राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(सुरक्षित)
अपील संख्या:-1606/2007
(जिला मंच, सन्त रविदास नगर भदोही द्धारा परिवाद सं0-37/2006 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 20.6.2007 के विरूद्ध)
1- Branch Manager Life Insurance Corporation of India, Branch Gyanpur, District Sant Ravidas Nagar Bhadohi.
2- Senior Divisional Manager, Life Insurance Corporation of India, Divisional Office, Jeewan Prakash Post Box No. 1, 1155B 121120, Gauriganj, Varanasi.
........... Appellants/Opp. Parties
Versus
Smt. Sunita Devi, W/o Late Narendra Kumar Pandey, R/o Nathaipur, Post Nathaipur, Tehsil Gyanpur at present R/o C/o Sri Anil Kumar Misra, R/o Kathota, Post Gopiganj, Tehsil Gyanpur, District Sant Ravidas Nagar Bhadohi.
……..…. Respondent/ Complainant
अपील संख्या:-1493/2011
Smt. Sunita Devi, W/o Late Narendra Kumar Pandey, R/o Nathaipur, Post Nathaipur, Tehsil Gyanpur at present R/o C/o Sri Anil Kumar Misra, R/o Kathota, Post Gopiganj, Tehsil Gyanpur, District Sant Ravidas Nagar Bhadohi.
……..…. Appellant/ Complainant
Versus
1- Branch Manager Life Insurance Corporation of India, Branch Gyanpur, District Sant Ravidas Nagar Bhadohi.
2- Senior Divisional Manager, Life Insurance Corporation of India, Divisional Office, Jeewan Prakash Post Box No. 1, 1155B-121120, Gauriganj, Varanasi.
........... Respondents/Opp. Parties
समक्ष :-
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य
मा0 गोवर्धन यादव, सदस्य
अपीलार्थी बीमा कम्पनी के अधिवक्ता : श्री वी0एस0 बिसारिया
प्रत्यर्थी परिवादी के अधिवक्ता : श्री बी0के0 उपाध्याय
दिनांक :-......................
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मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील सं0-1606/2007 एवं अपील सं0-1493/2011 परिवाद संख्या-37/2006 में जिला मंच, संत रविदास नगर भदोही द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 20.6.2007 के विरूद्ध योजित की गई हैं। दोनों अपीलें एक ही निर्णय के विरूद्ध योजित किए जाने के कारण दोनों अपीलों का निर्णय साथ-साथ किया जा रहा है। अपील सं0-1606/2007 अग्रणी अपील होगी।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के कथनानुसार प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति नरेन्द्र कुमार पाण्डेय ने अपना बीमा दिनांक 25.11.1997 को अपीलार्थी बीमा निगम से एक लाख रूपये एवं 50,000.00 रू0 का कराया तथा 1,00,000.00 रू0 बीमित धनराशि से सम्बन्धित बीमा पालिसी सं0-281311963 एवं 50,000.00 रू0 से सम्बन्धित बीमा पालिसी सं0-281311970 जारी की गई थी। कुछ आर्थिक अड़चन के कारण बीमाधारक नरेन्द्र कुमार प्रीमियम की धनराशि दिनांक 25.11.2001 को अदा नहीं कर सका, जिसके कारण उपरोक्त पालिसियॉ लैप्स हो गई। दोनों पालिसियों का पुनर्चलन कराने हेतु दिनांक 19.6.2001 को बीमाधारक द्वारा प्रस्ताव पत्र भरा गया तथा निगम के अधिकृत चिकित्सक द्वारा बीमाधारक के स्वास्थ्य का परीक्षण किया गया और दोनों पालिसियों का पुनर्चलन दिनांक 19.6.2002 को कर दिया गया। दुर्भाग्य से दिनांक 24.5.2005 को बीमाधारक नरेन्द्र कुमार की मृत्यु हो गई। दोनों पालिसियों में प्रत्यर्थी/परिवादिनी नामित थी, इसलिए दोनों पालिसियों के संदर्भ में बीमा दावा प्रेषित किया गया। अपीलार्थीगण ने 1,00,000.00 रू0 की बीमा पालिसी के संदर्भ में मात्र 34,300.00 रू0 का दावा स्वीकार किया, जबकि पुनर्चलन के पूर्व तक इस पालिसी हेतु 54,300.00 रू0 जमा किए जा चुके थे। अपीलार्थीगण ने अपने पत्र दिनांकित 24.11.2005 के द्वारा सूचित किया कि पुनर्चलन की तिथि के पूर्व से ही मृतक गुर्दा रोग से पीडित था और उनका गुर्दा खराब हो गया था और इस तथ्य को उनके
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द्वारा छिपाकर धोखे से पुनर्चलन कराया गया। अत: पुनर्चलन का आदेश दिनांक 19.6.2002 अवैध घोषित कर दिया गया। दूसरी पालिसी के बीमा दावा के संदर्भ में अपीलार्थीगण द्वारा मात्र 10,750.00 रू0 स्वीकार किया गया। इस प्रकार बीमा निगम ने दोनों पालिसियों की बीमित धनराशि तथा उस पर दिए गये ब्याज व बोनस न देकर सेवा में त्रुटि की है।
अपीलार्थीगण के कथनानुसार बीमाधारक ने वास्तविक तथ्यों को छिपाकर धोखे से पुनर्चलन प्राप्त किया गया। बीमाधारक पहले से गम्भीर गुर्दा रोग से पीडित था, जिसका आपरेशन उसने दिनांक 22.8.2000 को कराया और ट्रांसप्लांट भी करवाया। यदि बीमाधारक द्वारा गुर्दा ट्रांसप्लांट के बारे में बताया गया होता तो पालिसी का पुनर्चलन सम्भव न होता। निगम द्वारा चुकता मूल्य अदा करने की बावत लिया गया निर्णय सेवा में त्रुटि नहीं माना जा सकता।
विद्वान जिला मंच ने पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत की गई साक्ष्य के अवलोकन के उपरांत परिवादिनी का परिवाद अंशत: स्वीकार करते हुए यह निर्देशित किया कि परिवादिनी पुनर्चलन के पहले की जमा धनराशि नियमानुसार बोनस आदि के लाभ के साथ पाने की अधिकारिणी है तथा पुनर्चलन के बाद की धनराशि बोनस आदि के लाभों के बगैर पाने की अधिकारिणी है। परिवादिनी 1,000.00 रू0 बतौर खर्चा मुकदमा पाने की अधिकारिणी है।
इस निर्णय से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी बीमा निगम द्वारा प्रश्नगत निर्णय को त्रुटि पूर्ण बताते हुए प्रश्नगत निर्णय को अपास्त किए जाने हेतु अपील सं0-1606/2007 योजित की गई तथा अपील सं0-1493/2011 प्रश्नगत निर्णय की धनराशि में बढोत्तरी हेतु योजित की गई।
हमने अपीलार्थी बीमा निगम के विद्वान अधिवक्ता श्री वी0एस0 बिसारिया तथा प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री बी0के0 उपाध्याय के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति नरेन्द्र कुमार पाण्डेय के पक्ष में जारी की गई
