(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-912/2009
Agra Development Authority, Agra through Vice-Chairman
Versus
Krishna Pal Singh Son of Late Om Prakash Singh
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
उपस्थिति:-
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: श्री अरविन्द्र कुमार, विद्धान अधिवक्ता के
सहयोगी अधिवक्ता श्री मनोज कुमार
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित: कोई नहीं
दिनांक :27.02.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-86/2008, श्रीकृष्ण पाल सिंह बनाम आगरा विकास प्राधिकरण में विद्वान जिला आयोग, (द्वितीय) आगरा द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 23.04.2009 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी अपील पर केवल अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता श्री अरविन्द्र कुमार के सहयोगी अधिवक्ता श्री मनोज कुमार को सुना गया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
2. परिवाद के तथ्यों के अनुसार दिनांक 19.06.2000 को भवन प्राप्त करने के लिए अंकन 39,000/-रू0 विपक्षी के कार्यालय में जमा किये थे, इसके पश्चात 03.10.2001 को 20,000/-रू0 की धनराशि जमा की गयी। विपक्षी द्वारा एम.आई.जी.ए.-131 भवन आवंटित किया गया, परंतु आवंटन पत्र, कब्जा पत्र जारी नहीं किये गये तथा परिवादी पर बकाया राशि एवं ब्याज अवैध रूप से दर्शित कर रहे हैं। आवंटन पत्र जारी न करने की शिकायत दिनांक 30.12.2000 को की गयी, जिस पर कोई सुनवाई नहीं हुई। इसके बाद प्राधिकरण द्वारा 27.05.2003 को आवंटित भवन को निरस्त करने की सूचना दी गयी। यह कार्यवाही अवैध है, इसलिए उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत किया गया।
3. विपक्षी प्राधिकरण का कथन है कि आवंटन की शर्तों के अनुसार 35,358/-रू0 12 पैसे की मांग दिनांक 20.10.2000 को की गयी थी। विलम्ब की स्थिति में 21.5 प्रतिशत ब्याज भी दिया जाना था। आवंटी द्वारा दिनांक 3.10.2001 को 20,000/-रू0 की धनराशि जमा की गयी। इस राशि के जमा करने से कब्जा हस्तांतरित नहीं हो सकता था, इसलिए आवंटन पत्र निरस्त किया गया है। परिवादी का यह कथन गलत है कि आवंटन प्राप्त नहीं हुआ है, इसलिए स्वयं परिवादी डिफाल्टर रहा है।
4. दोनों पक्षकारों के साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात जिला उपभोक्ता मंच द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया है कि प्राधिकरण आज भी ब्याज के साथ धनराशि जमा करने पर भवन देने के लिए तत्पर है। इसी को आधार मानते हुए यह आदेश पारित किया गया कि एम.आई.जी.ए.-131 नामक भवन परिवादी को तत्समय निर्धारित मूल्य के अनुसार उपलब्ध कराये, साथ ही यह भी आदेश दिया है कि परिवादी द्वारा जो राशि जमा की गयी है, उस पर ब्याज अदा किया जाए। परिवादी को आदेशित किया जाता है कि प्राधिकरण के खाते में 30 दिन के अंदर समस्त बकाया जमा करें, पंरतु बकाया धनराशि पर ब्याज अदा करने का कोई आदेश पारित नहीं किया गया। इसी प्रकार परिवादी द्वारा जमा राशि पर प्राधिकरण की ओर से ब्याज अदा करने का आदेश भी अनुचित है। यह दोनों आदेश अपास्त होने योग्य है तथा निर्णय एवं आदेश इस प्रकार संशोधित होने योग्य है कि परिवादी द्वारा प्राधिकरण में जो धनराशि जमा की जायेगी उस राशि पर नियमानुसार ब्याज भी अदा किया जायेगा। यद्यपि परिवादिनी ओ0टी0एस0 योजना के अंतर्गत ब्याज में छूट का लाभ प्राप्त करते हुए अवशेष धनराशि जमा कर सकती है, जिसकी सूचना प्राधिकरण द्वारा परिवादी को लिखित में उपलब्ध करायी जायेगी।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि परिवादी द्वारा जो धनराशि जमा की गयी है, उस पर प्राधिकरण द्वारा कोई ब्याज देय नहीं होगा तथा परिवादी पर जो धनराशि अवशेष है, वह राशि पक्षकारों के मध्य निर्धारित शर्तों के अनुसार ब्याज सहित प्राधिकरण में जमा करने के पश्चात जिला उपभोक्ता आयोग के आदेश का अनुपालन प्राधिकरण द्वारा किया जायेगा। तथा प्राधिकरण द्वारा लिखित ओ0टी0एस0 योजना का लाभ प्राप्त करने की सूचना भी परिवादी को उपलब्ध करायी जायेगी।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय)(सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट 3