राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
(मौखिक)
अपील संख्या- 1143/2015
(जिला उपभोक्ता फोरम, औरैया द्वारा परिवाद संख्या 233/2014 में पारित आदेश दिनांक 09.4.2015 के विरूद्ध)
Yogesh Kumar S/o Sri Kanhaiya Lal, R/o Mohalla Banarsi Das, Thana & District- Auraiya.
…………..Appellant/Complainant.
Versus
1- Regional Manager, Life Insurance Corporation of India Limited, Regional Office, North Central Region, 16/98, Mahatma Gandhi Marg, Post Box No. 181, Kanpur.
2- Regional Manager, Life Insurance Corporatin of India Limited, Awas Vikas Colony, Auraiya, District-Auraiya.
3- Prabhat Shukla S/o Sri Ramphal Shukla, R/o Thathrai, Thana & District Auraiya (Agent Insurance Company)
……………Respondents/Opp. Parties
समक्ष:-
1. मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
2. मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री रामगोपाल
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री वी0एस0 बिसारिया
दिनांक: 27-03-2017
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-233/2014 योगेश कुमार बनाम क्षेत्रीय प्रबन्धक, भारतीय जीवन बीमा निगम लिमिटेड आदि में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम- औरैया द्वारा पारित निर्णय व आदेश दिनांक 09.4.2015 के विरूद्ध यह अपील उपरोक्त परिवाद के परिवादी योगेश कुमार की ओर से धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत इस आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
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आक्षेपित निर्णय व आदेश के द्वारा जिला फोरम ने अपीलार्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत उपरोक्त परिवाद खारिज किया है।
अपीलार्थी की ओर से उनके विद्वान अधिवक्ता श्री रामगोपाल एवं प्रत्यर्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री वी0एस0 बिसारिया उपस्थित आए।
हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय व आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय व आदेश साक्ष्य और विधि के विरूद्ध है और जिला फोरम ने परिवाद खरिज कर गलती की है।
प्रत्यर्थी/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता ने जिला फोरम के निर्णय व आदेश का समर्थन करते हुए तर्क किया है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय व आदेश साक्ष्य और विधि के अनुकूल है।
हमने उभय पक्ष के तर्कों पर विचार किया हैं।
परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि उसके पुत्र सुनील कुमार ने विपक्षी सं0-2 क्षेत्रीय प्रबन्धक, भारतीय जीवन बीमा निगम लिमिटेड, औरैया के माध्यम से एक बीमा पालिसी दिनांक 28.5.2010 को ली, जिसकी छमाई प्रीमियम धनराशि 5,110.00 रू0 थी और बीमा 2,00,000.00 रू0 का था। बीमा पालिसी लेने के बाद अपीलार्थी/परिवादी के पुत्र सुनील कुमार की दुर्घटना दिनांक 21.6.2010 को हाइवे रोड़ स्थित पंजाब मामा होटल के पास हुई, जिसमें उसे गम्भीर चोटें आई। उसे अजीतमल स्वास्थ्य केन्द्र में भर्ती किया गया और बाद में कानपुर रिफर किया गया। दुर्घटना में आई चोटों के कारण उसके शरीर का निचला हिस्सा और दोनों पैर बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गये और इलाज में उसका करीब 3,00,000.00 रू0 व्यय हुआ, फिर भी वह ठीक नहीं हुआ है और पूर्ण विकलांगता का शिकार हो गया है।
परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि उसने प्रत्यर्थी/विपक्षी भारतीय जीवन बीमा निगम लिमिटेड को दुर्घटना हित
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लाभ के लिए सभी आवश्यक कागजत भेजे, परन्तु प्रत्यर्थी/विपक्षी भारतीय जीवन बीमा निगम लिमिटेड ने अपीलार्थी/परिवादी को कोई भुगतान नहीं किया। अत: विवश होकर उसने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया।
विपक्षी/बीमा कम्पनी की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत कर परिवाद का विरोध किया गया है और यह कथन किया गया है कि अपीलार्थी/परिवादी द्वारा न तो नवीनतम विकलांगता प्रमाण पत्र दाखिल किया गया है और न ही प्रपत्र 5279 व 5280 तथा डी. 1179 नवीनतम दाखिल किया गया है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन पर विचार करने के उपरांत यह माना है कि अपीलार्थी/परिवादी ने उपरोक्त अभिलेख विपक्षी/ भारतीय जीवन बीमा निगम के समक्ष प्रस्तुत नहीं किये हैं। अत: जिला फोरम ने अपीलार्थी/परिवादी का परिवाद आक्षेपित निर्णय व आदेश के द्वारा निरस्त कर दिया है।
हमने जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय व आदेश पर विचार किया। विपक्षीगण द्वारा जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत लिखित कथन से स्पष्ट है कि विपक्षीगण ने अपीलार्थी/परिवादी के पुत्र का दावा अंतिम रूप से अस्वीकार नहीं किया है, वरन उनका कथन यह है कि आवश्यक अभिलेख उसकी ओर से उनके समक्ष प्रस्तुत नहीं किये गये हैं, इस कारण बीमा दावे का निस्तारण नहीं हुआ है। अपीलार्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने कथन किया कि उपरोक्त अभिलेख अपीलार्थी/परिवादी विपक्षीगण को उपलब्ध कराने को तैयार है। प्रत्यर्थी/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता की ओर से भी यह कथन किया गया है कि यदि उपरोक्त अभिलेख अपीलार्थी/परिवादी उपलब्ध कराते है, तो उसके पुत्र के दावे के सम्बन्ध में प्रत्यर्थी/विपक्षीगण विधि के अनुसार निर्णय लेने को तैयार हैं।
उपरोक्त तथ्यों पर विचार करते हुए हम इस मत के हैं कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय व आदेश अपास्त करते हुए
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अपीलार्थी/परिवादी को प्रत्यर्थी/विपक्षीगण के समक्ष वॉछित अभिलेख प्रस्तुत करने का अवसर दिया जाना और प्रत्यर्थी/विपक्षीगण द्वारा अपीलार्थी/परिवादी के पुत्र के दावे का विधि अनुसार निस्तारण किया जाना न्यायहित में आवश्यक है।
उपरोक्त निष्कर्षों के अधार पर अपील स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय व आदेश अपास्त किया जाता है तथा अपीलार्थी/परिवादी को आदेशित किया जाता है कि वह प्रत्यर्थी/विपक्षीगण को उपरोक्त अभिलेख एक मास के अन्दर उपलब्ध करावे, तदोपरांत प्रत्यर्थी/विपक्षीगण अपीलार्थी/परिवादी के पुत्र के दावे का निस्तारण विधि के अनुसार दो मास के अन्दर करते हुए अंतिम आदेश पारित करें।
उभय पक्ष अपना-अपना व्ययभार स्वयं वहन करेंगे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान) (महेश चन्द)
अध्यक्ष सदस्य
हरीश आशु.,
कोर्ट सं0-1