राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-७२५/२०१३
(जिला मंच, अम्बेडकर नगर द्वारा परिवाद सं0-१३९/२००७ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांकित २४-०१-२०१३ के विरूद्ध)
श्रीमती कंचन सिंह पत्नी स्व0 प्रमोद कुमार सिंह निवासी ग्राम समशुद्दीनपुर, पो0-जैनुद्दीनपुर, तहसील-टाण्डा, जिला-अम्बेकर नगर।
............... अपीलार्थी/परिवादिनी।
बनाम्
ब्रान्च मैनेजर, लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन आफ इण्डिया, ब्रान्च टाण्डा, जिला-अम्बेकर नगर।
................ प्रत्यर्थी/विपक्षी।
समक्ष:-
१. मा0 श्री चन्द्र भाल श्रीवास्तव, पीठासीन सदस्य।
१- मा0 श्री जुगुल किशोर, सदस्य।
२- मा0, श्री उदय शंकर अवस्थी, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :- श्री सत्य प्रकाश पाण्डेय विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :- श्री अरविन्द तिलहरी विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक : ०२-०३-२०१६.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, जिला मंच, अम्बेडकर नगर द्वारा परिवाद सं0-१३९/२००७ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांकित २४-०१-२०१३ के विरूद्ध योजित की गयी है, जिसके अन्तर्गत परिवादिनी का परिवाद निरस्त किया गया है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि अपीलार्थी/परिवादिनी के पति स्व0 प्रमोद कुमार सिंह ने प्रत्यर्थी/विपक्षी बीमा निगम से ०१.०० लाख रू० बीमित धनराशि की एक बीमा पालिसी तालिका संख्या ०७५-२० पालिसी सं0-२१३८४२७७९ ली थी, जो दिनांक २८-०८-२००३ से प्रभावी थी। पालिसी की किश्तें प्रत्येक वर्ष छमाही माह फरवरी व अगस्त में अदा की जानी थी। अगस्त २००५ से अगस्त २००६ तक की किश्तें जमा न किए जाने के कारण पालिसी कालातीत हो गयी। तदोपरान्त परिवादिनी के पति द्वारा बकाया ०३
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किश्तें ब्याज सहित अदा करने के उपरान्त दिनांक १२-०९-२००६ को यह पालिसी पुनर्जीवित हो गयी। परिवादिनी के पति की मृत्यु दिनांक २७-०१-२००७ को अर्थात् पालिसी के पुनर्जीवित होने के ०४ माह १५ दिन बाद हो गयी। अपीलार्थी/परिवादिनी इस पालिसी में नामिनी होने के कारण उसने बीमा दावा प्रत्यर्थी/विपक्षी के यहॉं प्रेषित किया। बीमा दावा का भुगतान प्रत्यर्थी/विपक्षी बीमा निगम ने नहीं किया। अत: परिवादिनी/अपीलार्थी ने परिवाद जिला मंच के समक्ष योजित किया।
प्रत्यर्थी बीमा निगम की ओर से यह कथन किया गया कि पालिसी के कालातीत हो जाने के कारण जोखिम वहन करने का करार पूर्ण रूप से निरस्त हो जाता है। निर्धारित अवधि के अन्दर बीमाधारक को अपनी पालिसी को पुन: चालू कराना चाहिए तथा उसे प्रपत्र डिक्लेयरेशन आफ गुड हैल्थ (डी. जी. एच.) भरकर व्यक्तिगत घोषणा सहित अपने हस्ताक्षर करके निगम कार्यालय में जमा करना होता है। अपीलार्थी/परिवादिनी के पति प्रमोद कुमार सिंह के पक्ष में जारी प्रश्नगत बीमा पालिसी प्रीमियम की अदायगी न होने के कारण कालातीत हो गयी थी। कालान्तर में प्रस्तावक के अनुरोध पर उसके द्वारा प्रेषित पपत्र सं0-६८० स्वयं के सम्बन्ध में प्राक्कथन (डी.जी.एच.) दिनांक ०७-०९-२००६ के प्रेषित करने पर तथा तीनों बकाया किश्तों की मय ब्याज कुल १०,०९७/- रू० अदा करने पर दिनांक १२-०९-२००६ को प्रश्नगत पालिसी का पुनर्चलन किया गया। पुनर्चलन के बाद प्रश्नगत पालिसी मात्र ०४ माह १५ दिन चली थी, अत: बीमा दावा अल्प अवधि की श्रेणी का होने के कारण निगम द्वारा उसकी जांच करायी गयी। जांच के दौरान यह तथ्य प्रकाश में आया कि – (१) पालिसीधारक प्रमोद कुमार सिंह दिल्ली में प्राइवेट नौकरी करता था। उसके दोनों गुर्दे खराबहो गये थे, (२) पालिसी धारक दिनांक ०९-०६-२००६ को एस.