Uttar Pradesh

StateCommission

A/2012/431

M/s Magor Ice and Cold Storage - Complainant(s)

Versus

Kushal Pratap Singh - Opp.Party(s)

G C Sinha

27 May 2015

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2012/431
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. M/s Magor Ice and Cold Storage
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Kushal Pratap Singh
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Ram Charan Chaudhary PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Jugul Kishor MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
ORDER

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग उ0प्र0, लखनऊ

अपील संख्‍या- 431/2012

                                                सुरक्षित  

( जिला उपभोक्‍ता फोरम, अलीगढ़ द्वारा परिवाद संख्‍या- 63/2009 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित- 01-06-2011 के विरूद्ध)

मेसर्स मेजर आइस एण्‍ड कोल्‍ड स्‍टोरेज, ग्राम-पहाडीपुर अलीगढ़, छर्रा रोड़ पोस्‍ट-बर्ला, तहसील- अतरौली जिला- अलीगढ़ द्वारा प्रोपराइटर मेजर लखन सिंह उम्र लगभग 58 वर्ष पुत्र श्री पूरन सिंह, निवासी- 2/213,न्‍यू कृष्‍णापुरी बेला मार्ग, अलीगढ़।                               ...अपीलार्थी/विपक्षी

                              बनाम

 

कुशल प्रताप सिंह पुत्र श्री प्रताप सिंह निवासी- नगला सती, तहसील- इगलास जिला- अलीगढ़।                                 .. प्रत्‍यर्थी/परिवादी

समक्ष:-

माननीय श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्‍य,

माननीय श्री राज कमल गुप्‍ता, सदस्‍य,

अपीलकर्ता की ओर से उपस्थित:  श्री जी0सी0 सिन्‍हा, विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित   :  श्री ओ0पी0 दुवैल, विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक- 01-12-2015

         माननीय श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्‍य, द्वारा उद्घघोषित

                              निर्णय

    अपीलकर्ता ने यह अपील जिला उपभोक्‍ता फोरम अलीगढ़ द्वारा परिवाद संख्‍या- 63/2009 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित- 01-06-2011 के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गई है, जिसमें जिला उपभोक्‍ता फोरम द्वारा निम्‍न आदेश पारित किया गया है:-

    "परिवादी का परिवाद विपक्षी के‍ विरूद्ध एक पक्षीय रूप से स्‍वीकार किया जाता है तथा विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह आदेश पारित होने के 30 दिन के अन्‍दर परिवादी के 489 बोरी आलू की कीमत 575-00 रूपये प्रति बोरी के हिसाब से परिवाद दाखिल करने की तिथि से 6 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज के साथ परिवादी को अदा करें तथा वाद व्‍यय हेतु 1000-00 रूपये भी परिवादी को अदा करें अन्‍यथा विपक्षी निर्धारित अवधि के बाद से तारीख भुगतान तक उक्‍त समस्‍त धनराशि पर 06 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज भी परिवादी को अदा करने के‍ लिए उत्‍तरदायी होगा।"

संक्षेप में केस के तथ्‍य इस प्रकार से हैं कि परिवादी ने विपक्षी के कोल्‍ड स्‍टोरेज में दिनांक 06-03-2008 को 207 बोरी आलू मोटा रसीद सं0-

1016 से तथा दिनांक 06-03-2008 को ही 133 बोरी आलू गुल्‍ला रसीद सं0- 1017 से तथा दिनांक 08-03-2008 को 149 बोरी आलू गुल्‍ला रसीद सं0-

(2)

1174 से भण्‍डारित किया था जो परिवादी को दिनांक 31-10-2008 तक निकालना था। परिवादी दिनांक 16-10-2008 को जब अपने खेत में आलू बोने हेतु विपक्षी के यहॉ अपना आलू लेने गया तो विपक्षी ने परिवादी का लॉट नहीं दिखाया और अन्‍य कोई लॉट दिखा दिया जो कि परिवादी का नहीं था और 4 दिन बाद आने को कहा। परिवादी जब दिनांक 22-10-2008 को विपक्षी के यहॉ आलू लेने गया तो विपक्षी ने पुन: किसी और का लॉट दिखा दिया जिस पर परिवादी ने आपत्ति की और अपने आलू की मांग की तो विपक्षी ने परिवादी परिवादी के साथ अभ्रद व्‍यवहार किया और परिवादी का आलू देने से मना कर दिया। ऐसा प्रतीत होता है कि विपक्षी ने परिवादी का आलू बेच दिया है। परिवादी का आलू प्रति बोरी 50 किलो ग्राम था, जिसकी बाजारू कीमत 1150-00 रूपये प्रति कुन्‍तल थी, जिसकी प्रति बोरी कीमत 575-00 रूपये होती है। इस प्रकार उसे कुल बोरी 489 की कीमत 281175-00 रूपये परिवादी की होती है। परिवादी ने इस बावत दिनांक 25-10-2008 को विपक्षी ने एक विधिक नोटिस दिलाया, लेकिन विपक्षी ने कोई धनराशि अदा नहीं की। इस परिवाद में परिवादी ने यह अनुतोष मांगा है कि परिवादी को विपक्षी से उसके आलू की कीमत 281175-00 रूपये दिनांक 31-10-2006 से 09 प्रतिशत ब्‍याज के  साथ दिलायी जाय तथा वाद व्‍यय हेतु 5000-00 रूपये भी दिलाया जाय।

