राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1162सन् 2001
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता फोरम, बस्ती द्वारा परिवाद संख्या- 473/1998 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 19-02-2001 के विरूद्ध)
1-यूनियन आफ इंडिया द्वरा सेक्रेटरी, मिनिस्टरी आफ कम्न्यूकिएशन न्यू दिल्ली।
2-सुप्रिन्टेंडेन्ट आफ पोस्ट आफिस, बस्ती डिवीजन, जिला- बस्ती।
.अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
1-कृपा सिंधू त्रिपाठी, पुत्र श्री बृज मोहन त्रिपाठी निवासी- कुचेना टप्पा- पुरैना परगना- अमोढ़ा, पो0ओ0- भदावल, तहसील- हरैया, जिला- बस्ती।
...प्रत्यर्थी/परिवादी
2-विजय वर्धन त्रिपाठी उम्र करीब 45 वर्ष पुत्र राम लोचन त्रिपाठी, साकिन- कुचेला, तप्पा- पुरैना, परगना- अमोढ़ा, तहसील- हर्रैया, जिला- बस्ती।
.प्रत्यर्थी/विपक्षी
समक्ष:-
1-माननीय श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्य।
2-माननीय श्री जुगुल किशोर, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: डा0 उदयवीर सिंह,विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक- 31-08-2015
माननीय श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्य, द्वारा उदघोषित
निर्णय
अपीलकर्ता ने यह अपील जिला उपभोक्ता फोरम बस्ती द्वारा परिवाद संख्या- 473/1998 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 19-02-2001 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई है। जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा निम्न आदेश पारित किया गया है:-
“उपभोक्ता परिवाद सं0- 473/1998 विपक्षी सं0- 1 व 2 के विरूद्ध एकल व संयुक्त रूप से इस निर्देश के साथ स्वीकार किया जाता है कि वे वादगत बचतपत्रों के रकमों का भुगतान परिवादी व विपक्षी सं0-3 को संयुक्त रूप में करने हेतु उपक्रम अविलब्ब करें और इस हेतु विपक्षी सं0-1 व 2 का दायित्व बचत पत्र की परिपक्वता राशि अनावश्यक रूप से रोकने के लिए 18 प्रतिशत प्रतिवर्ष के बजाए के लिए भी उत्तरदायी है। परिवादी को यह निर्देश किया जाता है कि इण्डेमिनटी बांड को परिवाद के साथ पत्रावली पर प्रस्तुत किया है, उसे वापस लेकर डाक विभाग को प्रस्तुत करें, जिससे डाक विभाग पूरा कराकर भुगतान की कार्यवाही तुरन्त सुनिश्चित करेंगे। ब्याज की राशि
(2)
परिवादी के प्रथम आवेदन की तिथि दिनांक 13-05-1996 से भुगतान की अवधि का होगा।”
संक्षेप में केस के तथ्य इस प्रकार से हैं कि विपक्षी सं0-3 विजयवर्धन के िपता श्री राम लोचन त्रिपाठी ने दिनांक 04-06-1981 को डाकघर कप्तानगंज, जिला- बस्ती से राष्ट्रीय बचत पत्र रूपया 25,000-00 का खरीदा जिसमें परिवादी तथा विपक्षी सं0-3 संयुक्त रूप से नामिनी नामित किये गये। श्री राम लोचन का देहान्त दिनांक 04-05-1983 को हो गया और उक्त बचत पत्र की परिपक्वता दिनांक 04-06-1998 को हुई। मूल धारक स्व0 राम लोचन की मृत्यु के उपरान्तु अवधि पूरी होने पर जब प्रार्थना पत्र भुगतान के लिए निवेदन उन बचत पत्रों के लिए किया गया तो उस पर कोई कार्यवाही नहीं किया गया जबकि परिवादी और विपक्षी सं0-3 उन बचत पत्र के लाभ का संयुक्त रूप से अधिकारी है, लेकिन विपक्षी सं0-3 के प्रभाव में आकर विपक्षीगण भुगतान नहीं कर रहे हैं। इन कथनों के साथ यह उपभोक्ता परिवाद सभी बचत पत्रों का विवरण देते हुए प्रस्तुत किया गया।
