्वारा दो वर्ष के अन्दर देना था। यह तथ्य विवाद का विषय नहीं है कि फ्लैट 24 माह की अवधि में उपलब्ध कराया जाना था। एलाटमेंट दिनॉंक 22.02.2010 को हुआ था अर्थात 21.02.2012 तक कब्जा देना था जो दिनॉंक 18.10.2014 को 02 वर्ष 09 माह बाद दिया गया।
13. परिवादी द्वारा Shivaraj V. Patil & D.M. Dharmadhikari, D.D.A. Versus Krishan Lal Nandrayog IV (2010) CPJ 7 (SC) का सन्दर्भ दाखिल किया गया है। मैंने माननीय न्यायालय द्वारा पारित आदेश का ससम्मानपूर्वक अवलोकन किया। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह आदेश पारित किया है कि डिलीवरी ऑफ पजेशन में विलम्ब होता है तो जिसमें यह कहा गया है कि विलम्ब से कब्जा दिया गया है, अत: परिवादी को पैसे के रूप में क्षतिपूर्ति दिलायी जा सकती है। WG. CDR. Arifur Rahman Khan & Aleya Sultana & ORS Versus DLF Southern Homes Pvt. Ltd. & ORS. IV (2020) CPJ 10 (SC) का सन्दर्भ दाखिल किया गया है। मैंने माननीय न्यायालय द्वारा पारित आदेश का ससम्मानपूर्वक अवलोकन किया जिसमें यह आदेश पारित किया गया है कि अगर फ्लैट को विलम्ब से दिया जाता है तो क्षतिपूर्ति दिलायी जा सकती है।
14. यह तथ्य विवाद का विषय नहीं है कि फ्लैट को प्रस्तावित 02 वर्ष 09 माह बाद विलम्ब से दिया गया है। अत: उपरोक्त विधि व्यवस्था सुप्रा के तहत क्षतिपूर्ति प्राप्त कराया जाना न्यायसंगत प्रतीत होता है। विचारणीय बिन्दु यह है कि कुल कितनी क्षतिपूर्ति दिलायी जाए। उल्लेखनीय है कि परिवादी द्वारा फ्लैट क्रय किये जाने के संबंध में सम्पूर्ण धनराशि 29,43,000.00 रूपये अदा कर दी गयी थी। अत: उक्त धनराशि पर 09 प्रतिशत ब्याज कब्जा प्राप्त करने की तिथि यानी विक्रय विलेख के दिन तक क्षतिपूर्ति दिलाया जाना न्यायसंगत प्रतीत होता है।
15. परिवादी का कथानक है कि इस्केलेशन चार्ज के रूप में विपक्षीगण ने उससे 3,84,100.00 रूपये अतिरिक्त चार्ज किया है, जबकि एग्रीमेंट की शर्तों में कुल वास्तविक निर्धारित मूल्य का अधिकतम 05 प्रतिशत ही अतिरिक्त रूप में देय था, जिसके हिसाब से परिवादी को कुल 29,43,000.00 का 05 प्रतिशत अर्था 1,47,150.00 रूपये ही देय था। अत: विपक्षी ने परिवादी से 3,84,100-147150.00=2,36,950.00 रूपये की धनराशि ज्यादा ली है। परिवादी का कथानक है कि विपक्षी ने फ्लैट दिए जाने में सेवा में अत्यंत कमी की है। 32 माह बाद फ्लैट पर कब्जा दिया गया, फ्लैट पर कब्जा दिए जाने के बाद भी सभी आवश्यक सुविधाऍं पानी, विद्युत कनेक्शन, केबिल कनेक्शन, सफाई व्यवस्था लिफ्ट आदि समुचित रूप से उपलब्ध नहीं कराया। एस्केलेशन चार्ज के रूप में 2,36,950.00 रूपये ज्यादा लिये गये हैं। उक्त सभी दर्शित करता है कि विपक्षी द्वारा सेवा में कमी व अनुचित व्यापार प्रक्रिया को अपनाया गया है। अत: परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को निर्देशित किया जाता है कि वह परिवादी को फ्लैट क्रय की जमा संपूर्ण धनराशि मुबलिग 29,43,000.00 (उन्तीस लाख, तेतालिस हजार रूपया मात्र) पर कब्जा देने की निर्धारित तिथि से वास्तविक कब्जा दिए जाने की तिथि तक 09 प्रतिशत ब्याज अदा करेंगे। निर्धारित शर्तो के विपरीत फ्लैट की पूरी कीमत पर एस्केलेशन चार्ज के रूप में 05 प्रतिशत से ज्यादा ली गयी धनराशि मुबलिग 2,36,950.00 (दो लाख छत्तीस हजार नौ सौ पचास रूपया मात्र) पर 09 प्रतिशत ब्याज के साथ देय होगा। परिवादी को हुए मानसिक, शारीरिक उत्पीड़न व वाद व्यय के लिये मुबलिग 20,000.00 (बीस हजार रूपया मात्र) निर्णय की तिथि से 45 दिन के अन्दर अदा करेंगे। निर्धारित अवधि में यदि आदेश का अनुपालन नहीं किया जाता है तो उपरोक्त सम्पूर्ण धनराशि पर 12 प्रतिशत ब्याज भुगतेय होगा।
पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रार्थना पत्र निस्तारित किये जाते हैं।
निर्णय/आदेश की प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाए।
(कुमार राघवेन्द्र सिंह) (सोनिया सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
आज यह आदेश/निर्णय हस्ताक्षरित कर खुले आयोग में उदघोषित किया गया।
(कुमार राघवेन्द्र सिंह) (सोनिया सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ
दिनॉंक:-19.09.2023