सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या-1229/2013
(जिला उपभोक्ता फोरम, द्वितीय बरेली द्वारा परिवाद संख्या-06/2012 में पारित निर्णय दिनांक 10.05.2013 के विरूद्ध)
नसीर अहमद पुत्र श्री आमिर अहमद निवासी वार्ड नं0 6 शीशगढ पोस्ट खास बरेली ।
. .अपीलार्थी/परिवादी
बनाम्
कोटेक महेन्द्रा बैंक प्रा0लि0 शाखा आफिस रतनदीप काम्प्लेक्स थाना कोतवाली जिला बरेली द्वारा शाखा प्रबन्धक।
. .......प्रत्यर्थी
समक्ष:-
मा० श्री राजेन्द्र सिंह सदस्य ।
मा0 श्री विकास सक्सेना सदस्य ।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री अरूण टण्डन विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं ।
दिनांक-01.04.2024
मा0 श्री विकास सक्सेना सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, जिला उपभोक्ता फोरम, द्वितीय बरेली द्वारा परिवाद संख्या-06/2012 में पारित निर्णय दिनांक 10.05.2013 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई है ।
संक्षेप में केस के तथ्य इस प्रकार हैं कि अपीलकर्ता ने अपने ट्रक संख्या: यूपी -25 एटी 1114 की बॉडी बनाने हेतु रु. 11,00,000/- की राशि 11% प्रति वर्ष ब्याज पर ऋण के रूप में प्राप्त की जो कि 46 आसान में देय है। प्रत्येक 33,085/- रुपये की मासिक किश्तें थी जिसमें 1,25,000/- रुपये की मार्जिन मनी और कई किश्तों सहित अपीलकर्ता द्वारा बड़ी राशि जमा की गई थी। कुछ समय बाद जब अपीलकर्ता को पता चला कि प्रतिवादी ने गलत लेखांकन किया है और बकाया राशि और पैनल ब्याज लगाकर भारी शेष भी दिखाया है तो अपीलकर्ता ने प्रतिवादी से अद्यतन खातों की मांग की लेकिन खाते प्रदान करने के बजाय प्रतिवादी ने शिकायतकर्ता को धमकी दी कि वाहन किसी भी समय जबरन जब्त कर लिया और सभी जमा राशि हड़पने और अनुबंध के नियमों और शर्तों के बिना वाहन बेचने की धमकी दी और अंततः 04-05-2010 को शिकायतकर्ता के वाहन को प्रतिवादी के गुंडागर्दी ने जबरन जब्त कर लिया और उसे भी हड़प लिया। समझौते के नियमों और शर्तों के बिना और शिकायतकर्ता को कोई मांग नोटिस दिए बिना सभी जमा राशियां जमा की गईं और जब प्रतिवादी ने शिकायतकर्ता को ट्रक सौंपने या वापस करने से इनकार कर दिया अत: जिला फोरम के समक्ष शिकायत दर्ज की गयी ।
विपक्षी की ओर से मामले का विरोध किया और कहा गया कि कुछ किश्तों में चूक हुई थी और वाहन को समझौते के नियमों और शर्तों के तहत जब्त किया गया है।
जिला फोरम ने विपक्षी के कथनों पर विश्वास करने के बाद शिकायतकर्ता की शिकायत को खारिज कर दिया जिससे क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी ।
अपील के आधारों में कहा गया है कि क्योंकि विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम ने मामले का निर्णय लेने में कानूनी गलती की है। अपीलार्थी द्वारा में प्रतिवादी के कर्मचारियों से संपर्क किया गया जो उसके वाहन के लिए ऋण देने के लिए सहमत हो गए। प्रतिवादी से 11,00,000/- रुपये की राशि ली और ट्रक नंबर: यूपी- 25/एटी/1114 खरीदा और उसे प्रतिवादी को गिरवी रख दिया गया। पुनर्भुगतान 46 मासिक किश्तों में किया जाना था। प्रतिवादी ने विभिन्न कोरे कागजों और प्रपत्रों पर अपीलकर्ता के हस्ताक्षर प्राप्त किए और बार-बार अनुरोध के बावजूद शिकायतकर्ता को उसकी कोई प्रति प्रदान नहीं की गई। इस बात पर सहमति हुई कि अपीलकर्ता मालिक था और वाहन ऋण की सुरक्षा के रूप में प्रतिवादी के पास बंधक रहेगा शिकायतकर्ता को मूल ऋण राशि रु. 11,00,000/- को 11% वार्षिक ब्याज के साथ 46 में चुकाना था। 30,085/- रूपये की किस्तें। शिकायतकर्ता ने अपेक्षित परमिट प्राप्त करने के बाद अपनी आजीविका के लिए वाहन चलाया और अपीलकर्ता ने कई किस्तें जमा कीं और कुल 8,78,875/- रुपये की राशि जमा की जिसमें अपीलकर्ता द्वारा 1 रुपये की मार्जिन मनी सहित बड़ी राशि जमा की गई थी। 