(राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0 लखनऊ)
सुरक्षित
(जिला मंच द्वितीय बरेली द्वारा परिवाद सं0 53/2012 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 18/04/2013 के विरूद्ध)
अपील संख्या 1085/2013
बैंक आफ बड़ौदा ब्रांच, सहोड़ा वियाशाही परगना व तहसील मीरगंज पी0एस0 शीशगढ़, जिला बरेली उत्तर प्रदेश द्वारा ब्रांच मैनेजर।
…अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
कुंवर वीरेन्द्र प्रताप सिंह उम्र लगभग 60 वर्ष पुत्र श्री भगवान शाही निवासी- ग्राम सहोड़ा तहसील मीरगंज, पी0एस0 शीशगढ़, जिला बरेली उत्तर प्रदेश।
.........प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:
1. मा0 श्री सी0बी0 श्रीवास्तव, पीठा0 सदस्य।
2. मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य ।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री राजीव जायसवाल।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री वीर राधव चौबे।
दिनांक- 09/01/2015
मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित ।
निर्णय
प्रस्तुत अपील परिवाद सं0 53/2012 कुंवर वीरेन्द्र प्रताप सिंह बनाम बैंक आफ बड़ौदा में जिला पीठ द्वितीय बरेली द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 18/04/2013 से क्षुब्ध होकर प्रस्तुत की गई है।
प्रश्नगत परिवाद में जिला पीठ द्वितीय बरेली ने परिवाद अंशत: स्वीकार करते हुए विपक्षी को निर्देशित किया कि परिवादी को रू0 62,300/ रूपये का भुगतान दिनांक 25/12/2010 से भुगतान की तिथि तक 06 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज सहित एक माह में करे। एक माह में भुगतान न करने पर विपक्षी 09 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज अदा करना होगा। क्षतिपूर्ति के रूप में मु0 15,000/ रूपये व वाद व्यय के रूप में 5000/ रूपये भुगतान करे।
परिवाद का कथन संक्षेप में इस प्रकार है कि विपक्षी बैंक में वह खाता सं0 05/996 का धारक है। परिवादी ने दिनांक 25/11/2010 को एक चेक सं0 430006 धनराशि 62,300/ रूपये का अपने उक्त खाते में कलेक्शन हेतु विपक्षी बैंक के पास जमा किया। बैंक नियमानुसार उपरोक्त धनराशि 15 दिन के अंदर परिवादी के खाते में जमा हो जानी चाहिए थी। किन्तु परिवाद प्रस्तुत करने तक उक्त धनराशि विपक्षी द्वारा परिवादी के खाते में जमा नहीं की गई।
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विपक्षी बैंक ने दिनांक 04/10/2011 एवं 10/01/2012 को प्रेषित अपने पत्रों के माध्यम से यह सूचित किया कि कलेक्शन प्रक्रिया में खो गया है। इस प्रकार विपक्षी ने उपभोक्ता/ग्राहक सेवा में घोर असावधानी एवं त्रुटि व कमी की है।
विपक्षी ने अपने प्रतिवाद पत्र जिला फोरम के समक्ष दाखिल किया जिसमें यह स्वीकार किया कि परिवादी ने दिनांक 25/11/2010 को अपने खाते में चेक सं0 430006 रूपया 62,300/ जमा किया था। शेष कथनों को अस्वीकार करते हुए विपक्षी ने यह कहा है कि उक्त चेक जारीकर्ता के खाते में पर्याप्त धनराशि न होने के कारण अनादृत हो गया इसलिए परिवादी को कोई भी धनराशि देय नहीं है। परिवादी द्वारा जमा किया गया चेक विपक्षी ने संग्रहण के लिए कोरियर के माध्यम से रूद्रपुर प्रेषित किया था। उक्त चेक अनादरण मेमो के साथ विपक्षी को वापस प्राप्त नहीं हुआ इसलिए विपक्षी ने यह मान लिया कि चेक की धनराशि परिवादी के खाते में जमा हो गई है। सभी शाखाएं सी.बी.एस. सुविधायुक्त है चेक की धनराशि चेक संग्रह होते ही खातेदार के खाते में आ जाती है और अनाद्रित होने पर भी एक सप्ताह में चेक वापस आ जाता है। कोरियर कंपनी ने उक्त अनादृत चेक विपक्षी को उपलब्ध नहीं कराया। विपक्षी ने उपभोक्ता सेवा में कोई त्रुटि या कमी नहीं की है।
जिला पीठ ने दोनों पक्षों के बहस को सुनकर गुणदोष के आधार पर निर्णय दिया जिसके खिलाफ अपील योजित की गई है।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री राजीव जायसवाल एवं प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री वीर राधव चौबे के बहस को विस्तार से सुना गया।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने तर्क दिया दिया कि जिला फोरम का निर्णय उचित नहीं है क्योंकि चेक की धनराशि मु0 62,300/ रूपये का भुगतान नहीं हुआ है और चेक ट्रान्जिट में खो गया है इसलिए केवल ब्याज अथवा क्षति की धनराशि दिलाया जा सकता है। क्षति के साथ चेक की धनराशि नहीं दिलाया जा सकता है। जिला फोरम का निर्णय सही एवं उचित नहीं है, जिला पीठ का निर्णय/आदेश खारिज करने योग्य है।
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता ने अपीलार्थी के तर्कों का खण्डन करते हुए कहा कि चेक की धनराशि का भुगतान परिवादी/प्रत्यर्थी को नहीं हुआ। जिसके कारण परिवादी को आर्थिक एवं मानसिक कष्ट सहना पड़ा है। जिला फोरम का निर्णय सही एवं उचित है, अपील खारिज होने योग्य है।
