(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या : 982/2016
(जिला उपभोक्ता फोरम, बुलन्दशहर द्वारा परिवाद संख्या-91/2013 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 12-04-2016 के विरूद्ध)
Shriram General Insurance Company Limited, E-8, EPIP, RIICO Industrial Area, Sitapura, Jaipur (Rajasthan)-302022, Branch Office-16, Chintal House, Station Road, Lucknow through its Manager. ....अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम्
Krishna Kumar Sharma S/o Shri Nand Kishore Sharma, Resident of House No. 889/5, Preet Vihar Colony, Civil Lines, Distt. BulandShahar.
......प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष :-
1- मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष ।
उपस्थिति :
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित- श्री दिनेश कुमार।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित- ओ0 पी0 दुवैल।
दिनांक : 17-12-2019
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित निर्णय
परिवाद संख्या-91/2013 कृष्ण कुमार शर्मा बनाम् प्रबन्धक श्रीराम जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लि0 में जिला उपभोक्ता फोरम, बुलन्दशहर द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 12-04-2016 के
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विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत इस आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है :-
‘’परिवादी का परिवाद विपक्षी के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को इस निर्णय की तिथि से 30 दिन के अंदर उसके चोरी गये ट्रक संख्या-यू0पी0-13-टी-205 की बीमा धनराशि मु0 5,00,000/- तथा 1,000/-रू0 बतौर वाद व्यय अदा करें तथा विपक्षी उक्त धनराशि पर 06 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दावा दायर करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक अदा करने के लिए जिम्मेदार होगा। विपक्षी द्वारा भुगतान किये जाने की स्थिति में परिवादी चोरी गये वाहन के पंजीकरण प्रमाण पत्र को विपक्षी के पक्ष में अंतरण करने संबंधित सभी औपचारिकताऍं पूर्ण करे।
जिला फोरम के निर्णय से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षी प्रबन्धक, श्रीराम जनरल इं0कं0लि0 ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता विद्धान अधिवक्ता श्री दिनेश कुमार तथा प्रत्यर्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री ओ0 पी0 दुवैल उपस्थित आए हैं।
मैंने उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय व आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम, बुलन्दशहर के समक्ष प्रत्यर्थी/विपक्षीगण के विरूद्ध इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसका ट्रक संख्या-यू0पी0-13-टी-2051 अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी से दिनांक 31-03-2012 से 24-02-2013 तक की अवधि के लिए बीमाकृत था और बीमा अवधि में ही दिनांक 28-07-2012 को उसका यह ट्रक चोरी हो गया।
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उसने चोरी की रिपोर्ट दर्ज करायी और पुलिस ने ट्रक की तलाश की परन्तु ट्रक नहीं मिला। तब प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के समक्ष क्लेम संख्या-10000/31-113/सी/026285 दर्ज कराया। उसके बाद अपीलार्थी/विपक्षी के जॉंचकर्ता ने प्रत्यर्थी/परिवादी से कुछ कोरे कागजात पर हस्ताक्षर करा लिये और सर्वेयर द्वारा उन कागजातों को अधूरी बात लिखकर प्रस्तुत किया, जिसके आधार पर अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा दिनांक 24-01-2013 को निरस्त कर दिया है। प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा निरस्त करने का जो आधार बताया गया है वह गलत है। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी ने जिला फोरम के समक्ष परिवाद प्रस्तुत कर बीमित धनराशि ब्याज सहित दिलाये जाने की मांग की है और क्षतिपूर्ति भी मांगा है।
जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत कर कहा गया है कि ट्रक चोरी की घटना दिनांक 28-07-2012 की बतायी गयी है और वाहन चोरी की रिपोर्ट 30-07-2012 को दर्ज करायी गयी है जबकि घटना स्थल से थाने की दूरी मात्र 1.5 किलोमीटर है। लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपना क्लेम फार्म दिनांक 06-08-2012 को अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के कार्यालय में प्रस्तुत किया है जिसमें उसके द्वारा घटना का समय रात 12.00 बजे के करीब बताया गया है जो प्रथम सूचना रिपोर्ट में दिये गये समय से मेल नहीं खाता है। लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी ने कहा है कि पालिसी की शर्तों के अनुसार वाहन चोरी होने के संबंध में अविलम्ब सूचना दिये जाने का प्राविधान है।
लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से यह भी कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के कार्यालय में शपथ पत्र इस आशय का प्रस्तुत किया था कि अनिल जौहरी से ट्रक क्रय करते समय उसको एक चाबी दी गयी थी जो लगभग एक महीने पहले कानपुर से आते समय ट्रक से निकल गयी थी और उसके बाद से ट्रक पेचकस से स्टार्ट होता था।
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लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से यह भी कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद में यह नहीं कहा है कि पुलिस ने वाद विवेचना अंतिम रिपोर्ट दाखिल किया है। लिखित कथन में कहा गया है कि अपीलार्थी बीमा कम्पनी की सेवा में कोई कमी नहीं है।
जिला फोरम ने उभयपक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त यह माना है कि प्रत्यर्थी/परिवादी का वाहन चोरी होना साबित है और वाहन का बीमा होना भी साबित है, अत: बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादी को क्लेम न देकर सेवा में कमी की है। अत: जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुए उपरोक्त प्रकार से आदेश पारित किया है।
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश तथ्य और विधि के विरूद्ध है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने पुलिस और बीमा कम्पनी को विलम्ब से सूचना दिया है जो बीमा पालिसी की शर्त का उल्लंघन है। इसके साथ ही प्रत्यर्थी/परिवादी ने बीमा कम्पनी के समक्ष प्रस्तुत शपथ पत्र में चोरी की घटना का समय 12.00 बजे रात बताया है जबकि प्रथम सूचना रिपोर्ट में चोरी की घटना का समय 11.30 बजे बताया गया है अत: परिवादी द्वारा कथित चोरी की घटना संदिग्ध है।
अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि अपीलार्थी बीमा कम्पनी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा अस्वीकार किये जाने हेतु उचित आधार है। अत: अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा अस्वीकार कर सेवा में कोई कमी नहीं की है।
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि ट्रक चोरी स्वयं प्रत्यर्थी/परिवादी की लापरवाही के कारण घटित हुई है और उसने ट्रक की सुरक्षा हेतु पर्याप्त उपाय नहीं किये हैं जो बीमा पालिसी की शर्त का उल्लंघन है।
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प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने चोरी की घटना की सूचना बिना किसी विलम्ब के पुलिस थाने में दर्ज करायी है और बीमा कम्पनी को भी सूचना दिया है।
प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा ट्रक चोरी की कथित घटना वास्तविक है। पुलिस ने विवेचना के पश्चात चोरी की घटना को फर्जी नहीं पाया है। अत: बीमा कम्पनी ने बीमा दावा अस्वीकार करने का जो आधार बताया है वह उचित नहीं है। जिला फोरम का निर्णय उचित है। अपील बलरहित है और निरस्त किये जाने योग्य है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता ने मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा United India Insurance Co. Ltd. Vs. Zxotic India and Anr. में पारित निर्णय जो 2019(2)CPR-877(NC) में प्रकाशत है संदर्भित किया है जिसमें मा0 राष्ट्रीय आयोग ने यह माना है कि बीमा कम्पनी रिप्यूडिएशन लेटर में लिये गये आधार से भिन्न नया आधार परिवाद के विरोध हेतु लिखित कथन में नहीं उठा सकती है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता ने मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा United India Insurance Company Vs. Yash Site Development Pvt. Ltd. में पारित निर्णय जो 2019 (2) CPR-858 (NC) में प्रकाशित है भी संदर्भित किया है जिसमें मा0 राष्ट्रीय आयोग ने आई.आर.डी.ए. के सर्कुलर पर विचार करते हुए यह माना है कि वास्तविक क्लेम को मात्र विलम्ब के आधार पर अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।
मैंने उभयपक्ष के तर्क पर विचार किया है।
अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा पत्र दिनांक 15-01-2013 के द्वारा रिप्यूडिएट किया है। इस पत्र में बीमा दावा रिप्यूडिएट करने का कारण निम्न प्रकार से उल्लिखित है:-
“This with reference to the theft claim of above said vehicle lodged by you on 30/07/2012. We have apointed an investigator to investigate into the whole mishap/incident.
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During the investigation process our investigator found that you did not had any ignition/started key to drive the vehicle as your key was misplaced about 1 year ago and you had not arrange to change the ignition lock.
Further, it was found that you and your driver Mr. Akram S/o Gauri used to drive/start the vehicle with the help of a screw driver, from here it is concluded that your ignition lock was not in the proper working condition and could be unlocked by any dey or any other means, also you have not provided cabin door lock key it seems that cabin door lock dey was also lost/misplaced.
