राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
(मौखिक)
अपील संख्या-1364/2022
शिवराज सिंह बनाम कोटेक महिन्द्रा ओल्ड म्यूचुअल लाईफ इंश्योरेंस लि0 व अन्य
दिनांक: 19.12.2022
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील इस न्यायालय के सम्मुख जिला उपभोक्ता आयोग, मेरठ द्वारा परिवाद संख्या-473/2011 शिवराज सिंह बनाम कोटेक महिन्द्रा ओल्ड म्यूचुअल लाईफ इंश्योरेंस लिमिटेड व अन्य में पारित आदेश दिनांक 16.10.2019 के विरूद्ध योजित की गयी है।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा दिनांक 16.10.2019 को निम्न आदेश पारित करते हुए परिवाद निरस्त किया गया:-
''पत्रावली प्रस्तुत हुई। पुकार कराई गई। प्रतिपक्षी की ओर से विद्वान अधिवक्ता उपस्थित है। मगर, परिवादी की ओर से स्थगन प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया है।
उल्लेखनीय है कि यह पत्रावली दिनॉंक: 01.08.2012 से परिवादी के साक्ष्य हेतु ही निरन्तर नियत चली आ रही है। आज भी परिवादी के साक्ष्य हेतु ही नियत है। मगर, आश्चर्य जनक तथ्य यह है कि वर्ष-2012 के बाद से परिवादी द्वारा आज तक अपना कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है तथा आज भी उसकी ओर से स्थगन प्रार्थना पत्र ही प्रस्तुत किया जा रहा है। अत: ऐसी स्थिति में, हमारे मत में, आज के स्थगन का कोई पर्याप्त आधार नहीं है, अत: स्थगन प्रार्थना पत्र निरस्त किया जाता है।
वर्ष-2012 से आज का परिवादी की ओर से साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है। अत: ऐसी स्थिति में साक्ष्य के अभाव में परिवादी का यह उपभोक्ता परिवाद खण्डित किया जाता है।
निर्णित पत्रावली नियमानुसार अभिलेखागार संचित की जावे।''
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री सत्य प्रकाश पाण्डेय द्वारा कथन किया गया कि यद्यपि वास्तव में परिवादी का प्रस्तुत परिवाद एकतरफा निरस्त होने में कोई दोष नहीं है वरन् परिवादी के
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अधिवक्ता द्वारा परिवादी को उचित मार्गदर्शन एवं सूचना न दिये जाने के कारण परिवाद निरस्त हुआ।
उक्त कथन मेरे विचार से उचित नहीं है क्योंकि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा अपने आदेश में स्पष्ट रूप से उल्लिखित किया गया है कि परिवादी को साक्ष्य प्रस्तुत किये जाने हेतु वर्ष 2012 से लगातार समय प्रदान किया जाता रहा, जो आदेश की तिथि से लगभग 07 वर्ष की अवधि के पश्चात् भी प्रस्तुत नहीं किया गया। तदनुसार परिवादी द्वारा घोर अनियमितता दर्शित होती है, जिस कारण प्रस्तुत अपील निरस्त होने योग्य है।
तदनुसार प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1