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प्रश्नगत पालिसियों से सम्बन्धित प्रीमियम का भुगतान दिनांक 21.11.2001 को न किए जाने के कारण यह पालिसियॉ कालातीत हो गई, तदोपरांत पालिसीधारक द्वारा अपने अच्छे स्वास्थ्य के सम्बन्ध में घोषणा पत्र प्रस्तुत किए जाने के उपरांत उपरोक्त पालिसियॉ दिनांक 19.6.2002 को पुनर्चलित की गई। पालिसीधारक की मृत्यु दिनांक 24.5.2005 को हो गई थी। अपीलार्थी के कथनानुसार पालिसी के पुनर्चलन की स्थिति में पालिसी के पुनर्चलन की तिथि से पक्षकारों के मध्य नवीन संविदा उत्पन्न होती है। पालिसी के पुनर्चलन की तिथि के उपरांत दो वर्ष की अवधि के मध्य बीमाधारक की मृत्यु होने के कारण बीमा दावे की जॉच करायी गई। जॉच के मध्य यह तथ्य प्रकाश में आया कि बीमाधारक की किडनी का प्रत्यारोपण दिनांक 22.8.2000 को अहमदाबाद स्थित श्रीमती गुलाबबेन रसीक लाल दोषी एवं श्रीमती कमलाबेन मफतलाल मेहता इस्टीट्यूट आफ किडनी डिजीज एवं रिसर्च सेंटर सीविल हास्पिटल में हुआ, किन्तु बीमाधारक ने इस तथ्य को छिपाते हुए प्रश्नगत पालिसियों के पुनर्चलन से पूर्व अपने अच्छे स्वास्थ्य के सम्बन्ध में घोषणा पत्र इस आशय का प्रस्तुत किया कि वह पूर्णत: स्वस्थ्य है। अपीलार्थी की ओर से इस संदर्भ में हमारा ध्यान अपील मेमो के साथ दाखिल संलग्नक-12 एवं 13 की ओर आकृष्ट किया गया। संलग्नक-13 श्रीमती गुलाबबेन रसीक लाल दोषी एवं श्रीमती कमलाबेन मफतलाल मेहता इस्टीट्यूट आफ किडनी डिजीज एण्ड रिसर्च सेंटर सीविल हास्पिटल कैम्पस, अहमदाबाद द्वारा जारी किया गया प्रमाण पत्र है, जिसमें यह तथ्य उल्लिखित है कि बीमाधारक दिनांक 03.7.2000 से दिनांक 21.9.2000 तक उक्त अस्पताल में उपचार हेतु भर्ती रहा और दिनांक 22.8.2000 को उसकी किडनी का प्रत्यारोपण किया गया। संलग्नक-12 बीमाधारक द्वारा पुनर्चलन से पूर्व प्रस्तुत अपने स्वास्थ्य के संदर्भ में घोषणा पत्र है, जिसमें यह प्रश्न पूंछे गये कि क्या बीमाधारक किसी रोग से ग्रस्त था, जिसके लिए उसे एक सप्ताह या अधिक के लिए उपचार की आवश्यकता थी।
2- क्या कभी बीमाधारक की शल्य क्रिया/दुर्घटना या क्षति हुई है।
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3- क्या कभी बीमाधारक ने एलेक्ट्रो कार्डियोग्राम, एक्सरे या स्क्रीनिंग रक्त मूत्र या माल की जॉच करायी है।
इन सभी प्रश्नों के उत्तर में बीमाधारक द्वारा नकारात्मक उत्तर दिए गये हैं।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि उपरोक्त साक्ष्य से यह स्पष्ट है कि बीमाधारक ने प्रश्नगत बीमा पालिसियों से सम्बन्धित पुनर्चलन से पूर्व प्रस्तुत किए गये घोषणा पत्र में अपने को पूर्णत: स्वस्थ्य बताया तथा किसी शल्य क्रिया कराये जाने के तथ्य से इंकार किया। अत: प्रश्नगत बीमा पालिसियों का पुनर्चलन धोखे से प्राप्त किए जाने के कारण पुनर्चलन रद्द किया गया तथा बीमा पालिसी सं0-281311963 के संदर्भ में पेड अप वैल्यू के रूप में 34,300.00 रू0 तथा बीमा पालिसी सं0-281311970 के संदर्भ में पेड अप वैल्यू 10,750.00 रू0 की अदायगी बीमाधारक को प्रस्तावित की गई और इस संदर्भ में बीमाधारक को फार्म भर कर धनराशि प्राप्त करने हेतु कहा गया, किन्तु बीमाधारक द्वारा फार्म नहीं भरा गया। अत: इस धनराशि पर कोई ब्याज प्राप्त करने की परिवादिनी को अधिकारिणी नहीं माना जा सकता। अपीलार्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत निर्णय में विद्वान जिला मंच ने इस तथ्य को स्वीकार किया है कि बीमाधारक ने प्रश्नगत बीमा पालिसियों से सम्बन्धित घोषणा पत्र में अपनी पूर्व बीमारी के तथ्य एवं पूर्व शल्य क्रिया के तथ्य को छिपाते हुए धोखे से पुनर्चलन प्राप्त किया, इसके बावजूद पुनर्चलन के समय जमा की गई धनराशि परिवादिनी को वापिस किए जाने हेतु निर्देशित किया। विद्वान जिला मंच का यह निर्देश विधि सम्मत नहीं है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा हमारा ध्यान अपील मेमो के साथ संलग्नक-12 की ओर आकृष्ठ किया गया तथा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि इस घोषणा पत्र में बीमाधारक द्वारा यह घोषणा की गई है कि "एतद्द्वारा बीमाधारक यह घोषण करता है कि उपर्युक्त प्रकथन एवं उत्तर प्रत्येक दृष्टि से सही है और इस बात से सहमत हॅू तथा घोषणा करता हॅू
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कि मेरे कालातीत पालिसी के बीमा प्रस्ताव के साथ-साथ ये प्रकथन और यह घोषणा मेरे तथा भारतीय जीवन बीमा निगम के मध्य कालातीत पालिसी के पुनर्चलन सम्बन्धी अनुबन्ध के आधार पर होंगे और इसमें कोई असत्य प्रकथन पाया जायेगा तो यह अनुबन्ध पूर्णतया रद्द हो जायेगा तथा इस सम्बन्ध में चुकाई गई समस्त धनराशि निगम द्वारा जब्त कर ली जायेगी।"
अपीलार्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि बीमा संविदा परस्पर सद्भावना एवं विश्वास पर आधारित होती है तथा बीमाधाक द्वारा उपलब्ध करायी गई सूचनाओं के आधार पर विश्वास करते हुए, बीमा संविदा निष्पादित की जाती है। यदि जॉच के मध्य यह ज्ञात होता है कि बीमाधारक द्वारा जानबूझकर असत्य सूचनायें प्रेषित की गई अथवा सूचनाओं को जानबूझकर छिपाकर घोषणा पत्र प्रेषित किया गया है, तब बीमा कम्पनी का बीमा दावे की अदायगी का दायित्व नहीं माना जा सकता।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत बीमा पालिसियॉ दिनांक 25.11.1997 को जारी की गई तथा उनका पुनर्चलन दिनांक 19.6.2002 को किया गया और बीमाधारक की मृत्यु दिनांक 24.5.2005 को हुई, इस प्रकार प्रश्नगत बीमा पालिसियॉ लगभग साढे सात वर्ष चली एवं पुनर्चलन की तिथि के बाद भी लगभग तीन वर्ष यह बीमा पालिसियॉ चली। ऐसी परिस्थिति में बीमा अधिनियम की धारा-45 के अन्तर्गत पुनर्चलन रद्द नहीं किया जा सकता। प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि बीमा पालिसी सं0-281311970 जो 50,000.00 रू0 के लिए बीमित थी, वह जीवन आशा पालिसी थी। बीमाधारक किडनी ट्रांसप्लांट हेतु दिनांक 03.7.2000 से 20.9.2000 तक अस्पताल में भर्ती रहा और अपनी जीवन आशा पालिसी की शर्तों के अन्तर्गत किडनी ट्रांसप्लांटेशन में हुए व्यय के भुगतान हेतु बीमाधारक ने दिनांक 28.11.2002 को प्रार्थना पत्र सभी अभिलेखों को संलग्न करके प्रेषित किया गया था। इस संदर्भ में अपील सं0-1493/2011 के अपील मेमो के साथ संलग्न पृष्ठ सं0-44 एवं 45 की
