जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 224/2014
लक्ष्मण पुत्र श्री रामबक्ष, जाति-जाट, निवासी-खोडवा, तहसील-खींवसर, जिला- नागौर, नाबालिग जरिये कुदरती संरक्षक/पिता रामबक्ष पुत्र श्री तिलोकराम, जाति-जाट, निवासी-खोडवा, तहसील-खींवसर, जिला-नागौर (राज.)। -परिवादी
बनाम
1. कोटा केरियर पाॅईन्ट, एच.पी. पेट्रोल पम्प के सामने, डीडवाना रोड, कुचामन षहर, तहसील-कुचामन, जिला-नागौर जरिये प्रबन्धक।
-अप्रार्थी
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री रमेष कुमार ढाका, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री ओमप्रकाष पुरोहित, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थी।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
आ दे ष दिनांक 31.03.2016
1. यह परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादी ने अप्रार्थी कोटा केरियर पोईन्ट के प्रचार-प्रसार से प्रभावित होकर दिनांक 04.07.2013 को 12 वीं विज्ञान वर्ग में एडमिषन लिया। प्रवेष के वक्त परिवादी के पिता रामबक्ष भी साथ थे तथा अप्रार्थी ने कहा कि आप चाहो तो संस्थान में कुछ दिन ट्राई क्लासेज ले सकते हो एवं पढाई व वातावरण समझने पसंद नहीं आये तो फीस वापस ले सकते हो। परिवादी ने प्रवेष के वक्त कोर्स की फीस 25,000/- रूपये भी जमा करवा दिये तथा पैसे जमा करवाने के बाद परिवादी गांव आया तथा चार-पांच रोज बाद परिवादी वापिस आकर दस बारह दिन ट्राई क्लासेज ली तथा पुनः गांव आ गया लेकिन दिनांक 27.07.2013 को एक्सीडेंट हो जाने के कारण अप्रार्थी को दुर्घटना की सूचना देते हुए बताया कि वह स्कूल पढने के लिए नहीं आ सकता ऐसी स्थिति में फीस की राषि 25,000/- रूपये वापिस दे दिजिये, तब अप्रार्थी ने फीस वापस देने का आष्वासन दिया। परिवादी ने बताया है कि बाद में कई बार फीस वापिस मांगे जाने पर भी अदायगी नहीं की। ऐसी स्थिति में अप्रार्थी को जरिये अधिवक्ता नोटिस भी भिजवाया लेकिन उसके बावजूद अप्रार्थी ने न तो नोटिस का जवाब दिया और न ही फीस की राषि वापस दी। परिवादी ने उपर्युक्त आषय का परिवाद पेष कर निवेदन किया है कि फीस राषि 25,000/- रूपये मय ब्याज वापिस दिलाये जाने के साथ ही परिवाद खर्च व मानसिक संताप हेतु भी 25,000/- रूपये दिलाये जायें। परिवादी ने परिवाद के समर्थन में स्वयं का षपथ-पत्र, फीस जमा कराने की रसीद तथा प्रार्थी की एडमिषन टिकट की फोटो प्रति भी पेष की है।
2. उक्त के विपरित अप्रार्थी द्वारा परिवादी का अप्रार्थी के स्कूल में प्रवेष लेना तथा 25,000/- रूपये फीस जमा करवाना स्वीकार करते हुए बताया गया है कि अप्रार्थी ने ट्राई क्लासेज लेने एवं पसंद नहीं आने पर फीस लौटाने का नहीं कहा था। ऐसी स्थिति में परिवादी फीस की राषि वापिस प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। अप्रार्थी ने बताया है कि परिवादी ने उनकी संस्था में लगातार षिक्षा प्राप्त की है तथा अप्रार्थी ने परिवादी को कभी षिक्षा प्राप्त करने के लिए मना नहीं किया। यह भी बताया गया है कि परिवादी ने बारहवीं कक्षा की परीक्षा देने हेतु फार्म भी अप्रार्थी की संस्था के माध्यम से भरा था एवं माध्यमिक षिक्षा बोर्ड, अजमेर से परिवादी को रोल नम्बर के साथ ही कुचामनसिटी परीक्षा केन्द्र भी आवंटित हुआ था। अप्रार्थी ने बताया है कि यदि कोई विद्यार्थी अपने निजी कारणों से षिक्षा प्राप्त नहीं करता है तो अप्रार्थी का फीस लौटाये जाने का कोई दायित्व नहीं रहता है। अप्रार्थी ने बताया है कि परिवादी ने गलत एवं मनगढत तथ्यों के आधार पर मात्र अप्रार्थी को परेषान करने के लिए यह परिवाद पेष किया है जो मय खर्चा खारिज किया जावे। अप्रार्थी ने जवाब के समर्थन में षपथ-पत्र के साथ ही कुछ दस्तावेज भी पेष किये हैं।
