Uttar Pradesh

StateCommission

A/2000/1902

Union Of India - Complainant(s)

Versus

KripaKar Singh - Opp.Party(s)

U K Bajpai

07 Dec 2001

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2000/1902
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District )
 
1. Union Of India
a
 
BEFORE: 
 HON'ABLE MR. Ashok Kumar Chaudhary PRESIDING MEMBER
 HON'ABLE MRS. Smt Balkumari MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
ORDER

राज् उपभोक्ता  विवाद प्रतितोष आयोग, 0 प्र0 लखनऊ।

                                सुरक्षित

          अपील संख्‍या-1902/2000    

 

1-यूनियन आफ इण्डिया द्वारा जनरल मैंनेजर, नार्दन रेलवे, बड़ौदा हाउस, नई दिल्‍ली।

2-डिवीजनल रेलवे मैंनेजर, नार्दन रेलवे हजरत गंज लखनऊ।

                                       अपीलार्थीगण/विपक्षीगण

                                  बनाम

कृपाकर सिंह पुत्र श्री दिवाकर प्रसाद सिंह निवासी निव सहकारी कालोनी, उमरपुर, हरिहरनपुर जिला जौनपुर।

                                           प्रत्‍यर्थी/परिवादी                                                 

समक्ष:-

1-मा0 श्री अशोक कुमार चौधरी पीठासीन सदस्‍य।

2-मा0 श्रीमती बाल कुमारी सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित। विद्वान अधिवक्‍ता श्री यू0 के0 वाजपेयी।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित।           कोई नहीं।

दिनांक 31-12-2014                        

    मा0 श्री अशोक कुमार चौधरी पीठासीन न्‍यायिक सदस्‍य द्वारा उदघोषित

   निर्णय

           प्रस्‍तुत अपील परिवाद संख्‍या-256/1996 कृपाकर सिंह बनाम डी0 आर0 एम0 नार्दन रेलवे एवं अन्‍य में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 16-05-2000 में निम्‍न आदेश पारित है।

     परिवादी द्वारा संस्थित परिवाद मु0 7649/-रू0 की धनराशि के निमित्‍त विपक्षीगण सं0 1 व 2 के विरूद्ध आज्ञप्‍त किया जाता है। उपर्युक्‍त धनराशि पर निर्णय होने की तिथि से भुगतान की तिथि तक 12 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज भी देय होगा। उपर्युक्‍त धनराशि के अतिरिक्‍त परिवादी को मु0 500/- की धनराशि वाद व्‍यय के रूप में भी देय होगी। उपर्युक्‍त धनराशि का भुगतान निर्णय होने की तिथि से दो माह की अवधि के अन्‍तर्गत विपक्षी सं0-1 मण्‍डल रेलवे प्रबन्‍धक उत्‍तर रेलवे लखनऊ को परिवादी कृपाकर सिंह के हित में एकाउन्‍टपेयी चेक के माध्‍यम करने हेतु आदेशित किया जाता है।  

     उपरोक्‍त वर्णित आदेश से क्षुब्‍ध होकर अपीलार्थी द्वारा यह अपील प्रस्‍तुत की गयी है।

     संक्षेप में प्रकरण के तथ्‍य इस प्रकार हैं कि परिवादी/प्रत्‍यर्थी कृपाकर सिंह जौनपुर जंक्‍शन में वरिष्‍ठ वाणिज्यिक लिपिक के पद पर कार्यरत था

2

जो कि दिनांक 30-06-93 को सेवानिवृत्‍त हुए। दिनांक 01-03-93 से दिनांक 31-05-96 तक उसके अवशेष पेंशन मु0 1,338/-रू0 एवं कुल मिलाकर 8,417/-रू0 की धनराशि का भुगतान विपक्षीगण द्वारा नहीं किया गया उपर्युक्‍त धनराशि को प्राप्‍त करने हेतु उसने उन्‍हें पंजीकृत नोटिस के माध्‍यम से दिनांक 15-10-94, तथा दिनांक 29-12-95 को सूचित किया और उनसे व्‍यक्तिगत रूप से सम्‍पर्क स्‍थापित किया लेकिन उन्‍होंने उस धनराशि का भुगतान नहीं किया और न तो संतोषजनक उत्‍तर ही दिया। परिणाम स्‍वरूप उसने उपर्युक्‍त धनराशि के भुगतान तथा क्षतिपूर्ति दिलाने जाने हेतु विपक्षीगण के विरूद्ध वाद संस्थित किया है।

     अपीलार्थीगण/विपक्षीगण की ओर से दिनांक 05-02-97 को लिखित प्रतिकथन दाखिल किया गया। उन्‍होंने यह तर्क प्रस्‍तुत किया है कि परिवादी केन्‍द्र सरकार के अधीन रेलवे विभाग में कर्मचारी के रूप में कार्यरत रहा। इसलिए उसके देयकों के भुगतान का विवाद एडमिनिस्‍ट्रेटिव ट्रिव्‍यूनल एक्‍ट के अनुसार किया जायेगा। परिवादी उपभोक्‍ता की परिभाषा के अन्‍तर्गत नहीं आता, इसलिए परिवादी का परिवाद संधारणीय नहीं है। उन्‍होंने परिवाद को धारा 28 व 33 एडमिनिस्‍ट्रेटिव एक्‍ट 1985 से पोषित होना बताया है।

     अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता के तर्कों को सुना गया, प्रत्‍यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। चूंकि प्रस्‍तुत प्रकरण परिवादी/प्रत्‍यर्थी की सेवा में दी जाने वाली पेंशन के अवशेष भुगतान से सम्‍बन्धित हैं जिसको सुनने का क्षेत्राधिकार उपभोक्‍ता न्‍यायालय को नहीं है क्‍योंकि परिवादी/प्रत्‍यर्थी उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2(1) (डी0) के अन्‍तर्गत उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आता है और न ही उपरोक्‍त अधिनियम की धारा-2(1) (ओ) के अन्‍तर्गत उसका प्रकरण सेवा की परिधि में आता है। अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्‍ता का यह भी तर्क है कि इस प्रकार के प्रकरण एडमिनिस्‍ट्रेटिव ट्रिव्‍यूनल एक्‍ट की धारा-1985 की धारा 28, 33 के अन्‍तर्गत बाधित है और किसी अन्‍य न्‍यायालय द्वारा नहीं सुने जा सकते।

     जैसा कि श्रीमती मनोरमा तिवारी बनाम राजस्‍थान सरकार, 2(1992) सी0पी0जे0 500: 1991 (2) सी0पी0आर0 118:1991 सी0पी0सी0 497 (राष्‍ट्रीय आयोग दिल्‍ली) में यह अवधारित किया गया है कि नियोजक विषयक मामले अर्थात सेवा संबंधी मामले जैसे वेतन, भत्‍ता आदि उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम की परिधि के बाहर हैं। इसके अतिरिक्‍त जनरल मैंनेजर प्‍लांटेशन कार्पोरेशन आफ केरल बनाम के0के0 राजन II(2003) सी0पी0जे0 618(केरल) में यह अवधारित किया गया है कि सरकारी कर्मचारी के सेवा सम्‍बन्‍धी लाभ चाहे उसकी सेवा के दौरान के हों अथवा सेवानिवृत्ति  के बाद

 

3

के हों, वे सभी मामले उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत नहीं आते हैं। साथ ही साथ यह भी उल्‍लेखनीय है कि सेवा निवृत्‍त सरकारी कर्मचारी के पेंशन विषयक प्रकरण उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत पोषणीय नहीं है। सेवा निवृत्‍त कर्मचारी, उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत परिभाषित, उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आता क्‍योंकि उसने प्रतिफल के बदले में कोई सेवा विपक्षी से भाड़े पर नहीं ली है। जैसा कि मा0 राष्‍ट्रीय आयोग नई दिल्‍ली द्वारा कृष्‍ण कुमार गुप्‍ता बनाम जी0 एम0, बैंक आफ इण्डिया व अन्‍य, 1(2003) सी0पी0जे0 152: 2003 (1) सी0पी0आर0 256 में अवधारित किया जा चुका है।

     प्रश्‍नगत परिवाद में परिवादी/प्रत्‍यर्थी द्वारा अपनी सेवानिवृत्‍त होने के पश्‍चात अवशेष पेंशन के भुगतान से संबंधित है जो कि उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्‍तर्गत उपभोक्‍ता न्‍यायालय में पोषणीय नहीं है अत: उपरोक्‍त विधिक व्‍यवस्‍था को दृष्टिगत रखते हुए परिवादी उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आता और ऐसी परिस्थिति में उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम की धारा 1986 के अन्‍तर्गत परिवाद पोषणीय नहीं है एवं प्रश्‍नगत निर्णय निरस्‍त किये जाने योग्‍य है तथा अपील स्‍वीकार किये जाने योग्‍य है।     

                     आदेश

      अपील स्‍वीकार की जाती है विद्वान जिला मंच द्वारा परिवाद संख्‍या-256/1996 कृपाकर सिंह बनाम डी0 आर0 एम0 नार्दन रेलवे एवं अन्‍य में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 16-05-2000 निरस्‍त किया जाता है। परिवादी/प्रत्‍यर्थी यदि चाहे तो अपना परिवाद एडमिनिस्‍ट्रेटिव ट्रिव्‍यूनल के समक्ष प्रस्‍तुत कर सकता है यदि परिवादी/प्रत्‍यर्थी अपने परिवाद को सक्षम न्‍यायालय के समक्ष प्रस्‍तुत करता है तो ऐसी दशा में उसका परिवाद/प्रतिवेदन काल बाधित नहीं माना जाएगा।   

वाद व्‍यय पक्षकार अपना-अपना स्‍वयं वहन करेंगे।

     इस निर्णय/आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपि उभय पक्ष को नियमानुसार उपलब्‍ध करा दी जाये।  

 

 

 (अशोक कुमार चौधरी)                                 (बाल कुमारी)

 पीठासीन सदस्‍य                                             सदस्‍य

 मनीराम आशु0-2

 कोर्ट- 3  

 
 
[HON'ABLE MR. Ashok Kumar Chaudhary]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'ABLE MRS. Smt Balkumari]
MEMBER

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