It is totally your carelessness/negligence that you have not changed the ignition lock and cabin door lock to prevent your vehicle from this kind of incidence and able the culprits to carry your vehicle withour any problem. Now, it has been concluded that this your gross negligence of and also the breach of policy conditions.
Hence in view of the above your claim file is repudiated and closed as “No Claim.”
रिप्यूडिएशन लेटर में बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा रिप्यूडिएट करने का आधार विलम्ब से सूचना देना अंकित नहीं किया है अत: परिवाद में अपीलार्थी बीमा कम्पनी प्रत्यर्थी/परिवादी के बीमा दावा का विरोध विलम्ब से सूचना देने के आधार पर नहीं कर सकती है। प्रथम सूचना रिपोर्ट अपील के पृष्ठ-29 पर संलग्न है, जिसके अनुसार घटना दिनांक 28-07-2012 को 11.30 पी0एम0 की है और रिपोर्ट दिनांक 30-07-2012 को 21.30 बजे दर्ज करायी गयी है। प्रथम सूचना रिपोर्ट में प्रत्यर्थी/परिवादी ने लिखा है कि चालक ने वाहन काफी तलाश किया, परन्तु वाहन नहीं मिला और न कोई पता चला। तब चालक ने दिनांक
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28-07-2012 को रात 11.30 बजे सूचना कोतवाली देहात में दी। उसके बाद दिनांक 30-07-2012 को लिखित सूचना प्रस्तुत किया है, तब प्रथम सूचना रिपोर्ट थाने में दर्ज की गयी है और उसके आधार पर धारा-379 आईपीसी का अपराध थाना बुलन्दशहर देहात में अपराध किया गया है। अत: यह कहना उचित नहीं है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने घटना की सूचना पुलिस में विलम्ब से दिया है।
ट्रक चोरी होने के बाद पहले उसे तलाशना और फिर पुलिस को सूचना देना स्वाभाविक है। आई.आर.डी.ए. के सर्कुलर दिनांक 20-09-2011 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वास्तविक क्लेम को मात्र सूचना में विलम्ब के आधार पर अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।
मा0 सर्वोच्च न्यायालय ने Om Prakash Vs. Reliance General Insurance and another Civil Appeal No. 15611 of 2017 के निर्णय में भी यह माना है कि वाहन चोरी होने पर पहले उसे तलाश किया जाना स्वाभाविक है। इसके साथ ही मा0 राष्ट्रीय आयोग ने यह भी माना है कि वास्तविक क्लेम को मात्र विलम्ब के आधार पर ऐसी स्थिति में निरस्त नहीं किया जा सकता है जब विलम्ब से सूचना देने का पर्याप्त कारण है।
मा0 राष्ट्रीय आयोग ने भी यूनाइटेड इण्डिया इंश्योरेंस कम्पनी लि0 व एक अन्य बनाम राहुल कादियान (1) सी.पी.आर. 772 (एन.सी) के निर्णय में यह माना है कि यदि पुलिस को समय से सूचना दी गयी है तो मात्र बीमा कम्पनी को विलम्ब से सूचना देने के आधार पर आई.आर.डी.ए. के उपरोक्त सर्कुलर दिनांक 20-09-2011 के अनुसार वास्तविक बीमा दावा बीमा कम्पनी द्वारा अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।
प्रथम सूचना रिपोर्ट में चोरी की घटना का समय दिनांक 28-07-2012 को 11.30 बजे अंकित किया गया है और लिखित कथन के अनुसार बीमा कम्पनी के समक्ष प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से प्रस्तुत शपथ पत्र में घटना का समय 12.00 बजे रात बताया जाना कहा गया है। 11.30
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बजे अथवा 12.00 बजे में कोई अंतर नहीं है। प्रथम सूचना रिपोर्ट एवं कथित रूप से बीमा कम्पनी को दिये गये शपथ पत्र में घटना का अनुमानित समय बताया गया है। अत: प्रथम सूचना रिपोर्ट में घटना का समय 11.30 बजे अंकित होने और बीमा कम्पनी को दिये गये शपथ पत्र में घटना का समय 12.00 बजे रात बताये जाने के आधार पर चोरी की घटना को संदिग्ध नहीं कहा जा सकता है।
जिला फोरम के समक्ष प्रत्यर्थी/परिवादी ने अंतिम रिपोर्ट की प्रति प्रस्तुत की है। पुलिस ने वाद विवेचना कथित चोरी की घटना को फर्जी नहीं बताया है।
