Final Order / Judgement | (सुरक्षित) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ। अपील सं0 :-140/2013 (जिला उपभोक्ता आयोग, मुजफ्फरनगर द्वारा परिवाद सं0-11/2009 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 26/12/2012 के विरूद्ध) श्रीमती नूतन पत्नी स्व0 मुनेश कुमार निवासिनी-ग्राम व डा0 बरला, परगना-पुरछार, तहसील व जिला-मुजफ्फरनगर। - Appellant
Versus - भारतीय जीवन बीमा निगम केन्द्रीय कार्यालय नैरीमन प्वाइंट, मुम्बई द्वारा शाखा कार्यालय 157, अन्सारी रोड, जिला-मुजफ्फरनगर।
- भारतीय जीवन बीमा निगम मंडल कार्यालय मेरठ मंडल, जीवन प्रकाश बिल्डिंग, साकेत रोड जिला-मेरठ।
- Respondents
समक्ष - मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य
- मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य
उपस्थिति: अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता:-श्री अनूप द्विवेदी प्रत्यर्थीगण की ओर विद्वान अधिवक्ता:- श्री संजय जायसवाल दिनांक:-03.09.2024 माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय - जिला उपभोक्ता आयोग, मुजफ्फरनगर द्वारा परिवाद सं0-11/2009 श्रीमती नूतन बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम व अन्य में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 26/12/2012 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गयी है।
- जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद केवल इस सीमा तक स्वीकार किया है कि एक वर्ष का प्रीमियम अंकन 5,200/-रू0 तथा इस पर देय समस्त लाभ परिवादिनी को प्राप्त कराया जाए। मानसिक प्रताड़ना के मद में 2,500/-रू0 तथा परिवाद व्यय के रूप में अंकन 2,500/-रू0 अदा करने के लिए भी आदेशित किया गया है, जिस पर इन सभी राशियों पर 7.5 प्रतिशत की दर से ब्याज के लिए भी आदेशित किया गया है।
- परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादिनी के पति मुनेश कुमार ने अंकन 3,00,000/-रू0 के लिए एक बीमा पॉलिसी दिनांक 28.07.2005 को ली थी, जिसमें परिवादिनी नॉमिनी है। परिवादिनी के पति की मृत्यु दिनांक 01.03.2006 को हिमालयन इंस्टीट्यूट हॉस्पिटल जौली ग्रान्ट, देहरादून मे Cardio respiratory के कारण हो गयी, जबकि वह पॉलिसी लेते समय पूर्णता स्वस्थ थे। इस पॉलिसी के अलावा परिवादिनी के पति द्वारा अंकन 1,00,000/-रू0 एवं अंकन 75,000/-रू0 दो अन्य पॉलिसी प्राप्त की गयी थी, जिनके संबंध में क्रमश: अंकन 99,204/-रू0 एवं अंकन 73,099/-रू0 का भुगतान परिवादिनी को कर दिया गया है। प्रश्नगत पॉलिसी के संबंध में बीमा क्लेम प्रस्तुत किया गया। सभी दस्तावेज उपलब्ध कराये गये, परंतु स्वास्थ्य संबंधी जानकारी छिपाने के कारण बीमा क्लेम निरस्त कर दिया गया।
- बीमा कम्पनी का कथन है कि बीमा धारक ने पूर्व से मौजूद बीमारी के तथ्य को छिपाया, इसलिए बीमा क्लेम निरस्त किया गया। साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि परिवादिनी के पति द्वारा पॉलिसी के संबंध में सही सूचना उपलब्ध नहीं करायी गयी। एक वर्ष की अवधि के अंतर्गत बीमाधारक की मृत्यु हुई है, इसलिए बीमा कम्पनी द्वारा जांच करायी गयी और जांच के अनुसार लीवर की बीमारी से ग्रसित होने के तथ्य को छिपाया गया, ऐसा माना गया, तदनुसार केवल 1 वर्ष के प्रीमियम की राशि को वापस लौटाने का उपरोक्त वर्णित आदेश पारित किया गया।
- अपील के ज्ञापन तथा मौखिक तर्कों का सार यह है कि जिला उपभोक्ता मंच का निष्कर्ष विधि-विरूद्ध है। बीमा पॉलिसी प्राप्त करते समय बीमारी के किसी तथ्य को नहीं छिपाया गया। अपीलार्थी की ओर से नजीर D. Srinivas Versus SBI Life Insurance Company Limited & others प्रस्तुत की गयी है। इस नजीर में दी गयी व्यवस्था का परिवादी के केस से कोई ताल्लुक नहीं है। यह नजीर पक्षकारों के मध्य सम्पूर्ण संविदा के बिन्दु पर है, जबकि प्रस्तुत केस बीमा पॉलिसी प्राप्त करते समय बीमारी के तथ्य को छिपाने से संबंधित है। बीमा प्रस्ताव की प्रति पत्रावली पर दस्तावेज सं0 24 एवं 25 के रूप मे मौजूद है, जिसमें किसी भी प्रकार की बीमारी या इलाज कराने से संबंधित प्रश्नों का नकारात्मक उत्तर नहीं दिया गया है। दस्तावेज सं0 27 पर एक मेडिकल सर्टिफिकेट जो डॉक्टर प्रदीप कुमार त्यागी द्वारा जारी किया गया है। Dysentery एण्ड Fever से ग्रसित होने के संबंध में है। इसी प्रकार दस्तावेज सं0 28 पर जारी प्रमाण पत्र पुन: फीवर तथा न्यूमोनिया के संबंध में है। यह दोनों प्रमाण पत्र वर्ष 2003 के हैं, जबकि बीमा पॉलिसी दिनांक 28.07.2005 को ली गयी थी। यह दोनों दस्तावेज सामान्य सी बीमारी से संबंधित है। यानि Dysentery एण्ड Fever का इलाज किया गया है तथा आराम की सलाह दी गयी है, जबकि हिमालयन इंस्टीट्यूट हॉस्पिटल के मृत्यु प्रमाण पत्र के अनुसार बीमा धारक की मृत्यु Cardiac arrest से हुई है। कार्डियक से संबंधित बीमारी का इलाज बीमा प्रसताव भरते समय या इससे पूर्व कराने का कोई सबूत पत्रावली पर मौजूद नहीं है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश साक्ष्य के विपरीत है। बीमा कम्पनी की ओर से नजीर Life Insurance Corporation of India Versus Manish Gupta III (2019) CPJ 31 (SC) प्रस्तुत की गयी है। इस केस के तथ्यों के अनुसार परिवादी का इलाज दिल की बीमारी के लिए किया गया है, जिसका खुलासा बीमाधारक द्वारा नहीं किया गया है। प्रस्तुत केस में बीमा कम्पनी ने दिल की बीमारी से संबंधित इलाज कराने का कोई सबूत प्रस्तुत नहीं किया। जिला उपभोक्ता आयोग ने भी अपने निर्णय में इस बीमारी से ग्रसित होने या इस बीमारी का इलाज बीमा प्रस्ताव भरने से पूर्व इलाज कराने का कोई सबूत अपने निर्णय में अंकित नहीं किया। अत: जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त होने योग्य है।
आदेश अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त किया जाता है। परिवाद इस प्रकार स्वीकार किया जाता है कि बीमाधारक की नॉमिनी/परिवादिनी को बीमा पॉलिसी में वर्णित समस्त धन अंकन 3,00,000/-रू0 (अंकन तीन लाख रू0 मात्र) बीमा कम्पनी द्वारा अदा किया जायेगा तथा इस राशि पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक 06 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज भी देय होगा। प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए। आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें। (सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार) संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट नं0 2 | |