जिला उपभोक्‍ता फोरम के समक्ष पर्याप्‍त तामीला के बाद भी कोई जवाबदावा विपक्षी के तरफ से नहीं लगाया गया और एक पक्षीय सुनवाई के लिए आदेश हुआ और जिला उपभोक्‍ता फोरम ने यह पाया कि‍ विपक्षी ने न तो फोरम के समक्ष उपस्थित हुए और न तो कोई जवाबदावा दाखिल किया, फिर परिवादी के कथन पर विश्‍वास न करने का कोई कारण नहीं रह जाता है।

जिला उपभोक्‍ता फोरम के द्वारा पारित एक पक्षीय आदेश दिनांक 01-06-2011 के‍ विरूद्ध विविध वाद सं0-131/2011 जिला उपभोक्‍ता फोरम, अलीगढ में रद्द करने के बारे में दिया, लेकिन प्रतिवादी का प्रार्थना पत्र दिनांक 17-02-2012 को जिला उपभोक्‍ता फोरम द्वारा निरस्‍त किया गया।

         विपक्षीगण ने राज्‍य उपभोक्‍ता आयोग के समक्ष अपील सं0 431/2012 योजित‍ किया गया। राज्‍य उपभोक्‍ता आयोग के द्वारा दिनांक 20-08-2014 को उक्‍त अपील में निर्णय पारित किया गया और यह कहा गया कि अपीलकर्ता ने जिला उपभोक्‍ता फोरम के निर्णय/आदेश दिनांकित 01-06-2012 के विरूद्ध जो अपील दायर की है, वह 220 दिन से ज्‍यादा देरी से दायर किया गया है और एडमिशन के स्‍तर पर ही अपीलकर्ता की अपील कालबाधन के आधार पर निरस्‍त कर दिया गया।

राज्‍य उपभोक्‍ता आयोग के द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 20-08-2014 के विरूद्ध माननीय राष्‍ट्रीय उपभोक्‍ता आयोग में निगरानी संख्‍या

 

                  (3)

504/2015 विपक्षी मेसर्स मेजर आइस एण्‍ड कोल्‍ड स्‍टोरेज के तरफ से दायर किया गया, जो कि दिनांक 31-03-2015 को निर्णीत हुआ, जिसमें राज्‍य उपभोक्‍ता आयोग का आदेश निरस्‍त किया गया और पिटीशनर के ऊपर 10,000-00 रूपये हर्जाना लगाया गया, जो कि परिवादी/प्रत्‍यर्थी को देय था और दोनों पक्षों को यह निर्देश दिया गया कि राज्‍य उपभोक्‍ता आयोग के समक्ष दिनांक 31-04-2015 को उपस्थित हो।

    अपीलकर्ता के तरफ से विद्ववान अधिवक्‍ता श्री जी0सी0 सिन्‍हा तथा प्रत्‍यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री ओ0पी0 दुवैल उपस्थित हुए, उनको सुना गया और लिखित बहस का भी अवलोकन किया गया।

     मौजूदा केस में प्रतिवादी के तरफ से कोई प्रतिवाद पत्र जिला उपभोक्‍ता फोरम के समक्ष दाखिल नहीं किया जा सका था और अपील के आधार में अपीलकर्ता के द्वारा यही कहा गया है कि उनको बिना सुनवाई का अवसर देते हुए जिला उपभोक्‍ता फोरम ने‍ निर्णय पारित कर दिया और यह भी कहा गया है कि उनका रेस्‍टोरेशन प्रार्थना पत्र भी निरस्‍त कर दिया गया था और यह निवेदन किया है कि जिला उपभोक्‍ता फोरम का निर्णय/आदेश दिनांकित 01-06-2011 को निरस्‍त किया जाय और कोई उचित आदेश पारित किया जाय। लिखित बहस जो अपीलकर्ता के तरफ से दाखिल‍ किया गया है, उसके पैरा-15 में कहा गया है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी को कुछ रकम कोल्‍ड स्‍टोरेज को देना था। (1) 489 बोरी आलू जो कि 50-00 रूपये प्रति पैकेट के हिसाब से कुल रूपया 24,450-00 होता है। (2) खेत से लेकर कोल्‍ड स्‍टोरेज तक 10-00 रूपये प्रति पैकेट का खर्चा 489 पैकेट का लाने का 4890-00 रूपये होता है। (3) कोल्‍ड स्‍टोरेज ने परिवादी को 25,000-00 रूपये एडवॉस दिया था। (4) और आलू को ढोने के‍ लिए 600 बैग जिसमें प्रति की कीमत 16-00 प्रति था। कुल कीमत 9600-00 रूपये बैग की कीमत भी परिवादी को देना था। इस प्रकार से कुल चार मदों में 63,940-00 रूपये होता है और यह भी कहा गया कि उक्‍त सीजन पर आलू की कीमत कम होती है, इसलिए 15-07-2008 को परिवादी को नोटिस दिया गया कि वह अपना आलू निकलवा ले, नहीं तो दाम कम हो जायेगा, लेकिन परिवादी नहीं आया। लिखित बहस में कहा गया है कि अपीलकर्ता का परिवादी/प्रत्‍यर्थी पर 63,940-00 रूपये बनता है। यह भी कहा गया है कि उक्‍त परिवाद में परिवादी ने 489 बोरी आलू का दाम 2,81,175-00 रूपये मांगा था और अपने रेट पर जो 50-00 रूपये प्रति कुन्‍तल बाजारू कीमत अक्‍टूबर 2008 में दर्शाया गया है, उसी आधार पर परिवाद दायर किया

