राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-480/2016
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता फोरम, इटावा द्वारा परिवाद संख्या 39/2014 में पारित आदेश दिनांक 30.09.2015 के विरूद्ध)
NIMS UNIVERSITY, through it’s Registrar, Shobha Nagar, Jaipur-Delhi Highway, Jaipur (Rajasthan).
...................अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
KM. SURBHI CHATURVEDI, daughter of Shri Dinesh Choubey, resident of-54 Katra Sahib Khan, Police Station- Kotwali, District-Etawah (U.P.).
................प्रत्यर्थी/परिवादिनी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री संजय मिश्रा,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री उमेश कुमार शर्मा,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 21.06.2017
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-39/2014 कु0 सुरभि चतुर्वेदी बनाम निम्स यूनिवर्सिटी आदि में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, इटावा द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 30.09.2015 के विरूद्ध यह अपील उपरोक्त परिवाद के विपक्षी निम्स यूनिवर्सिटी की ओर से धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा उपरोक्त परिवाद विपक्षीगण संख्या-1 और 2 के विरूद्ध स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
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''परिवाद विपक्षी सं0-1 व 2 के विरूद्ध 4,23,983/-रू0 की वसूली हेतु स्वीकार किया जाता है उपरोक्त धनराशि पर वाद योजन की तिथि से वास्तविक भुगतान की तिथि तक 7 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज भी देना होगा। विपक्षी सं0-1 व 2 को आदेशित किया जाता है कि उपरोक्तानुसार धनराशि निर्णय के एक माह में परिवादी को अदा करें तथा इसी अवधि में परिवादी के सभी मूल शैक्षिक प्रमाण पत्र भी वापस करें।''
अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री संजय मिश्रा और प्रत्यर्थी/परिवादिनी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री उमेश कुमार शर्मा उपस्थित आए हैं।
मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
वर्तमान अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने जिला फोरम, इटावा के समक्ष परिवाद इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि जनपद इटावा में ‘दैनिक भास्कर’ समाचार पत्र में अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-1 निम्स यूनिवर्सिटी का विज्ञापन प्रकाशित होने पर प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-1 निम्स यूनिवर्सिटी के बी0एस0सी0 थियेटर फिल्म एण्ड टेलिविजन टैक्नोलॉजी में प्रवेश प्राप्त किया और सम्पूर्ण एडमीशन फीस 41,000/-रू0, 10,000/-रू0 हॉस्टल फीस तथा 4000/-रू0 परीक्षा फीस जमा किया, जिसमें से 51,000/-रू0 की धनराशि अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-1 के कानपुर
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स्थित कार्यालय ने दिनांक 10.09.2013 को विपक्षी संख्या-3 कैनरा बैंक के ड्राफ्ट के माध्यम से प्राप्त किया गया और सम्पूर्ण औपचारिकतायें पूरी करने के बाद प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने यूनिवर्सिटी में प्रवेश लिया और उसके हास्टल में दिनांक 18.09.2013 से 24.10.2013 तक रही, परन्तु वहॉं पर प्रत्यर्थी/परिवादिनी को अनेकों समस्यायें थीं और अपीलार्थी/विपक्षी यूनिवर्सिटी ‘University Grant Commission’ से पंजीकृत नहीं थी। अत: उसने अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-1 के वाइस चांसलर के0सी0 सिंह से दिनांक 24.10.2013 को मिली, जिन्होंने समस्याओं के निदान का आश्वासन दिया, परन्तु उसे पूरा नहीं कर सके। उसके बाद प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने अपीलार्थी/विपक्षी यूनिवर्सिटी की कमियों के सम्बन्ध में पत्र भी उसके कानपुर कार्यालय के माध्यम से लिखा, परन्तु पत्र की रजिस्ट्री ‘लेफ्ट’ की प्रविष्टि के साथ वापस आयी। उसके बाद प्रत्यर्थी/परिवादिनी दिनांक 17.02.2014 और 21.05.2014 को अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-1 निम्स यूनिवर्सिटी गयी और अपने मूल शैक्षणिक प्रमाण पत्र, सम्पूर्ण फीस व सामान आदि वापस करने को कहा तो अपीलार्थी/विपक्षी यूनिवर्सिटी ने ‘नो ड्यूज’ सर्टिफिकेट प्रस्तुत करने पर ही उक्त सामान वापस करने को कहा और उसका सामान वापस करने से इन्कार कर दिया।