राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-७९/२०११
(जिला फोरम/आयोग (प्रथम), आगरा द्वारा परिवाद सं0-२४६/२००९ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक २०-१२-२०१० के विरूद्ध)
आगरा डेवलपमेण्ट अथारिटी, जयपुर हाउस, आगरा द्वारा द्वारा सैक्रेटरी।
...........अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम
श्रीमती कुसुम शर्मा पत्नी श्री आर0के0 शर्मा, बोन हास्पिटल, प्रतापपुरा, आगरा।
............ प्रत्यर्थी/परिवादिनी।
समक्ष:-
१- मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
२- मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री अरविन्द कुमार विद्वान अधिवक्ता के कनिष्ठ
अधिवक्ता श्री मनोज कुमार।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक :- २०-०४-२०२२.
मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ के अन्तर्गत जिला फोरम/आयोग (प्रथम), आगरा द्वारा परिवाद सं0-२४६/२००९ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक २०-१२-२०१० के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में अपीलार्थी का कथन है कि प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश विधि विरूद्ध, मनमाना एवं तथ्यों से परे है। परिवादिनी ने इन्दिरापुरम योजना के अन्तर्गत एक भूखण्ड के लिए आवेदन करते हुए दिनांक ३०-०१-१९८५ को ५,०००/- रू० एवं दिनांक ३०-०१-१९८५ को २,४१४/- रू इस प्रकार कुल ७,४१४/- रू० अपीलार्थी के खाते में जमा किया। इसके फलस्वरूप अपीलार्थी ने पत्र दिनांक १५-०४-१९८९ द्वारा इन्दिरापुरम योजना में एक प्लाट सं0-ए-०६ परिवादिनी को आबंटित किया जिसका कुल अनुमानित मूल्य ७४,१३९/- रू० था। अपीलार्थी ने अपने पत्र दिनांक २३-०६-१९८९ और २२-९-१९८९ के माध्यम से
-२-
परिवादिनी को भुगतान अनुसूची के अनुसार १३०.०६ वर्गमीटर के भूखण्ड का भुगतान करने के लिखा किन्तु परिवादिनी ने कोई किश्त अदा नहीं की और उसे कुछ धनराशि अपनी इच्छा से जमा की। परिवादिनी को ०१-०१-१९९० तक १४,८२७.५० रू० जमा करना था किन्तु उसने दिनांक १९-०२-१९९० को ७,४१४/- रू० जमा किए। इसी प्रकार दिनांक ०१-०७-१९९० को दो और किश्तों का १४,८२७/- रू० जमा करना था किन्तु उसने इसे दिनांक २३-०८-१९९० को जमा किया। इस प्रकार परिवादिनी ने हर किश्त को जमा करने में विलम्ब किया और अपनी इच्छा से जमा कीं। इसी कारण उसके ऊपर दण्डात्मक ब्याज लगाया गया और उससे इसको जमा करने के लिए कहा गया। दिनांक ०६-०९-१९९१ को परिवादिनी से इस भूखण्ड का स्वामित्व ग्रहण करने के लिए कहा गया। पुन: दिनांक ०३-०१-१९९२ एवं २४-०३-१९९२ को समस्त औपचारिकताओं को पूरा करते हुए शेष धनराशि मय ब्याज के जमा करने के लिए कहा गया। फिर उसे एक और पत्र दिनांक १४-०८-१९९२ द्वारा एक और मौका दिया गया। इसी तरह अनेक पत्र लिखने के बाद उससे पत्र दिनांक ०५-०३-१९९३ द्वारा शेष धनराशि जमा करने के लिए कहा किन्तु उसने जमा नहीं की।
अपीलार्थी ने पत्र दिनांक २४-०५-१९९३ द्वारा समक्ष अधिकारी के निर्णय के अनुसार इस भूखण्ड का आबंटन निरस्त कर दिया। फिर परिवादिनी ने दिनांक २३-०३-२००९ को एक परिवाद प्रस्तुत किया और विद्वान जिला फोरम ने बिना तथ्यों को देखे और बिना इस तथ्य का संज्ञान लिए कि वह डिफाल्टर है, प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश द्वारा निम्नलिखित आदेश पारित किया :-
‘’ परिवाद स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को निर्देशित किया जाता है कि निर्णय के अन्दर ४५ दिन परिवादिनी को प्रश्नगत भूखण्ड आबंटन आदेश दिनांकित ०९-०३-१९९९ में उल्लिखित कीमत पर, प्रतिफल की शेष धनराशि बिना किसी पेनल ब्याज लेकर उपलब्ध कराये। प्रश्नगत भूखण्ड किसी अन्य व्यक्ति को आबंटित होने की दशा में परिवादिनी को उसी साइज का भूखण्ड पूर्व निर्धारित कीमत पर इन्दिरापुरम योजना अथवा उक्त योजना के समीप स्थिति किसी अन्य योजनामें उपलब्ध कराया जाए।
-३-
भूखण्ड की उपलब्धता किसी भी दशा में सम्भव न होने पर, परिवादिनी विपक्षी से जमा धनराशि ५९३१०.५० रूपया पर जमा करने की तिथि से ताअदायगी १८ प्रतिशत वार्षिक ब्याज पा सकेगी। परिवादिनी वाद व्यय के रूप में ३०००/- रूपया वसूल पा सकगी। ‘’
अत: माननीय आयोग से निवेदन है कि वर्तमान अपील स्वीकार करते हुए प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश अपास्त किया जाए।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता की बहस सुनी तथा पत्रावली का सम्यक रूप से परिशीलन किया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ।
बहस के दौरान् अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने कहा कि यदि परिवादिनी शेष धनराशि जमा करती है तब उसे भूखण्ड देने में आपत्ति नहीं है किन्तु अनावश्यक रूप से ब्याज लगाया गया है, जो गलत है।
हमने विद्वान जिला फोरम के प्रश्नगत निर्णय का भी अवलोकन किया। एक तथ्य यह स्पष्ट हुआ कि इस भवन की कीमत कई बार बढ़ाई गई है। यदि किसी को प्रारम्भ में एक निश्चित धनराशि पर भूखण्ड आबंटित करने के लिए कहा गया तब बार-बार कीमत बढ़ाने का कोई औचित्य नहीं है किन्तु जिस दिनांक से स्कीम शुरू हुई उस दिनांक की कीमत को ही किश्तों में दिए गए विवरण के अनुसार जमा करना होता है। विद्वान जिला फोरम ने अपने निर्णय में ब्याज की धनराशि १८ प्रतिशत वार्षिक लगाई है जो हमारे विचार से ज्यादा है ओर विभिन्न न्यायिक दृष्टान्तों के अनुसार इसको १० प्रतिशत होना चाहिए। निर्णय के शेष भाग में किसी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। तद्नुसार यह अपील आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
वर्तमान अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला फोरम/आयोग (प्रथम), आगरा द्वारा परिवाद सं0-२४६/२००९ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक २०-१२-२०१० मात्र इस सीमा तक संशोधित किया जाता है कि जिला फोरम द्वारा आदेशित ब्याज की दर १८ प्रतिशत के स्थान पर मात्र १० प्रतिशत देय होगी। जिला फोरम के
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प्रश्नगत निर्णय के शेष भाग की पुष्टि की जाती है।
अपील व्यय उभय पक्ष पर।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट नं.-२.