जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम, लखनऊ।
परिवाद संख्या:- 1004/2020 उपस्थित:-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
श्रीमती सोनिया सिंह, सदस्य।
श्री कुमार राघवेन्द्र सिंह, सदस्य।
परिवाद प्रस्तुत करने की तारीख:-28.11.2020
परिवाद के निर्णय की तारीख:-13.04.2023
Rakesh Anand aged about 69 years, Son of late K.R.Anand, Resident of C-171, Sector-6, Indira Nagar, Lucknow, U.P. .
…………….Complainant.
Versus
1- Lucknow Development Authority, Head office at Vipin Khand, Gomti Nagar, Lucknow-226010 through its Vice Chair4man.
2- Planning In-charge, Lucknow Development Authority, Head office at Vipin Khand, Gomti Nagar, Lucknow-226010.
3- Section officer, Lucknow Development Aughority, Head office at Vipin Khand, Gomti Nagar, Lucknow-226010.
……………….Resopndents.
परिवादी के अधिवक्ता का नाम:-श्रीमती पुष्पिला बिष्ट।
विपक्षी के अधिवक्ता का नाम:-श्री राजीव कुमार श्रीवास्तव।
आदेश द्वारा-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
निर्णय
1. परिवादी ने प्रस्तुत परिवाद अन्तर्गत धारा 35 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के तहत विपक्षीगण से धनराशि 4,77,514.00 रूपये मय 18 प्रतिशत ब्याज के साथ एवं 22,99,881.00 रूपये 10 वर्षों के लिये चक्रबृद्धि ब्याज के साथ एवं अतिरिक्त निर्माण कार्य हेतु 10,00,000.00 रूपये कुल 37,77,395.00 रूपये एवं मानसिक व शारीरिक कष्ट के लिये 2,00,000.00 रूपये दिलाये जाने की प्रार्थना के साथ प्रस्तुत किया है।
2. संक्षेप में परिवाद के कथन इस प्रकार हैं कि परिवादी ने मानसरोवर स्कीम के तहत कानपुर रोड पर विपक्षी से एल0आई0जी0/डी टाइप भवन ई-4/533, 38.30 स्क्वायर मीटर, डीलक्स भवन सेक्टर ओ, कानपुर रोड पर आवंटित कराया था जिसका आवंटन पत्र दिनॉंक 31.07.2006 है जिस पर 4,50,000.00 रूपये पंजीयन शुल्क अदा किया तथा उक्त मकान का कब्जा 24 माह में अर्थात दिनॉंक 25.07.2008 तक देय था, और 09 किश्तों की अदायगी की जानी थी।
3. परिवादी द्वारा आखिरी किश्त दिनॉंक 08.07.2008 को जमा की गयी। विपक्षी संख्या 01 द्वारा डिमाण्ड दिनॉंक 08.04.2010 को 27,510.00 रूपये 1/3 शेष धनराशि 9,170.00 रूपये, और 1,834.00 रूपये की और मॉंग की, जिसको परिवादी द्वारा किश्तों में 2010 तक जमा कर दिया गया। इस प्रकार कुल 4,50,000.00 रूपये अदा किया गया। उक्त भुगतान के बावजूद भी उन्हें कोई भी संबंधित भवन का कब्जा नहीं दिया गया।
4. परिवादी द्वारा दिनॉंक 26.05.2016 को पत्र संख्या 1419/डीएसके-16 द्वारा यह अवगत कराया गया कि आवंटित भवन संख्या ई-4/533 डिफेन्स स्टेट होने के कारण डिस्प्यूट हो जाने के कारण यह कार्य पूर्ण नहीं हो सका। इस कारण प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो सका और स्टेटमेंट डिफेन्स से हो जाने के बाद ही उन्हें कार्यवाही की जा सकती है। परिवादी द्वारा फ्लैट के प्रस्ताव को नहीं माना गया, और यह कहा गया कि वह आवंटित भवन ही लेगा। पुन: यह जवाब आया कि डिफेन्स की प्रापर्टी होने के कारण उस पर भवन का निर्माण नहीं किया जा सकता। जनता लोक अदालत लगायी गयी।
5. विपक्षी संख्या 01 द्वारा 2186 स्क्वायर 3 के लिये कहा गया जो कि एलाट नहीं किया गया। विपक्षी संख्या 01 द्वारा एक अन्य प्लाट आर-6 सेक्टर एन, कानपुर रोड में एलाट किया गया जो कि पूर्व में एलाट किया गया। मकान नम्बर ई-4/533 के तहत था। 10 वर्ष तक विपक्षी द्वारा पैसे को अपने कब्जे में रखा गया। परिवादी एक बृद्ध इन्सान है। अत: यह परिवाद संस्थित किया गया।
