(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या-1938/2009
लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन आफ इण्डिया, ब्रांच आफिस महुआबाग गाजीपुर, द्वारा मैनेजर लीगल लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन आफ इण्डिया, डिविजनल आफिस हजरतगंज, लखनऊ।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम्
मनोज कुमार पासवान पुत्र राम नारायन, निवासी 21-बी शकुन्तला भवन, मोहल्ला खजुरिया, पोस्ट पीर नगर, जिला गाजीपुर।
प्रत्यर्थी/परिवादी
एवं
अपील संख्या-1879/2009
मनोज कुमार पासवान पुत्र राम नारायन, निवासी 21-सी, शकुन्तला भवन, मोहल्ला खजुरिया मोहन पुरवा, पोस्ट पीर नगर, जिला गाजीपुर।
अपीलार्थी/परिवादी
बनाम्
लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन, ब्रांच आफिस शुभ्रा मोटेल, महुआबाग, शहर गाजीपुर, जिला गाजीपुर।
प्रत्यर्थी/विपक्षी
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
विपक्षी की ओर से उपस्थित : श्री वी.एस. बिसारिया।
परिवादी की ओर से उपस्थित : श्री पी.पी. सिंह।
दिनांक: 18.11.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-118/2008, मनोज कुमार पासवान बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम में विद्वान जिला आयोग, गाजीपुर द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 26.9.2009 के विरूद्ध अपील संख्या-1938/2009 विपक्षी, बीमा निगम की ओर से निर्णय/आदेश को अपास्त करने के लिए प्रस्तुत की गयी है, जबकि अपील संख्या-1879/2009 परिवादी की ओर से क्षतिपूर्ति की राशि में बढ़ोत्तरी के लिए प्रस्तुत की गयी है।
2. उपरोक्त दोनों अपीलें एक ही निर्णय/आदेश से प्रभावित हैं, इसलिए दोनों अपीलों का निस्तारण एक साथ एक ही निर्णय/आदेश द्वारा किया जा रहा है, इस हेतु अपील संख्या-1938/2009 अग्रणी अपील होगी।
3. विपक्षी, बीमा निगम के विद्वान अधिवक्ता तथा परिवादी के विद्वान अधिवक्ता को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/पत्रावलियों का अवलोकन किया गया।
4. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी की पत्नी प्रिया कुमारी द्वारा तीन पालिसी प्राप्त की गई थी, जिसका मूल्य क्रमश: दो लाख, पांच लाख तथा एक लाख रूपये है। दिनांक 13.1.2006 को बीमाधारिका की मृत्यु हो गई। परिवादी बीमा पालिसियों में नामिनी है, इसलिए बीमा क्लेम प्रस्तुत किया गया, जो अवैध रूप से दिनांक 11.6.2008 के पत्र द्वारा नकार दिया गया।
5. बीमा निगम का कथन है कि प्रस्तावक द्वारा अपनी वार्षिक आय एक लाख रूपये दशायी गयी है। चूंकि जांचाधिकारी द्वारा वार्षिक आय अंकन 73,824/-रू0 पायी गयी है। इस प्रकार बीमा पालिसी वास्तविक आय को छिपाते हुए प्राप्त की गई है, इसी आधार पर बीमा क्लेम नकार दिया गया।
6. पक्षकारों की साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात विद्वान जिला आयोग ने बीमा निगम के इस तर्क को स्वीकार नहीं किया कि बीमा पालिसी आय छिपाते हुए प्राप्त की गई। तदनुसार विद्वान जिला आयोग ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए बीमित धन अंकन 5,00,000/-रू0 एवं अंकन 1,00,000/-रू0 कुल 6,00,000/-रू0 6 प्रतिशत ब्याज के साथ अदा करने का आदेश पारित किया है।
7. इस निर्णय/आदेश के विरूद्ध बीमा निगम की ओर से प्रस्तुत की गई अपील के ज्ञापन तथा मौखिक तर्कों का सार यह है कि परिवादी द्वारा दिनांक 18.10.2005 को अंकन 2,00,000/-रू0 एवं अंकन 5,00,000/-रू0 की बीमा पालिसी प्राप्त करने के लिए प्रस्ताव भरा गया तथा दिनांक 27.10.2005 को अंकन 1,00,000/-रू0 की बीमा पालिसी प्राप्त करने के लिए प्रस्ताव भरा गया, जिनका प्रीमियम क्रमश: अंकन 2,777/-रू0, अंकन 6,819/-रू0 तथा अंकन 1,752/-रू0 है। अंकन 2 लाख रूपये वाली बीमा पालिसी में प्रत्यर्थी/परिवादी नामिनी नहीं है, इस पालिसी में बीमाधारिका ने अपने ससुर को नामिनी बनाया है। बीमाधारिका द्वारा हर पालिसी को भरते समय अपनी आय अंकन 1,00,000/-रू0 वार्षिक दर्शायी है तथा अपने पति की आय भी अंकन 1,00,000/-रू0 वार्षिक दर्शायी है, जो जिला अस्पताल में क्लर्क हैं। बीमाधारिका की मृत्यु दिनांक 13.1.2006 को पालिसी लेने के दो महीने के अन्दर ही हो गई, इसलिए जांच की गई और जांच में यह पाया गया कि परिवादी ने सदानन्द तथा एक अन्य चक्षुदर्शी शिव कुमार की हत्या की थी और सदानन्द की पत्नी से उसने अवैध संबंध बनाए। बीमाधारिका की आय केवल 2,700/-रू0 मासिक थी, जो वार्षिक रूप से अंकन 32,400/-रू0 होती है। परिवादी, जो क्लर्क के पद पर कार्यरत है, उसकी आय अंकन 6,152/-रू0 मासिक यानी अंकन 73,824/-रू0 वार्षिक थी। इस प्रकार परिवार की कुल वार्षिक आय अंकन 1,06,224/-रू0 थी, जबकि कुल वार्षिक प्रीमियम अंकन 45,392/-रू0 था। बीमाधारिका द्वारा अवैध रूप से अपनी आय अधिक दिखायी गयी है, इसी आधार पर बीमा क्लेम नकारा गया है, परन्तु विद्वान जिला आयोग ने साक्ष्य की अनुचित व्याख्या करते हुए उपरोक्त वर्णित निर्णय/आदेश पारित किया है।
8. प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश के समर्थन में अपने तर्क प्रस्तुत किए गए हैं।
9. पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत किए गए अभिवचनों, विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश का अवलोकन करने तथा मौखिक तर्कों को सुनने के पश्चात इस अपील के विनिश्चय के लिए प्रथम विनिश्चायक बिन्दु यह उत्पन्न होता है कि क्या बीमाधारिका द्वारा अपनी आय को छिपाते हुए बीमा पालिसियां प्राप्त की गईं ?