3. बहस सुनी जाकर पत्रावली का अवलोकन किया गया। परिवादी मुख्य रूप से अपना परिवाद इस आधार पर लेकर उपस्थित हुआ है कि दिनांक 27.07.2013 को प्रार्थी का एक्सीडेंट हो जाने के कारण वे गंभीर रूप से घायल हो गया। इसी कारण पढने के लिए नहीं आ सका। परिवादी द्वारा इस सम्बन्ध में एम.डी. हाॅस्पीटल, जोधपुर का डिस्चार्ज टिकट प्रदर्ष 2 पेष किया गया है जिसके अनुसार परिवादी लक्ष्मण दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण दिनांक 27.07.2013 से 05.08.2013 तक अस्पताल में भर्ती रहा है। परिवादी द्वारा इस दस्तावेज के अलावा अन्य कोई ऐसी साक्ष्य पेष नहीं की गई है जिसके आधार पर यह माना जा सके कि प्रार्थी पूरा वर्श पढने के लिए स्कूल जाने में असमर्थ रहा हो। परिवादी द्वारा ऐसा भी कोई कथन नहीं किया गया है कि अप्रार्थी की संस्था में पढाई का अच्छा स्तर नहीं रहा हो अथवा अप्रार्थी संस्था ने प्रार्थी को अध्ययन करने से मना किया हो।
अप्रार्थी पक्ष द्वारा षुल्क विवरण प्रदर्ष ए 1, प्रार्थी की उपस्थिति रजिस्टर की प्रतियां क्रमषः प्रदर्ष 2, प्रदर्ष 3, प्रदर्ष 4 व प्रदर्ष 5 पेष करने के साथ ही छात्र से सम्बन्धित विस्तृत सूचना प्रदर्ष 6 तथा माध्यमिक षिक्षा बोर्ड, अजमेर से आवंटित रोल नम्बर तालिका प्रदर्ष 8 भी पेष किये हैं। अप्रार्थी द्वारा प्रस्तुत उपर्युक्त दस्तावेजात के साथ-साथ परिवादी द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजात का अवलोकन करें तो यह स्वीकृत स्थिति है कि प्रार्थी लक्ष्मण ने दिनांक 04.07.2013 को अप्रार्थी षिक्षण संस्था में कक्षा 12 में प्रवेष लेते हुए षुल्क की प्रथम किष्त 25,000/- रूपये जमा करवाई थी। परिवादी द्वारा डिस्चार्ज टिकट प्रदर्ष 2 के अनुसार प्रार्थी दिनांक 27.07.2013 से दिनांक 05.08.2013 तक मात्र दस दिन अस्पताल में भर्ती रहा है।
प्रार्थी के उपस्थिति रजिस्टर प्रदर्ष ए 2 के अनुसार प्रार्थी दिनांक 04.07.2013 से 26.07.2013 तक लगातार अप्रार्थी षिक्षण संस्था में अध्ययन हेतु उपस्थित रहा है। इसके बाद माह अगस्त में भी दिनांक 16 व 17 अगस्त, 2013 को षिक्षण संस्था में अध्ययन हेतु उपस्थित रहा है। इसके बाद कुछ दिन अनुपस्थित रहने के बाद पुनः 26 अगस्त को अध्ययन हेतु अप्रार्थी षिक्षण संस्थान में उपस्थित रहा है। माह सितम्बर, 2013 में भी दिनांक 07.09.2013 व उसके बाद 19 से 21 व 30 सितम्बर, 2013 को उपस्थित रहा है। इसी प्रकार दिनांक 04.10.2013, 09.10.2013 तथा 17 से 19 अक्टूबर को भी प्रार्थी अध्ययन हेतु गया है। अप्रार्थी द्वारा प्रस्तुत उपस्थिति रजिस्टर की फोटो प्रति के अवलोकन पर यही प्रतीत होता है कि प्रार्थी अपनी सुविधा अनुसार जब उसकी इच्छा हुई तब अप्रार्थी षिक्षण संस्थान में पढने के लिए चला गया तथा अधिकांष समय अनुपस्थित रहा है। अप्रार्थी द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजात से यह भी स्पश्ट है कि प्रार्थी ने अप्रार्थी की षिक्षण संस्थान के माध्यम से ही माध्यमिक षिक्षा बोर्ड, अजमेर में बारहवीं कक्षा की परीक्षा हेतु फार्म भरा था, जिस पर उसे रोल नम्बर व परीक्षा केन्द्र भी आवंटित हुआ था।
उपर्युक्त समस्त विवेचन को देखते हुए स्पश्ट है कि इस मामले में अप्रार्थी षिक्षण संस्था का कोई सेवा दोश होना नहीं पाया जाता है बल्कि स्वयं प्रार्थी अपने निजी कारणों से पढने के लिए नहीं गया। ऐसी स्थिति में परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करने योग्य नहीं रहता है।
माननीय उच्चतम न्यायालय ने सिविल अपील नम्बर 22532/2012, पी.टी. कौषी व अन्य बनाम ऐलन चेरिटेबल ट्रस्ट व अन्य ने दिनांक 09.08.2012 को पारित निर्णय में यही अभिनिर्धारित किया है कि षिक्षण संस्थाएं कोई सेवा प्रदान नहीं करती है। ऐसी स्थिति में ऐसे मामले उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्रावधान अनुसार उपभोक्ता मंच में चलने योग्य नहीं है। हस्तगत मामले में भी अप्रार्थी षिक्षण संस्था का कोई सेवा दोश होना नहीं माना जा सकता। परिणामतः परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
4. परिणामतः परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद खारिज किया जाता है। पक्षकारान खर्चा अपना-अपना वहन करें।
5. आदेष आज दिनांक 31.03.2016 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।राजलक्ष्मी आचार्य।
सदस्य अध्यक्ष सदस्या