राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
पुनरीक्षण संख्या- 46/2013
( जिला उपभोक्ता फोरम सहारनपुर द्वारा परिवाद सं0-141/2003 में पारित आदेश दिनांकित-12-03-2013 के विरूद्ध)
यूनियन बैंक आफ इंडिया यूनियन बैंक भवन, 239, विधान सभा मार्ग नारीमन प्वाइंट, मुम्बई, इण्टरलिया शाहजहॉपुर ब्रान्च अम्बाला रोड़, शाहजहॉपुर, द्वारा ब्रान्च मैनेजर।
....पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी
बनाम
कुमार पोल्टरी फार्म, ग्राम- पतनी, पो0 आ0 चिलकना, जिला- शाहजहॉपुर द्वारा पार्टनर श्री सत्य प्रकाश।
...प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
माननीय श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्य।
माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
पुनरीक्षणकर्ता की ओर से उपस्थिति: श्री राजेश चडढ़ा, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थिति : कोई नहीं।
दिनांक- 01-12-2015
माननीय श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्य, द्वारा उद्घोषित
निर्णय
पुनरीक्षणकर्ता ने यह पुनरीक्षण जिला उपभोक्ता फोरम सहारनपुर द्वारा परिवाद सं0-141/2003 में पारित आदेश दिनांकित-12-03-2013 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई है। उपरोक्त आदेश द्वारा निगरानीकर्ता युनियन बैंक के तरफ से दिया गया प्रार्थना पत्र 66 ग निरस्त किया गया।
संक्षेप में केस के तथ्य इस प्रकार से है कि जिला उपभोक्ता फोरम के समक्ष प्रार्थना पत्र 66 ग दिया गया था, जिसमें कहा गया है कि प्रार्थी विपक्षीगण की ओर से यह प्रारम्भिक आपत्ति उठायी गई थी कि परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता तथा परिवादीद्वारा जो अनुतोष चाहा गया है वह भी जिला फोरम के क्षेत्राधिकार से बाहर है। इन महत्वपूर्ण विन्दुओं का निस्तारण प्रारम्भिक विन्दुओं के रूप में किया जाना अति आवश्यक है। इस सम्बन्ध में विपक्षीगण ने पूर्व में भी एक प्रार्थना पत्र दिनांक 13-08-2004 को दिया था, जिस पर यह आदेश पारित किया गया था कि प्रारम्भिक आपत्ति की सुनवाई से पूर्व विपक्षीगण को अपना जवाबदावा दाखिल करना चाहिए। विपक्षीगणने अपना उत्तर पत्र दाखिल कर दिया है और उत्तर पत्र में भी यह प्रारम्भिक आपत्तियॉ उठायी है। परिवादी ने प्रारम्भिक आपत्ति के निस्तारण को नजरअंदाज करते व जिला फोरम को गुमराह करते हुए अपना साक्ष्य पत्रावली पर विपक्षीगण को बिना बताये दाखिल कर दिया है, जबकि साक्ष्य दाखिल होने से पूर्व प्रारम्भिक आपत्ति की सुनवाई होना अति आवश्यक है। अत: प्रारम्भिक आपत्ति की सुनवाई करने की कृपा की जावे।
प्रार्थना पत्र का विरोध परिवादी की ओर से आपत्ति 72 ग से यह कहते हुए किया गया है कि विपक्षीगण ने प्रार्थना पत्र बदनीयती व गलत बयानात से प्रस्तुत किया है, खण्डित होने योग्य है। जिला उपभोक्ता फोरम सीमित क्षेत्राधिकारी न्यायालय है तथा सीमित क्षेत्राधिकारी
(2)
न्यायालय में वाद विन्दु निर्मित किये जाने को कोई प्राविधान नहीं है। फोरम के समक्ष विपक्षीगण का उत्तर पत्र रिकार्ड पर है। विपक्षीगण का उत्तर पत्र पत्रावली पर आने के परिणामस्वरूप परिवादी ने अपना समस्त साक्ष्य प्रस्तुत कर दिया है। परिवादी का साक्ष्य रिकार्ड पर आने के पश्चात विपक्षीगण को अपना साक्ष्य प्रस्तुतकरना चाहिए था ताकि प्रकरण का निस्तारण गुणदोष के आधार पर अंतिम रूप में हो सके, परन्तु विपक्षीगण साक्ष्य प्रस्तुत न करके यह प्रार्थना पत्र परिवाद में काफी बिलम्ब करने के आशय से प्रस्तुत किया है। प्रार्थनापत्र में कोई विधिक आधार ऐसा नहीं है कि इस प्रार्थना पत्र को स्वीकार किया जा सके, जो भी आधार प्रार्थनापत्र में विपक्षीगण द्वारा लिये गये है वह विधिक दृष्टि से अपर्याप्त है। उप0 संर0 अधिनियम के अर्न्तगत ऐसा कोई प्राविधान नहीं है, जिसके अर्न्तगत किसी भी प्ली को बतौर प्रारम्भिक प्ली तय किये जाने के सम्बन्ध में कहा गया हो। यह परिवादी के विवेक पर है कि वह वाद का मूल्यांकन कुल मूल्यांकन छोड़कर कितनी राशि पर करें। प्रस्तुत मामले में परिवादी ने कृषि ऋण नाबार्ड स्कीम के अर्न्तगत लिया था। काफी समय तक मामला ब्याज के विवादपर विपक्षीगण के यहॉ लम्बित रहा। विपक्षीगण की उत्पीड़न कार्यवाही से परिवादी हृदयरोगी हो गया। इन्हीं सब परिस्थितियों को देखते हुए कि वह स्थानीय लेबल से अपने वाद में कार्यवाही अच्छी प्रकार से कर सकता है उसने कुल देय धनराशि को कम करके मात्र 20 लाख के मूल्यॉकन पर प्रस्तुत परिवाद दायर किया। ऐसा करके उसने उप0 सरं0 अधिनियम के अर्न्तगत किसी भी अज्ञापक प्राविधान का उल्लंघन नही किया है।
केस के तथ्यों परिस्थितियों में यह स्पष्ट है कि परिवादी द्वारा साक्ष्य जिला उपभोक्ता फोरम के समक्ष दाखिल किया जा चुका है और क्षेत्राधिकार का विन्दु जो मूल्यांकन के सम्बन्ध में है, वह तथ्यों पर भी आधारित है। इस प्रकार से जिला उपभोक्ता फोरम के द्वारा उसको प्रारम्भिक रूप से तय करने से मना कर दिया गया है और विपक्षी के प्रार्थनापत्र 66 ग को खारिज किया गया है।
केस के तथ्यों परिस्थितियों में हम यह पाते हैं कि जिला उपभोक्ता फोरम के द्वारा जो आदेश दिनांक 12-03-2013 को पारित किया गया है, वह विधि सम्मत् है, उसमें हस्तक्षेप किये जाने की कोई गुंजाइश नहीं है। निगरानीकर्ता की निगरानी खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
तद्नुसार निगरानीकर्ता की निगरानी खारिज की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना अपील व्यय स्वयं वहन करेगें।
(आर0सी0 चौधरी) ( बाल कुमारी )
पीठासीन सदस्य सदस्य
आर.सी.वर्मा, आशु.
कोर्ट नं05