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ओर पीठ का ध्यान आकृष्ठ किया गया। प्रत्यर्थी/परिवादिनी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि बीमा कम्पनी द्वारा बीमाधारक का दावा लम्बित रखा गया, तदोपरांत दिनांक 24.5.2005 को बीमाधारक की मृत्यु हो गई। ऐसी परिस्थिति में बीमा कम्पनी का यह तर्क स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है कि बीमाधारक ने अपनी किडनी के ट्रांसप्लांटेशन के तथ्य को बीमा कम्पनी से छिपाया, बल्कि इस तथ्य को स्वयं बीमाधारक ने अपने पत्र दिनांकित 28.11.2000 के द्वारा बीमा कम्पनी को सूचित किया था। ऐसी परिस्थिति में पुनर्चलन के समय बीमा कम्पनी को आपत्ति उठानी चाहिए थी, किन्तु बीमा कम्पनी द्वारा समस्त तथ्यों की जानकारी के बावजदू पुनर्चलन के समय कोई आपत्ति नहीं उठाई गई और बीमाधारक की मृत्यु के उपरांत बीमा दावे पर विचार करते समय इस संदर्भ में उनके द्वारा आपत्ति उठाई गयी। इस प्रकार बीमा कम्पनी द्वारा सेवा में त्रुटि की गई। प्रत्यर्थी/परिवादिनी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि पुनर्चलन के उपरांत मूल बीमा पालिसी के जारी किए जाने की तिथि से ही बीमा पालिसी प्रभावी मानी जायेगी।
उल्लेखनीय है कि विद्वान जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत परिवाद में प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने यह अभिकथन नहीं किया है कि दिनांक 28.11.2002 को बीमाधारक ने अपनी किडनी के ट्रांसप्लांटेशन के तथ्य से बीमा निगम को अवगत करा दिया था, इसके बावजूद उसका बीमा दावा निरस्त किया गया, बल्कि परिवाद के अभिकथनों में परिवादिनी द्वारा यह अभिकथित किया गया है कि प्रश्नगत बीमा पालिसियों के पुनर्चलन के समय बीमाधारक पूर्णत: स्वस्थ्य था और निगम द्वारा अधीकृत चिकित्सक द्वारा उसके स्वास्थ्य का परीक्षण करने के उपरांत ही बीमा पालिसियों का पुनर्चलन स्वीकार किया गया।
यह तथ्य निर्विवाद है कि प्रश्नगत बीमा पालिसियों का पुनर्चलन प्राप्त करने से पूर्व बीमाधारक द्वारा प्रस्तुत किए गये घोषणा पत्र में अपनी किडनी ट्रांसप्लांटेशन के तथ्य को बीमाधारक द्वारा छिपाया गया। ऐसा प्रतीत होता है कि बीमाधारक, सम्बन्धित अभिकर्ता एवं बीमा निगम के
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कुछ कर्मचारियों ने जानबूझकर अपनी सहमति से प्रश्नगत बीमा पालिसियों का पुनर्चलन कराया हो।
जहॉ तक पुनर्चलन के बाद बीमा पालिसी किस तिथि से प्रभावी मानी जायेगी का प्रश्न है। इस संदर्भ में अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने Life Insurance Corp. of India & Anr. Vs. Kempamma & Anr. I (2013) CPJ 653 (NC) के मामले में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिए गये निर्णय पर विश्वास व्यक्त किया। इस निर्णय के अवलोकन से यह विदित होता है कि मा0 राष्ट्रीय आयोग ने Mithoolal Nayak Vs. LIC of India, AIR 1962 SC 814 के मामले में मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गये निर्णय पर भी विचार करते हुए यह निर्णीत किया कि पुनर्चलन के उपरांत पुनर्चलन की तिथि से नवीन संविदा उत्पन्न होनी मानी जायेगी। Mithoolal Nayak Vs. LIC of India, AIR 1962 SC 814 के मामले में मा0 सर्वोच्च न्यायालय ने बीमा अधिनियम की धारा-45 पर भी विचार किया है तथा यह मत व्यक्त किया है कि इस धारा का दूसरा भाग अपवाद के स्वरूप में है, जो यह प्रावधानित करता है कि यदि बीमा कम्पनी यह दर्शित करती है कि बीमाधारक द्वारा किसी सारवान तथ्य को छिपाते हुए धोखे से बीमा पालिसी प्राप्त की जाती है, तब बीमा निगम ऐसे बीमा दावे को स्वीकार करने पर प्रश्न चिन्ह उठा सकती है।
उपरोक्त तथ्यों के आलोक में हमारे विचार से यह स्पष्ट है कि बीमाधारक ने प्रश्नगत पालिसियों के पुनर्चलन के समय अपनी किडनी के ट्रांसप्लांटेशन के सम्बन्ध में सारवान तथ्य को छिपाते हुए प्रश्नगत बीमा पालिसियों का पुनर्चलन प्राप्त किया। अत: बीमा दावा स्वीकार न करके हमारे विचार से बीमा निगम द्वारा सेवा में कोई त्रुटि नहीं की गई है, क्योंकि प्रश्नगत पालिसियों का पुनर्चलन धोखे से प्राप्त किया गया। ऐसी परिस्थिति में पुनर्चलन के समय जमा की गई धनराशि का भुगतान न करके बीमा निगम द्वारा सेवा में कोई त्रुटि नहीं की गई है। बीमा निगम द्वारा प्रश्नगत बीमा पालिसियों के संदर्भ में पेड अप वैल्यू के भुगतान हेतु प्रस्ताव पूर्व में प्रत्यर्थी/परिवादिनी को प्रेषित किया जा चुका है और प्रत्यर्थी/परिवादिनी इस प्रस्ताव के अन्तर्गत धनराशि प्राप्त करने के लिए
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स्वतंत्र है। उपरोक्त तथ्यों के आलोक में हमारे विचार से विद्वान जिला मंच ने पत्रावली का उचित परिशीलन न करते हुए प्रश्नगत त्रुटि पूर्ण निर्णय पारित किया है। अपील सं0-1606/2007 तद्नुसार स्वीकार करते हुए जिला मंच द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय अपास्त किए जाने योग्य है। अपील सं0-1493/2011 निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील सं0-1606/2007 स्वीकार की जाती है। परिवाद संख्या-37/2006 में जिला मंच, संत रविदास नगर भदोही द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांकित 20.6.2007 को अपास्त किया जाता है। परिवाद निरस्त किया जाता है।
अपील सं0-1493/2011 निरस्त की जाती है। इस निर्णय की एक प्रमाणित प्रतिलिपि अपील सं0-1493/2011 में भी रखी जाए।
उभय पक्ष अपीलीय व्यय भार स्वयं वहन करेंगे।
(उदय शंकर अवस्थी) (गोवर्धन यादव)
पीठासीन सदस्य सदस्य
हरीश आशु.,
कोर्ट सं0-3
सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ
जिला मंच, संत रविदास नगर, भदोही द्वारा परिवाद संख्या 37 सन 2006 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 20.06.2007 के विरूद्ध
अपील संख्या 1606 सन 2007
1- Branch Manager Life Insurance Corporation of India, Branch Gyanpur, District Sant Ravidas Nagar Bhadohi.