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादिनी का कथन है कि अपीलार्थी/विपक्षी ने धोखे से भारी धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादिनी से प्राप्त की है, जो ‘अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस’ और सेवा में त्रुटि है। उसका बी0एस0सी0 थियेटर फिल्म एण्ड टेलिविजन टैक्नोलॉजी का
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सिलेबस ‘University Grant Commission’ से Recognized नहीं है।
जिला फोरम के समक्ष विपक्षीगण संख्या-1 और 2 अर्थात् अपीलार्थी/विपक्षी निम्स यूनिवर्सिटी और उसके कानपुर कार्यालय की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ और कोई लिखित कथन प्रस्तुत नहीं किया गया। विपक्षी संख्या-3 कैनरा बैंक ने जिला फोरम के समक्ष उपस्थित होकर लिखित कथन प्रस्तुत किया और कहा कि उसका विपक्षीगण संख्या-1 और 2 से कोई सम्बन्ध नहीं है। उसने 51,000/-रू0 का बैंक ड्राफ्ट दिनांक 09.09.2013 को जारी किया था। उसे अनावश्यक पक्षकार बनाया गया है।
जिला फोरम ने अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-1 व उसके कानपुर कार्यालय विपक्षी संख्या-2 के विरूद्ध परिवाद की कार्यवाही एकपक्षीय रूप से करते हुए आक्षेपित निर्णय और आदेश उपरोक्त प्रकार से पारित किया है।
अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अपीलार्थी/विपक्षी निम्स यूनिवर्सिटी राजस्थान एक्ट 2008 के अन्तर्गत गठित की गयी है और यह जयपुर (राजस्थान) में स्थित है। उसकी कोई ब्रान्च जयपुर के अलावा कहीं स्थित नहीं है। उसके जयपुर कैम्पस में ही प्रवेश की सारी औपचारिकतायें पूरी की जाती हैं।
अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अपीलार्थी/विपक्षी यूनिवर्सिटी द्वारा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत परिभाषित सेवायें प्रदान नहीं की जाती हैं। अत:
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परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत ग्राह्य नहीं है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश विधि विरूद्ध है।
अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि जिला फोरम, इटावा को परिवाद ग्रहण करने की स्थानीय अधिकारिता नहीं है और न ही जिला फोरम, इटावा के क्षेत्राधिकार में कोई वाद हेतुक उत्पन्न हुआ है। अत: इस आधार पर भी जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अधिकार रहित और विधि विरूद्ध है।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत ग्राह्य है।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि परिवाद हेतु वाद हेतुक इटावा में उत्पन्न हुआ है क्योंकि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने अपीलार्थी/विपक्षी यूनिवर्सिटी का विज्ञापन इटावा में पढ़कर अपीलार्थी/विपक्षी यूनिवर्सिटी में प्रवेश लिया था।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता ने अपने तर्क के समर्थन में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बुद्धिस्ट मिशन डेंटल कालेज एण्ड हास्पिटल बनाम भूपेश खुराना व अन्य सिविल अपील संख्या-1135/2001 में दिया गया निर्णय दिनांक 13.02.2009 सन्दर्भित किया है।
मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
