जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम, लखनऊ।
परिवाद संख्या-236/2016
उपस्थित:-श्री अरविन्द कुमार, अध्यक्ष।
श्रीमती स्नेह त्रिपाठी, सदस्य।
परिवाद प्रस्तुत करने की तारीख:-18/07/2016
परिवाद के निर्णय की तारीख:-03.02.2021
1-Smt. Satya Bhama W/o Rajeev Kumar Srivastava R/o-528, Daryapur, Opp Loco shed Sultanpur-228001.
2-Rajeev Kumar Srivastava S/o S.K. Srivastava Opp Loco shed Sultanpur-228001. ....................Complainant.
Versus
Lucknow Development Authority Naveen Bhawan Vipin Khand Gomti Nagar Lucknow, Through its Secretary.
...................... Opposite Party.
आदेश द्वारा-श्री अरविन्द कुमार, अध्यक्ष।
निर्णय
परिवादीगण ने प्रस्तुत परिवाद विपक्षी से गोमती नगर विस्तार में प्लाट संख्या 4/130 की रजिस्ट्री एवं विक्रय विलेख उनके पक्ष में करके उसका शारीरिक कब्जा दिलाये जाने या उसके बदले समान कीमत व विर्निदेश का एल0डी0ए0 का कोई अन्य प्लाट, मानसिक, आर्थिक कष्ट के लिये 21 प्रतिशत ब्याज के साथ क्षतिपूर्ति, एवं वाद व्यय 11,000.00 रूपये दिलाये जाने की प्रार्थना के साथ प्रस्तुत किया है।
संक्षेप में परिवाद के कथन इस प्रकार हैं कि परिवादीगण द्वारा वर्ष 2002 में गोमती नगर विस्तार योजना में स्ववित्त व्यवस्था के अन्तर्गत विपक्षी को 75,000.00 रूपये देकर 300 स्क्वायर मीटर का प्लाट पंजीकृत कराया था। उक्त पंजीकरण के आधार पर दिनॉंक 12.02.2004 को विपक्षी द्वारा परिवादीगण को प्लाट संख्या 4/791 बी टाइप प्लाट जिसका मूल्य 967500.00 रूपये था का आवंटन किया गया। उक्त आवंटन के सापेक्ष विपक्षी द्वारा शेष बची हुई धनराशि 93776.00 रूपये को 12 किश्तों में दिनॉंक 31.03.2004 से भुगतान किया जाना था। उक्त निर्देश के क्रम में परिवादीगण द्वारा समयान्तर्गत सम्पूर्ण धनराशि का भुगतान कर दिया गया। इसके उपरान्त विपक्षी द्वारा एक पत्र परिवादीगण को दिया गया जिसके अन्तर्गत ले-आउट प्लान में संशोधन करते हुए प्लाट का नम्बर 4/791 के स्थान पर 4/130 आवंटित किया गया। परिवादीगण ने सम्पूर्ण धनराशि के भुगतान के बाद विपक्षी के अधिकारीगणों से कई बार संपर्क करने पर भी उक्त प्लाट का शारीरिक कब्जा प्राप्त नहीं हो सका। विपक्षी द्वारा केवल आश्वासन ही दिया जाता रहा। अनेकों शिकायतों के बाद भी विपक्षी द्वारा न तो उक्त प्लाट का विकास किया गया और न ही परिवादीगण को इस संबंध में कोई सूचना दी गयी। वर्ष 2009 में परिवादीगण को यह जानकारी हुई कि प्लाट नम्बर-4/130 किसी विवाद में फंस गया है जिसके कारण उक्त प्लाट का विकास नहीं किया जा सका। क्यों कि प्लाट आवंटन के समय वह बिल्कुल अविकसित था।
परन्तु विपक्षी द्वारा विज्ञापन अभियान के अन्तर्गत यह दर्शाया जाता रहा कि सभी प्लाट विकसित किये जा चुके हैं। परन्तु ऐसा नहीं किया गया था। विपक्षी द्वारा परिवादीगण को केवल संयमपूर्वक इंतजार करने का आश्वासन ही दिया जाता रहा और आश्वासन दिया कि समय आने पर विपक्षी द्वारा परिवादीगण को शारीरिक कब्जा हेतु एलाटमेंट पत्र जारी किया जायेगा। वर्ष 2015 एवं 16 में परिवादीगण द्वारा विपक्षी को एक पत्र प्रस्तुत किया गया जिसमें अनुरोध किया गया कि यदि उक्त प्लाट का कब्जा नहीं दिया जा सकता है तो कोई अन्य प्लाट उन्हें उपलब्ध करा दिया जायेगा। परन्तु इस पर भी विपक्षी द्वारा कोई उत्तर नहीं दिया गया। परिवादीगण द्वारा विपक्षी