2- Senior Divisional Manager, Life Insurance Corporation of India, Divisional Office, Jeewan Prakash Post Box No. 1, 1155B 121120, Gauriganj, Varanasi.
Appellants/Opp. Parties
Versus
Smt. Sunita Devi, W/o Late Narendra Kumar Pandey, R/o Nathaipur, Post Nathaipur, Tehsil Gyanpur at present R/o C/o Sri Anil Kumar Misra, R/o Kathota, Post Gopiganj, Tehsil Gyanpur, District Sant Ravidas Nagar Bhadohi.
Respondent/ Complainant
अपील संख्या 1493 सन 2011
Smt. Sunita Devi, W/o Late Narendra Kumar Pandey, R/o Nathaipur, Post Nathaipur, Tehsil Gyanpur at present R/o C/o Sri Anil Kumar Misra, R/o Kathota, Post Gopiganj, Tehsil Gyanpur, District Sant Ravidas Nagar Bhadohi.
Appellant/ Complainant
Versus
1- Branch Manager Life Insurance Corporation of India, Branch Gyanpur, District Sant Ravidas Nagar Bhadohi.
2- Senior Divisional Manager, Life Insurance Corporation of India, Divisional Office, Jeewan Prakash Post Box No. 1, 1155B-121120, Gauriganj, Varanasi.
Respondents/Opp. Parties
समक्ष :-
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
मा0 श्री गोवर्धन यादव, सदस्य ।
अपीलार्थी बीमा कम्पनी के अधिवक्ता श्री वी0एस0 बिसारिया ।
प्रत्यर्थिनी/ परिवादिनी के अधिवक्ता श्री बी0के0 उपाध्याय ।
दिनांक
श्री गोवर्धन यादव सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील संख्या 1606/2007 एवं 1493/2011, परिवाद संख्या 37 सन 2006 में जिला मंच, संत रविदास नगर, भदोही द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 20.06.2007 के विरूद्ध योजित की गयी हैं।
दोनों अपीलें एक ही निर्णय के विरूद्ध योजित किए जाने के कारण दोनों अपीलों का निर्णय साथ-साथ किया जा रहा है, जिसमें अपील संख्या 1606/2007 अग्रणी अपील होगी ।
संक्षेप में, प्रकरण के आवश्यक तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थिनी/परिवादिनी के पति नरेन्द्र कुमार पाण्डेय ने अपने जीवन पर बीमा दिनांक 25.11.1997 को अपीलार्थी बीमा निगम से एक लाख रू0 का पालिसी संख्या 281211963 एवं पचास हजार रू0 की पालिसी संख्या 281311970 प्रस्ताव पत्र भरकर स्वीकृत के उपरांत प्राप्त किया। उक्त पालिसी वर्ष 1997 से 24.11.2001 तक प्रभावी रही। आर्थिक परेशानी के कारण बीमाधारक प्रीमियम की धनराशि दि0 25.11.2001 को अदा नहीं कर सका जिसके कारण उसकी उक्त दोनों पालिसियां लेप्स हो गयी। बीमा धारक ने उक्त पालिसियों के पुनर्चलन हेतु दिनांक 19.06.2002 को प्रस्ताव पत्र भरा । बीमा निगम के अधिकृत चिकित्सक द्वारा बीमाधारक के स्वास्थ का परीक्षण किया गया और स्वस्थ पाए जाने पर उक्त दोनों पालिसियों का पुर्नचलन बीमा कम्पनी द्वारा सन्तुष्ट होने पर दिनांक 19.06.2002 को कर पुनर्जीवित कर दिया गया। दिनांक 24.05.2005 को बीमाधारक नरेन्द्र कुमार की मृत्यु पेट दर्द के कारण हो गयी। नामिनी होने के कारण प्रत्यर्थिनी/परिवादिनी ने दोनों पालिसियों की बीमित धनराशि प्राप्त करने हेतु दावा प्रस्तुत किया । अपीलार्थीगण ने अपने पत्र दिनांकित 24.11.2005 द्वारा सूचित किया कि पुनर्चलन की तिथि के पूर्व से ही मृतक गुर्दा रोग से पीडि़त था और गुर्दे का आपरेशन दिनांक 22.08.2000 को कराया गया था लेकिन बीमाधारक द्वारा इस तथ्य को छिपाकर धोखे से बीमा पालिसी का पुर्नचलन कराया गया है जिसके कारण पुर्नचलन के आदेश को अवैध घोषित कर दिया और 01 लाख रू0 की बीमा पालिसी के संदर्भ में 34,300.00 रू0 एवं 50 हजार रू0 की पालिसी के संदर्भ में मात्र 10,750.00 रू0 के भुगतान हेतु परिवादिनी को पत्र भेजा । प्रत्यर्थिनी/परिवादिनी का कथन है कि बीमा धारक द्वारा 01 लाख रू0 की पालिसी के संदर्भ में प्रीमियम स्वरूप मृत्यु के समय तक 54,300.00 रू0 जमा कराया जा चुका था। बीमित धनराशि की अदायगी न करने से क्षुब्ध होकर परिवादिनी ने जिला मंच के समक्ष परिवाद योजित किया।
विद्वान जिला मंच ने उभय पक्ष के साक्ष्य एवं अभिवचनों के आधार पर निम्न आदेश पारित किया :-
'' परिवादिनी का परिवाद अंशत: स्वीकार किया जाता है। परिवादिनी पुनर्चलन के पहले की जमा धनराशि नियमानुसार बोनस आदि के लाभ के साथ पाने की अधिकारिणी है तथा पुनर्चलन के बाद की धनराशि बोनस आदि के लाभों के वगैर पाने की अधिकारिणी है वह देय धनराशि पर परिवाद की तिथि से अदायगी की तिथि तक 10 प्रतिशत ब्याज पाने की भी अधिकारिणी है। परिवादिनी 1000.00 रू0 बतौर खर्चा मुकदमा भी पाने की अधिकारिणी है। ''
उक्त निर्णय से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी बीमा निगम द्वारा प्रश्नगत निर्णय को त्रुटि पूर्ण बताते हुए प्रश्नगत निर्णय को अपास्त किए जाने हेतु अपील संख्या 1606/2007 योजित की गयी है तथा परिवादिनी सुनीता देवी द्वारा अपील संख्या 1493/2011 क्षतिपूर्ति में बढ़ोत्तरी हेतु प्रस्तुत की गयी है।
हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क विस्तार से सुने तथा पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य का सम्यक अवलोकन किया ।