है।

    अपीलकर्ता के तरफ से लिखित बहस में उपरोक्‍त परिवाद सं063/2009 के सम्‍बन्‍ध में कहा गया है, जिसमें संलग्‍नक पी-1 जो 16 रूपये प्रति बोरी के

 

(4)

हिसाब से 600 बोरी का दाम 9600-00 रूपये दर्शाया गया है। प्राप्‍तकर्ता परिवादी कुशल प्रताप संलग्‍नक पी-2 दिनांक 05-03-2008 का है, जिसमें 25,000-00 रूपये परिवादी श्री कुशल प्रताप द्वारा प्राप्‍त करना दर्शाया गया है। संलग्‍नक- पी-3 में तीन रसीदें इस सम्‍बन्‍ध में दाखिल की गई है, जिसमें कुशल प्रताप के हस्‍ताक्षर दर्शाये गये है। इस प्रकार से स्‍पष्‍ट है कि मौजूदा केस में प्रतिवादी को अपना पक्ष रखने के लिए और उसके द्वारा जो 9600-00 रूपये और 25,000-00 रूपये परिवादी कुशल प्रताप के ऊपर बकाया दर्शाया गया है, पीठ द्वारा इस सम्‍बन्‍ध में तय करना है, लेकिन मूल रसीदें आयोग के समक्ष दाखिल नहीं की गई है और इन रसीदों पर प्राप्‍तकर्ता परिवादी कुशल प्रताप के हस्‍ताक्षर दर्शाये गये है। इन सारे हालात को देखते हुए हम यह पाते हैं कि प्रतिवादी के पक्ष को सुनने के‍ लिए और उसके द्वारा बताए गये रूपये जो परिवादी के ऊपर बकाया है, उसके सम्‍बन्‍ध में और आलू के रेट के बारे में निस्‍तारण किया जाना है, जो दोनों पक्षों को सुनवाई करके ही किया जा सकता है। अत: हम यह पाते हैं कि इस प्रकरण को जिला उपभोक्‍ता फोरम के समक्ष सुनवाई हेतु रिमाण्‍ड किया जाना न्‍यायोचित होगा, जिससे दोनों पक्ष को अपना-अपना पक्ष व साक्ष्‍य प्रस्‍तुत करने का अवसर मिल सके और इस प्रकार से हम यह पाते हैं कि जिला उपभोक्‍ता फोरम का निर्णय/आदेश दिनांकित 01-06-2011 को इस शर्त के साथ निरस्‍त किये जाने योग्‍य है कि यह पुन: सुनवाई के लिए रिमाण्‍ड किया जाना आवश्‍यक है। तदनुसार अपीलकर्ता की अपील स्‍वीकार किये जाने योग्‍य है।

आदेश

    अपीलकर्ता की अपील स्‍वीकार की जाती है तथा जिला उपभोक्‍ता फोरम अलीगढ के परिवाद संख्‍या-63/2009 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 01-06-2011 को‍ निरस्‍त करते हुए प्रस्‍तुत प्रकरण सम्‍बन्धित जिला मंच को इस निर्देश के साथ प्रति प्रेषित किया जाता है कि वे तथ्‍यों का विश्‍लेषण कर दोनों पक्षों को साक्ष्‍य एवं सुनवाई का समुचित अवसर प्रदान करते हुए मामलें का निस्‍तारण गुणदोष के आधार पर त्‍वरित गति से करना सुनिश्चित करें।

 

    दोनों पक्ष जिला उपभोक्‍ता फोरम के समक्ष दिनांक 28-11-2015 को उपस्थित हो।

 

 

 

   (राम चरन चौधरी)                      (राज कमल गुप्‍ता)

    पीठासीन सदस्‍य                            सदस्‍य,

आर.सी.वर्मा. आशु्

कोर्ट नं. 5

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Ram Charan Chaudhary]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'BLE MR. Jugul Kishor]
MEMBER

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