के शीर्ष अधिकारियों से संपर्क कर प्लाट नम्बर 4/130 परिवादीगण को उपलब्ध कराने का अनुरोध किया गया क्योंकि उनके द्वारा प्लाट की सम्पूर्ण धनराशि वर्ष 2004 में ही भुगतान की जा चुकी थी। परिवादीगण का कथन है कि आवंटन के पश्चात उक्त 12 वर्षों में सम्पत्ति की कीमत अत्यधिक बढ़ जाने के कारण उसकी आर्थिक स्थिति कोई अन्य सम्पत्ति खरीदने की नहीं रह गयी है। परिवादीगण का कथन है कि विपक्षी द्वारा अनुचित व्यापार व्यवहार किया गया है और सेवा में कमी की गयी है। क्योंकि उक्त प्लाट के विकास तथा उससे संबंधित विवाद को परिवादीगण से छिपाया गया व उन्हें अवगत नहीं कराया गया। विपक्षी द्वारा परिवादीगण को कोई विकल्प, प्लाट दिये जाने का भी प्रयास नहीं किया गया जो एक सेवा में कमी तथा असावधानी का प्रमाण है, जिसके कारण परिवादीगण को मानसिक एवं आर्थिक क्षति हुई है। उक्त मानसिक कष्ट एवं उत्पीड़न के कारण परिवादीगण भारी क्षतिपूर्ति का हकदार है।
विपक्षी ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत करते हुए परिवाद पत्र के कथन 1, 2, 3, 4, 7, को स्वीकार किया तथा अतिरिक्त कथन किया कि परिवादीगण को भूखण्ड संख्या 4/791 गोमती नगर एक्सटेंशन योजना के तहत आवंटन किया गया था परन्तु स्थानीय ग्रामीणों द्वारा बाधा उत्पन्न किये जाने के कारण परिवादीगण को उक्त भूखण्ड देना जब संभव नहीं हो सका तो उसके स्थान पर भूखण्ड संख्या 4/130 गोमती नगर विकास योजना के अन्तर्गत आवंटित कर दिया। दुर्भाग्यवश उक्त भूखण्ड पर ही डी0ए0पी0 विद्यालय की बाउण्ड्री द्वारा अतिक्रमित होने के कारण उक्त भूखण्ड का भी कब्जा दिलाना संभव न हो सका। विपक्षी द्वारा न तो किसी प्रकार से सेवा शर्तों का उल्लंघन किया गया और न ही किसी पक्षकार को आर्थिक व मानसिक यातना की क्षति पहुँचाई जा रही है। प्राधिकरण अपनी सम्पूर्ण कार्यक्षमता के अनुसार संबंधित पक्षकार को संतुष्ट करने के लिये प्रयासरत है। प्राधिकरण ने विधिक अनुबन्धों एवं सेवा शर्तों का उल्लंघन नहीं किया है।
पत्रावली के अवलोकन से प्रतीत होता है कि परिवादीगण द्वारा वर्ष 2002 में गोमती नगर विस्तार योजना में 75,000.00 रूपये का भुगतान कर 300 मीटर का एक भूखण्ड आवंटित कराया गया था और उस भूखण्ड पर कुछ बाधाऍं उत्पन्न होने पर परिवादीगण को दूसरा भूखण्ड आवंटित किया गया। परन्तु दूसरे भूखण्ड पर भी विवाद होने के कारण विपक्षी द्वारा कब्जा नहीं दिलाया गया और उसके स्थान पर कोई अन्य प्लाट दिये जाने संबंधी कोई कार्यवाही नहीं की गयी, जिससे परिवादीगण को क्षति पहुँची। विपक्षी द्वारा परिवादीगण को किसी भी प्लाट का कब्जा न दिलाये जाने की बात को स्वीकार किया गया है तथा इतने वर्ष बाद भी अपने उत्तर पत्र में केवल आश्वासन दिया है कि “ प्राधिकरण अपनी सम्पूर्ण कार्यक्षमता के अनुसार संबंधित पक्षकारों को संतुष्ट करने के लिये प्रयासरत है” विपक्षी का यह आश्वास मात्र कागजी खानापूर्ति प्रतीत हो रही है क्योंकि वर्ष 2016 में उत्तर पत्र प्रस्तुत करने के बाद भी बीते चार वर्षों में कोई कार्यवाही परिलक्षित नहीं है और न ही परिवादीगण को कोई प्लाट/भूखण्ड आवंटित एवं उपलब्ध कराया गया है जो विपक्षी के स्तर पर सेवा में कमी किया जाना प्रतीत होता है। विपक्षी लखनऊ विकास प्राधिकरण ने अपने उत्तर पत्र में जानबूझकर यह स्पष्ट नहीं किया है कि जब उनके द्वारा प्लाट आवंटन के लिये विज्ञापन जारी किया गया तब उस जमीन पर उनका स्पष्ट