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आधार अपील एवं संपूर्ण पत्रावली का अवलोकन किया जिसमें यह प्रतीत होता है कि परिवादी/प्रत्यर्थी ने दिनांक 25/11/2010 को एक चेक सं0 430006 धनराशि मु0 62,300/ रूपये अपने बैंक खाते में जमा किया। परन्तु उक्त चेक डिस आनर होने के कारण परिवादी के खाते में जमा नहीं हो सका। विपक्षी बैंक ने डिसआनर चेक को कोरियर के माध्यम से परिवादी के पते पर भेजा। जो कोरियर द्वारा परिवादी को प्राप्त नहीं हुआ। जांच के दौरान यह ज्ञात हुआ कि उक्त चेक उक्त डाक ट्रान्जिट में कहीं खो गया, जिसके कारण चेक परिवादी को प्राप्त नहीं हुआ न उसे यह जानकारी हुई कि उक्त चेक किस कारण से परिवादी के खाते में जमा नहीं हुआ तथा डिस आनर चेक भी उसे प्राप्त नहीं हुआ कि डुप्लीकेट चेक बनाकर उक्त धनराशि का भुगतान प्राप्त कर सके। बैंक का यह उत्तर दायित्व हे कि वह परिवादी को चेक का भुगतान न होने की स्िथति में ग्राहक को सूचना प्रदान करे ताकि चेक की धनराशि को प्राप्त करने हेतु आवश्यक कार्यवाही कर सके। प्रस्तुत प्रकरण में बैंक द्वारा परिवादी को चेक डिसआनर की सूचना दिया जाना नहीं पाया जाता है, जो बैंक के सेवा में कमी होना पाया जाता है।
मा0 राष्ट्रीय आयोग ने केनरा बैंक बनाम बी0 मुरलीधरन नायर अवस्थी इण्टरप्राइजेज, सी0पी0जे0 2008 (।।) 17 में यह विधि व्यवस्था दिया है:-
4. At the cost of repetition, it may be stated that by the letter dated 5.5.2005, the drawee bank had intimated the petitioner band of its having not received the cheque. Combined reading of the said para Nos. 5,6,7,8 and 9 of the written version would show that the cheque was not sent up to 25.4.2005 to the drawee bank for the reason that the address of the drawee bank was not available with the petitioner which was allegedly supplied by the respondent on 23.3.2005, due to annual closing period and balance sheet audit perion of the bank, the cheque was allegedly sent along with reminder letter dated 18.4.2005, by registered post only on 26.4.2005. As proof of despatch the petitioner has filed the postal receipt (copy at page 30) and extract from Tappal/Courier Book and Ledger (copy at page 29) . At serial No. 8, a reminder letter of OSC 49/1995 Cheque 118613 for Rs. 1,00,000 is shown to have been sent. To be only noted that this entry is conspicuously silent of the cheque in question also having been sent along with the reminder letter. There was absolutely no occasion for the petitioner bank to have issued the reminder letter complaining of non-receipt of realization proceeds of the cheque when as the cheque itself is stated to have been sent on 26.4.2005. In this backdrop, the submission advanced on behalf of respondent in regard to the cheque
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having been lost in petitioner-bank does not seem to be meritless. Be that as it way, the fact remains that the cheque was lost. It may be stated that the written version was filed on 4.8.2005 . Particularly from the averments made in para No. 13 there of the respondent must have learnt of the cheque having been lost. Remedy of the respondent to file suit based on original consideration of the cheque was within limitation period by then. For recovery of amount of cheque a complaint would not lie under the Consumer Protection Act. It is only on ground of deficiency in service, a bank can be ordered to pay compensation but not the entire amount of the Cheque.
उपरोक्त विधि व्यवस्था के आलोक में अपीलार्थी के तर्क में बल पाया जाता है क्योंकि प्रस्तुत प्रकरण में जिला पीठ ने चेक के संपूर्ण धनराशि 62,300/ रूपये सहित वाद व्यय एवं क्षतिपूर्ति की धनराशि भुगतान करने का आदेश किया गया है। जबकि चेक की धनराशि मु0 62,300/ रूपये का भुगतान बैंक को नहीं प्राप्त हुआ है। केवल बैंक के सेवा में कमी यही हुआ है कि डिस आनर चेक की सूचना किसी विश्वसनीय व्यक्ति/कर्मचारी अथवा पंजीकृत डाक द्वारा प्राप्त नहीं कराई गई है। इसलिए परिवादी मात्र सेवा में कमी के आधार पर क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी है। अपील में बल पाया जाता है अपील अंशत: स्वीकार करने योग्य है।
आदेश
अपील अंशत: स्वीकार की जाती है। जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 18/04/2013 में दिये गये आदेश ‘’ विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को रू0 62,300/ रूपये का भुगतान दिनांक 25/12/2010 से भुगतान की तिथि तक 06 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज सहित में करे यह भुगतान एक माह में किया जाय। एक माह में भुगतान न करने पर विपक्षी 09 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज अदा करेगा।‘’ इसे निरस्त किया जाता है, शेष निर्णय/आदेश की पुष्टि की जाती है।
उभय पक्ष अपना अपीलीय व्यय स्वयं वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की सत्य प्रमाणित प्रति पक्षकारों को नियमानुसार उपलब्ध कराई जाय।
(सी0बी0 श्रीवास्तव)
पीठासीन सदस्य
(संजय कुमार)
सुभाष चन्द्र आशु0 ग्रेड 2 कोर्ट नं0 2 सदस्य