(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1415/2008
(जिला आयोग, आजमगढ़ द्वारा परिवाद संख्या-92/2007 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 11.6.2008 के विरूद्ध)
सर्वेश कुमार सिंह पुत्र स्व0 श्री राम प्यारे सिंह, निवासी ग्राम अनुवारी नारायनपुर, तहसील सगड़ी, थाना जियनपुर, जिला आजमगढ़।
अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन आफ इंडिया, रीजनल आफिस 16/98, महात्मा गांधी मार्ग, कानपुर, द्वारा रीजनल मैनेजर एवं जोनल आफिस पोस्ट बाक्स नं0-21, प्रतिभा काम्पलेक्स, जुबली रोड, गोरखपुर, द्वारा जोनल मैनेजर एवं ब्रांच आफिस-I, आजमगढ़, द्वारा ब्रांच मैनेजर।
प्रत्यर्थी/विपक्षी
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री राजेश चड्ढा।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री विकास अग्रवाल।
दिनांक: 09.07.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-92/2007, सर्वेश कुमार सिंह बनाम शाखा प्रबंधक भारतीय जीवन बीमा निगम तथा दो अन्य में विद्वान जिला आयोग, आजमगढ़ द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 11.6.2008 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील पर उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
2. विद्वान जिला आयोग ने परिवाद इस आधार पर खारिज कर दिया कि बीमाधारक द्वारा बीमा पालिसी प्राप्त करते समय मौजूद बीमारी के तथ्य को छिपया गया और इस प्रकार पालिसी धोखा देकर प्राप्त की गई।
3. परिवाद के तथ्यों के अनुसार मृतक राम प्यारे सिंह द्वारा दिनांक 1.1.2004 से लागू बीमा पालिसी संख्या 292510399 अंकन 10 लाख रूपये की प्राप्त की गई थी। दिनांक 28.12.2004 को एकाएक खांसी आने लगी और अकबरपुर स्थानीय डा0 से उपचार कराया गया, परन्तु स्वस्थ न होने के कारण दिनांक 7.1.2005 को बीमाधारक को अपोलो अस्पताल नई दिल्ली में भर्ती कराया गया, जहां डा0 द्वारा एक ढेड़ माह से सूजन होना बताया। दिनांक 25.5.2005 को फोर्टिस अस्पताल, नोयडा में भर्ती कराया, जहां पर इलाज के दौरान दिनांक 31.5.2005 को बीमाधारक की मृत्यु हो गई। बीमा क्लेम प्रस्तुत किया गया, परन्तु इस आधार पर नकार दिया गया कि बीमाधारक द्वारा बीमा प्रस्ताव भरते समय मौजूद बीमारी के तथ्य को छिपाया गया।
4. बीमा पालिसी जारी करना, बीमा क्लेम प्राप्त होना बीमा निगम को स्वकार है, परन्तु आगे कथन किया गया कि बीमा प्रस्ताव भरने के 1 साल 3 माह के अंदर बीमाधारक की मृत्यु हो गई, इसलिए बीमा अधिनियम की धारा 45 के अंतर्गत मृत्यु के संबंध में जांच कराई गई और जांच में ज्ञात हुआ कि बीमाधारक दिनांक 8.3.2005 को इन्द्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल, नई दिल्ली में भर्ती हुए थे और दिनांक 11.3.2005 को डिसचार्ज हुए थे। इस डिसचार्ज समरी में पिछले दो साल से सूजन होना लिखा हुआ है। बीमाधारक की कीमोथेरेपी हुई थी। इस प्रकार बीमाधारक फोर्टिस हॉस्पिटल, नोयडा में दिनांक 25.5.2005 से 31.5.2005 तक भर्ती रहे और बीएचटी मांगने पर यह ज्ञात हुआ कि बीमाधारक पालिसी लेने के पहले से ही कैन्सर नामक रोग से बीमार थे, इसलिए बीमाधारक को बीमा पालिसी का प्रस्ताव भरते समय यह ज्ञात था कि वह कैन्सर नामक बीमारी से ग्रसित हैं, परन्तु इस तथ्य को छिपाकर पालिसी प्राप्त की गई है, इसलिए बीमा क्लेम नकार दिया गया।
5. विद्वान जिला आयोग ने भी बीमा निगम के कथन को स्वीकार करते हुए परिवाद को खारिज कर दिया।
6. इस निर्णय/आदेश के विरूद्ध अपील इन आधारों पर प्रस्तुत की गई है कि विद्वान जिला आयोग ने साक्ष्य के विपरीत निर्णय/आदेश पारित किया है। बीमा प्रस्ताव भरते समय बीमाधारक किसी भी बीमारी से ग्रसित नहीं थे और न ही किसी बीमारी का इलाज कराया गया था। दिनांक 9.1.2005 को अपोलो हॉस्पिटल की रिपोर्ट देखने के बाद प्रथम बार यह ज्ञात हुआ कि बीमाधारक गले के कैन्सर से पीडित हैं, इसलिए बीमा पालिसी प्राप्त करते समय बीमारी के तथ्य को छिपाने का निष्कर्ष अवैध है, जो अपास्त होने योग्य है। यह भी उल्लेख किया गया कि दिनांक 7.1.2005 को भर्ती होने पर रिपोर्ट परीक्षण पर पाया गया कि गले में एक डेढ़ माह पुरानी सूजन है, इसके अलावा अन्य कोई टिप्पणी नहीं की गई थी, जबकि प्रस्ताव दिनांक 1.1.2004 को भरा गया है।
7. साक्ष्य की व्याख्या तथा पक्षकारों के अभिवचन एवं तर्कों को सुनने के पश्चात इस अपील के विनिश्चय के लिए एक मात्र विनिश्चायक बिन्दु यह उत्पन्न होता है कि क्या बीमाधारक बीमा प्रस्ताव भरते समय गले के कैन्सर से पीडित थे और बीमाधारक को इस तथ्य का ज्ञान था, यदि हां तब प्रभाव ?