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परिवाद पत्र के कथन से ही यह स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने अपीलार्थी/विपक्षी निम्स यूनिवर्सिटी में सारी औपचारिकतायें पूरी करने के बाद प्रवेश लिया है और वहॉं दिनांक 18.09.2013 से 24.10.2013 तक रही है। उसके बाद वह यूनिवर्सिटी नहीं गयी है। निर्विवाद रूप से अपीलार्थी/विपक्षी निम्स यूनिवर्सिटी जयपुर (राजस्थान) में स्थित है। परिवाद पत्र की धारा-7 से स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी अपने पिता के साथ दिनांक 17.02.2014 और 21.05.2014 को अपीलार्थी/विपक्षी यूनिवर्सिटी में गयी है और अपने मूल शैक्षणिक प्रमाण पत्र, सम्पूर्ण फीस, हास्टल लगेज आदि सामान वापस किए जाने की मांग की है, जिस पर अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-1 की यूनिवर्सिटी ने उससे ‘नो ड्यूज’ सर्टिफिकेट देने को कहा है और ‘नो ड्यूज’ सर्टिफिकेट के बिना उसका सामान वापस करने से इंकार किया है। इस प्रकार परिवाद पत्र के कथन से ही यह स्पष्ट होता है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी की ग्रिवांस अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-1 के विरूद्ध उस समय शुरू हुई है जब वह अपना सामान जयपुर में उसके पास लेने गयी है और उसने ‘नो ड्यूज’ सर्टिफिकेट के बिना उसका सामान व शैक्षणिक प्रमाण पत्र, फीस आदि वापस करने से इंकार किया है। ऐसी स्थिति में परिवाद पत्र के कथन से यह स्पष्ट है कि वाद हेतुक जयपुर (राजस्थान) में उत्पन्न हुआ है। ऐसी स्थिति में अपीलार्थी/विपक्षी यूनिवर्सिटी का विज्ञापन इटावा में पढ़कर यूनिवर्सिटी में प्रवेश लेने के कारण वाद हेतुक इटावा में उत्पन्न होना नहीं कहा जा सकता है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी की ओर से ऐसा
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कोई साक्ष्य या अभिलेख पत्रावली पर नहीं लाया गया है, जिससे यह प्रमाणित हो कि वास्तव में अपीलार्थी/विपक्षी निम्स यूनिवर्सिटी का बी0एस0सी0 थियेटर फिल्म एण्ड टेलिविजन टैक्नोलॉजी का कोर्स Recognized नहीं है। परिवाद पत्र के कथन से ही यह स्पष्ट है कि अपीलार्थी/विपक्षी एक यूनिवर्सिटी है। अत: पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर यह मानने हेतु उचित आधार नहीं है कि अपीलार्थी/विपक्षी बी0एस0सी0 थियेटर फिल्म एण्ड टेलिविजन टैक्नोलॉजी का उक्त कोर्स चलाने हेतु अधिकृत नहीं है। अत: ऐसी स्थिति में प्रत्यर्थी/परिवादिनी की ओर से जो बुद्धिस्ट मिशन डेंटल कालेज एण्ड हास्पिटल बनाम भूपेश खुराना व अन्य में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय प्रस्तुत किया गया है, उसका लाभ प्रत्यर्थी/परिवादिनी को वर्तमान वाद के तथ्यों व साक्ष्यों के परिप्रेक्ष्य में नहीं दिया जा सकता है।
उपरोक्त विवेचना से यह स्पष्ट है कि वर्तमान परिवाद का वाद हेतुक जनपद इटावा, उत्तर प्रदेश में उत्पन्न नहीं हुआ है। अत: जिला फोरम, इटावा को परिवाद ग्रहण करने का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है। अत: ऐसी स्थिति में जिला फोरम, इटावा द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अधिकार रहित और विधि विरूद्ध है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर मैं इस मत का हूँ कि अपीलार्थी/विपक्षी निम्स यूनिवर्सिटी द्वारा प्रस्तुत अपील स्वीकार करते हुए जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्त कर परिवाद प्रत्यर्थी/परिवादिनी को इस छूट के साथ
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निरस्त किया जाना उचित है कि वह सक्षम फोरम के समक्ष अपना परिवाद विधि के अनुसार प्रस्तुत करने हेतु स्वतंत्र है।
उपरोक्त निष्कर्षों के आधार पर अपील स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्त करते हुए परिवाद प्रत्यर्थी/परिवादिनी को इस छूट के साथ निरस्त किया जाता है कि वह विधि के अनुसार सक्षम फोरम में अपना परिवाद प्रस्तुत करने हेतु स्वतंत्र है।
उभय पक्ष अपील में अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत इस अपील में जमा की गयी धनराशि ब्याज सहित अपीलार्थी को नियमानुसार वापस कर दी जाएगी।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1