जी.पी.जी.आई. लखनऊ में इलाज हेतु भर्ती हुआ एवं कुछ दिन इलाज के पश्चात् उसे अस्पताल से दिनांक २७-०९-२००६ को डिस्चार्ज कर दिया गया। अस्पताल में भर्ती के दौरान् वह डायलेसिस पर था। डिस्चार्ज होने के बाद पालिसीधारक की समयान्तराल पर अस्पताल में डायलेसिस होती रही, (३) पालिसीधारक ने दिनांक ०७-०९-२००६ को प्रपत्र सं0-६८० प्रस्तुत किया, जबकि वह उससे पूर्व से ही रोगग्रस्त था। परिवादिनी द्वारा उपलब्ध कराये गये प्रपत्रों के विश्लेषण से यह
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ज्ञात हुआ कि बीमाधारक प्रमोद कुमार सिंह को रीनल प्रॉब्लम थी। दावेदार द्वारा प्रस्तुत मेडिकल प्रपत्र में यह तथ्य उल्लिखित था कि रोगी पिछले१२-१३ साल से डायबटीज के रोग से ग्रसित था तथा इंसुलिन लेता रहा था अर्थात् पालिसीधारक पालिसी के पुनर्चलन के लिए दिनांक ०७-०९-२००६ को डी.जी.एच. प्रपत्र भरने के काफी पूर्व से ही घातक रोग से ग्रसित था, किन्तु उसने उपरोक्त रोग के सन्दर्भ में प्रपत्र में नकारात्मक विवरण प्रस्तुत किया। बीमाधारक ने मूल पालिसी के प्रस्ताव पत्र में भी अपनी धातक बीमारी का कोई उल्लेख नहीं किया। बीमाधारक ने बीमा निगम से धोखा देकर पालिसी प्राप्त की। साथ ही कालातीत पालिसी को पुनर्जीवित भी कराया। ऐसी परिस्थिति में अपीलार्थी/परिवादिनी का दावा देय नहीं पाया गया। बीमा निगम ने दावा अस्वीकार करके सेवा में कोई कमी नहीं की है। विद्वान जिला मंच ने प्रश्नगत निर्णय द्वारा अपीलार्थी/परिवादी के परिवाद को निरस्त कर दिया। इस निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी।
हमने अपीलार्थी/परिवादिनी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री सत्य प्रकाश पाण्डेय एवं प्रत्यर्थी बीमा निगम की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री अरविन्द तिलहरी के तर्क विस्तार से सुने तथा अभिलेख का भलीभांति अवलोकन किया।
उल्लेखनीय है कि यह अपील जिला मंच द्वारा पारित प्रश्नगत आदेश दिनांकित २४-०१-२०१३ के विरूद्ध यह अपील दिनांक ०८-०४-२०१३ को योजित की गयी है। इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि अपीलार्थी को दिनांक १४-०२-२०१३ को प्राप्त हुई है। अपील के प्रस्तुतीकरण में हुए विलम्ब को क्षमा करने हेतु अपीलार्थी/परिवादिनी की ओर से प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया है तथा इस प्रार्थना में किए गये अभिकथनों के समर्थन में अपीलार्थी/परिवादिनी ने अपना स्वयं का शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है। प्रस्तुत अपील के गुणदोष पर विचारण, जिसका विस्तृत विवरण आगे किया जा रहा है, से यह विदित होता है कि अपील में बल है। अपील के प्रस्तुतीकरण में हुए विलम्ब के सम्बन्ध में अपीलार्थी/परिवादिनी की ओर से दिया गया स्पष्टीकरण सन्तोषजनक पाते हुए अपील के प्रस्तुतीकरण में हुआ विलम्ब क्षमा किया जाता है।