जिला उपभोक्ता फोरम के समक्ष प्रतिवादीगण सं0-1 व 2 की ओर से लिखित उत्तर प्रस्तुत किया गया और यह कथन में स्वीकार किया गया कि रूपया 25,000-00 के बचत पत्र विपक्षी सं0-3 के पिता ने दिनांक 04-06-1981 को खरीदा था और आवेदन पत्र में परिवादी तथा विपक्षी सं0-3 के नाम का उल्लेख होना भी स्वीकार किया गया है, लेकिन गवाही धारक द्वारा न कराये जाने का कथन किया गया है। आगे यह भी कथन किया गया है कि मूल धारक के उत्तराधिकारी के रूप में निर्धारित आवेदन पत्र परिवादी द्वारा नहीं किया गया। इस कारण भुगतान देना सम्भव नहीं है। लिखित उत्तर में यह भी कथन किया गया है कि परिवादी मूल धारक का भतीजा है और उसका एक मात्र उत्तराधिकारी विपक्षी सं0-3 उसका पुत्र है और सक्षम न्यायालय द्वारा उत्तराधिकारी प्रमाण पत्र भी प्रस्तुत नहीं किया गया, इसलिए परिवाद मान्य नहीं किया जा सकता है।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता डा0 उदयवीन सिंह, उपस्थित है। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को सुना गया। पत्रावली एवं अपील आधार का अवलोकन किया गया।
जिला उपभोक्ता फोरम ने सारे तथ्यों साक्ष्यों का हवाला देते हुए कहा है कि मूल धारक श्री राम लोचन विपक्षी सं0-3 के पिता थे और विवादित बचत पत्रों को खरीदने का तथ्य
(3)
एवं उनके द्वारा परिवादी एवं विपक्षी सं0-3 को नामित करने के तथ्य को विवादित नहीं किया गया है। जिला उपभोक्ता फोरम के निर्णय से स्पष्ट है कि स्वयं विपक्षी सं0-3 जो मूल धारक के पुत्र है, उसका कोई लिखित उत्तर प्रस्तुत नहीं किया गया है और न कोई साक्ष्य प्रस्तुत किया है और यह भी कहा गया है कि इससे विपक्षी सं0-1 व 2 के इस कथन की पुष्टि होती है कि वह एक मात्र उत्तराधिकारी मूल धारक के है और इस हेतु कोई साक्ष्य अथवा प्रमाण पत्र डाक विभाग की ओर से नहीं प्रस्तुत किया गया है। यह स्पष्ट है कि विपक्षी सं0-3 अपने पिता के एक मात्र उत्तराधिकारी है। इस बचत पत्रों के सम्बन्ध में यह भी कहा गया है कि डाक विभाग के द्वारा ऐसा कोई प्रलेख प्रस्तुत नहीं किया गया है अथवा साक्ष्य भी प्रस्तुत नहीं किया गया है, इससे पता चले कि विपक्षीसं0-3 द्वारा कोई आपत्ति परिवादी के ऊपरोक्त करों आवेदनों के सम्बन्ध में विभाग को लिखा हो और यह भी कहा गया है कि यह तथ्य स्पष्ट है कि परिवादी के तरफ से भेजे गये बचत पत्रों के उत्तर में भी डाक विभाग द्वारा कोई कार्यवाही नहीं किया गया है। जिला उपभोक्ता फोरम ने यह भी पाया कि डाक विभाग द्वारा अपने रजिस्टर में प्रविष्टि नामिनी के रूप में अंकित न करने के कारण डाक विभाग का नियम व उप नियम नहीं बदल सकता है, बल्कि यह तथ्य उपरोक्त नियमों का अनुपालन न करने से डाक विभाग के अकुशलता व अकर्मण्यता का परिचायक बनाता है और यदि डाक विभाग द्वारा सम्बन्धित रजिस्टर में नामिनी के रूप में परिवादी एवं विपक्षी सं0-3 को नामिनी के रूप में अंकित नहीं किया गया है तो यह विभाग की अकुशलता व अर्कण्यता है, जिसके लिए न तो मूल धारक कुछ कह सकता था और न उनके मृत्यु के उपरान्त परिवादी अथवा विपक्षीसं0-3 है।
मौजूदा केस से यह भी स्पष्ट है कि बचत पत्रों के मूल धारक राम लोचन का पुत्र प्रतिवादी सं0-3 विजय वधर्न त्रिपाठी है, लेकिन उसने कोई अपील पेश नहीं किया है कि मृत्यु के बाद बचत पत्रों का पैसा केवल उसे मिलना चाहिए। इस प्रकार से हम यह पाते हैं कि जिला उपभोक्ता फोरम के द्वारा जो निर्णय/आदेश पारित किया गया है, वह विधि सम्मत् है, उसमें हस्तक्षेप किये जाने की कोई गुंजाइश नहीं है। अपीलकर्ता की अपील खण्डित होने योग्य है।
(4)
आदेश
अपीलकर्ता की अपील खण्डित की जाती है तथा जिला उपभोक्ता फोरम बस्ती द्वारा परिवाद संख्या- 473/1998 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 19-02-2001 की पुष्टि की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वयं वहन करें।
(राम चरन चौधरी) ( जुगुल किशोर )
पीठासीन सदस्य सदस्य
आर.सी. वर्मा, आशु. कोर्ट नं0 4