राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(मौखिक)
अपील संख्या:-31/2023
दि ओरियण्टल इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड, रीजनल आफिस, हजरतगंज, लखनऊ द्वारा मैनेजर
बनाम
कुमारी रहनुमा बी पुत्री मंजूर अहमद, निवासी ग्राम व पोस्ट बराखास, तहसील मिलक, जिला रामपुर व अन्य
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
अपीलार्थी के अधिवक्ता : श्री आलोक कुमार सिंह
प्रत्यर्थी/परिवादी के अधिवक्ता : श्री गौरव उपाध्याय
दिनांक :-25.11.2024
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से इस आयोग के सम्मुख धारा-41 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अन्तर्गत जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, रामपुर द्वारा परिवाद सं0-17/2021 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 07.10.2022 के विरूद्ध योजित की गई है।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ग्राम व पोस्ट बराखास तहसील मिलक, जिला रामपुर स्थित अपने मकान में ज़री वर्क उद्योग चलाती है। ज़री वर्क उद्योग में हर प्रकार का जरी कार्य अर्थात साड़ी व सूट आदि तैयार किये जाते हैं, जिस हेतु दिनांक 28.3.2019 को प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या 4 से दो ऋण प्राप्त किये, जिसमें से एक ऋण रू0 75,000.00 का पुराना खाता संख्या-89048567767 नया ऋण खाता संख्या 8909 ए एल 485677 व दूसरा ऋण रूपये चार लाख का जिसका पुराना ऋण खाता संख्या-89048569254 नया ऋण खाता संख्या-87098748569 है, लिया।
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यह भी कथन किया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के ज़री वर्क उद्योग में मौजूद जरी वर्क का सभी प्रकार का कुल स्टाक रूपये पॉच लाख तक की कीमत का प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-4 के माध्यम से अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-1 व 2 दि ओरियन्टल इंश्योरेन्स कम्पनी लि0 से बीमित था, इससे सम्बन्धित बीमा पालिसी संख्या 253501/48/2020/98 की वैधता दिनांक 09.4.2019 से दिनांक 08.4.2020 तक प्रभावी थी, बीमा की किश्त प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या 4 के यहां स्थित प्रत्यर्थी/परिवादिनी के बैंक खाता संख्या 87098748569 से जमा की गयी थी। दुर्भाग्यवश दिनांक 30.3.2020 को प्रत्यर्थी/परिवादिनी के उक्त जरी उद्योग में शार्ट सर्किट से आग लग गयी, जिससे करीब पॉच लाख रूपये का सारा ज़री वर्क सामान/स्टाक जल गया। उस समय लॉकडाउन था, जिसके चलते प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने अगले दिन दिनांक 31.3.2020 को विपक्षीगण सं0-1, 2 व 4 को घटना की सूचना दी। थाना शहजाद नगर व अग्निशमन अधिकारी, रामपुर को भी सूचना दी। तदोपरांत प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने रूपये पॉच लाख का क्लेम प्राप्त करने के लिए विपक्षीगण सं0-1, 2 व 4 से सम्पर्क किया। अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-1 को दिनांक 20.5.2020 को आवश्यक प्रपत्र उपलब्ध कराये एवं अपीलार्थी/विपक्षी संख्या 1 व 2 ने सादे फार्मो पर हस्ताक्षर करायें और बताया कि जून, 2020 में प्रत्यर्थी/परिवादिनी के बैंक खाते में रूपये पॉच लाख पहुंच जायेंगे, किन्तु दिनांक 13.8.2020 को अपीलार्थी/विपक्षी संख्या 1 व 2 ने क्लेम देने से मना कर दिया।
दिनांक 14.8.2020 को प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा विपक्षीगण को विधिक नोटिस दिया, परन्तु विधिक नोटिस का कोई जबाब विपक्षीगण
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द्वारा नहीं दिया गया अत्एव क्षुब्ध होकर परिवाद जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रस्तुत किया गया।
जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख विपक्षीगण संख्या 1 ता 3 की ओर से प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत कर इस आशय का कथन किया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के उद्योग का बीमा विपक्षीगण के साथ होना स्वीकार किया गया, किन्तु यह कहा गया कि वह बर्गलरी पालिसी थी, जो चोरी की घटना से सम्बन्धित थी, रू0 1,34,563.00 का भुगतान प्रत्यर्थी/परिवादिनी को विधि के अनुसार किया गया। यह कथन किया कि चूंकि यह चोरी की घटना से सम्बन्धित पालिसी थी एवं प्रत्यर्थी/परिवादिनी का कोई सामान चोरी नहीं हुआ, इसलिये पालिसी से सम्बन्धित परिवाद दायर करना गलत है । यह भी कथन किया कि संस्थान में आग लगने से सम्बन्धित घटना की जांच अन्वेषक द्वारा की गयी एवं अन्वेषक की रिपोर्ट के आधार पर क्लेम का सेटिलमेन्ट किया गया, पूर्ण सन्तुष्टि के आधार पर रू0 1,34,563.00 की राशि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के खाते में अन्तरित की गयी, चूंकि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने पूर्ण सन्तुष्टि के आधार पर क्लेम प्राप्त कर लिया है, इसलिये परिवाद का कोई औचित्य नहीं है, परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है। यह भी कहा गया कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी से विपक्षीगण को रूपये दस हजार हर्जा-खर्चा के रूप में दिलाया जाये ।
जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या 4 की ओर से प्रस्तुत प्रतिवाद पत्र में इस आशय का कथन किया गया कि कानूनी अडचनों से बचने के लिए प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या 4 को पक्षकार बनाया है। प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या 4 के विरूद्ध कोई अनुतोष नहीं चाहा है, नाजायज दबाव बनाने के उद्देश्य से प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या 4 को बिना कारण पक्षकार बनाया
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गया है, इसलिये प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या 4 को प्रत्यर्थी/परिवादिनी से विशेष क्षतिपूर्ति दिलायी जावे।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्य पर विस्तार से विचार करने के उपरांत परिवाद को अपीलार्थी/बीमा कम्पनी के विरूद्ध आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
"परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से बीमा कम्पनी के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है। विपक्षी बीमा कम्पनी दि ओरियन्टल इंश्योरेन्स कम्पनी लि0 को निर्देशित किया जाता है कि इस आदेश के पारित होने के 45 दिन के अन्दर वह परिवादिनी को रू0 1,04,137.00 क्लेम सेटिलमेन्ट की बकाया राशि के रूप में व रू0 5 हजार परिवाद व्यय के रूप में अदा करें। नियत अवधि में उक्त राशि का भुगतान न होने पर विपक्षी बीमा कम्पनी उक्त राशियों पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से वास्तविक भुगतान की अवधि तक 7 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज भी अदा करने की उत्तरदायी होगी। परिवाद विपक्षी संख्या 4 के विरूद्ध निरस्त किया जाता है।"
जिला उपभोक्ता आयोग के प्रश्नगत निर्णय/आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से प्रस्तुत अपील योजित की गई है।
मेरे द्वारा अपीलार्थी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री आलोक कुमार सिंह तथा प्रत्यर्थी/परिवादिनी की ओर से उपस्थित अधिवक्ता श्री गौरव उपाध्याय को सुना गया तथा जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश का सम्यक परिशीलन एवं परीक्षण किया गया।
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मेरे द्वारा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के कथनों को सुना गया तथा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेखों के परिशीलनोंपरांत यह पाया गया कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश विधि सम्मत है। परन्तु जहॉ तक विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा अपने प्रश्नगत आदेश में अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के विरूद्ध जो नियत अवधि में उक्त राशि का भुगतान न होने पर अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी उक्त राशियों पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से वास्तविक भुगतान की अवधि तक 07 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज की देयता निर्धारित की है, उसे वाद के सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्थितियों तथा अपीलार्थी के अधिवक्ता के कथन को दृष्टिगत रखते हुए 06 (छ:) प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज की देयता में परिवर्तित किया जाना न्यायोचित प्रतीत होता है, तद्नुसार ब्याज की देयता को 07 (सात) प्रतिशत के स्थान पर 06 (छ:) प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज में परिवर्तित किया जाता है।
साथ ही प्रश्नगत आदेश में अपीलार्थी/बीमा कम्पनी के विरूद्ध जो रू0 5,000.00 (पॉच हजार रू0) परिवाद व्यय की देयता निधारित की गई है, उसे भी अपीलार्थी के अधिवक्ता के कथन को दृष्टिगत रखते हुए रू0 5,000.00 (पॉच हजार रू0) के स्थान पर रू0 2,500.00 (दो हजार पॉच सौ रू0) में परिवर्तित किया जाता उचित पाया जाता है। तद्नुसार प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। निर्णय/आदेश का शेष भाग यथावत कायम रहेगा।
अपीलार्थी बीमा कम्पनी को आदेशित किया जाता है कि वह उपरोक्त निर्णय/आदेश का अनुपालन 30 दिन की अवधि में किया
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जाना सुनिश्चित करे। अंतरिम आदेश यदि कोई पारित हो, तो उसे समाप्त किया जाता है।
प्रस्तुत अपील को योजित करते समय यदि कोई धनराशि अपीलार्थी द्वारा जमा की गयी हो, तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक/वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
हरीश आशु.,
कोर्ट नं0-1