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यह तथ्य निर्विवाद है कि प्रश्नगत बीमा पालिसी अपीलार्थी/परिवादिनी के पति के नाम दिनांक २८-०८-२००३ को प्रत्यर्थी बीमा निगम द्वारा जारी की गयी तथा इस बीमा पालिसी से सम्बन्धित प्रस्ताव पत्र दिनांक २५-०८-२००३ को भरा गया। पालिसी के परिपक्व होने की तिथि २८-०८-२०२३ थी। पालिसी से सम्बन्धित किश्त ३२१३/- रू० प्रत्येक छमाही फरवरी तथा अगस्त माह में जमा की जानी थी। अगस्त २००५ से अगस्त २००६ तक अर्थात् ०३ छमाही की किश्तें जमा न हो पाने के कारण पालिसी कालातीत हो गयी थी। सभी बकाया किश्तें मय ब्याज कुल १०,०९७/- रू० अपीलार्थी/परिवादिनी के पति द्वारा जमा किए जाने के उपरान्त दिनांक १२-०९-२००६ को प्रश्नगत पालिसी प्रत्यर्थी बीमा निगम द्वारा पुनर्चलन किया गया। तदोपरान्त दिनांक २७-०१-२००७ को अर्थात् पुनर्चलन के ०४ माह १५ दिन के बाद अपीलार्थी/परिवादिनी के पति की मृत्यु हो गयी।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत मामले में बीमाधारक की मृत्यु प्रश्नगत बीमा पालिसी जारी किए जाने के बाद ०३ वर्ष से अधिक समय बीत जाने के उपरान्त हुई थी। प्रश्नगत बीमा पालिसी जारी किए जाते समय अपीलार्थी/परिवादिनी के पति किसी रोग से ग्रसित नहीं थे। बीमा पालिसी जारी किए जाने के प्रस्ताव फार्म में उन्होंने किसी रोग से ग्रसित होने से इन्कार किया है। बीमा अधिनियम की धारा-४५ के अन्तर्गत पालिसी जारी किए जाने के बाद ०२ वर्ष की अवधि बीत जाने के उपरान्त इस आधार पर बीमा दावा अस्वीकृत नहीं किया जा सकता कि बीमाधारक ने प्रस्ताव फार्म भरते समय कोई तथ्य सही नहीं भरा था, जब तक कि बीमा निगम यह साबित करने में सफल न हो कि प्रश्नगत बीमा पालिसी धोखे से प्राप्त की गयी। विद्वान जिला मंच ने प्रश्नगत आदेश में इस विधिक स्थिति पर विचार न करते हुए प्रश्नगत निर्णय पारित किया है। अपीलार्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत कियागया कि प्रत्यर्थी बीमा निगम ने इस सन्दर्भ में कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की है कि बीमा पालिसी जारी किए जाते समय बीमाधारक का कहीं इलाज हो रहा था अथवा वह किसी रोग से ग्रसित था।
प्रत्यर्थी बीमा निगम के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि
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प्रनगत बीमा पालिसी कालातीत होने के उपरान्त दिनांक १२-०९-२००६ को पुनर्चलन हुआ।
पुनर्चलन से पूर्व अपीलार्थी/परिवादिनी के पति ने डिक्लेरेशन आफ गुड हैल्थ फार्म सं0-६८० दिनांक ०७-०९-२००६ को भरकर दिया तथा इस फार्म में अपने आप को किसी रोग से ग्रसित होना नहीं बताया। पालिसी के पुनर्चलन होने के ०४ माह १५ दिन के बाद दिनांक २७-०१-२००७ को अपीलार्थी/परिवादिनी के पति बीमाधारक की मृत्यु हो गयी। शीघ्र दावा प्रेषित किए जाने के कारण मामले की जांच की गयी, तब यह तथ्य प्रकाश में आया कि अपीलार्थी/परिवादिनी के पति दिनांक ०७-०९-२००६ को नेफ्रोलॉजी विभाग एस.जी.पी.जी.आई. में रीनल प्रॉब्लम के इलाज के सन्दर्भ में भर्ती हुए थे और डायलेसिस पर रखे गये थे। एस.जी.पी.जी.आई. द्वारा जारी की गयी डिस्चार्ज समरी में यह तथ्य अंकित था कि बीमाधारक डायबटीज की बीमारी से पिछले बारह-तेरह वर्ष से ग्रसित था एवं इंसुलिन पर निर्भर था। यह तथ्य बीमाधारक ने प्रश्नगत बीमा पालिसी के पुनर्चलन से पूर्व भरे गये डी.जी.एच. फार्म में छिपाया था। इस प्रकार धोखे से प्रश्नगत बीमा पालिसी का पुनर्चलन प्राप्त किया गया। अत: अपीलार्थी/परिवादिनी का बीमा दावा बीमा निगम द्वारा अस्वीकार किया गया। इस सन्दर्भ में प्रत्यर्थी बीमा निगम के विद्वान अधिवक्ता ने पी0सी0 चेको व अन्य बनाम एल0आई0सी0 आफ इण्डिया, (२००१) एस.सी.सी. ३२१ के मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गये निर्णय पर विश्वास व्यक्त किया।