पत्रावली के अवलोकन से स्पष्ट है कि प्रत्यर्थिनी/परिवादिनी के पति नरेन्द्र कुमार पाण्डेय ने अपने जीवन पर बीमा दिनांक 25.11.1997 को अपीलार्थी बीमा निगम से एक लाख रू0 का पालिसी संख्या 281211963 एवं पचास हजार रू0 की पालिसी संख्या 281311970 ली थी। बीमाधारक प्रीमियम की एक किस्त की धनराशि दि0 25.11.2001 को अदा नहीं कर सका जिसके कारण उसकी उक्त पालिसियां लेप्स हो गयी। बीमा धारक ने उक्त पालिसियों के पुनर्चलन हेतु दिनांक 19.06.2002 को प्रस्ताव पत्र भरा । बीमा निगम के अधिकृत चिकित्सक द्वारा बीमाधारक के स्वास्थ का परीक्षण किया गया और स्वस्थ पाए जाने पर उक्त दोनों पालिसियों का पुर्नचलन बीमा कम्पनी द्वारा दिनांक 19.06.2002 को कर दिया गया। दिनांक 24.05.2005 को बीमाधारक की मृत्यु पेट दर्द के कारण हो गयी। नामिनी होने के कारण प्रत्यर्थिनी/परिवादिनी ने दोनों पालिसियों की बीमित धनराशि प्राप्त करने हेतु दावा प्रस्तुत किया । लेकिन बीमा कम्पनी ने क्लेम की धनराशि यह सूचित करते हुए परिवादिनी को नहीं दी कि पुनर्चलन की तिथि के पूर्व से ही मृतक गुर्दा रोग से पीडि़त था और गुर्दे का आपरेशन दिनांक 22.08.2000 को कराया गया था लेकिन बीमाधारक द्वारा इस तथ्य को छिपाकर धोखे से बीमा पालिसी का पुर्नचलन कराया गया है
पत्रावली के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा दोनों पालिसियों का पुनर्चलन दिनांक 19.06.2002 को अपने पत्र दिनांक 24.11.2005 द्वारा इस आधार पर निरस्त कर दिया गया कि बीमाधारक स्व0 नरेन्द्र कुमार पाण्डेय द्वारा पुनर्चलन आवेदन में अपने स्वास्थ सम्बन्धी तथ्य को छिपाया गया जबकि उसके गुर्दे का प्रत्यारोपड़ दिनांक 22.08.2000 को हुआ था। बीमाधारक ने इसी के आधार पर पालिसियों की पूर्ण धनराशि न देकर प्रथम पालिसी पर 34,300.00 रू0 एवं द्वितीय पालिसी पर 10,750.00 रू0 का क्लेम पेडअप वैल्यू के आधार पर भुगतान हेतु प्राप्त किया गया तथा पालिसियों का नवीनीकरण दिनांक 19.06.2002 को निरस्त कर 03 वर्ष का प्रीमियम एवं इसके पूर्व लेप्स समय का प्रीमियम जब्त कर लिया जबकि बीमा कम्पनी ने स्वयं अपने शाखा प्रबन्धक से प्रकरण की जांच करायी गयी जिसके द्वारा यह रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी कि '' पूंछतांछ एवं लिखित वयानों के आधार पर उपरोक्त पालिसी में दावा सही प्रतीत होता है '' उक्त आख्या अपील संख्या 1493/2011 की पत्रावली के पेज 56 पर उपलब्ध है।
प्रत्यर्थिनी/परिवादिनी सुनीता देवी का कथन है कि 50 हजार रू0 की पालिसी सं0- 281311970 आशादीप पालिसी थी तथा उसके पति बीमाधारक के किडनी प्लांटेशन हेतु भर्ती के समय 03.07.2000 से 20.09.2000 तक वैध एवं प्रभावी थी। उक्त पालिसी की शर्तो के तहत किडनी प्लांटेशन का क्लेम बीमा निगम में दि0 24.01.2001 को प्रस्तुत किया गया था जो अपील संख्या 1493 सन 2011 की पत्रावली के पृष्ठ संख्या 57 पर उपलब्ध है एवं बीमा निगम द्वारा सत्यापित भी है, लेकिन उक्त क्लेम को बीमा कम्पनी ने शल्य क्रिया विधि को पालिसी के तहत क्लेम न आने के कारण दिनांक 15.03.2001 को ''नो क्लेम'' कर दिया गया जो पत्रावली के पेज 58 एवं 59 पर उपलब्ध है । परिवादिनी सुनीता देवी द्वारा गुर्दा प्रत्यारोपड़ एवं क्लेम के संबंध में बीमा कम्पनी सूचित किया था जिसकी जानकारी के बाद सन्तुष्ट होकर बीमा कम्पनी द्वारा पुर्नचलन आवेदन स्वीकार किया गया है, जिससे स्पष्ट होता है कि पुर्नचलन आवेदन में कोई तथ्य बीमा धारक द्वारा छिपाया नहीं गया है। बीमा धारक के मेडिकल परीक्षण के उपरांत स्वस्थ पाए जाने पर दिनांक 19.06.2002 को पुर्नचलन आवेदन बीमा कम्पनी द्वारा स्वीकार किया गया है। प्रश्नगत बीमा पालिसी वर्ष 1997 में ली गयी थी जबकि बीमाधारक की मृत्यु 24.05.2005 में हुयी है। पालिसी के पुनर्चलन के लगभग ढाई वर्ष के उपरांत बीमाधारक की मृत्यु पेट दर्द के कारण एकाएक हुयी है। इंश्योरंस एक्ट की धारा 45 मे तहत 02 वर्ष बाद पुनर्चलन को निरस्त करने का अधिकार बीमा कम्पनी को नहीं है।
पत्रावली के अवलोकन से स्पष्ट है कि पालिसी का पुनर्चलन दिनांक 19.06.2002 को किया गया है उसके उपरांत बीमा कम्पनी द्वारा 03 वर्ष का प्रीमियम लिया गया है। इंश्योरेंस एक्ट की धारा 45 के तहत पुर्नचलन के दो वर्ष बाद पुर्नचलन निरस्त करने का अधिकार बीमा कम्पनी को नहीं है। प्रत्यर्थिनी/परिवादिनी का तर्क है कि यदि पुर्नचलन स्वीकृत योग्य नहीं था तो उसे पहले ही अस्वीकृत कर देना चाहिए था। प्रत्यर्थिनी/परिवादिनी द्वारा इसी आधार पर दोनों पालिसियों की बीमित एवं बोनस धनराशि तथा क्षतिपूर्ति की मांग की गयी है। पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों के अनुसार गुर्दे के इलाज की जानकारी बीमा कम्पनी को दिनांक 24.01.2001 को दी गयी थी तथा विधिवत जानकारी के बाद पुनर्चलन बीमा कम्पनी द्वारा पूर्ण संतुष्टि के उपरांत स्वीकृत किया गया था ।
मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा III(2009) CPJ 25 (NC) एन0सी0 लाइफ इंश्योरेंस कम्पनी लि0 बनाम गोवरम्मा के मामले में मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा मिट्ठूलाल नायक बनाम एल0आई0सी0 आफ इण्डिया में यह विधि वयवस्था दी गयी है-
. Hon'ble Supreme Court has clearly held that for purposes of Section 45 of the Life Insurance Act, 1938, the period of two years has to be counted from the date on which the policy was originally effected and not from the date of revival of the Policy.
मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा सी0पी0जे0 2018 2 पेज 95 एन0सी0 एस0बी0आई लाइफ इंश्योरेंस कम्पनी लि0 बनाम बैजनाथ में यह विधि वयवस्था दी गयी है:
If Insurance Company has allowed revival of policy company must have been satisfied with evidence submitted by policy holder – if company was not satisfied revival should have been rejected- Repudiation not justified- interest awarded.
ठीक इसी प्रकार मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा सी0पी0जे0 2009 3 पेज 370 एल0आई0सी0 बनाम विमला देवी में व्यवस्था दी गयी है कि
Life insurance- Policy lapsed- renewed after paying premium for lapsed period- Policy would start from date of issuance of policy and not from date of renewal
उक्त विधि-व्यवस्थाओं के आलोक में हमारे विचार से जिला मंच का प्रश्नगत निर्णय अपास्त करने के साथ ही प्रत्यर्थिनी/परिवादिनी द्वारा पालिसी संख्या 281311963 एवं 281311970 के अन्तर्गत बीमित, बोनस एवं क्षतिपूर्ति की धनराशि की बढोत्तरी हेतु प्रस्तुत की गयी अपील संख्या 1493 सन 2011 स्वीकार करते हुए अपील संख्या 1606/2007 निरस्त होने योग्य है। बीमा कम्पनी की ओर से प्रस्तुत विधि व्यवस्थायें प्रस्तुत पालिसी पर प्रभावी नहीं हैं क्योंकि बीमा पालिसी की शर्तो के तहत पालिसी पुनर्चलन हेतु निर्धारित अवधि से ज्यादा समय तक बीमा पालिसी चली है।
आदेश
अपील संख्या 1493 सन 2011 स्वीकार करते हुए जिला मंच, संत रविदास नगर, भदोही द्वारा परिवाद संख्या 37 सन 2006 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 20.06.2007 अपास्त करते हुए भारतीय जीवन बीमा निगम को आदेशित किया जाता है कि पालिसी संख्या 281311963 एवं 281311970 के अन्तर्गत बीमित धनराशि एवं उस पर निर्धारित बोनस का भुगतान दो माह के अन्दर 09 (नौ) प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित परिवाद दायरा के दिनांक से अदायगी तक परिवादिनी/अपीलार्थिनी को करे।
अपील संख्या 1606 सन 2007 निरस्त की जाती है।
उभय पक्ष इन अपीलों का अपना अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
इस निर्णय की एक प्रति अपील संख्या 1606 सन 2007 की पत्रावली पर रखी जाए।
उदय शंकर अवस्थी गोवर्धन यादव
पीठासीन सदस्य सदस्य
कोर्ट 3
S.K.Srivastav PA
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
(सुरक्षित)
अपील संख्या-1606/2007
(जिला उपभोक्ता फोरम, सन्त रविदास नगर भदोही द्वारा परिवाद संख्या 37/2006 में पारित आदेश दिनांक 20.06.2007 के विरूद्ध)
1. Branch Manager Life Insurance Corporation of India, Branch Gyanpur, District Sant Ravidas Nagar Bhadohi.
2. Senior Divisional Manager, Life Insurance Corporation of India, Divisional Office, Jeewan Prakash Post Box No. 1, 1155B 121120, Gauriganj, Varanasi. ....................अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम
Smt. Sunita Devi, adult, Wife of Late Narendra Kumar Pandey, R/o. Nathaipur, Post Nathaipur, Tehsil Gyanpur, at present R/o. C/o. Sri Anil Kumar Misra R/o. Kathota, Post Gopiganj, Tehsil Gyanpur, District Sant Ravidas Nagar Bhadohi.
.............प्रत्यर्थी/परिवादिनी
एवं
अपील संख्या-1493/2011
(जिला उपभोक्ता फोरम, सन्त रविदास नगर भदोही द्वारा परिवाद संख्या 37/2006 में पारित आदेश दिनांक 20.06.2007 के विरूद्ध)
श्रीमति सुनीता देवी पत्नी स्व0 नरेन्द्र कुमार पाण्डेय, वर्तमान पता-द्वारा अनिल कुमार मिश्र निवासी-कठौता, पो0-गोपीगंज, तहसील-ज्ञानपुर, जिला-सन्त रबिदास नगर भदोही
....................अपीलार्थी/परिवादिनी
बनाम
1. शाखा प्रबन्धक, भारतीय जीवन बीमा निगम, शाखा-ज्ञानपुर, जनपद-सन्त रबिदासनगर, भदोही
2. भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा वरिष्ठ मण्डल प्रबन्धक, भारतीय जीवन बीमा निगम, मण्डल कार्यालय जीवन प्रकाश, पो0 बाक्स नं0 1, 1155बी-121120 गौरीगंज वाराणसी।
.............प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण
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समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
परिवादिनी की ओर से उपस्थित : श्री बी0के0 उपाध्याय,
विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षीगण की ओर से उपस्थित : श्री वी0एस0 बिसारिया,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 13.09.2018
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
जिला फोरम, सन्त रविदास नगर भदोही ने परिवाद संख्या-37/2006 श्रीमती सुनीता देवी बनाम शाखा प्रबन्धक भारतीय जीवन बीमा निगम व एक अन्य अपने निर्णय और आदेश दिनांक 20.06.2007 के द्वारा अंशत: स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
''परिवादिनी का परिवाद अंशत: स्वीकार किया जाता है। परिवादिनी पुर्नचलन के पहले की जमा धनराशि नियमानुसार बोनस आदि के लाभ के साथ पाने की अधिकारिणी है तथा पुर्नचलन के बाद की धनराशि बोनस आदि के लाभों के बगैर पाने की अधिकारिणी है। वह देय धनराशि पर परिवाद की तिथि से अदायगी की तिथि तक 10% ब्याज पाने की भी अधिकारी है। परिवादिनी 1000/-(एक हजार रू0) बतौर खर्चा मुकदमा भी पाने की अधिकारिणी है। पत्रावली दा0द0 हो।''
जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश से परिवाद के उभय पक्ष सन्तुष्ट नहीं हैं। अत: परिवाद की परिवादिनी श्रीमती सुनीता देवी ने उपरोक्त अपील संख्या-1493/2011
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श्रीमती सुनीता देवी बनाम शाखा प्रबन्धक, भारतीय जीवन बीमा निगम व एक अन्य और परिवाद के विपक्षीगण शाखा प्रबन्धक, भारतीय जीवन बीमा निगम व एक अन्य ने उपरोक्त अपील संख्या-1606/2007 शाखा प्रबन्धक, भारतीय जीवन बीमा निगम व एक अन्य बनाम श्रीमती सुनीता देवी प्रस्तुत किया है।
उल्लेखनीय है कि उपरोक्त दोनों अपीलों की सुनवाई राज्य उपभोक्ता आयोग उ0प्र0 की पीठ, जिसके माननीय सदस्यगण श्री उदय शंकर अवस्थी और श्री गोवर्धन यादव रहे हैं, के द्वारा की गयी है, परन्तु दोनों माननीय सदस्यगण ने अलग-अलग निर्णय पारित किए हैं। अत: तृतीय सदस्य के रूप में दोनों अपीलें सुनवाई हेतु मेरे समक्ष सूचीबद्ध की गयी हैं।
