(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-2756/2007
(जिला आयोग, संत रविदास नगर (भदोही) द्वारा परिवाद संख्या-157/2001 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 11.10.2007 के विरूद्ध)
उ0प्र0 राज्य सड़क परिवहन निगम, क्षेत्रीय प्रबन्धक, कैन्ट, वाराणसी।
अपीलार्थी/विपक्षी सं0-2
बनाम
1. कृष्णावतार त्रिपाठी 'राही' एडवोकेट पुत्र स्व0 प्रभूनाथ त्रिपाठी, निवासी कुवरगंज, ज्ञानपुर टाउन पोस्ट ज्ञानपुर जिला संत रविदास नगर, (भदोही)।
2. परिचालक, उ0प्र0 राज्य सड़क परिवहन निगम, अनुबन्धित बस संख्या यू.पी. 65 एच. 9032 कैन्ट डिपो, वाराणसी।
प्रत्यर्थीगण/परिवादी/विपक्षी सं0-1
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री जी.एस. चौहान की सहायक
श्रीमती मंजू देवी।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 09.07.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-157/2001, कृष्णावतार त्रिपाठी 'राही' एडवोकेट बनाम परिचालक उ0प्र0 राज्य सड़क परिवहन निगम तथा एक अन्य में विद्वान जिला आयोग, संत रविदास नगर (भदोही) द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 11.10.2007 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील पर अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता की सहायक अधिवक्ता को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया। प्रत्यर्थीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
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2. विद्वान जिला आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए अंकन 15,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति का आदेश विपक्षीगण के विरूद्ध पारित किया है।
3. परिवाद के तथ्यों के अनुसार दिनांक 26.7.2000 को अनुबन्धित बस संख्या यू.पी. 65 एच. 9032 से इलाहाबाद से गोपी गंज के लिए परिवादी रवाना हुए। चालक एवं परिचालक गोपी गंज पहुँचने से पहले चकपरौना जी.टी. रोड पर स्थित राजपूत ढाबे पर बिना अधिकृत स्टॉपेज के बस रोक दी और ढाबे में चले गए। परिवादी तथा उसके पुत्र द्वारा आपत्ति करने पर परिचालक द्वारा अपशब्द का प्रयोग किया गया, जो नशे की हालत में भी था। बस को रात 11.00 बजे पहुँचना था, लेकिन बस को 12.30 बजे रात्रि में गोपी गंज पहुँचाया। गोपी गंज पर पहुँचने पर रात्रि में उसे कोई सवारी नहीं मिली, उसे पैदल बरसात में भीगते हुए 6 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ा, जिसके कारण परिवादी 6 दिन तक अस्वस्थ रहा और वकालत का कार्य नहीं कर सका।
4. लिखित कथन में यह कहा गया कि अनुबन्धित बस के स्वामी को पक्षकार नहीं बनाया गया है। अत: दावा निरस्त होने योग्य है और सभी उत्तरदायित्व वाहन स्वामी पर डाल दिए गए। यह भी कहा गया कि महिला यात्री की तबियत खराब होने के कारण ढाबे पर बस रोकी गई थी।
5. पक्षकारों की साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात विद्वान जिला आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि बस को अवैध रूप से एक ढाबे पर रोका गया, जिसके कारण गन्तव्य स्थान पर पहुँचने में देरी कारित हुई और परिवादी को मानसिक, आर्थिक एवं शारीरिक प्रताड़ना कारित हुई, इसलिए अंकन 15,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति का आदेश विपक्षीगण के विरूद्ध पारित किया गया।
6. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि बस मालिक को पक्षकार नहीं बनाया गया है तथा सहायक की तबियत खराब होने पर बस रोकना पड़ा। अपीलार्थी विभाग के स्तर से कोई त्रुटि कारित नहीं हुई है।
7. प्रस्तुत किए गए अभिवचनों तथा अपील के ज्ञापन के अवलोकन से ही यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि अनुबन्धित बस पर पूर्ण नियंत्रण यूपीएसआरटीसी का है। परिचालक यूपीएसआरटीसी द्वारा नियुक्त है, उसी के आधीन कार्य करता है, इसलिए संचालन के दौरान चालक या परिचालक द्वारा जो भी गतिविध सम्पादित की गई है, वह सब यूपीएसआरटीसी के नियंत्रण में की गई है, इसलिए अपने सेवकों के अपकृत के लिए यूपीएसआरटीसी उत्तरदायी है। वाहन मालिक को पक्षकार बनाना कदाचित आवश्यक नहीं है। बस को गन्तव्य स्थान पर पहुँचाने में देरी होना स्वीकार है। परिवादी ने सशपथ साबित किया है कि बस को चालक और परिचालक द्वारा ढाबे पर रोका गया था, उन्हें वहां पर खाना खाना था और कोई भी सवारी बीमार नहीं हुई। विपक्षीगण की ओर से सवारी के बीमार होने की कहानी फर्जी तैयार की गई है। किसी सवारी के बीमार होने पर बस को ढाबे पर नहीं, अपितु डिसपेंसरी या हॉस्पिटल पर रोका जाता है, यह तर्क सर्वविदित है कि यूपीएसआरटीसी के चालक एवं परिचालक बस को अवैध रूप से ढाबे पर रोकते हैं, जहां पर उन्हें खाने की नि:शुल्क सुविधा प्राप्त होती है और इस कारण बस में सवार यात्रियों को मानसिक एवं शारीरिक पीड़ा कारित होती है, इस तथ्य का न्यायिक संज्ञान भी इस पीठ द्वारा लिया जा रहा है, इसलिए विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश में परिवर्तन का कोई आधार नहीं है। तदनुसार प्रस्तुत अपील निरस्त होने योग्य है।
आदेश
8. प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2