(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1829/2010
निवास राठौर पुत्र स्व0 रामकृपाल राठौर बनाम शाखा प्रबंधक भारतीय जीवन बीमा निगम तथा एक अन्य
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
दिनांक: 08.10.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-406/2008, निवास राठौर बनाम शाखा प्रबन्धक, भारतीय जीवन बीमा निगम तथा एक अन्य में विद्वान जिला आयोग, द्वितीय लखनऊ दवारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 27.9.2010 के विरुद्ध स्वंय परिवादी द्वारा क्षतिपूर्ति की राशि में बढ़ोत्तरी के लिए प्रस्तुत की गई अपील पर अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री आमोद राठौर तथा प्रत्यर्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री संजय जायसवाल को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/पत्रावली का अवलोकन किया गया।
2. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादी द्वारा यूलिप प्लान के अंतर्गत पालिसी संख्या-217523499 क्रमांक सं0-188 चार वर्षों के लिए ई.सी.एस. सिस्टम के अंतर्गत प्राप्त की गई थी, परन्तु मार्च 2008 की किस्त परिवादी के खाते से प्राप्त नहीं की गई, इसके बाद परिवादी द्वारा अनेक बार विपक्षीगण के कार्यालय में सम्पर्क किया गया तथा लिखित शिकायत भी की गई और पालिसी के पुनर्चलन के लिए अनुरोध किया गया, इसके पश्चात विपक्षी सं0-1 ने अपनी गलती स्वीकार की।
3. विपक्षीगण का कथन है कि जिस समय बैंक का खाता संख्या अंकित किया गया था, वह गलती से 211298 के स्थान पर 21298 लिख दिया गया, इसलिए ई.सी.एस. सिस्टम के अंतर्गत कटौती नहीं हो सकी। परिवादी का पत्र मिलने पर इस त्रुटि को दुरूस्त कर लिया गया। पालिसी नियमित कर दी गई तथा देरी से प्रीमियम जमा करने के कारण ली गई राशि भी वापस लौटा दी गई। पालिसी का नियमित रूप से संचालन प्रारम्भ हो चुका है।
4. विद्वान जिला आयोग ने निष्कर्ष दिया है कि विपक्षीगण के कार्यालय से त्रुटि कारित हुई है, इसलिए मानसिक प्रताड़ना की मद में अंकन 1,000/-रू0 अदा करने का आदेश दिया गया।
5. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि परिवादी एक
-2-
वरिष्ठ अधिवक्ता है, इसलिए क्षतिपूर्ति की राशि अत्यधिक कम है। यथार्थ में किसी भी सेवाप्रदाता के स्तर से सेवा में कमी का तात्पर्य वह कमी है, जो आश्यपूर्वक की गई हो। यदि लिपिकीय त्रुटि कारित हुई है तब ऐसी कमी को सेवा में कमी नहीं माना जा सकता। विपक्षीगण ने लिखित कथन में कथन किया है कि परिवादी ने जो खाता संख्या उपलब्ध कराया था, उसका नम्बर 211298 था, परन्तु त्रुटिपूर्वक अभिलेखों में खाता संख्या 21298 अंकित हुआ है, इसलिए ई.सी.एस. सिस्टम के अंतर्गत प्रीमियम प्राप्त नहीं किया जा सका। वास्तव में खाता संख्या 211298 के स्थान पर खाता संख्या 21298 अंकित हो जाना एक मानवीय चूक है और यह किसी भी मानव से कारित हो सकती है, इस मानवीय चूक को सेवा में कमी नहीं माना जा सकता। इस प्रकार विद्वान जिला आयोग ने सेवा में कमी के संबंध में अनुचित निष्कर्ष पारित किया है, परन्तु चूंकि इस निष्कर्ष को बीमा निगम द्वारा चुनौती नहीं दी गई है, इसलिए इसे परिवर्तित करने का अवसर नहीं है, परन्तु क्षतिपूर्ति बढ़ाने का कोई औचित्य नहीं है। तदनुसार प्रस्तुत अपील निरस्त होने योग्य है।
आदेश
6. प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0, कोर्ट-2