दोनों अपील में सुनवाई के समय परिवादिनी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री बी0के0 उपाध्याय और विपक्षीगण भारतीय जीवन बीमा निगम की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री वी0एस0 बिसारिया उपस्थित आए हैं।
मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय व आदेश तथा पत्रावली और दोनों माननीय सदस्यगण द्वारा लिखित निर्णय का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि
परिवादिनी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसके पति नरेन्द्र कुमार पाण्डेय ने अपने जीवन का बीमा विपक्षी भारतीय जीवन बीमा निगम से
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दिनांक 25.11.1997 को कराया था और विपक्षी भारतीय जीवन बीमा निगम से दो पालिसी ली थी, जिसमें एक पालिसी एक लाख रूपए की थी, जिसका नं0 281211963 और दूसरी पालिसी पचास हजार रूपए की थी, जिसका नं0 281311970 था।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी का कथन है कि उसके पति आर्थिक परेशानी के कारण प्रीमियम की धनराशि निश्चित तिथि दिनांक 25.11.2001 को अदा नहीं कर सके, जिससे उनकी दोनों पालिसियॉं लैप्स हो गयीं। उसके बाद उसके पति ने उक्त दोनों पालिसियों के पुनर्चलन हेतु दिनांक 19.06.2002 को प्रस्ताव भरा और बीमा निगम के अधिकृत चिकित्सक द्वारा उनके स्वास्थ्य का परीक्षण किया गया। चिकित्सीय परीक्षण पर स्वस्थ पाए जाने पर बीमा निगम ने उनकी दोनों पालिसियों को दिनांक 19.06.2002 को पुनर्जीवित कर दिया और उसके बाद दिनांक 24.05.2005 को पेट में दर्द के कारण उनकी मृत्यु हुई है।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी अपने पति की नामिनी है। अत: उसने अपने पति की मृत्यु के बाद दोनों बीमा पालिसियों की बीमि❜त धनराशि प्राप्त करने हेतु बीमा दावा विपक्षीगण/भारतीय जीवन बीमा निगम के समक्ष प्रस्तुत किया, परन्तु विपक्षीगण/भारतीय जीवन बीमा निगम ने पत्र दिनांक 24.11.2005 द्वारा सूचित किया कि पुनर्चलन की तिथि के पूर्व से ही उसके पति गुर्दा रोग से पीडि़त थे और गुर्दा खराब हो गया था,परन्तु इस तथ्य को छिपाकर उसके पति बीमाधारक ने पालिसी का पुनर्चलन कराया
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है। अत: पुनर्चलन दिनांक 19.06.2002 अवैध घोषित कर दिया गया है और उपरोक्त एक लाख रूपए की बीमा पालिसी के सम्बन्ध में 34,300/-रू0 और 50,000/-रू0 की पालिसी के सम्बन्ध में 10,750/-रू0 के भुगतान हेतु परिवादिनी का दावा स्वीकार किया गया है। अत: दोनों पालिसियों की बीमित धनराशि का भुगतान बीमा निगम ने करने से इन्कार कर दिया, जिससे क्षुब्ध होकर परिवादिनी ने जिला फोरम के समक्ष परिवाद प्रस्तुत किया है।
जिला फोरम के समक्ष विपक्षीगण भारतीय जीवन बीमा निगम ने लिखित कथन प्रस्तुत किया है और परिवाद का विरोध करते हुए कहा है कि परिवादिनी के पति ने दो बीमा पालिसी ली थी, परन्तु बीमा पालिसी की किस्त अदा न करने के कारण पालिसी लैप्स हो गयी थी। तदोपरान्त उसके पति ने बीमा पालिसी का रिवाइवल बीमा निगम को धोखा देकर डाक्टर से अपने रोग को छिपाकर कराया है, जबकि वह किडनी के गम्भीर रोग से ग्रस्त थे और उन्होंने आपरेशन अहमदाबाद सिविल अस्पताल में दिनांक 22.08.2000 को कराया था। अत: बीमा निगम ने परिवादिनी को उसके पति की दोनों बीमा पालिसियों का पुनर्चलन निरस्त कर सेवा में कोई त्रुटि नहीं की है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त परिवाद अंशत: स्वीकार करते हुए उपरोक्त प्रकार से आदेश पारित किया है, जिससे क्षुब्ध होकर उभय
पक्ष ने उपरोक्त अपीलें प्रस्तुत की हैं।
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परिवादिनी की ओर से प्रस्तुत उपरोक्त अपील में बीमित राशि पर बोनस एवं ब्याज दिलाए जाने की मांग की गयी है, जबकि विपक्षीगण/भारतीय जीवन बीमा निगम की ओर से प्रस्तुत अपील में जिला फोरम का निर्णय व आदेश निरस्त किए जाने की याचना की गयी है।
उल्लेखनीय है कि राज्य आयोग की पीठ के माननीय सदस्य श्री उदय शंकर अवस्थी ने अपने निर्णय में यह निष्कर्ष अंकित किया है कि बीमा निगम द्वारा प्रस्तुत उपरोक्त अपील संख्या-1606/2007 स्वीकार करते हुए जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय अपास्त किए जाने योग्य है और परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत उपरोक्त अपील संख्या-1493/2011 निरस्त किए जाने योग्य है, जबकि पीठ के दूसरे माननीय सदस्य श्री गोवर्धन यादव ने अपने निर्णय में यह निष्कर्ष अंकित किया है कि परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत उपरोक्त अपील संख्या-1493/2011 स्वीकार कर दोनों बीमा पालिसी के अन्तर्गत देय बीमित धनराशि एवं उस पर निर्धारित बोनस व ब्याज दिया जाना उचित है और बीमा निगम द्वारा प्रस्तुत उपरोक्त अपील संख्या-1606/2007 निरस्त किए जाने योग्य है।
विपक्षीगण भारतीय जीवन बीमा निगम के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादिनी के पति ने अपनी पूर्व बीमारी को छिपाकर अपनी दोनों बीमा पालिसी का पुनर्चलन कराया है। अत: बीमा निगम ने दोनों बीमा पालिसी का पुनर्चलन निरस्त कर
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सेवा में कोई त्रुटि नहीं की है। ऐसी स्थिति में परिवादिनी दोनों पालिसी की बीमित धनराशि अथवा बोनस पाने की अधिकारी नहीं है और न ही बीमित धनराशि पर वह कोई ब्याज पाने की अधिकारी है।
परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश उचित और विधिसम्मत है। बीमा निगम ने प्रत्यर्थी/परिवादिनी की दोनों पालिसियों का पुनर्चलन निरस्त करने का जो आधार बताया है वह अनुचित और विधि विरूद्ध है। परिवादिनी अपने पति की दोनों बीमा पालिसी की बीमित धनराशि बोनस एवं ब्याज सहित पाने की अधिकारी है।
हमने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
माननीय सदस्य श्री गोवर्धन यादव ने अपने निर्णय में यह निष्कर्ष अंकित किया है कि दोनों पालिसी के पुनर्चलन के बाद दो वर्ष की अवधि बीत चुकी है। अत: धारा-45 बीमा अधिनियम के अनुसार बीमा निगम द्वारा पुनचर्लन को बीमाधारक द्वारा गलत सूचना दिए जाने के आधार पर निरस्त नहीं किया जा सकता है। इसके विपरीत माननीय सदस्य श्री उदय शंकर अवस्थी ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा Mithoolal Nayak Vs. LIC of India, AIR 1962 SC 814 के वाद में प्रतिपादित सिद्धान्त के आधार पर यह माना है कि दो साल की अवधि बीतने पर भी धारा-45 इंश्योरेंस एक्ट का दूसरा भाग लागू होता है, जिसके
