राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-१२५२/२००४
(जिला फोरम (प्रथम), आगरा द्वारा परिवाद सं0-६६७/१९९६ में पारित निर्णय/आदेश दिनांक २१-०५-२००४ के विरूद्ध)
१. यूनियन आफ इण्डिया द्वारा पोस्ट मास्टर जनरल, आगरा रीजन, आगरा।
२. ई.डी. ब्रान्च, पोस्ट मास्टर, बरौली अहीर, आगरा।
..................... अपीलार्थीगण/विपक्षीगण।
बनाम्
कृष्ण कुमार पुत्र श्री फाल सिंह निवासी ग्राम व पोस्ट बरौली अहीर, आगरा।
...................... प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
१- मा0 आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्य।
२- मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित :- डॉ0 उदयवीर सिंह विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से उपस्थित :- कोई नहीं।
दिनांक : २१-०५-२०१५
मा0 श्री आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, जिला फोरम(प्रथम), आगरा द्वारा परिवाद सं0-६६७/१९९६ में पारित निर्णय/आदेश दिनांक २१-०५-२००४ के विरूद्ध योजित की गयी है। दिनांक १६-०४-२०१५ को अपील सुनवाई हेतु ली गयी। अपीलार्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता डॉ0 उदयवीर सिंह उपस्थित आये थे, परन्तु प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं आया। पत्रावली के परिशीलन से यह तथ्य प्रकाश में आता है कि यह अपील पिछले १० वर्ष से भी अधिक समय से निस्तारण हेतु सूचीबद्ध होती चली आ रही है, अत: उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ (अधिनियम ६८) की धारा-३० की उपधारा (२) के अन्तर्गत निर्मित उत्तर प्रदेश उपभोक्ता संरक्षण नियमावली १९८७ के नियम ८ के उप नियम (६) में दिये गये प्राविधान को दृष्टिगत रखते हुए पीठ द्वारा यह समीचीन पाया गया कि पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य/अभिलेख के आधार पर इस अपील में न्यायोचित आदेश पारित किया
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जाय। अत: अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को एकल रूप से सुना गया एवं पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेख/साक्ष्य का गहनता से परिशीलन किया गया।
संक्षेप में परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी कृष्ण कुमार का कहना है कि उसने भगवती देवी जैन गर्ल्स महाविद्यालय आगरा में सहायक लेखाकार के रिक्त पद के लिए आवेदन किया था। साक्षात्कार हेतु दिनांक १०-१०-१९९६ को ११.०० बजे विद्यालय से रजिस्टर्ड डाक से दिनांक २७-०९-१९९६ को पत्र भेजकर परिवादी को बुलाया गया था। परिवादी को साक्षात्कार बुलावे का पत्र दिनांक १०-१०-१९९६ को सायं ४.०० बजे मिला जिससे परिवादी चयन बोर्ड के सामने उपस्थित होने से वंचित ही नहीं रह गया बल्कि विपक्षीगण की लापरवाही के कारण परिवादी नौकरी पाने से भी वंचित रह गया। अपीलार्थी डाक विभाग के इसी कृत्य को सेवा में कमी मानते हुए प्रत्यर्थी/परिवादी कृष्ण कुमार ने अधीनस्थ फोरम में परिवाद सं0-६६७/१९९६ संस्थित किया। उभय पक्ष को सुनने एवं उपलब्ध अभिलेख/साक्ष्यों के आधार पर विस्तार से विश्लेषण करने के उपरान्त दिनांक २१-०५-२००४ को परिवाद को स्वीकार करते हुए अधीनस्थ फोरम द्वारा विपक्षीगण को निर्देशित किया गया कि वे आदेश पारित होने के ४५ दिन के अन्दर परिवादी को मानसिक वेदना व त्रुटिपूर्ण सेवा के लिए ५,०००/- रू० क्षतिपूर्ति स्वरूप अदा करें। यह भी आदेश दिया गया कि निर्धारित अवधि में आदेश का पालन न करने पर आदेश की तिथि से भुगतान होने तक क्षतिपूर्ति की धनराशि पर ६ प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज देय होगा। इसी आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी डाक विभाग द्वारा निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि उपलब्ध कराने की तिथि से समय सीमा के भीतर प्रस्तुत अपील दाखिल की गयी है।
