राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
(मौखिक)
पुनरीक्षण संख्या-126/2024
डा0 दुर्गेश श्रीवास्तव, आई स्पेसलिस्ट, श्री राम जानकी नेत्रालय
बनाम
कु0 सुश्री बबिता रावत व एक अन्य
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
पुनरीक्षणकर्ता की ओर से उपस्थित : श्री अम्बरीश कौशल श्रीवास्तव,
विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षी सं01/कैविएटर की ओर से उपस्थित : श्री मुकुल कुमार शाही,
विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षी सं02 की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 12.12.2024
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत पुनरीक्षण याचिका इस न्यायालय के सम्मुख जिला उपभोक्ता आयोग, गोरखपुर द्वारा परिवाद संख्या-207/2017 कु0 सुश्री बबिता रावत बनाम डा0 दुर्गेश श्रीवास्तव व अन्य में पारित आदेश दिनांक 19.10.2024 के विरूद्ध योजित की गयी है।
जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा उपरोक्त आदेश दिनांक 19.10.2024 के द्वारा पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी संख्या-1 द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना पत्र दिनांक 25.09.2024 को निरस्त किया गया, जिसमें पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी संख्या-1 द्वारा परिवादिनी से बयान एवं जिरह करने की अनुमति हेतु प्रार्थना की गयी।
उभय पक्ष के अभिकथन एवं पत्रावली का सम्यक अवलोकन करने के उपरान्त जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा अपने निर्णय में निम्न तथ्य उल्लिखित किए गए:-
''अवलोकन से स्पष्ट है कि पत्रावली कई तिथियों से बहस हेतु नियत है। यदि विपक्षी सं0-1 को परिवादिनी से प्रतिपरीक्षा कराना ही था तब जब परिवादिनी की ओर से साक्ष्य प्रस्तुत किया
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गया, उसी समय प्रार्थनापत्र देकर प्रतिपरीक्षा करनी चाहिए थी। परिवादिनी की ओर से आपत्ति किया गया है कि उसके दाहिने ऑंख में जन्म से दिखाई नहीं देता था। बॉंयी ऑंख छोटी थी, जिससे आराम से दिखाई पड़ जाती है। वह स्नातक की शिक्षा बॉंये आंख से पढ़कर पूरी की। पहली बार दाहिने ऑंख में दर्द होने के बाद उसने विपक्षी सं0-1 को दिखाया, इस कारण उसके पूर्व का कोई प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना सम्भव नहीं है। जब परिवादिनी द्वारा आपत्ति में कहा गया है कि पहली बार मेरे दाहिने आंख में दर्द होने के उपरान्त विपक्षी संख्या-1 से ऑंख परिवार के लोगों ने दिखाया, उसके पूर्व कहॉं-कहॉं दिखाने का प्रयास किया गया, बताया जाना सम्भव नहीं है। विपक्षी सं0-1 द्वारा अपने प्रार्थनापत्र में विधि व्यवस्था का उल्लेख किया गया है, जो विधि के विपरीत है।
प्रस्तुत प्रार्थनापत्र विपक्षी सं0-1 की ओर से मामले को केवल विलम्बित करने एवं उलझाने के उद्देश्य से दिया गया है, इसलिए प्रार्थनापत्र विधि सम्मत न होने के कारण निरस्त होने योग्य है।''
मेरे द्वारा पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी संख्या-1 की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री अम्बरीश कौशल श्रीवास्तव एवं विपक्षी संख्या-1/परिवादिनी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री मुकुल कुमार शाही को सुना गया तथा जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत आदेश व पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का सम्यक परीक्षण व परिशीलन किया गया।
पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी संख्या-1 का प्रार्थना पत्र दिनांक 25.09.2024, वास्ते परिवादिनी से बयान एवं जिरह करने की अनुमति प्रदान करने हेतु, निरस्त किया जाना विधिसम्मत नहीं है।
पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्ता द्वारा मेरे सम्मुख माननीय उच्चतम न्यायालय के न्याय निर्णय Kaushik
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Narsinhbhai Patel & Ors. Versus M/s. S.J.R. Prime Corporation Private Limited & Ors., 2024 NCJ 592 (SC) की प्रति प्रस्तुत की। उपरोक्त निर्णय/वाद के तथ्य प्रस्तुत मामले के तथ्यों से भिन्न हैं, अत: लागू नहीं होते हैं।
विपक्षी संख्या-1/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि पुनरीक्षणकर्ता द्वारा मात्र मामले को विलम्बित करने तथा परिवादिनी को हैरान व परेशान करने के उद्देश्य से कालबाधित प्रार्थना पत्र जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रस्तुत किया गया, जिसे जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा निरस्त किया जाना विधिसम्मत है। अत: प्रस्तुत पुनरीक्षण याचिका मय हर्जाना निरस्त किए जाने योग्य है।
उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्ता द्वय को सुनने तथा समस्त तथ्यों एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए तथा जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत आदेश का परीक्षण व परिशीलन करने के उपरान्त मैं इस मत का हूँ कि परिवादिनी द्वारा जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख परिवाद वर्ष 2017 में प्रस्तुत किया गया था, जबकि पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी संख्या-1 द्वारा जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रार्थना पत्र दिनांक 25.09.2024 को अर्थात् लगभग 07 वर्ष से अधिक समय के उपरान्त अत्यधिक विलम्ब से परिवाद में अंतिम बहस के स्तर पर प्रस्तुत किया गया, जो प्रथम दृष्ट्या मामले को मात्र विलम्बित करने के उद्देश्य से प्रस्तुत किया जाना दर्शित होता है। अत: मेरे विचार से विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित आदेश विधिसम्मत है, जिसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। प्रस्तुत पुनरीक्षण याचिका मय 10,000/-रू0 (दस हजार रूपए) हर्जाना निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत पुनरीक्षण याचिका मय 10,000/-रू0 (दस हजार रूपए) हर्जाना निरस्त की जाती है।
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पुनरीक्षणकर्ता द्वारा उपरोक्त हर्जाना धनराशि 10,000/-रू0 (दस हजार रूपए) विपक्षी संख्या-1/परिवादिनी को इस निर्णय की तिथि से एक माह की अवधि में प्रदान की जावेगी।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1