6. विपक्षी एल0डी0ए0 की ओर से अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत करते हुए कथन किया गया कि परिवाद पत्र का प्रस्तर 02 स्वीकार है कि मानसरोवर कानपुर रोड योजना में भवन आवंटित किया गया तथा परिवादी द्वारा धनराशि भी जमा की गयी। चॅूंकि परिवादी को आवंटित भवन पर रक्षा संपदा द्वारा विवाद उत्पन्न कर दिया गया था जिसके कारण से उक्त भवन का निबन्धन व कब्जा दिया जाना संभव नहीं हो पा रहा है। आवंटित भवन रक्षा संपदा भारत सरकार के पूर्व था, फ्लैट लेने के लिये आग्रह किया गया तो उन्होंने अपनी सहमति नहीं दी और परिवादी को इस तथ्य के संबंध में यह अवगत करा दिया गया था कि रक्षा संपदा है। आवंटित भवन के स्थान पर भूखण्ड में समायोजित किये जाने के संबंध में कहा गया। परन्तु परिवादी द्वारा यह कहा गया कि वह नहीं लेगा। विपक्षी द्वारा कोई भी किसी प्रकार की त्रुटि नहीं की गयी है।
7. परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र के समर्थन में मौखिक साक्ष्य के रूप में शपथ पत्र एवं दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में रजिस्ट्रेशन फार्म एवं एलाटमेंट लेटर, डिमाण्ड नोटिस, लेटर आदि दाखिल किये गये हैं। विपक्षी की ओर से अपने कथन के समर्थन में शपथ पत्र एवं प्रापर्टी एलाटमेंट लेटर, आवंटित भवन के स्थान पर फ्लैट समायोजित किये जाने के संबंध में प्रपत्र, जनता अदालत का प्रपत्र आदि दाखिल किये गये हैं।
8. मैंने उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्ता के तर्कों को सुना तथा पत्रावली का परिशीलन किया।
9. विदित है कि परिवादी द्वारा 4,77,514.00 रूपये मय ब्याज सहित परिवाद संस्थित किया गया है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत यह तथ्य परिवादी को साबित करना है कि जो तथ्य परिवादी द्वारा कहे गये हैं वह सत्य हैं। विधि का सुस्थापित सिद्धान्त यह है कि जो तथ्य विपक्षी को स्वीकृत हैं उसे साबित नहीं किया जाना है। अत: विपक्षी द्वारा परिवादी के कथनों को स्वीकार करते हुए यह कहा कि मान सरोवर योजना, कानपुर रोड में भवन एलाट किया गया था, जिसके परिप्रेक्ष्य में उनके द्वारा संबंधित प्रतिफल भी जमा किया गया था।
10. रक्षा संपदा भारत सरकार का होने के कारण उक्त योजना का क्रियान्वयन नहीं हो सका, क्योंकि रक्षा सम्पत्ति की उक्त जमीन बाद में होना पाया गया। इस तथ्य को भी स्वीकार किया गया कि परिवादी को उक्त भवन की एवज में फ्लैट देने का प्रस्ताव लखनऊ विकास प्राधिकरण से किया गया था। इस तथ्य को भी स्वीकार किया गया कि उनके द्वारा मना किया गया कि वह फ्लैट नहीं लेगा। मुझे पूर्व में आवंटित जमीन वाला भवन चाहिए। इस तथ्य को भी स्वीकार किया कि जनता अदालत में इनके विषय में विचार किया गया। परिवादी को एक और भूखण्ड संख्या आर-6 सेक्टर-एल, कानपुर रोड में आवंटित किया गया, परन्तु परिवादी द्वारा इनकार कर दिया गया, क्योंकि पूर्व में आवंटित मान सरोवर योजना में जो जमीन थी वह इससे कम जमीन सेक्टर-एल, कानपुर रोड में आवंटित किया गया और परिवादी ने लेने से इनकार कर दिया।
11. मेरे विचार से परिवादी को दूसरे नम्बर का जो भवन आवंटित किया गया था जिसे लेने से इनकार किया है वह तर्कपूर्ण है, क्योंकि किसी भी व्यक्ति ने भूखण्ड क्रय करने के लिये पैसा दिया है और क्रेता के विवाद भवन संबंधी या भारत सरकार से हो जाने के कारण उन्हें छोटी जमीन प्रदान करना कोई भी व्यक्ति उसे प्राप्त नहीं करना चाहेगा।
12. किसी भी व्यक्ति के जीवन की सबसे बड़ी अभिलाषा यह होती है कि उसका एक मकान हो। इसके लिये वह जीवन भर प्रयास करके पैसा इकट्ठा करके भवन अथवा फ्लैट का निर्माण कर पाता है। आवेदक द्वारा अपने मकान के लिये एल0डी0ए0 जो कि सरकार की संस्था है, से कुल 30.30 स्क्वायर मीटर के लिये पैसा दिया गया, और एल0डी0ए0 द्वारा और अतिरिक्त पैसे की मॉंग किये जाने पर उसका वह भुगतान करता गया। अर्थात 4,50,000.00 रूपये की जमी के एवज में 4,77,514.00 रूपये समय से अदा किया गया।