अत: उपरोक्त विवेचना एवं सम्पूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए मैं इस मत का हूँ कि विलम्ब से सूचना देने के आधार पर प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा निरस्त नहीं किया जा सकता है और न ही बीमा कम्पनी ने इस आधार पर प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा अस्वीकार किया है।
प्रथम सूचना रिपोर्ट में प्रत्यर्थी/परिवादी ने कहा है कि चोरी की घटना के पूर्व उसके चालक अकरम ने होटल पर ट्रक रोका और वाहन खड़ा कर शौच के लिए चला गया परन्तु जब वापस आया तो ट्रक वहॉं पर नहीं पाया। अत: प्रथम सूचना रिपोर्ट में किये गये कथन से यह स्पष्ट होता है कि चालक ट्रक अनअटेंडेंट छोड़कर शौच के लिए ऐसे स्थान पर गया था जहॉं से ट्रक दिखाई नहीं देता था।
प्रत्यर्थी/परिवादी ने बीमा कम्पनी के समक्ष जो शपथ पत्र प्रस्तुत किया है उसमें उसने कहा है कि अनिल जौहरी से ट्रक खरीदते समय एक चाबी मिली थी जो लगभग एक महीने पहले कानपुर से आते समय ट्रक से निकल गयी थी जिसके बाद से ट्रक पेचकस से स्टार्ट होता था। अत: यह स्पष्ट होता है कि ट्रक पेचकस से स्टार्ट होता था फिर भी चालक ट्रक खड़ा कर ऐसे स्थान पर शौच करने गया जहॉं से ट्रक दिखायी नहीं देता था। ऐसी स्थिति में यह मानने हेतु उचित और युक्तिसंगत
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आधार है कि वाहन चालक ने ट्रक की सुरक्षा हेतु पर्याप्त उपाय नहीं किये है जिससे ट्रक चोरी गया है। परन्तु इस आधार पर बीमा कम्पनी प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा पूर्ण रूप में निरस्त नहीं कर सकती है।
प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा ट्रक की सुरक्षा में कथित लापरवाही बीमा कम्पनी की फण्डामेंटल ब्रीच नहीं कहा जा सकता है। ऐसी स्थिति में मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा द्वारा अमलेन्दु साहू बनाम ओरियण्टल इश्योरेंस कम्पनी लि0 II(2010)C.P.J. 9 S.C के निर्णय में प्रतिपादित सिद्धांत को दृष्टिगत रखते हुए परिवादी का बीमा दावा नान स्टैण्डर्ड बेसिस पर तय किया जाना उचित प्रतीत होता है। अत: जिला फोरम ने सम्पूर्ण बीमित धनराशि रू0 5,00,000/- देने हेतु जो आदेशित किया है वह उचित नहीं है। बीमित धनराशि से 25 प्रतिशत की कटौती कर प्रत्यर्थी/परिवादी को रू0 3,75,000/-रू0 वाहन की क्षतिपूर्ति हेतु दिलाया जाना उचित है।
जिला फोरम ने जो 06 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज दिया है वह उचित है।
जिला फोरम ने जो 1,000/-रू0 वाद व्यय दिया है वह भी उचित है। अधिक नहीं कहा जा सकता है।
उपरोक्त विवेचना और निष्कर्ष के आधार पर अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है और जिला फोरम के निर्णय को आंशिक रूप से संशोधित करते हुए अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी को आदेशित किया जाता है कि वह प्रत्यर्थी/परिवादी को ट्रक की क्षतिपूर्ति हेतु रू0 3,75,000/- 06 प्रतिशत वार्षिक की दर से परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक ब्याज के साथ अदा करें। इसके साथ ही अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी प्रत्यर्थी/परिवादी को जिला फोरम द्वारा आदेशित 1,000/-रू0 वाद व्यय भी अदा करे।
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जिला फोरम के निर्णय के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी चोरी गये वाहन का पंजीकरण प्रमाण पत्र अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के पक्ष में अन्तरित करने की औपचारिकताऍं पूरी करेगा।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि रू0 25,000/- अर्जित ब्याज के साथ जिला फोरम को इस निर्णय के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जायेगी।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
कोर्ट नं0-1 प्रदीप मिश्रा, आशु0