25,000/- और बॉडी बनाने का शुल्क 3,79,940/- रुपये और कई किश्तें बाद में उन्होंने अत्यधिक और गलत राशि की मांग की जिस पर शिकायतकर्ता ने आपत्ति जताई और उसे खाते/देय राशि का विस्तृत विवरण प्रदान करने के लिए लिखित अनुरोध किया और अंततः 04-05-2010 को शिकायतकर्ता के वाहन को प्रतिवादी के गुंडों द्वारा जबरन जब्त कर लिया गया और समझौते के नियमों और शर्तों के बिना और शिकायतकर्ता को कोई मांग नोटिस दिए बिना सभी जमा राशि भी हड़प ली गई।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क सुने तथा पत्रावली का सम्यक अवलोकन किया । प्रत्यर्थी पर नोटिस की तामीली पर्याप्त है परन्तु प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ ।
विद्वान जिला फोरम के प्रश्नगत निर्णय के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि परिवादी ने प्रश्नगत ट्रक हायर परचेज एग्रीमेंट पर होना स्वीकार किया है । परिवादी द्वारा अपने शपथपत्र में इस कािन को स्वीकार किया गया है कि उसने विपक्षी से 11 लाख 70 हजार रू0 की धनराशिका एग्रीमेंट किया था जिसका भुगतान 45 समान किस्तों में करना था। परिवादी का यह कथन है कि परिवादी 11 माह तक लगातार किस्ते जमा करता रहा बाद में उसे ज्ञात हुआ कि विपक्षी/प्रत्यर्थी ओवरडयू व ब्याज गलत तरीके से लगा रहा है। इस पर परिवादी ने हिसाब मांग परन्तु विपक्षी ने हिसाब नहीं दिया। विद्वान जिला फोरम ने निर्णय दिया है कि परिवादी द्वारा ऋण का भुगतान नहीं किया गया है जोकि उसके द्वारा स्वयं स्वीकार किया गया है जबकि एग्रीमेंट के अनुसार समान किस्तों में धनराशि अदा करनी थी । इस प्रकार स्वयं परिवादी स्वीकार करता है कि उसके द्वारा हायर परचेज एग्रीमेंट के अुनसार धनराशि की अदायगी नहीं की गयी इसलिए प्रत्यर्थी/विपक्षी द्वारा प्रश्नगत ट्रक अपने कब्जे में लिया न्यायोचित प्रतीत होता है जिसे विद्वान जिला फोरम ने उचित प्रकार से निर्णीत करते हुए परिवाद खारिज किया है।
अपील के स्तर पर भी अपीलार्थी/परिवादी की ओर से यह स्पष्ट नहीं किया गया कि किस प्रकार उसने विपक्षी द्वारा वसूल की जा रही धनराशि को अनुचित पाया जबकि एग्रीमेंट के अनुसार 11 माह से परिवादी किस्त अदा कर रहा था जोकि उभय पक्ष के मध्य करार के अनुसार ही था। अत: अपील के स्तर पर भी यह तथ्य स्पष्ट न होने के कारण तथा इस संबंध में कोई साक्ष्य न दिए जाने के कारण अपीलार्थी कोई अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी नहीं पाया जाता है ।
इस सम्बन्ध में मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्णय सिटीकार्प मारूति फाइनेंस लि0 बनाम एस विजय लक्ष्मी प्रकाशित IV 2011 सीपीजे पृष्ठ 67 (एससी) का उल्लेख करना उचित होगा जिसमें मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि यदि ऋण दाता द्वारा करार की शर्तो के अनुसार वाहन अपने कब्जे में लिया जाता है तो इसमें कोई अवैधता नहीं मानी जा सकती है। इसी प्रकार मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय मैग्मा फिनकार्प लि0 प्रति राजेश कुमार तिवारी प्रकाशित 10 (एससीसी) पृष्ठ 399 में भी मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि नियम व शर्तो के अधीन व करार के अनुसार यदि ऋण से संबंधित वाहन कब्जे में लिया जाता है तो इसे अवैध कृत्य नहीं माना जा सकता है।
अत: जिला फोरम का निर्णय उचित है और जिला फोरम द्वारा परिवाद उचित प्रकार से निरस्त किया गया है। जिला फोरम के प्रश्नगत निर्णय में हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं है।
परिणामत: अपील खारिज होने योग्य है।
आदेश
अपील खारिज की जाती है।
अपील व्यय उभय पक्ष पर ।
इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार पक्षकारों को उपलब्ध करायी जाए।
आशुलिपिक/वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया ।
(विकास सक्सेना) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
सुबोल श्रीवास्तव
(पी0ए0(कोर्ट नं0-2)