प्रत्यर्थी बीमा निगम के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि बीमा पालिसी का पुनर्चलन नई संविदा की श्रेणी में माना जायेगा। पुनर्चलन जारी किए जाने से पूर्व तात्विक तथ्यों को छिपाकर एवं धोखे से पुनर्चलन प्राप्त किया जाता है तब बीमा निगम बीमा दावा धोखे पर आधारित होने के कारण निरस्त कर सकता है। इस सन्दर्भ में प्रत्यर्थी बीमा निगम के विद्वान अधिवक्ता द्वारा एल0आई0सी0 आफ इण्डिया बनाम श्रीमती केम पम्मा, पुनरीक्षण सं0-३८४८/२००७ के मामले में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिये गये निर्णय दिनांक २४-०१-२०१३ पर विश्वास व्यक्त किया गया।
प्रत्यर्थी बीमा निगम के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया
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कि बीमा निगम ने जांच के दौरान् एस.जी.पी.जी.आई. द्वारा प्रेषित की गयी डिस्चार्ज समरी तथा इलाज से सम्बन्धित अभिलेखों, जिन्हें प्रत्यर्थी ने अपनी लिखित बहस के साथ संलग्न किया है, के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि बीमाधारक डायबटीज के रोग से इलाज से बारह-तेरह वर्ष पूर्व से ही ग्रसित था तथा इंसुलिन पर निर्भर था। इस प्रकार वस्तुत: बीमा पालिसी प्राप्त करते समय बीमाधारक ने अपने आपको डायबटीज के रोग से ग्रसित होने के तथ्य को छिपाकर प्रश्नगत बीमा पालिसी प्राप्त की थी।
उल्लेखनीय है कि प्रत्यर्थी बीमा निगम ने लिखित तर्क के साथ बीमा दावा को अस्वीकृत किए जाने के सम्बन्ध में जारी पत्र दिनांकित ३१-०३-१२००९ की फोटोप्रति दाखिल की है, जिसके अवलोकन से यह विदित होता है कि बीमा दावा इस आधार पर अस्वीकृत किया गया कि पुनर्चलन से पूर्व बीमाधारक ने अपने स्वास्थ्य से सम्बन्धित तात्विक जानकारी कि वह डायबटीज के रोग से गम्भीर रूप से पीडि़त है, छिपाकर पुनर्चलन प्राप्त किया। बीमा दावा इस आधार पर अस्वीकृत नहीं किया गया कि मूल बीमा पालिसी प्राप्त करते समय अपीलार्थी/परिवादिनी के पति बीमाधारक ने कोई तात्विक जानकारी अपने स्वास्थ्य के सम्बन्ध में छिपाई थी।
ऐसी परिस्थिति में महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या बीमा पालिसी का पुनर्चलन नवीन संविदा के रूप में माना जायेगा अथवा मूल पालिसी पुनर्जीवित मानी जायेगी एवं पुनर्चलन नवीन संविदा के रूप में नहीं माना जायेगा।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि पुनर्चलन नवीन संविदा के रूप में नहीं माना जायेगा। इस सन्दर्भ में उनके द्वारा मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा एल0आई0सी0 आफ इण्डिया बनाम गौरम्मा, III (2009) CPJ 25 (NC) के मामले में पारित निर्णय पर विश्वास व्यक्त किया गया। माननीय राष्ट्रीय आयोग ने इस निर्णय में इस बिन्दु पर विस्तृत चर्चा करते हुए तथा मिट्ठूलाल नायक बनाम एल0आई0सी0 आफ इण्डिया, A I R 1962 SC 814 के मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय पर विश्वास व्यक्त करते हुए यह मत व्यक्त किया है कि कालातीत पालिसी का पुनर्चलन नवीन संविदा नहीं मानी जायेगी।
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प्रत्यर्थी बीमा निगम के विद्वान अधिवक्ता द्वारा इस सन्दर्भ में प्रस्तुत एल0आई0सी0 आफ इण्डिया बनाम श्रीमती केम पम्मा, पुनरीक्षण सं0-३८४८/२००७ के मामले में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिये गये निर्णय का हमारे द्वारा अवलोकन किया गया। सम्भवत: मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा एल0आई0सी0 आफ इण्डिया बनाम गौरम्मा, III (2009) CPJ 25 (NC) के मामले में पारित निर्णय मा0 राष्ट्रीय आयोग के समक्ष विचारार्थ प्रस्तुत नहीं किया गया। अत: प्रत्यर्थी बीमा निगम के विद्वान अधिवक्ता द्वारा सन्दर्भित उपरोक्त निर्णय में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा गौरम्मा के मामले में दिये गये निर्णय एवं इस सन्दर्भ में मिट्ठूलाल नायक बनाम एल0आई0सी0 आफ इण्डिया, A I R 1962 SC 814 के मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय पर विचार नहीं किया गया।
माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा एल0आई0सी0 आफ इण्डिया बनाम गौरम्मा, III (2009) CPJ 25 (NC) के मामले में एवं मिट्ठूलाल नायक बनाम एल0आई0सी0 आफ इण्डिया, A I R 1962 SC 814 के मामले में माननीय उच्चतम न्यायाल द्वारा दिये गये निर्णयों के आलोक में हमारे विचार से कालातीत बीमा पालिसी का पुनर्चलन नवीन संविदा के रूप में स्वीकार नहींकिया जा सकता बल्कि पुनर्चलन के पश्चात् मूल बीमा पालिसी ही पालसी जारी किए जाने की तिथि से प्रभावी मानी जायेगी। धारा-४५ बीमा अधिनियम के अनुसार -
“ No policy of life insurance effected beforr the commencement of this Act sall after the expiry of two years from the date of commencment of this Act and no policy of life insurance effected after the coming into force of this Act shall, after the expiry of two years from the date on which it was effected, be called in question by an insurer on the ground that a statement made in the proposal for insurance or in any report of a medical officer, or referee, or friend of the insured, or in any other document leading to the issue of the policy, was inaccurate or false, unless the insurer shows that such statement was on a material matter or suppressed facts which it was material to disclose and that it was fraudulently made by the policy-holder
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and that the policy-holder knew at the time of making it that the statement was false or that it suppressed facts which it was material to disclose. ”
प्रस्तुत मामले में प्रत्यर्थी बीमा निगम ने बीमा दावा इस आधार पर अस्वीकार नहीं किया है कि मूल बीमा पालिसी प्राप्त करते समय भरे गये प्रस्ताव पत्र में बीमाधारक ने अपने स्वास्थ्य के तथ्य की गलत जानकारी दी थी। एस.जी.पी.जी.आई. में वर्ष २००६ में इलाज के सन्दभ्र में बीमाधारक के भर्ती होने से पूर्व उसके कथित इलाज से सम्बन्धित कोई साक्ष्य प्रत्यर्थी बीमा निगम द्वारा प्रस्तुत नहीं की गयी है। बीमाधारक के सितम्बर २००६ में एस.जी.पी.जी.आई. में किए गये इलाज से सम्बन्धित अभिलेखों की फोटोप्रतियॉं, जो प्रत्यर्थी की ओर से दाखिल की गयी हैं, के अवलोकन से यह विदित होता है कि बीमाधारक के अस्पताल में भर्ती होते समय यह सूचित किया गया कि वह बारह-तेरह साल से डायबटीज के रोग से ग्रसित रहा है, किन्तु एस.जी.पी.जी.आई. में इलाज से पूर्व के बीमाधारक के इलाज के सम्बन्ध में कोई साक्ष्य बीमा निगम द्वारा प्रस्तुत नहीं किया गया है। बीमाधारक नैयर पावर ग्रिड कम्पनी, नई दिल्ली में सेवारत होना बताया गया है, किन्तु उसके नियोक्ता के कार्यालय से कोई जानकारी उसके इलाज के सम्बन्ध में प्राप्त नहीं की गयी। बीमा निगम द्वारा की गयी जांच के पैरा-१९ में यह तथ्य उल्लिखित किया गया है कि एस.जी.पी.जी.आई. लखनऊ के अतिरिक्त बीमाधारक की अन्यत्र कहीं चिकित्सा नहीं हुई।