कब्जा था या नहीं, और कब उस पर विवाद उत्पन्न हुआ। यह संभव नहीं है कि इतने बड़े क्षेत्र/जमीन इतने वर्ष तक बिना इस्तेमला के खाली पड़ी रही होगी। लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा वास्तविक स्थिति अपने उत्तर पत्र में छिपायी है और बिना स्पष्ट कब्जे के प्लाट आवंटन करना एक गलत निर्णय है जो कानून के शासन के विपरीत है, क्योंकि प्लाट आवंटन धारक को बिना वजह सम्पूर्ण धनराशि के भुगतान के बाद भी कब्जा प्राप्त करना/विक्रय विलेख सम्पन्न करने में परेशानी नहीं होनी चाहिए। इसके लिये स्पष्ट रूप से विपक्षी लखनऊ विकास प्राधिकरण दोषी प्रतीत होता है। यदि स्पष्ट तथा वास्तविक कब्जे के बगैर प्लाट का आवंटन कर सम्पूर्ण भुगतान प्राप्त कर लिया गया है तो आवंटन धारकों को हुई क्षति की पूर्ण जिम्मेदारी लखनऊ विकास प्राधिकरण की है, क्योंकि यह लखनऊ विकास प्राधिकरण के स्तर पर एक “ न्यायपूर्ण समृद्धि 蓲” का मामला है। माननीय उच्च न्यायालय लखनऊ खण्डपीठ द्वारा अहरवास सिंह अतर्वा बनाम लखनऊ विकास प्राधिकरण में, जो गोमती नगर विस्तार योजना से संबंधित है, का भी आवंटन पश्चात कब्जा न देने व विक्रय विलेख न करने की संभावना है इस प्रकार टिप्पणी के साथ लखनऊ विकास प्राधिकरण को दोषी ठहराया है। इस मामले में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा यह टिप्पणी की गयी है कि लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा आवंटन के पश्चात भुगतान तभी प्राप्त किया जाए जब लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा उस जमीन पर वास्तविक कबज प्राप्त कर लिया गया हो। इसी प्रकार माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा भी गनेश प्रसाद 2011 (29) एल0सी0डी0 2541 केस में कहा है कि आवंटन धारक से सम्पूर्ण धनराशि जमा करने के बाद भी प्लाट पर कब्जा नहीं दिलाने से उक्त आवंटन धारक को मानसिक कष्ट एवं आर्थिक क्षति हुई है। जबकि जमा धनराशि से लखनऊ विकास प्राधिकरण ने निवेश कर व्यापार किया है, जिसके लिये जमाकर्ता क्षतिपूर्ति का हकदार होता है। इतने वर्ष बीत जाने के बाद सम्पत्ति की कीमत अत्यधिक बढ़ जाने के कारण परिवादीगण की आर्थिक स्थिति नहीं ऐसी नहीं रह गयी होगी कि वह कोई अन्य सम्पत्ति खरीद सके, जिसके कारण परिवादीगण को आर्थिक क्षति होना स्वाभाविक है। ऐसी परिस्थिति में परिवादीगण का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादीगण का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए विपक्षी को निर्देशित किया जाता है कि वह 45 दिन के अन्दर परिवादीगण को आवंटित प्लाट या उसके स्थान पर कोई वैकल्पिक प्लाट पूर्व के भूखण्ड के समतुल्य क्षेत्रफल एवं धनराशि का आवंटित किया जाना सुनिश्चित करें, तथा उसके तीन माह में निबन्धन (विक्रय विलेख) भी करें, साथ ही साथ मानसिक तथा आर्थिक क्षति के दृष्टिगत जमा की गयी धनराशि पर 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज पर सम्पूर्ण भुगतान की तिथि से अदा करना सुनिश्चित करे, एवं वाद व्यय के रूप में मुबलिग 10,000.00 (दस हजार रूपया मात्र) भी अदा करेंगें। यदि उपरोक्त आदेश का अनुपालन निर्धारित अवधि में नहीं किया जाता है तो उपरोक्त सम्पूर्ण धनराशि पर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज भुगतेय होगा।
(स्नेह त्रिपाठी) (अरविन्द कुमार)
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।