(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1252/2007
(जिला आयोग, गाजियाबाद द्वारा परिवाद संख्या-195/2005 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 24.5.2007 के विरूद्ध)
श्रीमती सुनीता पत्नी स्व0 श्री सन्तोष कुमार, निवासिनी बी-205 ए, लाजपत नगर, साहिबाबाद, गाजियाबाद, जिला गाजियाबाद।
अपीलार्थी/परिवादिनी
बनाम
1. लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन आफ इंडिया, 1/28, सेक्टर-3, राजेन्द्र नगर, साहिबाबाद, गाजियाबाद द्वारा ब्रांच मैनेजर।
2. रिजनल मैनेजर, लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन आफ इंडिया, नार्थ सेन्ट्रल रिजनल आफिस, 16/98, महात्मा गांधी मार्ग, कानपुर, उत्तर प्रदेश।
प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री सुशील कुमार शर्मा
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री संजय जायसवाल।
दिनांक: 27.09.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-195/2005, श्रीमती सुनीता बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम तथा एक अन्य में विद्वान जिला आयोग, गाजियाबाद द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 24.5.2007 के विरूद्ध स्वंय परिवादिनी की ओर से प्रस्तुत की गई अपील पर उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/पत्रावली का अवलोकन किया गया। इस निर्णय/आदेश द्वारा विद्वान जिला आयोग ने परिवाद इस आधार पर खारिज कर दिया कि बीमाधारक बीमा पालिसी लेने के पूर्व से ही बीमार थे और इस तथ्य को उनके द्वारा छिपाया गया।
2. इस निर्णय/आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि विद्वान जिला आयोग ने अवैध निर्णय/आदेश पारित किया है। बीमा पालिसी प्राप्त करने से पूर्व बीमाधारक पूर्णत: स्वस्थ थे। बीमाधारक की मृत्यु पेट दर्द एवं बुखार के कारण हुई है, जिसका कोई संबंध बीमा पालिसी लेते समय स्वास्थ्य की स्िथति से नहीं है, इसलिए बीमा क्लेम देय है।
3. विद्वान जिला आयोग ने अपने निर्णय में यह उल्लेख किया है कि लोक नायक अस्पताल नई दिल्ली के मृत्यु प्रमाण पत्र में मृत्यु का कारण एच.बी.वी., संबंधित सी.एल.डी., पी.एच.टी., एसाइटिस, हेपेटिक, एनसिफालोपेथी, यू.जी.आई. ब्लीड अंकित है, जिसकी अवधि 5 माह पूर्व दर्शाई गई है। मृत्यु दिनांक 21.8.2003 को हुई है, उसके 5 माह पूर्व जब बीमा पालिसी (दिनांक 14.7.2003) प्राप्त की गई तब वह इस बीमारी से ग्रसित था, जिसके कारण बीमाधारक की मृत्यु हुई है और तदनुसार बीमा प्रस्ताव भरते समय बीमारी के तथ्य को छिपाने का निष्कर्ष देते हुए परिवाद खारिज किया है।
4. बीमा निगम द्वारा बीमा क्लेम नकारने का जो आधार दर्शित किया गया है, उसमें यही उल्लेख किया है कि बीमारी के तथ्य को जानबूझकर छिपाया गया है। दस्तावेज सं0-21 (अनेक्जर सं0-7) पर यह तथ्य अवश्य अंकित है कि मरीज 5 माह पूर्व से एच.बी.वी. की बीमारी से ग्रसित था, परन्तु इस दस्तावेज से यह साबित नहीं होता कि यथार्थ में मरीज को इस बीमारी का ज्ञान था और आश्यपूर्वक इस बीमारी को छिपाया गया। बीमा पालिसी प्राप्त करने से पूर्व बीमारी का किसी अस्पताल में इलाज कराने का कोई सबूत मौजूद नहीं है। बीमा निगम की ओर से नजीर, पुष्पा चौहान बनाम लाइफ इंश्योरेंस कारपारेशन आफ इंडिया II (2011) CPJ 44 (NC) प्रस्तुत की गई है, जिसमें यह व्यवस्था दी गई है कि मरीज की पत्नी तथा सहायक द्वारा दी गई सूचना के आधार पर मेडिकल प्रमाण पत्र में यह अंकित किया गया कि बीमित 30 वर्षों से बीमारी से गसित था और इस बीमारी को बीमा प्रस्ताव में नहीं खोला गया तब बीमा क्लेम नकारने का कारण वैध माना गया। प्रस्तुत केस में अनेक्जर सं0-7 पर 5 माह पूर्व से बीमार होने का कथन अंकित है, परन्तु जिस बीमारी का उल्लेख किया गया है, वह बीमारी 5 माह पूर्व किसकी सूचना पर दर्शाई गई, इसका कोई उल्लेख अनेक्जर सं0-7 में नहीं है, जबकि प्रस्तुत की गई नजीर में पत्नी तथा सहायक द्वारा 30 वर्ष पुरानी बीमारी की सूचना दी गई थी, इसलिए इस नजीर में दी गई व्यवस्था प्रश्नगत केस के तथ्यों के लिए सुसंगत नहीं है। प्रस्तुत केस में यह तथ्य भी स्थापित नहीं है कि 5 माह पूर्व की बीमारी से ग्रसित होने की सूचना किसके द्वारा दी गई और ऐसी सूचना देने वाले व्यक्ति के पास सूचना देने का आधार क्या था। यथार्थ में बीमा प्रस्ताव भरने से पूर्व बीमाधारक के बीमार होने तथा बीमारी का इलाज कराने और तदनुसार बीमारी के तथ्य का ज्ञान होने का कोई प्रमाण पत्रावली में मौजूद नहीं है। विद्वान जिला आयोग ने अनेक्जर सं0-2 पर अंकित टिप्पणी के आधार पर बीमा क्लेम नकारना वैध माना है, जो अनुचित है। तद्नुसार यह निर्णय/आदेश अपास्त होने योग्य है।
5. परिवादिनी द्वारा परिवाद पत्र में कथन किया गया है कि बीमाधारक द्वारा जो परिवादिनी के पति सन्तोष कुमार हैं, ने अंकन 03 लाख रूपये की बीमा पालिसी प्राप्त की थी तथा प्रीमियम के रूप में अंकन 9,623/-रू0 की राशि अदा की थी। पालिसी लेने के पश्चात दिनांक 21.8.2003 को बीमाधारक की मृत्यु हो गई और परिवादिनी इस पालिसी में नामिनी है। बीमा निगम द्वारा इन तथ्यों से इंकार नहीं किया है कि बीमित द्वारा तीन लाख रूपये की पालिसी प्राप्त नहीं की गई थी। अत: इस स्थिति में परिवादिनी बीमित राशि प्राप्त करने के लिए अधिकृत है। तदनुसार परिवाद स्वीकार करते हुए अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
6. प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 24.05.2007 अपास्त किया जाता है तथा परिवाद इस प्रकार स्वीकार किया जाता है कि बीमाधारक की मृत्यु पर बीमित राशि अंकन 3,00,000/-रू0 (तीन लाख रूपये) परिवादिनी को देय होगी। इस राशि पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक 06 प्रतिशत प्रतिवर्ष साधारण ब्याज देय होगा तथा परिवाद व्यय के रूप में अंकन 2,500/-रू0 भी देय होंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0, कोर्ट-2