अपीलार्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा सुरेन्द्र कौर व अन्य बनाम एल0आई0सी0 आफ इण्डिया व अन्य, II(2005) CPJ 32 (NC) के मामले में दिये गये निर्णय एवं पुनरीक्षण सं0-२०२१/२००९ एल0आई0सी0 आफ इण्डिया बनाम श्रीमती चावली देवी के मामले में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिये गये निर्णय दिनांक ०३-१२-२०१५ पर विश्वास व्यक्त किया गया। हमारे द्वारा इन निर्णयों का अवलोकन किया गया। माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा निर्णीत उपरोक्त मामलों में मात्र अस्पताल में रोगी के वर्णित इतिहास के आधार पर इलाज से सम्बन्धित अन्य कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किए जाने की स्थिति में बीमा दावा अस्वीकृत किया जाना उचित नहीं माना गया।
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ऐसी परिस्थिति में हमारे विचार से विद्वान जिला मंच ने प्रश्नगत मामले में निहित तथ्यों एवं विधिक स्थिति पर उचित विचार न करते हुए प्रश्नगत निर्णय पारित किया है। प्रत्यर्थी बीमा निगम ने अपीलार्थी/परिवादिनी का बीमा दावा स्वीकार न करके सेवा में त्रुटि की है। अत: अपील स्वीकार किए जाने योग्य है तथा तद्नुसार परिवाद स्वीकार किए जाने योग्य है। अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा प्रश्नगत परिवाद में बीमा की धनराशि के रूप में १,००,०००/- रू०, जिसके लिए बीमाधारक का बीमा किया गया था, उसे दिलाये जाने की प्रार्थना की गयी है, उसे हमारे विचार से दिलाया जाना न्यायोचित होगा। इसके अतिरिक्त चूँकि उपरोक्त बीमा की धनराशि का भुगतान प्रत्यर्थी बीमा निगम ने समयान्तर्गत नहीं किया और उसका उपयोग बीमा निगम द्वारा किया गया अत: ऐसी स्थिति में अपीलार्थी/परिवादिनी उपरोक्त बीमा धनराशि पर ०९ प्रतिशत वार्षिक की दर से साधारण ब्याज भी पाने की अधिकारिणी है। चूँकि अपीलार्थी/परिवादिनी को बीमा की धनराशि पर ब्याज दिलायी जा रही है, अत: शारीरिक, मानसिक उत्पीड़न के फलस्वरूप किसी प्रकार की क्षतिपूर्ति दिलाया जाना हमारे विचार न्यायोचित नहीं होगा। अपीलार्थी/परिवादिनी को प्रत्यर्थी बीमा निगम द्वारा सेवा में त्रुटि किए जाने के कारण जिला मंच में परिवाद योजित करना पड़ा तथा अपीलीय स्तर पर भी अपना पक्ष रखना पड़ा, अत: परिवाद व्यय के रूप में भी ५,०००/- रू० अपीलार्थी/परिवादिनी प्राप्त करने की अधिकारिणी होगी।
आदेश
अपील स्वीकार की जाती है। जिला मंच, अम्बेडकर नगर द्वारा परिवाद सं0-१३९/२००७ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांकित २४-०१-२०१३ अपास्त किया जाता है। परिवादिनी का परिवाद स्वीकार करते हुए प्रत्यर्थी बीमा निगम को निर्देशित किया जाता है कि वह प्रश्नगत बीमा पालिसी की बीमा धनराशि १,००,०००/- रूपया ०९ प्रतिशत वार्षिक की दर से परिवाद योजित करने की तिथि से सम्पूर्ण धनराशि की अदायगी साधारण ब्याज सहित इस निर्णय की तिथि से एक माह के अन्दर अपीलार्थी/परिवादिनी को अदा किया जाना सुनिश्चित करे। इसके अतिरिक्त वाद व्यय के रूप में ५,०००/- रू०
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का भी भुगतान उपरोक्त अवधि में ही प्रत्यर्थी बीमा निगम द्वारा अपीलार्थी/परिवादिनी को किया जाय।
उभय पक्ष अपीलीय व्यय-भार अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(चन्द्र भाल श्रीवास्तव)
पीठासीन सदस्य
(जुगुल किशोर)
सदस्य
(उदय शंकर अवस्थी)
सदस्य
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-१.