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अनुसार सारवान तथ्य को छिपाते हुए धोखे से प्राप्त की गयी बीमा पालिसी पर दो वर्ष की अवधि बीतने के बाद भी बीमाकर्ता प्रश्न उठा सकता है।
स्थिति स्पष्ट करने हेतु धारा-45 इंश्योरेंस एक्ट को नीचे उद्धृत किया जा रहा है।
45. Policy not to be called in question on ground of mis-statement after two years.- No policy of life insurance effected before the commencement of this Act shall after the expiry of two years from the date of commencement of this Act and no policy of life insurance effected after the coming into force of this Act shall after the expiry of two years from the date on which it was effected, be called in question by an insurer on the ground that statement made in the proposal or in any report of a medical officer, or referee, or friend of the insured, or in any other document leading to the issue of the policy, was inaccurate or false, unless the insurer shows that such statement [was on a material matter or suppressed facts which it was material to disclose and that it was fraudulently made] by the policy-holder and that the policy-holder knew at the time of making it that the
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statement was false [or that it suppressed facts which it was material to disclose]:
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने Mithoolal Nayak Vs. LIC of India, AIR 1962 SC 814 के वाद में धारा-45 इंश्योरेंस एक्ट पर विचार किया है और माना है कि दो वर्ष बीतने के बाद धारा-45 का भाग 2 निम्न परिस्थितियों में लागू होता है:-
(A) The statement must be on a material matter or must suppress facts which it was to disclose.
(B) The suppression must be fraudulently made by the policy-holder.
(C) The policy-holder must have known at the time of
making the statement that it was false or that it suppressed facts which it was material to disclose.
माननीय राष्ट्रीय आयोग ने Chairman, L.I.C. of India Vs. Narasamma, 1 (1992) CPJ 128 (NC) के वाद में पालिसी के पुनर्चलन के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण सिद्धान्त प्रतिपादित किया है। माननीय राष्ट्रीय आयेाग के निर्णय का संगत अंश नीचे उद्धृत है।
“10. As noticed earlier, the policy had lapsed when the Premium was not paid within the grace period. Here we may cite A. Ahmedunisa Bagum V. L.I.C. of India, Hyderabad, AIR 1981 A.P.50 wherein it
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was remarked:
From the aforesaid discussion devoted to the limitations and conditions for the revival of lapsed polices and the relevant rulings on the subject, the following principles emerge;
- Revival of a lapsed policy is a privilege or concession granted to the policy holder subject to certain limitations.
- The said limitations are:
- the revival could only be during the lifetime of the assured and not after his death;
- Within a period of vie years from the due date of the first unpaid premium;
- Before the date of maturity; and
- The conditions relating to the payment of the premium due to the payment of the premium due on the lapsed policies should be complied with.
- The revival of a policy is not a matter of right and it would not automatically follow even after the fulfilment of the conditions laid down in the policy.
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- the revival operates as a new contract and the rights and liabilities do not begin to run until the new terms and conditions are accepted and complied with.”
दोनों माननीय सदस्यों के निर्णय से स्पष्ट है कि यह तथ्य निर्विवाद है कि परिवादिनी के पति के गुर्दा का आपरेशन दिनांक 22.08.2000 को दिनांक 19.06.2002 को दोनों पालिसियों के पुनर्चलन के पूर्व हुआ था, परन्तु दोनों पालिसियों के पुनर्चलन प्रस्ताव में परिवादिनी के पति ने यह तथ्य छिपाया है और उत्तर नकारात्मक में अंकित किया है। माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा Chairman, L.I.C. of India Vs. Narasamma के उपरोक्त वाद में प्रतिपादित सिद्धान्त से स्पष्ट है कि पुनर्चलन अधिकार स्वरूप स्वत: नहीं होगा। बीमाकर्ता पुनर्चलन अस्वीकार भी कर सकता है। अत: बीमाकर्ता को सही तथ्य से अवगत कराया जाना आवश्यक है ताकि वह अपने विवेक का प्रयोग कर सके।
उपरोक्त विवेचना एवं सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्थितियों पर विचार कर मैं इस मत का हूँ कि परिवादिनी के पति ने अपने गुर्दे के आपरेशन को जानते हुए पालिसी के पुनर्चलन के लिए छुपाया है और वास्तविक स्थिति से बीमा निगम को अवगत कराये बिना कपटपूर्ण ढंग से दोनों पालिसी का पुनर्चलन कराया है। अत: धारा-45 इंश्योरेंस एक्ट के भाग दो के अनुसार बीमा निगम दोनों पालिसी का पुनर्चलन निरस्त कर सकता है। अत: जिला फोरम ने
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परिवादिनी का परिवाद स्वीकार कर गलती की है। अत: बीमा निगम की अपील स्वीकार कर जिला फोरम का निर्णय व आदेश अपास्त करते हुए परिवाद निरस्त किए जाने योग्य है और उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर परिवादिनी की अपील निरस्त किए जाने योग्य है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर मैं माननीय सदस्य श्री उदय शंकर अवस्थी के निर्णय का समर्थन करता हूँ।
इस निर्णय की मूल प्रति अपील संख्या-1606/2007 में रखी जाय तथा एक फोटोप्रति अपील संख्या-1493/2011 में रखी जाय।
पत्रावली अन्तिम निर्णय घोषित करने हेतु सम्बन्धित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध की जाए।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1