प्रत्यर्थी/परिवादी को वर्ष २००४ से एकाधिक नोटिस भेजे गये तथा प्रत्यर्थी को इस आयोग के निबन्धक द्वारा भी पृथक से भी नोटिस भेजी गयी परन्तु फिर भी उसकी ओर कोई आपत्ति योजित नहीं की गयी। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का कहना है कि अधीनस्थ फोरम द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथ्यों एवं विधिक सिद्धान्तों के विपरीत होने के कारण अपास्त होने योग्य है और यदि इसे अपास्त नहीं
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किया जाता है तो अपीलार्थी डाक विभाग को अपूर्णनीय क्षति होगी। उनका यह भी कहना है कि अधीनस्थ फोरम द्वारा भारतीय डाक अधिनियम १८९८ (अधिनियम सं० ६ सन् १८९८) की धारा-६ में दिये गये प्राविधान का ध्यानपूर्वक अध्ययन किये बिना ही प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश पारित किया गया है क्योंकि यह प्रकरण पंजीकृत डाक से पत्र प्रेषण से सम्बन्धित है, अत: इस मामले में उपरोक्त अधिनियम की धारा-६ में दिया गया प्राविधान लागू होगा। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने अपने कथन के समर्थन में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा यूनियन आफ इण्डिया व अन्य बनाम एम0एल0 बोरा २०११(२) सीपीसी १७९ एवं पोस्ट मास्टर इम्फाल बनाम जामिनी देवी सगोलबन्द (२०००) एनसीजे १४२ तथा सुपरिण्टेण्डेण्ट आफ पोस्ट आफिसेज व अन्य बनाम उपभोक्ता सुरक्षा परिषद III(1996) CPJ 105 (NC) में दिये गये विधिक सिद्धान्त की ओर पीठ का ध्यान आकृष्ट कराया जिनमें यह विधि व्यवस्था दी गयी है कि इस प्रकार के परिवाद भारतीय डाक अधिनियम १८९८ की धारा-६ की बाधित हैं। अत: इस मामले में धारा-६ भारतीय डाक अधिनियम १८९८ में दिये गये प्राविधान लागू होते हैं। उल्लेखनीय है कि भारतीय डाक अधिनियम १८९८ (अधिनियम सं० ६ सन् १८९८) की धारा-६ में निम्नवत् प्राविधान है कि -
Section 6 of the Indian Post Office Act. 1898 reads as under :
“6. Exemption from liability for loss, misdelivery, delay or damage - The Government shall not incur any liability by reason of the loss, misdelivery or delay of, or damage to, any postal article in course of transmission by post, except insofar as such liability may in express terms be undertaken by the Central Government as hereinafter provided and no officer of the Post Office shall incur any liability by reason of any such loss, misdelivery, delay or damage, unless he has caused the same fraudulently or by his willful act or default.”
उपरोक्त प्राविधान तथा मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा टीकाराम बनाम इण्डियन पोस्टल डिपार्टमेण्ट IV (2007) CPJ 123 (NC) के अतिरिक्त माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा यूनियन आफ इण्डिया व अन्य बनाम एम0एल0 बोरा २०११(२) सीपीसी १७९ एवं (२०००) एनसीजे १४२ पोस्ट मास्टर इम्फाल बनाम जामिनी देवी सगोलबन्द तथा
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सुपरिण्टेण्डेण्ट आफ पोस्ट आफिसेज व अन्य बनाम उपभोक्ता सुरक्षा परिषद III(1996) CPJ 105 (NC) में दिये गये विधिक सिद्धान्त को दृष्टिगत रखते हुए हमारे विचार से अधीनस्थ फोरम द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश विधि अनुरूप नहीं है। अधीनस्थ फोरम द्वारा तथ्यों एवं विधि के विरूद्ध आदेश पारित किया गया है जो किसी भी दृष्टिकोण से पोषणीय नहीं है। वर्णित परिस्थिति में अधीनस्थ फोरम द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथ्य एवं विधि के विपरीत होने के कारण अपास्त होने तथा अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। जिला फोरम (प्रथम), आगरा द्वारा परिवाद सं0-६६७/१९९६ में पारित निर्णय/आदेश दिनांक २१-०५-२००४ अपास्त किया जाता है। पक्षकार अपीलीय व्यय-भार अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे। उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(आलोक कुमार बोस)
पीठासीन सदस्य
(संजय कुमार)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-४.