13. एल0डी0ए0 जो कि राज्य सरकार की संस्था है और वह आवंटन करने हेतु विज्ञापन निकालती है, और आमंत्रण करके लाटरी में लोगों को भवन का या फ्लैट का आवंटन कर दिया है। एल0डी0ए0 जैसी संस्था जब किसी भी स्कीम को शुरू करती है तो उसका यह नैतिक कर्तव्य है कि वह इस तथ्य को देखे अथवा उसकी क्षेत्रीय आवासीय योजना का वह विस्तार स्वयं आवास फ्लैट अथवा जमीन दे रही है, वह उसकी निजी समस्या है। परिवादी या सामान्य नागरिक से पैसा प्राप्त कर लेने और प्राप्त करके कहीं अन्यत्र उपयोग करता है, अर्थात जमीन आदि क्रय करता है। जबकि जमीन उसकी नहीं रहती है। यह अत्यन्त खेद का विषय है और राज्य सरकार की संस्था से ऐसी अपेक्षा नहीं की जा सकती है कि वह भवन आवंटित कर पैसा ले लें और पैसा जमा कर ब्याज ले, और उसके बाद कहे कि वह उसकी जमीन नहीं है, क्योंकि भारत सरकार से जमीन का विवाद हो गया है। मेरे विचार से यह घोर लापरवाही एवं सेवा में कमी है।
14. परिवादी द्वारा यह कहा गया कि भवन हेतु उसने पैसा एल0डी0ए0 को दिया निश्चित ही वह उपभोक्ता की श्रेणी में आता है और उपभोक्ता को विपक्षी द्वारा उक्त भवन को आवंटित कर समय से कब्जा न देना निश्चित ही सेवा में त्रुटि है।
15. परिवादी द्वारा अनुतोष में अपनी जमा की गयी धनराशि की ही मॉंग की गयी है, और विपक्षी को इस तथ्य के संबंध में स्वीकारोक्ति है कि उनके द्वारा 4,77,514.00 रूपये जमा किया गया है। निश्चित रूप से दिनॉंक 31.07.2006 से 09 प्रतिशत ब्याज की दर से भुगतान कराया जाना न्यायसंगत प्रतीत होता है।
16. परिवादी द्वारा यह कहा गया कि वर्ष 31.07.2006 में आवंटन हुआ परन्तु आवंटन होने की तिथि से आज तक अर्थात करीब 17 वर्ष तक परिवादी को भवन का कब्जा न देना और वह भी कब्जा देने के समय यह कहना कि वह जमीन ही उनकी नहीं थी, भारत सरकार की जमीन थी और परिवादी को कब्जा नहीं देना निश्चित ही परिवादी की मानसिक त्रासदी की कोई सीमा का आंकलन नहीं किया जा सकता। अत: परिवादी को आवंटन तिथि से 17 वर्ष बीत जाने के उपरान्त तक परिवादी के जमा पैसे का उपभोग करने की एवज में मेरे विचार से 5,00,000.00 रूपये मानसिक व शारीरिक कष्ट के लिये दिलाया जाना उचित प्रतीत होता है।
आदेश
परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षीगण को निर्देशित किया जाता है कि वह परिवादी द्वारा जमा की गयी धनराशि मुबलिग 4,77,514.00 (चार लाख सतहत्तर हजार पॉंच सौ चौदह रूपमया मात्र) मय 09 प्रतिशत ब्याज के साथ धनराशि जमा करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक निर्णय की दिनॉंक से 45 दिन के अन्दर अदा करेंगे। परिवादी को हुए मानसिक एवं शारीरिक कष्ट के लिये मुबलिग 5,00,000.00 (पॉंच लाख रूपया मात्र) तथा वाद व्यय के लिये मुबलिग 10,000.00(दस हजार रूपया मात्र) भी अदा करेंगें। यदि निर्धारित अवधि में आदेश का अनुपालन नहीं किया जाता है तो उपरोक्त सम्पूर्ण धनराशि पर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज भुगतेय होगा।
पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रार्थना पत्र निस्तारित किये जाते हैं।
निर्णय/आदेश की प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाए।
(कुमार राघवेन्द्र सिंह) (सोनिया सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
आज यह आदेश/निर्णय हस्ताक्षरित कर खुले आयोग में उदघोषित किया गया।
(कुमार राघवेन्द्र सिंह) (सोनिया सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
दिनॉंक:-13.04.2023