10. स्वंय परिवाद पत्र के विवरण के अनुसार बीमाधारिका प्रिया कुमारी द्वारा तीन बीमा पालिसियां प्राप्त की गईं, जिनका विवरण निम्न प्रकार है :-
''(1) पालिसी सं0-284298177 अंकन 2,00,000/-रू0 दि. 18.10.2005.
(2) पालिसी सं0-284298178 अंकन 5,00,000/-रू0 दि. 18.10.2005.
(3) पालिसी सं0-284298443 अंकन 1,00,000/-रू0 दि. 27.10.2005.''
11. परिवाद पत्र में परिवादी ने दो ढाई हजार रूपये माहवार आमदनी का उल्लेख किया है, जबकि बीमा प्रस्ताव में स्वंय बीमाधारिका द्वारा अंकन 1,00,000/-रू0 वार्षिक आय बतायी है। परिवादी यानी बीमाधारिका के पति की आय अंकन 6,152/-रू0 प्रतिमाह है। बीमाधारिका एक घरेलू महिला थी, उसकी कोई निश्चित आय नहीं थी, उसकी आय का कोई प्रमाण पत्र संलग्न नहीं है, इसलिए उसकी आय पति की आय से अधिक नहीं मानी जा सकती। पति अपनी आय पर जिस सीमा तक पालिसी प्राप्त कर सकता था, उसकी पत्नी उस सीमा से अधिक सीमा की पालिसी प्राप्त नहीं कर सकती थी। यह तीनों पालिसियां निश्चित रूप से आय छिपाते हुए प्राप्त की गई हैं। बीमाधारिका की मृत्यु दो माह के अन्दर होना एक संदिग्ध परिस्थिति की ओर इशारा करती है, जिससे यह जाहिर होता है कि पालिसियां प्राप्त करने के उद्देश्य से आय बढ़ा चढ़ाकर दर्शायी गयी है। एक ही दिन अंकन 7 लाख रूपये की पालिसियां का प्रस्ताव भरना और उसके तुरंत पश्चात अंकन 1 लाख रूपये की पालिसी का प्रस्ताव भरना और उसके दो महीने पश्चात बीमाधारिका की मृत्यु कारित होना, इस तथ्य को साबित करता है कि बीमा निगम को धोखा देकर अपनी आय को अधिक दर्शाते हुए बीमा पालिसियां परिवादी द्वारा अपनी पत्नी के नाम से प्राप्त की गईं और पालिसियां प्राप्त करने के पश्चात दो महीने के अन्दर बीमाधारिका की मृत्यु कारित हो गई। विद्वान जिला आयोग ने बीमाधारिका की आय के संबंध में पड़ोसी/किरायेदारों द्वारा प्रस्तुत शपथ पत्रों पर विचार किया है, परन्तु इन शपथ पत्रों में दो ढाई हजार प्रतिमाह आमदनी का उल्लेख है। यद्यपि इन शपथ पत्रों में भी जैसे निर्णय में आय के उल्लेख से ही जाहिर होता है कि आय के बारे में व्यक्तिगत जानकारी इन शपथकर्ताओं को नहीं हो सकती, क्योंकि शपथकर्ताओं ने आय प्राप्त करते हुए बीमाधारिका को नहीं देखा। बीमाधारिका की आय के संबंध में विद्वान जिला आयोग द्वारा काल्पनिक एवं संभावनाओं पर आधारित निष्कर्ष दिया गया है। एक अल्प अवधि के दौरान अंकन 8 लाख रूपये की बीमा पालिसियां प्राप्त करना और उसके कुछ समय बाद ही बीमाधारिका की मृत्यु होना, इस तथ्य को साबित करता है कि बीमा निगम को धोखा देकर बीमा पालिसियां प्राप्त की गई हैं, इसलिए बीमा क्लेम नकारने का बीमा निगम का निष्कर्ष विधिसम्मत है। तदनुसार विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त होने और बीमा निगम की अपील स्वीकार होने योग्य है।
12. चूंकि बीमा निगम की ओर से प्रस्तुत अपील स्वीकार की गई है और विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त किया जा गया है, इसलिए क्षतिपूर्ति की राशि में बढ़ोत्तरी के लिए परिवादी द्वारा
प्रस्तुत की गई अपील निरस्त होने योग्य है।
आदेश
13. अपील संख्या-1938/2009 स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 26.09.2009 अपास्त किया जाता है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।
अपील संख्या-1879/2009 निरस्त की जाती है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
इस निर्णय/आदेश की मूल प्रति अपील संख्या-1938/2009 में रखी जाए एवं इसकी एक सत्य प्रति संबंधित अपील में भी रखी जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2