8. इस तथ्य को साबित करने का भार बीमा कंपनी पर है कि बीमाधारक बीमा प्रस्ताव भरते समय गले के कैन्सर से पीडित थे और बीमाधारक को इस तथ्य का ज्ञान था। दोनों पक्षों को यह तथ्य स्वीकार है कि बीमा पालिसी दिनांक 1.1.2004 को प्राप्त करने से पूर्व बीमाधारक द्वारा गले के कैन्सर का इलाज किसी भी हॉस्पिटल से कराने का कोई सबूत पत्रावली पर मौजूद नहीं है। बीमाधारक इन्द्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल, नई दिल्ली में दिनांक 8.3.2005 को भर्ती हुए और दिनांक 11.3.2005 को डिसचार्ज हुए। इस तिथि से पूर्व किसी भी हॉस्पिटल में कैन्सर के इलाज के लिए भर्ती होने और कैन्सर का इलाज प्रारम्भ होने का साक्ष्य बीमा निगम द्वारा विद्वान जिला आयोग के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया, इसके पश्चात फोर्टिस हॉस्पिटल, नोयडा में दिनांक 23.5.2005 से दिनांक 31.5.2005 तक बीमाधारक भर्ती रहे, इसी अवसर पर बीएचटी मांगने पर यह ज्ञात हुआ कि बीमाधारक 2 साल पूर्व से कैन्सर व अन्य रोग से पीडित थे। बीएचटी की मांग करने और बीएचटी के अवलोकन करने मात्र से यह तथ्य साबित नहीं हो जाता कि बीमाधारक बीमा पालिसी प्राप्त करने के पूर्व से गले के कैन्सर से पीडित थे, जब तक कि तत्समय इस बीमारी के इलाज कराने का कोई सबूत पत्रावली पर दाखिल न किया गया हो। विद्वान जिला आयोग ने अपोलो हॉस्पिटल के डा0 दुआ हर्ष द्वारा दो साल पहले से गले में सूजन तथा फोर्टिस हॉस्पिटल के डा0 द्वारा 8-9 माह पहले से गले में सूजन होना बताया गया है। इस अवधि पर सूजन होने का केवल आभास किया गया है, इस आशय का कोई दस्तावेज नहीं है कि दो साल पहले से या 8-9 माह पहले से बीमाधारक के गले में इस प्रकृति की सूजन थी कि वह कैन्सर नामक बीमारी से ग्रसित है। गले में सूजन होने का तात्पर्य है कि मरीज बोलने में समर्थ नहीं हो पाता, जबकि मरीज का संबंध राजनीति से है, जहां पर राजनीति से संबंधित वक्तव्य देने होते हैं। यदि बीमाधारक कैन्सर जैसे गंभीर रोग से पीडित होता तब एक दिन का भी इंतजार इलाज कराने में नहीं किया जाता और बीमा पालिसी प्राप्त करते समय या उससे पूर्व ही प्रारम्भ कर दिया गया होता। अत: विद्वान जिला आयोग द्वारा इस संबंध में दिया गया निष्कर्ष विधि विरूद्ध है कि बीमाधारक कैन्सर से बीमार था। विद्वान जिला आयोग ने बीमाधारक स्व0 राम प्यारे सिंह के पारिवारिक डा0 भार्गव की साक्ष्य पर भी विचार किया है और यह कल्पना की है कि कैन्सर की बीमारी की अवधि 8-9 माह पूर्व थी, जबकि यथार्थ में 8-9 माह पूर्व या दो साल पूर्व गले की सूजन का आभास किया गया है। सूजन का आभास होने मात्र से कैन्सर नामक बीमारी की पुष्टि नहीं हो सकती। फिर यह भी कि कोई भी व्यक्ति कैन्सर की बीमारी को लेकर बीमा पालिसी प्राप्त करने से 1 साल 3 माह बाद तक इलाज कराने का इंतजार नहीं कर सकता, इसलिए विद्वान जिला आयोग द्वारा बीमारी के संबंध में दिया गया निष्कर्ष मात्र काल्पनिक है। बीमा प्रस्ताव भरने से पूर्व बीमाधारक को इस तथ्य की जानकारी होने का कोई सबूत पत्रावली पर मौजूद नहीं है कि बीमाधारक कैन्सर नामक बीमारी से ग्रसित था, इसलिए बीमा निगम का यह कथन साक्ष्य से साबित नहीं है कि बीमाधारक द्वारा बीमा पालिसी प्राप्त करने से पूर्व बीमारी के तथ्य को छिपाया गया। इस प्रकार विद्वान जिला आयोग द्वारा दिया गया निष्कर्ष/निर्णय स्थिर रहने योग्य नहीं है। तदनुसार अपास्त होने और प्रस्तुत अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
9. प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 11.06.2008 अपास्त किया जाता है तथा परिवाद इस आशय से स्वीकार किया जाता है कि परिवादी को बीमित राशि अंकन 10,00,000/-रू0 (दस लाख रूपये) इस निर्णय/आदेश की तिथि से 45 दिन के अन्दर अदा की जाए तथा इस राशि पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक 06 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से साधारण ब्याज भी अदा किया जाए और परिवाद व्यय के रूप में अंकन 15,000/-रू0 (पन्द्रह हजार रूपये) भी अदा किया जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2